17 December 2019

WISDOM ------ विभूतियों का सदुपयोग जरुरी है

  विभूति  अर्थात  विशेष  गुण  - क्षमता  से  संपन्न  व्यक्तित्व  l   विभूतियाँ  दुधारी  तलवार  की  तरह  होती  हैं   l   जहाँ  ये  सृजन  में  अपना  चमत्कार  प्रस्तुत  करती  हैं  ,  वहीँ  दिशा  भटकने  पर  भयंकर  विनाश  और  विध्वंस   के  दृश्य  भी  प्रस्तुत  करती  हैं  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '' वर्तमान  विध्वंसकारी  प्रवाह  में  भी  विभूतियों  के  भटकाव  को  स्पष्टत:  देखा  जा  सकता  है  l   धर्म - तंत्र  की  विभूतियाँ  आज  धर्मान्धता  , विद्वेष  एवं   असहिष्णुता  का  विष  घोलने  लगी  हैं  l  साहित्य  के  नाम  पर  किस  तरह  उथला , भड़काऊ   एवं   कुत्सित  सृजन  चल  रहा  है   उसे  सब  जानते  हैं   l   मनोरंजन  के  नाम  पर   धन , स्वास्थ्य  अवं  चरित्र  को  भ्रष्ट  करने  वाली   उत्तेजक  सामग्री  को  परोसा  जा  रहा  है   l   सत्ताधारी  राजनेता  एवं   अफसरशाही  भ्रष्टाचार  एवं   अपराध  में  लिप्त  हैं  l  लक्ष्मी  के  पुजारी  दिन - रात  अपनी  तिजोरियां  भरने  के  चक्कर  में  यह  भूल  गए  कि   कितने  लोग  धन  के  अभाव   से  परेशान     हैं   l   वर्तमान  संकट  विभूतियों  के  अपने  कर्तव्य  से  विमुखता  का  संकट  है   l   यदि  विभूतियाँ   स्वार्थ  से  थोड़ा  हटकर  सृजन  की  ओर   मुड़   जाएँ  , तो  युग  का  कायाकल्प  होने  में  देर  न  लगे   l  "
   आचार्य  श्री    आगे  लिखते  हैं  --- ' विभूतियाँ  यथार्थ  में  ईश्वरीय  अनुदान  है  l  यह  एक  विडम्बना  ही  है  कि   जिन्हे  विभूतियों  के  रूप  में  सौभाग्य  प्राप्त  होता  है  ,  उनके  साथ  प्राय;  एक  दुर्भाग्य  भी  जुड़ा  होता  है   l   वे  इस  ईश्वरीय  अनुग्रह  का  कारण  नहीं  समझ  पाते   और  उससे  जुड़े  उत्तरदायित्व  का  ध्यान  नहीं  रखते  l  ईश्वरीय  सृष्टि  में   हर  कार्य  व्यवस्थापूर्वक  ही  होता  है   l  निर्वाह  की  सुविधा  हर  प्राणी  को  उपलब्ध  होती  है   l   जिसे  इससे  अधिक  उपलब्ध  हो,   उसे  समाज   की  अमानत  समझकर  , समाज  के  हित   में , लोक - मंगल    के  लिए   उपयोग   किया  जाना  चाहिए  l  '
  आचार्य जी  का  कहना  है --- "  आवश्यकता  से  अधिक  उपयोग  वासना , तृष्णा  और  अहंता  के  बहकावे  में  किया  तो   जा  सकता  है  ,  किन्तु  ऐसे  में  ईश्वर प्रदत्त  अमानत  का   दुरूपयोग  होते  ही   प्रतिक्रिया  विभिन्न  रूपों  में  सामने  आती  है   l   ऐसा  करने  वालों  को  आत्मप्रताड़ना  ,  लोक - भर्त्सना   से  लेकर   ईश्वरीय  दंडविधान  का  कोपभाजन  बनना  पड़ता  है  l 
 अत:  हर  विभूतिवान  को   अपनी  विभूति  का  सदुपयोग  करने  के  लिए  सजग  रहना  चाहिए   l  इसी  मार्ग  पर  वह  जीवन  में  अभीष्ट  यश  और  संतोष  प्राप्त  कर  सकता  है   l  "