31 December 2020

WISDOM ------

   भरत   11  वर्ष   के सुकुमार  बालक  थे  l   उन्हें  शिक्षा - दीक्षा  उनकी  माँ  शकुंतला  ने  ही  दी  थी  l   माँ  ने  भरत  को  निरंतर  साहसी  बनने , प्राणवान - यशस्वी  बनने  की  प्रेरणा  दी  l बालक  भरत  को  माँ  से  शिक्षा  मिली  थी  कि  किसी  निरपराध  प्राणी  को  कभी  पीड़ा  नहीं  पहुँचाना  l बालक  भरत  जंगल  में  विचरण  कर  रहे  थे   उन्हें  सिंहशावकों  का  क्रंदन  सुनाई  पड़ा   l   वे  उस  दिशा  में  पहुंचे   तो  देखा  कि   पांच  भालुओं  ने   दो  सिंहशावकों  को  घेर  रखा  है  ,  जो  अपने  माता - पिता  से  बिछड़  गए  थे  l   जैसे  ही  एक  भालू  झपटा  , एक  तीर  सनसनाता  हुआ  आया  और  उनके  पास  के  शिलाखंड  को  तोड़  गया  l   यह  एक  चेतावनी  थी  l   सभी  की  निगाहें  भारत  पर  पड़ीं  l   बिना  विलम्ब  वे  सभी  भरत  पर  टूट  पड़े  l   भारत  ने  खड्ग  के  प्रहार  से  दो  भालुओं  के  शीश  धड़  से  अलग  कर  दिए  l   शेष  तीन  डर   कर  भाग  गए  l   दोनों  सिंहशावक  भरत  के  चरणों  में  लोट  गए  l   भरत  ने  दोनों  बच्चों  को  गोद   में  उठाया  ,  अपने  हृदय  से  लगाया   और  कहा --- " चलो  आज  तुम्हे  हमारी  माँ , हमारी  गुरु  के  दर्शन  कराएं  l "  जैसे  ही  पीछे  मुड़े  शावकों  के  माता - पिता  सिंह  और  सिंहनी  खड़े  थे  ,  उनकी  आँखों  में  कृतज्ञता   के  भाव  थे  l   वे  भरत  को   अपने  नन्हे  बालकों  सहित   आश्रम  तक  छोड़ने  आये  l   भरत   को  खेलने  के  लिए  दो  मित्र  मिल  गए  l   सिंह  के  दांत  गिनने  वाले   इसी  भरत के  नाम  पर  हमारा  राष्ट्र  भारतवर्ष   कहलाता  है   l 

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   ' गुलामी '  एक  मानसिकता  है  l   एक  निर्धन  व्यक्ति  जिसके  पास  कुछ  भी  खोने  को  नहीं  है  ,  वह  किसी  का  गुलाम  नहीं  होता  l   उसे  तो  केवल  अपने  और  अपने  परिवार  के  भरण - पोषण  की  चिंता  होती  है  l   इसके  लिए  वह  मेहनत , मजदूरी  सब  कुछ  करने   को तैयार  होता  है  l  फिर  पेट  की  आग  और  परिवार  की  जरुरत  उससे  जो  कुछ  भी  करा  लें  !   जिसके  पास  पद - प्रतिष्ठा , धन - वैभव  सब  कुछ  है  और  उन  सबसे  बढ़कर  तृष्णा  है  ,   ऐसा   व्यक्ति सबसे  ज्यादा  भयभीत  होता  है   l   वह  हमेशा  एक  अनजाने  भय  से  घिरा  रहता  है    कि   यदि  यह  सब  नहीं  रहा  तो  उसका  क्या  होगा   ?  उसका  अहंकार , उसकी  प्रतिष्ठा  सब  कुछ  धराशायी   हो  जायेगा  l    इसी  भय  के  कारण   वह  अपने  से  शक्तिशाली  की  गुलामी  करता  है  ,  और  वह  शक्तिशाली   अपने  से  भी  ज्यादा   शक्तिशाली  की  गुलामी  करता  है  ------ यह  क्रम  चलता  रहता  है  l  वैश्वीकरण  ने  इस   श्रंखला  को  बहुत  बढ़ा   दिया   है  l   अब  सब  एक  नाव  पर  सवार  हैं  l   मनुष्य  की  इस  तृष्णा  की  वजह  से  ही  संसार  में  अशांति  है  l 

30 December 2020

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   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  --- ' हमारी  भारतीय  संस्कृति  की  यह  विशेषता  है  कि  यहां   भिन्न - भिन्न  रूपों  में  उपासना  ' बहुदेववाद ' के माध्यम  से  प्रचलित  है  l  हम  चाहे  किसी  को  भी  मानें, भाव  परमपिता   परमेश्वर   के  प्रति  समर्पण  का  हो   ,  उनके  कार्य  को  आगे  बढ़ाने  का  ही  हो   l ------  सुप्रसिद्ध      तंत्रसाधक    स्वामी  सर्वानंद   काली  के  उपासक  थे  l   राजा  कृष्ण  उपासक  थे   l   राजधर्म  के  अंतर्गत   सभी  को   श्रीकृष्ण  को  ही   आराध्य  देव  मानने  का   राज्यादेश   था  l  उनसे  किसी  ने  शिकायत  की  कि   यह  साधु  अपनी  ही  चलाता   है  ,  राजधर्म  का  पालन  नहीं  करता  l  राजा  ने  पूछा  तो  सर्वानंद  ने  कहा  कि   जो  आप  करते  हैं  , वही  हम  करते  हैं  l   राजा  ने  कहा ---- हम  उपासना स्थली  देखेंगे  l  काली  का  फोटो  आपके  यहाँ  है  कि   नहीं  यह  भी  देखेंगे  l  सर्वानंद  स्वामी  ने  सब  कुछ  महामाया  पर  छोड़  दिया  l   राजा  के  साथ  आये  सभी  लोगों  ने  काली  की  मूर्ति  देखी ,  पर  राजा  को  वहां  श्री  कृष्ण  की  मूर्ति  दिखाई  दी   l   बाहर  आकर  बोले  ---- हमने  देख  लिया  , वह  कृष्ण  का  ही  उपासक  है  l   तुम  जबरदस्ती  उसकी  शिकायत  करते  हो  l   राजा  को  वहां  श्रीकृष्ण  दीखे   और  लोगों  को  काली   l   भिन्न - भिन्न  रूपों  में  भगवान  की  शक्तियां   हैं  ,  पर  एक  सच्चा  योगी    सभी  में  परमपिता  परमेश्वर   के  दर्शन  करता  है  l   यदि  यह  एकात्मता  का  भाव  बना  रहे   तो  धर्म  के  नाम  पर  होने  वाले  झगड़े    पैदा  ही  न  हों   l 

29 December 2020

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  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष   हर  मनुष्य  की  प्रकृति  में  बड़ी  गहराई   से  अपनी  जड़ें  जमाए   बैठे  हैं    और  हर  युग  में  उनका  रूप  देखने  को  मिलता  है  ll   त्रेतायुग  में   इनका  स्वरुप  दुर्बल  और  कमजोर  था   लेकिन  वर्तमान  समय  में   इनका  रूप   अत्यंत भयावह ,  भीषण  एवं  विकृत  हो  चुका  है   l    रामायण   हो  या  महाभारत    उनमे  ऐसे  अनेक  पात्र  मिल  जायेंगे  जिनमे  ये  मनोविकार    आश्रय  पा  रहे  थे   ------- राजा  दशरथ  महाप्रतापी   और  धर्मपरायण  राजा  थे  ,  परन्तु  वे  महारानी  कैकेयी  के  सौंदर्य  पर  मुग्ध  थे ,   और  अपने  पुत्र  राम  के  अतिशय  मोह  में  थे  l    मंथरा   में  ईर्ष्या  का  दुर्गुण  अपने  चरम  पर  था   l   वह  सदैव  भगवान  राम  से  ईर्ष्या  करती  थी  और  भरत   को  अधिक  महत्व   देती  थी   l  महारानी  कैकेयी  राम  पर   अधिक  वात्सल्य  लुटाती  थीं  ,  परन्तु  क्रोध ,  अहंकार  और  कुसंग   ऐसे महविष    हैं   जो  पवित्र  दिव्य  प्रेम  पर  भी  ग्रहण  लगा  देते  हैं  l  सबसे  अधिक  घातक   था ---  मंथरा     जैसी  निकृष्ट  दासी  का  कुसंग  l   इसी  कुसंग  ने   महारानी  कैकेयी  के  अहंकार  व  क्रोध  को   इतना  भड़का  दिया  कि   वे  राजा  दशरथ  से  राम  को  वनवास  और  भारत  को  राजगद्दी  मांग  बैठीं  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- प्रकृति  सत्पात्रों   का  चयन   श्रेष्ठता  और  सृजन  के  लिए  करती  है    l   कैकेयी  ने  वरदान  माँगा  ,  इसी  वजह   से भगवान  राम  ने  वन  में  रहकर  रावण  आदि  असुरों  का  विनाश  किया  और  रामराज्य  की  स्थापना  की  l   आचार्य श्री  कहते  हैं --- जिसकी  चेतना  जितनी  परिष्कृत  होगी   उसमे  इन  मनोविकार  की  जड़ें  उतनी  कमजोर  होगी   l   इस   युग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि   लोगों  की  चेतना  मूर्च्छित  है  इसलिए   ये  मनोविकार  और  आसुरी  प्रबृति  का  भयावह  रूप  सामने  है   l 

WISDOM ------

   महापंडित  राहुल  सांकृत्यायन   ईश्वर  और  धर्म  में  विश्वास  नहीं  करते  थे  l  उन्होंने  काशी   की  संस्कृत  पाठशाला  में  शिक्षा  प्राप्त  की  थी  l   देश - विदेश  भ्रमण  करने  के   पश्चात्   वे  अस्सीघाट  स्थित  अपनी  पुरानी   पाठशाला  में   अपने  बचपन  के   एक  नेत्रहीन  मित्र  से  मिलने  पहुंचे  l  मित्र  ने  उनसे  पूछा ---- " दुनिया  घूम  आए ,  कोई  नई  बात  बताओ  l  "  राहुल  सांकृत्यायन  बोले ---- " नई  बात  यह  है  कि   विज्ञान   ने  ईश्वर   को  मार  डाला   है   l  "   उनके  मित्र  उनके  कंधे  पर  हाथ  रखते  हुए  बोले  ----- " मेरा  अनुभव  भी  सुनो  l   असमय  मेरी  आँख  चली  गईं   और  मैं  बिना  आँखों  के  काशी   जैसे  नगर  में  आया  l   सोचता  था  कि   मुझ  जैसे  नेत्रहीन  व्यक्ति  का   गुजारा   इतने  बड़े  नगर  में  कैसे  होगा  l   परन्तु  एक  रात  मैंने   आँखें  न  होते  हुए  भी  देखा   कि   एक  धनुर्धारी   युवक   मेरे  कमरे  में  खड़ा  है   और  मुझे  निश्चिंत   होने  को  कह  रहा  है   l   वो  मेरे  इष्टदेव  श्रीराम  थे  l   अब  तुम  मेरे  इष्टदेव  को  नकारने  का  साहस  न  करना   l   "  ऐसा  कहते  हुए  उनके  मित्र  रो  पड़े  l   राहुल  सांकृत्यायन  की  आँखें  भी  सजल  हो  उठीं   और  वे  बोले  ---- " नहीं  मित्र  !  अब  मैं  तुम्हारी  आस्था  को  कभी   ठेस  नहीं   पहुंचाऊंगा   l  "

28 December 2020

WISDOM -----

   वर्तमान  में   सामान्य मनुष्य  से  लेकर  नेता , सेठ , साहूकार  पुण्य  कार्य  तो  बहुत  करते  हैं    इससे  संसार  में  सुख - शांति  होनी  चाहिए   लेकिन  भ्रष्टाचार  और  बेईमानी   इस  सुख - शांति  की  राह  में  दीवार  है  -----  एक  कहानी  है  ----   एक   गाँव  में   एक  सेठ जी  थे  l  बहुत  वैभव  था  उनके  पास  l   सत्संग  में  उनने  सुन  रखा  था  कि   दान - पुण्य  करने  से  मृत्यु  में  कष्ट  नहीं  होता   और  भगवान  के  दूत  लेने  आते  हैं  l   इसलिए  वे   अपने  गाँव  और  आसपास  के  क्षेत्रों  के  गरीबों  के  बच्चों  की  शिक्षा , , इलाज , रहने  की  व्यवस्था  आदि  के  लिए  अपने  अति विश्वासपात्र  लोगों  के  माध्यम  से   धन  भिजवाते  थे   और  कुछ  गरीबों  को  अपने  घर  में  अपने  हाथ  से  भोजन  परोसते  थे  l   सत्संग  का  प्रभाव  था  , सेठ जी  बड़े  निश्चिन्त  थे  कहते  थे  हमारे  लिए  तो  सीधा  वैकुण्ठ  से  विमान  आएगा  , विष्णु भगवान  के  दूत  आएंगे   और  ले  जायेंगे  l   उनके  चापलूस  उनकी  बड़ी  तारीफ़  करते   और  गरीबों  की  संख्या  भी  बढ़ाते  जाते  l   मृत्यु  तो  निश्चित  है  , आखिर  वो  दिन  भी  आ  गया  l   भगवान  के  दूत  तो  नहीं  आये ,  दरवाजे  पर  डरावने  यमदूत  खड़े  थे  उन्होंने  बड़ी  बेरहमी  से  सेठ  की  आत्मा   को खींचा   और  घसीटते  हुए  ले  चले  l   सेठ  बहुत  चिल्लाया  ---देखो  मेरे  लिए  लोग  कितने  दुःखी   हैं  ,  मैंने  कितने  पुण्य  किये  हैं  ,  मैं  देख  लूंगा  l '  यमदूतों  ने  उन्हें  चित्रगुप्त  महाराज  के  दरबार  में  पटक  दिया  l   हो - हल्ला  सुनकर  महाराज  सेठ   के पास  आये  पूछा  -  क्या  बात  है  ?  सेठ  ने  पूरी  कथा - गाथा  कही  कि   मैं  तो  पुण्यात्मा  हूँ  ,  आपके  दूतों  ने  बड़ा  कष्ट  दिया  l '  महाराज  ने  कहा --- चलो , रजिस्टर  देखें  , प्रकृति  में  इतनी  बड़ी  गलती  कैसे  हो  गई  ?  '  जब  रजिस्टर  देखा   तो  महाराज  ने  सेठजी  को  दिखाया  कि   देखो ,  तुमने  धन  भेजा  ,  लेकिन  पीड़ितों  का  कालम  तो  खाली   है ,  उन्हें   तो मिला  ही  नहीं  l '  अब  सेठ  बहुत  विलाप  करने  लगा  ,  मामला  धर्मराज  के  पास  पहुंचा   l   धर्मराज  ने  बहुत  गहराई   से अध्ययन  किया   और  कहा  देखो , तुम्हारे  अन्नदान   का तो  पुण्य  है    लेकिन  तुमने  स्वयं  बेईमानी  से  धन  अर्जित  किया   इस  कारण  तुम   लोगों को  सच्चाई  व  ईमानदारी  नहीं   सिखा   पाए  l   तुम्हारी  मदद  पहुँचने  से  पहले  ही   दबंगों  ने   विभिन्न  तरीकों  से  पीड़ितों  का  धन  हड़प  कर  उन्हें  और  पीड़ित  किया   इसलिए   तुम्हारे  खाते   में  पाप  का  स्तर  बढ़  गया  l   अब  तो  सेठ  सिसक -सिसक  कर  रोने  लगा   पर  अब  पछताए  क्या  होत ,  जब  चिड़िया  चुग  गई  खेत  l  धर्मराज   ने कहा  ---- प्रकृति  के  दंड विधान  के  अनुसार   जो  भोग  है  उससे  कोई  भी  नहीं  बचा  है  l   जब  फिर  से  धरती  पर  जन्म  हो   तो  लोगों  के  विचारों  को  परिष्कृत  करने  का  कार्य  करो ,  स्वयं  सच्चाई   की राह  पर  चलकर  ,  अपने  आचरण  से  लोगों   को शिक्षा  दो  l  सच्चाई  और  ईमानदारी  की  कमाई  ही  फलती  और  पुण्य  देती  है   l 

27 December 2020

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   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  एक  लेख  में अक्टूबर  1972  में  लिखा  था ---- '  आज  सर्वत्र  भय  का  साम्राज्य  है  l   हर  व्यक्ति  बेतरह  डरा  हुआ  है  l   अवांछनीय  और   अनुचित  को  जानते - मानते  हुए  भी   उसे  अस्वीकार  करने  का  साहस   नहीं  होता   l   अपनी    मौलिकता    मानो  मनुष्य  ने  खो  ही  दी  है  l   अपने  पास  उसकी  कोई  समझ  ही  नहीं  है  l   जो  कुछ  कहा ,  बताया  और   कराया  जा  रहा  है  ,  उसे  ही  पालतू  जानवर  की   तरह  मानने   और  करने  को  तैयार   रहने  वाली  मनोभूमि   एक  प्रकार   से  पराधीनता  के  पाश  में   जकड़ी  हुई  ही  है   l   ऐसा  बंधित  और   बाधित  व्यक्ति    शिक्षित  कैसे  कहा  जाए   ?  -------- पुरानी   दुनिया  अब  टूट  रही  है   l    युद्धों से --- दांव - पेचों  से  --- अभाव - दारिद्र्य  से  ---- शोषण - उत्पीड़न  से  ---- छल - प्रपंच  से    आदमी    आजिज  आ  गया    है   l   सुविधा - साधनों  की    अभिवृद्धि     के  साथ -साथ    दुर्बुद्धि   और   दुष्प्रवृतियों   की  बढ़ोत्तरी   भी    बेहिसाब  हो  रही  है   l   जो  चल  रहा  है   ,  उसे  चलने  दिया  जाये     तो  आज  का  समय  कल   शोषण  ,  वीभत्स  और  नग्न  रक्तचाप  के  रूप  में    सामने  आ  खड़ा  होगा    और  मानवीय  सभ्यता  बेमौत  मर    जाएगी   l   उस  स्थिति  को  बदले  बिना  कोई  चारा  नहीं  है   l   नई   दुनिया   अगर  न  बनाई  जा  सकी     तो  इस  बढ़ती  हुई  घुटन  से  मनुष्यता  का   दम   घुट  जायेगा   l  '

WISDOM -----

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना   है ---- ' प्रौढ़ता  का  संबंध   आयु  से  नहीं  विवेक  से    है  l    बड़प्पन  होना  चाहिए   l   '     एक  कहानी  है  -----  एक  बार  नदी  के  किनारे  की  रेत   पर  कुछ  बच्चे  खेल  रहे  थे  l   उन्होंने  उस  रेत   पर  ही   रेत   के  मकान  बनाए   थे  ,  और  उन  बच्चों  में  से  हर  एक   यह  कह  रहा  था  ,  यह  वाला  घर  मेरा  है  ,  कोई  कह  रहा  था  वह  वाला  मेरा  है   और  वही  सबसे  अच्छा  है  ,  उसके  जैसा  दूसरा  कोई   भी    नहीं    है   l   इसे  कोई  नहीं  पा  सकता  l   ऐसे  ही  कई  तरह  की  बातें  करते  हुए  वे  बच्चे  खेलते  रहे   l   जब  उनमें  से  किसी  ने   किसी  का   घर  तोड़  दिया   तो  उनमे  लड़ाई - झगड़ा  भी  खूब  हुआ  l  लेकिन  तभी  सांझ  का  अँधेरा  घिरने  लगा  l   अब  तो  बच्चों  को   अपने  घर  की  याद  सताने  लगी   l   अपने  घर  की  याद   आते  ही  उन्हें   झूठे  घरों  से  तनिक  भी  मोह   न  रहा   l   पूरे   दिन   जिन  घरों  के  लिए   उन्होंने   न जाने   कितने  इंतजाम  किए   थे   , सरंजाम  जुटाए  थे   ,  वे  सभी   जैसे  के  तैसे  पड़े   रह गए  l   इन  सारे  रेत   के  घरों  में    उनमें  से   किसी  का  कोई   मेरा - तेरा  न  रहा   l         वहीँ  पास  में  कुछ  दूर   खड़े   एक  साधु  बच्चों  का   यह  सारा  घटना  प्रसंग  देख  रहे  थे    l   वह  सोचने  लगे   कि    संसार  के  प्रौढ़  लोग  भी  क्या   बच्चों  की  तरह   रेत   के  घर  - भवन - महल   नहीं  बनाते  रहते   !  इन  बच्चों  को   तो  फिर  भी   सूरज  डूबने  के  साथ   अपने  घर   की याद  आ  गई  ,  परन्तु  जिन्हें  प्रौढ़   कहा  जाता  है   ,  उनका  तो  जिंदगी  की  सांझ  ढलने  पर  भी  विवेक  जाग्रत  नहीं  होता   और  ज्यादातर  लोग   अपने  अहंकार   और  अपने    स्वार्थ  के  साथ     मेरा- तेरा   कहते  हुए    संसार   छोड़  देते  हैं   l   इसलिए  कहते  हैं  कि   प्रौढ़ता  का  संबंध  आयु   से  नहीं ,  विवेक  से  है   l 

25 December 2020

WISDOM -----

  मार्टिन  लूथर  ईसाई  धर्म  के  प्रसिद्ध   एवं  विचारक  हुए  हैं  l   जब  उन्होंने  कुछ  प्रचलित   रूढ़िवादी  मान्यताओं  के  विरुद्ध   आवाज  उठाई  तो  कुछ   पुरातन पंथियों   ने   न  केवल   उनका  विरोध  करना  शुरू  किया  ,  बल्कि  उनको  व  उनके   सहयोगियों  को   भाँति - भाँति   से  प्रताड़ित   करना  भी   प्रारम्भ  कर  दिया   l   इन  सबसे  दुःखी   होकर   उनके  एक   शिष्य  ने  उनसे   एक  दिन  कहा  ---- " अब  बहुत  हो   चुका  !   आपकी  प्रार्थना  तो  भगवान   सुनते  हैं  ,  आप  उनसे   इन  दुष्टों   की  मृत्यु  का  आशीर्वाद  मांग  लीजिए  l  "  मार्टिन  लूथर  बोले  ----  "  यदि  मैं  भी  ऐसी  कामना  करूँ   तो  मुझमें    और  इन  नासमझों  में   क्या  अंतर  रह  जायेगा   ?  "   उनका  शिष्य   पुन:  बोला ---- " पर  आप  इन  जल्लादों  की  प्रवृति  तो  देखिए  l   ये   आप  जैसे  संत , दयालु   और  परोपकारी    के  साथ  कैसा  दुर्व्यवहार  करते  हैं   ?  "   मार्टिन  लूथर   बोले   ----- " इनके  और   मेरे  कर्मों   का  हिसाब   उसे  ही  रखने  दो  ,  जिसने  यह  दुनिया  बनाई  है  l   हमारा  कार्य  है    राग  व  द्वेष  से  मुक्त  होकर   शुभ  व  श्रेष्ठ   कर्मों  को  करना   l   धर्म   की   राह   पर  चलने  वाला   अंतत:  विजयी  ही   होता है   l "  यह  सुन  कर     उनके  शिष्य  का  माथा   स्वत:  ही  उनके  चरणों  में  झुक  गया   l 

WISDOM -----

   रामतनु  लाहिड़ी  कलकत्ता  के  प्रसिद्ध   समाज सुधारक  थे  l   एक  बार  वे  अपने  मित्र  के  साथ  कहीं  जा  रहे  थे   कि   उनकी  दृष्टि  सामने  से  आते  एक  व्यक्ति  पर  पड़ी  l  अभी  तक   उस व्यक्ति  ने  लाहिड़ी  जी  को  नहीं  देखा  था   l   वे  तुरंत  एक  पेड़  की  आड़  में  छिप  गए   और  उस  व्यक्ति  के  निकल  जाने  के  बाद  ही  वहां  से  निकले   l   उनके  मित्र  को  उनका  यह  व्यवहार  कुछ   विचित्र    सा  लगा  l    उसने  उनसे  ऐसा  करने  का  कारण  पूछा   तो  वे  बोले ---- " उन  सज्जन  ने  मुझसे  कुछ  रुपयों  का  उधार  लिया   है ,  हर  बार  मेरे  सामने  पड़ने  पर   वे  अनेक  प्रकार  के  झूठे  बहाने  बनाते  हैं  ,  जिससे  मेरा  मन  बड़ा  दुःखी   होता  है  l   धर्म   सिर्फ  स्वयं  द्वारा  किए   गए   सत्कर्मों  को   नहीं  कहते  ,  वरन  दूसरे   के  अनीतिपूर्ण   आचरण   को  न  होने   देना  भी   धार्मिकता  की  सच्ची  पहचान  है  l  "  उनका  उत्तर  सुनकर  उनके  मित्र  बड़े  प्रभावित  हुए  l 

24 December 2020

WISDOM -----

   भगवान  श्रीकृष्ण   गीता  में  कहते  हैं  कि   गुण   मानवीय  व्यक्तित्व  का  आधार  है  l  वे  कहते  हैं   व्यक्तियों  में  अंतर   मात्र  गुणात्मक  है  ,  उनके  अंदर  उपस्थित  गुणों  के  प्रभुत्व  का  है  l   जिस  गुण   का  प्रभाव  बढ़  जाये   ,  व्यक्ति  के  व्यक्तित्व  की   संरचना  वैसी  ही  हो  जाएगी  l  एक  व्यक्ति  जीवन  भर   एक  ही  व्यक्तित्व  नहीं  रहता  है   l   तभी  तो  अनेक  हत्याएं  करने   के  बाद  भी   अंगुलिमाल  भिक्षु  बन  जाता  है   और  वर्षों  तपस्या  करने  के  बाद  भी   रावण  असुर  बन  जाता  है   l   भगवान  कहते  हैं   जिस  गुण  का  आधिक्य  हुआ  ,  वह  गुण ,  अन्य  गुणों  को  दबाकर   आगे  बढ़ता  है   l 

WISDOM ----- काल ! सर्वोपरि है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " काल  ही  काली  है  ,  सबकी  माता  और  सबका  संहार  करने  वाली   काली  वह  शक्ति  है  , जो  इनसान ,  उसके  द्वारा  निर्मित  समस्त  संस्थानों  और  आंदोलनों  की   शाश्वत  तरंग  में   स्वयं  को  अभिव्यक्त  करती  है  l  काल  का  प्रवाह  प्रचंड  होता  है  ,  इस  प्रवाह  के  संग  जो  बहता  है  ,  वह  विकसित  होता  है  ,  परन्तु  जो  इसमें  बाधा  डालता  है  ,  वह  अनंत  शक्तिशाली  होने  के  बावजूद  मिट  जाता  है  l  '  आचार्य श्री   आगे  लिखते  हैं  ---- ' इस  संसार  में  हर  व्यक्ति  की  अपनी  भूमिका  होती  है  l   बुद्धिमत्ता  तो  यही  है   कि   काम  पूरा  होते  ही  उससे  विदा  ले  लेनी  चाहिए  l  काम  के  बाद  एक  पल  भी  ठहरना  अच्छा  नहीं  है  l   उन्होंने  इतिहास  का  उदाहरण   देते  हुए  लिखा  है  -- फ़्रांस  की  राज्य क्रांति  में   चार  व्यक्तियों ---- मीराबो ,  दांते  , रोब्सवियर  और  नेपोलियन  का  योगदान  था   l  मीराबो   ने   फ़्रांस की  राज्य क्रांति   को  जन्म    देने  में  बहुत  सहायता  की  , परन्तु  वही  उसका  विरोधी  भी  था   l  उसने  फ्रांसीसी   राज्य  क्रांति  के  पहिये  को  रोकने  का  प्रबल  प्रयत्न  किया   किन्तु  क्रांति  काल  की  अभिव्यक्ति  थी , क्रांति  थी  ईश्वर  की  इच्छा  l   क्रांति  तो  रुकी  नहीं   , काली  ने  मीराबो   को  नष्ट  कर  दिया   और  क्रांति  जारी  रही  l  काली  ने  दांते   और  रोब्सवियर    को  भी  समाप्त  कर  दिया  l   लेकिन  नेपोलियन  ने  बड़ी  भारी  गलती  की  ,  वह  काली  के  निर्देश  को  न  समझ  सका  l ' आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' जो  अपनी  महत्ता  की  निश्चित  अवधि  के  बाद  भी   ठहरे  रह  जाते  हैं  उनका  भाग्य  सुखमय  नहीं  होता   l   नेपोलियन  ने  अनेक  महान  कार्य  किये   किन्तु  उसका  अवसान  अत्यंत  दर्दनाक  हुआ  l    अहंकार  के  कारण  महाप्रतापी  सम्राट  और  महान  कार्य  करने  वाले  भी   काल  की  गहरी  खाई  में  जा  गिरते  हैं  ,  उनकी  ख्यातियों  और  उपलब्धियों  को  रौंदते  हुए  काली  आगे  बढ़ती  है    परन्तु  जो  लोग  स्वयं  को  भगवान  का  यंत्र  मानकर   काम  करते  हैं  ,  समाज  में  उन्ही  की  प्रतिष्ठा  होती  है  l  वही  महाकाली   का यंत्र  बनता  है  l   काली  उन्ही  को माध्यम  बनाकर  कार्य  करती  है   l  '

23 December 2020

WISDOM ------

   जब  कभी   गाँव  के  लोगों  का   कोई  समूह  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  से  मिलने  आता  ,  तो  वे  उन्हें  उत्साहपूर्वक  बताते  कि  वे  भी  गाँव  के  हैं  l   ग्रामीण  जीवन  के  प्रति   व  किसानों  के  प्रति  उनमें  एक  विशेष  लगाव  था  l   ऐसे  ही  एक  बार  जब  किसानों  का  एक  समूह  उनसे  मिलने  आया  ,  तो  उन्होंने  कहा ---- "  बेटा  !  किसान  होना   कोई  छोटी  बात  नहीं  है   l   किसान  है  ,  गाँव  है  ,  तो  जीवन  है  l   जितना  किसान  समृद्ध  होंगे  ,  गाँव  विकसित  होंगे  ,  उतना  ही  जीवन  विकसित  और  समृद्ध  होगा   l  "

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ----  ' विपत्तियों  को  हँसकर   तप  करने  के  निमित्त   स्वीकार  करना  चाहिए  l   कभी  उनसे  डरना  नहीं  चाहिए  l ' ----- द्रोणाचार्य  कौरव  सेना  के  सेनापति  बने  l   पहले  दिन  का  युद्ध  बहुत  कौशल  के  साथ  लड़े  ,  तो  भी  उस  दिन  की  विजय  अर्जुन  के  हाथ  लगी  l   यह  देखकर    दुर्योधन  बड़ा  निराश  हुआ  l   हताश  और  क्रोध   से  भरी  मन:स्थिति   के  साथ  वह   गुरु  द्रोण   के  पास  गया   और  बोलै  --- " गुरुदेव  !  अर्जुन  तो  आपका  शिष्य  मात्र  है   l   आप  तो  उसे  एक  क्षण  में  परास्त  कर  सकते  हैं  l   फिर  ऐसा  कैसे  हुआ   ? "  द्रोणाचार्य  गंभीर  मुद्रा  में  बोले  ---- " तुम  ठीक  कहते  हो  ,  पर  एक  तथ्य  नहीं  जानते  हो   l   अर्जुन  मेरा  शिष्य  अवश्य  है  , पर  उसका  सारा  जीवन   कठिनाइयों  से  संघर्ष  में  ,  वनवास  में  ,  अज्ञातवास  में  बीता   l   मैंने  राजसी  सुख  में  जीवन  काटा  है  l   कुधान्य  खाया  है  l   विपत्ति  ने  उसे  मुझसे  भी  अधिक  बलवान  बना  दिया  है   l  "

22 December 2020

WISDOM -----

   सम्राट  अकबर  के  समय  की  एक  अलौकिक  घटना  है  , अखण्ड   ज्योति   में प्रकाशित  हुई  थी  ----   1562   में   जोधाबाई  का  विवाह  अकबर  के  साथ  हुआ  था  l  जोधाबाई  का  महल  भव्य  और  आलीशान   था  , फतेहपुर  सीकरी  में  उसे  आज  भी  देखा  जा  सकता  है  l   जोधाबाई  शाम  को  भगवान  कृष्ण  के  भजन  गाती   थीं  ,  घी   का  दीपक  जलाती   थीं  ,  उन्हें  पूरी  धार्मिक  स्वतंत्रता  थी  l   एक  बार  वे  यमुना  नदी  में  नहाने  गईं   थीं  , तभी  उनकी  नजर  यमुना  में  डूबती  हुई  छोटी  सी  लड़की  पर  पड़ी   l   अपनी  परवाह  न  कर  वे  नदी  में  कूद  गईं  और  उस  कन्या  को  बचाकर  अपने  साथ  ले  आईं  और  अपनी  कन्या  की  भांति  उसका  पालन - पोषण  करने  लगीं  l   अब  वह  कन्या  तेरह   वर्ष  की  हो  गई  l   रोज  शाम  को  वह  जोधामाता  के  वस्त्र  भंडार  में  से  सुन्दर  सी  साड़ी   निकालती , सोलह   श्रृंगार    करती   और  छत  पर  जाने  किसकी  प्रतीक्षा  करती  l   माँ  के  बार - बार  पूछने  पर  मौन  रहती  l  जन्माष्टमी  का  दिन  था  , कन्या  ने भी  जोधामाता     के  साथ    व्रत  रखा  l   माँ  ने  फिर  पूछा  --- " श्रृंगार   कर  के  तुम  किसकी  प्रतीक्षा  करती  हो   ? "  बेटी  आग्रह  को  टाल   न  सकी ,  बोली ---- " माँ  !  शाम  को  मेरे  पति  गाय  चराकर  कन्हैया  के  साथ    लौटा  करते   हैं  l  अब  आप   सोचो  ,    उन  सबके  सामने  मलिन  वेश  में  रहना  ठीक  है  क्या  ? '   जोधाबाई  बोलीं ---- ' क्या  आज  मुझे  भी   उन  सबका  दर्शन  करा  दोगी  ? '  आज  जोधाबाई  भी   कन्या  के  साथ  छत  पर  चलीं  गईं  l   वे  मुरली  की   क्षीण   ध्वनि   ही  सुन   पाईं   और  मूर्च्छित  हो  गईं  l   फिर  उन्होंने  ऐसा  आग्रह  नहीं  किया  l   अनेक  दिन  बीत  गए   l    जोधाबाई  को  उदास - हताश   देखकर  कन्या  ने  पूछा  ---- " क्या  बात  है  माता   !  आप  इतनी  उदास  क्यों  हो  ? "  जोधाबाई  बोलीं  ---- " अब  मैं  बूढ़ी   हो  गई  हूँ  पुत्री  l   तेरे  धर्मपिता   अब  मुझसे  उतना  प्यार  नहीं  करते  l  क्या  तुम  मेरा  श्रृंगार   करोगी  ? "  उस  दिन  कन्या  ने  अपने  हाथों  से  माँ  का  श्रृंगार   किया  l   क्या  जादू   था कि   जोधाबाई  अपने  यौवन  को  पा  गईं  l   अकबर  भी  उनके  सौंदर्य  से  मुग्ध  हो  गए   और  उसका  कारण  पूछा  l   जोधाबाई  ने  कहा --- " मेरी  पुत्री  ने  मेरा  श्रृंगार   किया  है  l  "  यह  सुनते  ही  अकबर  का  मन  विषाक्त  वासना  से  भर  गया   और  उनके  मन  में  कुविचार  उठा  l   कुविचार  के  आते  ही  अकबर  के  शरीर  में  भयंकर  जलन  उठी   जो  किसी  भी  औषधि  से  शांत  नहीं  हो  रही  थी   l   अंत  में  उन्होंने  बीरबल  से  उपाय  पूछा  l  बीरबल  ने  कहा  ---- " महाराज  !  एक  पवित्र  कन्या  के  प्रति  उठे  कुविचार  के  कारण  यह  जलन  उठ  रही  है  l   आप  सूरदास   को बुलाएँ  l   वही  इसका  उपचार  कर  सकते  हैं  l  l  "  अकबर  की  दशा  से  द्रवित  होकर  सूरदास   जी महल  में  आये  l   महल   में उनके  पांव  धरते   ही   अकबर   की जलन  शांत  होने   लगी  l   उन्होंने  सूरदास जी  को  बहुत  सम्मान  के  साथ  आसन   दिया  ,  उनके  चरणस्पर्श  करते  ही   अकबर  की  जलन  पूरी  तरह  शांत  हो  गई  थी  l  ठीक  उसी  समय   वह कन्या  भी   माता  जोधाबाई  के  संग  वहां  पहुँच  गई   और  सूरदास जी  से  बोली  --- " आप  कैसे  आ  गए  महात्मन  ! "    सूरदास  जी  बोले  --- "  जैसे   आप  आ   गईं  !    बस ,  इतने  संक्षिप्त  संवाद    के साथ  ही   सबके  सामने  उन  कन्या  की  देह  से   अद्भुत  ज्वाला  फूटी  ,  वह  वहीँ  विलीन  हो  गई  ,  केवल  थोड़ी  सी  राख   बची   l    जोधाबाई  तो  शोक  में  व्याकुल   हो गईं  l   तब   सूरदास जी   ने   कहा  ---- " आप  शोक   न करें  l   पिछले  जन्म  में  मैं  ही  उद्धव  था  l   जब  मैं  कृष्ण  का  सन्देश  देने   गोपियों  के  पास  गया  था    तो   एक  दिन  राधा  जी  की  प्रिय  सखी   ललिता   जी से   उलाहने  भरे  स्वर   में  कुछ  बात   हो  गई   , इसी  से  हमारा  कर्मभोग  बन  गया   l   इसी  कारण   मैं    एक  अंश  से  सूरदास  हूँ   और  ललिता जी   एक  अंश  से  आपके   यहाँ  अपना   भोग  पूरा  करने  आईं  थीं   l  l "  सूरदास जी   ने  वह  राख   बटोरकर   अपने  मस्तक  पर  लगा  ली   और  महल   से  बाहर   चले  गए   l 

20 December 2020

WISDOM -------

  हिन्दुस्तान   की  धरती  पर  एक -से - बढ़कर  एक  वीरांगनाएं  हुईं  ,  एक  ऐसी  ही  वीरांगना  आज  से   लगभग  चार सौ   वर्ष  पहले  भी  हुई  थी   l   उस  समय  भी  सम्राट  अकबर  के  दबदबे   से  बड़े - बड़े  राजा  उसके  आधीन  हो  गए  थे   l   पर  उस  समय  नारी  होते  हुए  भी    रानी  दुर्गावती  ने   दिल्ली  सम्राट  की  विशाल  सेना  के  सामने  खड़े  होने  का  साहस  किया   और  उसे  दो  बार  पराजित  कर  के  ;पीछे  खदेड़  दिया  l  साम्राजयवाद  एक  प्रकार  का  अभिशाप  है  l   रानी  दुर्गावती   से   कभी  यह  आशंका  नहीं  हो  सकती  थी  कि   वे  अकबर  की  सल्तनत  पर   कभी  आक्रमण  करेंगी  l    लेकिन  धन  और  राज्य  की  लालसा  मनुष्य  को  न्याय - अन्याय  के  प्रति  अँधा  बना  देती  है  l    लोभ   उसकी आँखों   पर पट्टी  बाँध  देता  है  कि   उसे  सिवाय  अपनी  लालसापूर्ति  के   और  कोई  बात  दिखाई  नहीं  देती   l   फिर  स्त्री  पर  आक्रमण  करना  एक  प्रकार  से  कायरता  की  बात  समझी  जाती  है   l   इस  प्रकार  का  आचरण   मनुष्य  को  कभी  स्थायी   रूप  से   लाभदायक  नहीं  हो  सकता  l  रानी  दुर्गावती  पर  आक्रमण  करने  का  कोई   कारण  न  होते   हुए  भी   केवल  इस  भावना  से  चढ़  दौड़ना   कि   हमारी  शक्ति  और  साधनों  का   वह  मुकाबला  कर   ही  नहीं  सकेगी    तो  उसे  लूटा   क्यों   न जाये  ,  उच्चता  और  श्रेष्ठता    का  प्रमाण  नहीं  माना  जा  सकता   l 

19 December 2020

WISDOM -----

   इंद्र  ने  विप्र  बनकर  छलपूर्वक   सूर्यपुत्र  कर्ण   के  कवच - कुण्डल  ले  लिए  l   कर्ण  के  समक्ष  शर्मिंदा  स्थिति  में  खड़े   इंद्र  से  कर्ण  ने  कहा  --- " मुझे  इस  बात  की  प्रसन्नता  है   कि   आज  स्वर्ग  धरती  से  नीचा   हो  गया  l   मेरे  दान  के  व्रत  से   आज  देवपति  इंद्र  भी  भिक्षुक  बनकर  आये  हैं  l  अपने  लाल  की  रक्षा  के  लिए  l  "  भगवान  भास्कर  ने    आकाश से  यह  दृश्य  देखा   और  अपनी  रश्मियों  से   कर्ण  के  शरीर  को  स्पर्श  कर   कहा  --- " वीर  !  तू  मेरा  सच्चा  पुत्र  निकला रे  !  तुझे  मैं  आज   आशीर्वाद  देता   हूँ   l   आज  तूने  पृथ्वी  को  महान   और  स्वर्ग  को  तुच्छ   बना  दिया  l   स्वर्ग  ने  पृथ्वी  पर  आकर  भिक्षा  मांगी  l   धन्य  है  कर्ण  !  तू  धन्य  है   ! 

18 December 2020

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   एक  चोर  चोरी  करता  हुआ  पकड़ा  गया   l   राजा  ने  उसे  फाँसी   की  सजा  दे  दी  l  जब  उसकी  अंतिम  इच्छा  पूछी  गई  तो  उसने  कहा  --- 'मैं  प्रजापालक  महाराज  के  एक  बार  दर्शन  करना  चाहता  हूँ  l '  राजा  चोर  के  पास  आया   तो  चोर   ने कहा  --- " राजन  !  मुझे  मरने  का  कोई  अफ़सोस  नहीं  है  ,  पर  एक  विद्या  मेरी  मृत्यु  के  साथ  ही  इस  संसार  से  लुप्त   हो जाएगी  ,  इसी  का  अफ़सोस  है  l "  राजा  ने  पूछा  --- " कौन  सी  विद्या  ? "  चोर  बोला ---- " सोने  की  कृषि  l   मैं  खेतों  में  सोना  देने  वाले  पेड़   उगा    सकता  हूँ  l "  राजा  ने  फाँसी   की  सजा  स्थगित  कर  दी   और  चोर  के  कहने  पर  बड़ा  सा  खेत  जुतवा  दिया  l   दिन - रात  हल  चलने  लगे  ,  कोई  मिटटी  की  जांच  करता  , कोई  नमी  की  l    राजा  स्वयं  दिन  में  तीन - चार  बार  जाकर  देखता  l   जिस  दिन  बीज   बोने    का   क्रम  आया  ,  सारी   प्रजा  खेत  के  चारों  ओर   खड़ी  थी  l  चोर  आया   और  अपनी  जेब  से  काले -काले   जंगली  घास  के  से  बीज   उसने  निकाले  l   एक  ऊँची  जगह  खड़ा  होकर  वह  बोला  ----- "  यह  स्वर्णलता  के  बीज  हैं  ,  जो  मैं  शल्य  देश  से  लाया  था  ,  पर  काश  !  मैं  पहले  से  चोर   न होता  तो  खुद  ही  सोना  उगाकर  पृथ्वी  का  कुबेर  बन  जाता   l "  बात  को  समझाकर   उसने  कहा  ---- " इन  बीजों  को   वही  बो  सकता  है   जिसने  पहले  कभी  चोरी  न  की  हो  ,  कोई  अपराध  न  किया  हो  l   यदि  अपराध  किया  होगा   तो  शरीर   तुरंत  संज्ञाशून्य  होकर  गिर  जायेगा  l   आप  तो  सभी  धर्मात्मा  हैं  , आइये  l  "   यह  सुनकर   सब  धीरे - धीरे  वहां   से खसक  गए   क्योंकि  सभी  ने   कभी  न  कभी  कोई  अपराध  किया  ही  है  l   अब  राजा  भी  जाने  लगे    तो  वह  बोला  --- " महाराज   आप  तो  बो  ही   सकते  हैं  l "   महाराज   चुप रहे  वे  स्वयं  को  जानते  थे  l   तब  चोर  बोला --- " फिर  महाराज  !  मुझे  अकेले  को  फाँसी   क्यों  दे  रहे    हैं l  "   राजा  ने  उसे  क्षमा  कर  दिया  l  अपनी  चतुरता  से  आंतरिक  कमजोरियों  की  बात  कर   चोर  ने  स्वयं   को बचा  लिया   l 

WISDOM --------

   विज्ञान    आज  इतनी  ऊंचाइयों  पर  पहुँच  गया   कि   स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझकर   प्रकृति  को  चुनौती  देने  लगा  है   l   ईश्वर  ने  मनुष्य  को  जीवित  रहने  के  लिए  सब  कुछ  नि:शुल्क  दिया   और  नि:स्वार्थ  भाव  से  दिया  l   हवा , पानी , मिटटी ,  सूर्य  का  प्रकाश   -- सभी  कुछ  हमें  स्वस्थ  रहने  के  लिए  प्रकृति  ने  हमें  दिया  l  प्रकृति  की   यह  देन   शुद्ध  है , पवित्र  है   इसमें  कितनी  भी  मिलावट  हो  जाये  ,  फिर  भी  इसमें  ईश्वरीय  अंश  है  l  लेकिन  अब  मनुष्य  ईश्वर  की  देन   पर  भी   संदेह  करने  लगा  है  और  विज्ञान   की  देन   पर  विश्वास  करने  लगा  है  l   यदि  हम  अपने  खिड़की  , दरवाजे  बंद  कर  लेंगे  ,  उसमे   एक छिद्र  भी  नहीं  होगा  तो  सूर्य  का  प्रकाश  हमारे  पास  कैसे  आएगा   ?  इसकी  कमी  से   हमें  अनेक  बीमारी  होंगी  l   इसी  तरह  वृक्षों  को  देवता  कहा  जाता  है   ,  वे   हमें  प्राणवायु  देते  हैं  लेकिन  हम  क्योंकि  विज्ञान   को  मानने   लगे  हैं  ,  हम  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप   है   इसलिए   इस  प्राणवायु   पर  हम  विश्वास    नहीं करते ,  इस  पर  रूकावट  डालते  हैं      तो अंत  में  हमें  कृत्रिम  तरीके  पर  निर्भर  रहना  पड़ता  है  l   परिणाम  सबके  सामने  है  l   एक  कटु  सत्य  हमें   समझना  होगा  कि   विज्ञानं  को  इनसान   ने  बनाया  है    और  इनसान   बिना  स्वार्थ  के  किसी  को  कुछ  नहीं  देता    इसलिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  है  ---- आज  के  युग  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है  l   हम  नेक  रास्ते  पर  चलें  और  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें  l   संसार  की  सारी   समस्याओं  का  एकमात्र  हल  सद्बुद्धि  है  l 

17 December 2020

WISDOM -----

   रामायण  और  महाभारत   हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l   लेकिन  सीखता  व्यक्ति  वही  है   जैसे  उसके  संस्कार  होते  हैं  l   रामायण  से  भगवान  राम  के  आदर्श  से  व्यक्ति  यदि  कुछ  सीखना  चाहे   तो  धरती  पर  सुख - शांति  आ  जाये   लेकिन  भगवान  की  आरती - पूजा  कर  के  मनुष्य  अपना  कर्तव्य  पूरा  कर  लेता  है   l    रावण  से  भी  कोई   उसकी  अच्छाई  नहीं  सीखता  ,   उसके  जैसा  विद्वान्  नहीं  है  लेकिन  उसकी  असुरता  का  चारों  और  बोलबाला  है   l  महाभारत  से  भी  यदि  कोई  शिक्षा  लेना  चाहे    तो  किसी  का  हक  न    छीने  l  दुर्योधन  को  समझाने   स्वयं  भगवान  कृष्ण  गए  लेकिन  उसे  इतना  लालच , इतना  अहंकार   कि   पांच  गाँव  तो  क्या  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  देने  को  राजी  नहीं  हुआ  ,  परिणाम  महाभारत   होना  ही  था  l  महाभारत  की  कथा  राजवंश  की  भाई - भाई  के  बीच  राज्य  के  अधिकार  की  लड़ाई  है  l   दुर्योधन  ने  पांडवों  का  हक   छीना   l   युधिष्ठिर  की  तरह  कोई  धर्म  के  मार्ग  पर  नहीं  चलता   लेकिन  दुर्योधन  की  तरह  हर  शक्तिशाली   कमजोर  का  हक    छीनता   है  ,  केवल  व्यक्ति  अपना  सुख  चाहता  है  , दूसरों  को  चैन  से  जीने  नहीं  देता  l   आज  सबसे  ज्यादा  जरुरी  है  कि   मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  हो   l   वह  इस  सच  को  समझे  कि   गलत  कार्यों   का   परिणाम  भी  गलत  ही  होता  है  l 

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- ' जो  आदमी  अहंकार  के  साथ  जीता  है  वह  हमेशा  चिंतित  रहता  है  l   उसे  हमेशा  परेशानी  बनी   रहेगी   कि   कौन  क्या  कर  रहा  है ?  कौन  क्या  कह  रहा  है  ?  अहंकार  हमेशा  औरों  पर  निर्भर  होता  है  l  प्रशंसा  अहंकार  को  फुसलाती  है , प्रसन्न  करती  है  l   मूढ़  - से - मूढ़  आदमी  को   बुद्धिमान  कहो   तो  वह  प्रसन्न  हो  उठता  है   l   अहंकार  को  पोषण  देने  वाला  ही  उसे  प्रिय  होता  है   और  इसे  चोट  देने  वाला   उसे  अप्रिय  होता  है   l   अहंकार  का  तात्पर्य  है --- मैं   l   जहाँ  मैं   यानी   कि   अपने  होने  की  प्रबलता  और  दृढ़ता  है  ,  वहीँ  अहंकार  है   l   अहंकार  से  विवेक   का नाश  होता  है   और  इसी  का  परिणाम  होता  है  कि   अहंकारी  व्यक्ति  की  सम्यक  जीवन  दृष्टि  समाप्त  हो  जाती  है   और  कभी - कभी  तो  वो   स्वयं  को  ही  परमात्मा  मान  बैठता  है   l 

16 December 2020

WISDOM ----- भक्ति एवं तंत्र में भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' भक्ति  किसी  बड़े  एवं   श्रेष्ठतम  तांत्रिक   अनुष्ठान  से  भी  बढ़कर  होती  है  l  भक्त  की  सुरक्षा  एवं   संरक्षण  का  भार  भगवान  स्वयं  उठाते   हैं   l   तंत्र  चाहे  कितना  ही  बड़ा   क्यों  न  हो  ,  वह  भक्ति  और  भक्त   से  सदैव  कमजोर  होता  है  l '    एक  प्रसंग   लिखा  है    -----  जगद्गुरु  शंकराचार्य    का   कर्मभोग   समाप्त  होने  को  आया  था   और  उन्होंने  शरीर  त्यागने   का  मन  बना  लिया  था  l   इसी  दौरान  एक  कापालिक  क्रकच  ने   उन  पर  भीषण  तंत्र  का  प्रयोग   कर  दिया  l   इसके  प्रभाव  से  उन्हें  भगंदर  हो  गया    और  अंत  में  उन्होंने  अपनी  देह  को  त्याग  दिया  l   देह  को  यहाँ  पर  तंत्र  लगा   तो ,  परन्तु   ऐसा  विधान  ही  था  l   परन्तु  कापालिक  को  अपने  इस  दुष्कर्म  का   भयंकर  परिणाम  भोगना  पड़ा  l  सबसे  पहले  कापालिक  की  आराध्या   अवं  इष्ट  भगवती  उससे  अति  क्रुद्ध  हुईं  और  कहा  ---' तूने  शिव  के  अंशावतार   मेरे  ही  पुत्र  पर  अत्याचार  किया   है  l  इसके  प्रायश्चित  के  लिए   तुझे  अपनी  भैरवी  की  बलि  देनी  पड़ेगी  l '  कापालिक  भैरवी  से  अति  प्रेम  करता  था  ,  परन्तु  उसे   उसको  मारना  पड़ा  l   उसको  मारने  के  बाद   वह  विक्षिप्त  हो  गया   और  अपना  ही  गला   काट  दिया  l   तांत्रिक  अपनी  ही  विद्या  का  दुरूपयोग  करते  हैं  ,  वे  अपनी  ही  विद्या  के  अपराधी  होते  हैं    , यही  वजह  है  कि   अधिकांश  तांत्रिकों  का  अंत  अत्यंत  भयानक  होता  है   l 

WISDOM ----- स्वस्थ रहने के लिए भी सद्बुद्धि जरुरी है

  कलियुग  का  एक  बहुत  बड़ा  लक्षण  है  कि   इस  युग  में  मनुष्यों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है  ,  वे  जानबूझकर   वे  सारे  काम  करते  हैं   जिससे    उन्हें  ही  नुकसान  हो   और  प्रत्येक  व्यक्ति  की  हानि  माने  सम्पूर्ण  समाज  की  हानि  l   हमारे  ऋषि - मुनियों  ने  बताया  है  कि   स्वस्थ  रहने  के  लिए  तन  और  मन  दोनों  का  स्वस्थ  होना  बहुत  जरुरी  है    और  इसके  लिए  जरुरी  है  तन  और  मन  की   शुद्धता  l  ऋषियों  ने  बताया  है   कि   श्रेष्ठ  विचारों  के  चिंतन - मनन  से  मन  परिष्कृत  होता  है  l   यह  एक  साधना  है  और  इस   साधना  में  व्यक्ति  बहुत  धीमी  गति  से  आगे  बढ़  पाता   है  l   जो  कुछ  हमारे  हाथ  में  है  ,  जिसे  हम  स्वयं  जल्दी  कर  सकते  हैं  और  स्वस्थ  रह  सकते  हैं   वह  है  तन  की  शुद्धता  l     आज  की  सबसे  बड़ी  और  दुर्बुद्धिजन्य  समस्या  यह  है  कि   हम   बाहरी  तौर   पर  शरीर  को  साफ   और  सुंदर   बनाने  का  बहुत  प्रयत्न  करते  हैं    लेकिन  हमारे  पास  हमारी  इस  चमड़ी  के  भीतर  एक  आंतरिक  शरीर  भी  है   जिसमे  हजारों  नस - नाड़ियाँ , धमनियाँ --------- आदि  हैं  l   बचपन  से  ही  इन  नस - नाड़ियों  की  सफाई  की  और  कोई  ध्यान  नहीं  देता   इसलिए  एक  न  एक  बीमारियाँ   शरीर  को  घेर  लेती  हैं  l   इनकी  सफाई  कैसे  हो    ?   बहुत  आसान  काम  है  l   हमारे  योग  के  महान  आचार्यों  और  विद्वानों   का  कहना  है   कि    आक्सीजन    हमारी  नस  - नाड़ियों   में  भरी  हुई  गंदगी  को  हटाने  में   झाड़ू  का  काम  करती  है   l   जैसे  झाड़ू  लगाने  से  घर  की  सफाई  हो  जाती  है    वैसे  ही   जब  हम   अपनी  पीठ  सीधी  रखकर  बैठते  हैं   और  नाभि  तक  गहरी  श्वास  लेते  हैं    तो  नाभि  शरीर  का  केंद्र बिंदु  है  ,  आक्सीजन  वहां  पहुंचकर   सारी   नस  नाड़ियों  में  झाड़ू  लगाकर   वहां  जमी  गंदगी  को  बाहर  निकाल  देती  है   l    अब  यदि  हम  दुर्बुद्धि  के  कारण  विभिन्न  कृत्रिम  तरीकों  से  आक्सीजन  को  शरीर  में  जाने  से   रोकते  हैं  ,  हमारी   नस  - नाड़ियों में  भरी   हुई  गंदगी  दूर  नहीं  होगी   और  हम  बीमार  बने  रहेंगे  l    मानव  जीवन  अनमोल  है  ,  स्वस्थ  रहकर  ही  हम  संसार   के विभिन्न  सुखों  का  आनंद  ले  सकते  हैं  l   स्वस्थ  शरीर  में  स्वस्थ  मन  होगा  ,  तभी  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  होगा  l 

15 December 2020

WISDOM ------ कर्मफल का सिद्धांत अकाट्य है

    कबीरदास जी  कहते  हैं ---- ' कबीर  चन्दन  पर  जला ,  तीतर  बैठा  माहिं  l   हम  तो  दाझत  पंख  बिन  ,  तुम  दाझत  हो  काहिं  ll   कबीर  कमाई  आपनी ,  कबहु   न  निष्फल  जाय  l   सात  सिंधु  आड़ा  पड़े , मिले  अगाड़ी  आय   ll    अर्थात    जलते  हुए  चंदन   के  पेड़  पर  एक  तीतर  आकर  बैठ  गया   और  वह  भी  जलने  लगा  l   पेड़  कहता  है  ,  हम  तो  इसलिए  जल  रहे  हैं  क्योंकि  हमारे  पास  पंख  नहीं  हैं  ,  हम  उड़  नहीं  सकते  ,  पर  तुम  (तीतर )  तो  पंख  वाले  हो  ,  फिर   तुम क्यों  जलते  हो  ?  तीतर  उत्तर  देता  है   कि   अपना  किया  हुआ  कर्म  बेकार  नहीं  जाता  l   सात  समुद्र  की  आड़  में  रहें   तो  भी  आगे  आकर  मिलता  है   l  '  कर्मफल  को  बताने  वाली  एक  कथा  है  -----  नारद जी  एक  बार  भ्रमण   करते हुए  विष्णु  लोक  पहुंचे  l  भगवान  को  नमन  कर  उन्होंने  कहा ---- ' भगवन  !  आजकल  धरती  पर  तो   कर्मफल  विधान  के  विपरीत  परिणाम  देखने   को मिल  रहे  हैं  l   जिससे  मुझे  बड़ी  हैरानी  हुई  है  l '  भगवान  विष्णु  ने  कहा --- नारद जी  !  मुझे  विस्तार   से बताओ  कि   ऐसा   आपने  क्या  देखा  l '  नारद जी  ने  कहा --- ' भगवन  !  एक  बार  मैं  धरती  पर  भ्रमण   कर रहा  था   तब  मैंने  देखा  कि   एक  गाय  जंगल  में  कीचड़  में  धंस  गई  है   और  बाहर  नहीं  निकल  पा  रही  है  l   तभी  एक  चोर  वहां  से  निकला   और  गाय  को  बचाने   के  बजाय  वह  उस  पर  पैर   रखकर  निकल  गया  l   जैसे  ही  वह  आगे  बढ़ा  उसे   पेड़  के  नीचे   सोने  की  मोहरों  से  भरी  थैली  मिली   जिसे  पाकर  वह  बहुत  खुश  हुआ  l    फिर  मैंने  देखा  कि   उसी  मार्ग  से  एक  साधु  पुरुष  जा  रहे  थे  l   कीचड़  में  फँसी   गाय  को  देखकर   उनका  हृदय  करुणा   से भर  गया   और  कीचड़  में  उतर  कर  बड़ी  मेहनत  से  उन्होंने  गाय  को  बाहर  निकाला  l   गाय  को  बाहर  निकालते   समय  जैसे  ही  वे  आगे  बढ़े  तो   वहां पड़े  एक  पत्थर  के  टकराने  से  वे  गिर  पड़े  ,  जिससे  उनके  सिर   पर  गहरी  चोट  लग  गई  l   नारद  जी  बोले  -- ' भगवन  !  ऐसा  अनर्थ  कैसे  हुआ   ?  जो  चोर  था  उसे  सोने  की  मोहरें  मिली  और   गाय  की  मदद  करने  वाले  साधु   पुरुष को    सिर   में  चोट  लगी  l  '    भगवान  ने  कहा  --- ' पूर्व  में   किए   गए  एक  शुभ  कर्म  के  कारण  चोर  को  सोने  की  मोहरें  मिली  ,  लेकिन  उस  साधु  पुरुष  की  तो   उसके    पूर्व   प्रारब्ध  के   कारण  जंगल  में  मृत्यु  लिखी  थी  ,  जो  गाय  की  मदद  करने  के  कारण  टल   गई  l '     इस    कथा   से  हमें   यही  प्रेरणा  मिलती  है  कि   हमारे  द्वारा  किए   गए  शुभ  कर्म  कभी  निष्फल  नहीं  जाते  l   किसी  न  किसी  रूप  में  हमें  उनका  पारितोषिक  अवश्य   मिलता है   l 

14 December 2020

WISDOM ------ क्रोध में कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें

   खलीफा  अली  युद्ध  के  मैदान  में  लड़  रहे  थे  l   वर्षों  से  युद्ध  का  सिलसिला  चल  रहा  था  l   एक  पल  ऐसा  आया  ,  जब  उन्होंने  दुश्मन  को  नीचे   गिरा  दिया    और  उसकी  छाती  पर  बैठ  गए  l   भाला   उठाकर  उसे  मारने  ही  वाले  थे   कि   उस  नीचे   पड़े  दुश्मन  ने   उन  पर  थूक  दिया  l   खलीफा  ने  थूक  पोंछा   और  भाला  ,  जो  दुश्मन  के  सीने   से  पार   होने  ही  वाला  था  ,  उसे  हटाकर  एक  तरफ  रख  दिया    और  उस  आदमी  से  जो  उनका  दुश्मन  था  ,  कहा  ---- " हम  कल  फिर  लड़ेंगे  l  "    दुश्मन  बोला  ---- " तुम  मौका  चूक  गए  l   हो  सकता  है  ,  कल  तुम  नीचे   हो    और  मैं  भाला  लेकर  तुम्हारे  ऊपर  l   जब  मारना  ही  था  तो  मार  देते  l   मैं  तुम्हारी  जगह  होता   तो  यह  मौका  नहीं  चूकता  l  "  खलीफा  बोले  ----- " मुहम्मद  का  फरमान  है  कि   कभी  हिंसा  भी  करो   तो  क्रोध  में  मत  करो  l   अभी  तक  मैं  शांति  से  लड़  रहा  था  l    तुमने मेरे  ऊपर  थूक  दिया  l   थूक  कर  क्रोध  की  लपट  पैदा  कर  दी  l   इसलिए  अब  नहीं  मारूंगा   l   आज  की  लड़ाई  सिद्धांत  की  लड़ाई  नहीं  हुई   l  "  अगले  दिन  वह  शत्रु  आया  और  उसने  खलीफा  के   पैर   पकड़  लिए  l   उसने  कहा ---- " मैंने  सोचा  भी  नहीं  था   कि   ऐसा  भी  आदमी  हो  सकता  है  --- कभी  छाती  पर  आया  भाला   रुक  भी  सकता  है   !  मुझे  माफ   कर  दो   !    और लड़ाई  समाप्त  हो  गई   l 

13 December 2020

WISDOM ----- तृष्णा का कोई अंत नहीं है

   एक   प्राचीन  कथा  है  ----- एक  अमीर  व्यक्ति  था  l   बहुत  वैभव  था  उसके   पास   लेकिन  वह  फिर  भी  बहुत  धन  चाहता  था   और  इस  लालच  में  वह   पुराने  किले ,  सुनसान    जगह   में  भी  भटकता  था   कि   कहीं  से  कोई  गुप्त  खजाना  मिल  जाये  l   ऐसी  ही  सोच - विचार  में  वह   एक  दिन   जा  रहा  था  कि   उसे  एक  आवाज  आई  ---- ' क्या  तुम्हे  धन  चाहिए   ? '  ' धन ' शब्द  सुनते  ही  वह  चौकन्ना  हो  गया   और  बोला   --- ' हाँ , मुझे  धन  चाहिए  l  ' तब  आवाज   ने कहा --- ' जा ,  घर  लौट  जा   l   घर  के  पिछवाड़े   अमुक   स्थान  पर   अशर्फियों   से  भरे  सात  घड़े   तेरा  इंतजार  कर  रहे  हैं  l "  यह  सुनकर   वह बहुत  प्रसन्न  हुआ  और  दौड़ता  हुआ  घर  आया ,  पत्नी  को  धीरे  से  कान  में   बताया  और  अँधेरी  रात  में    जमीन   खोदकर   सातों  घड़े   निकाल   लिए  l   अब  धैर्य  नहीं  था  ,   उत्साह  में आकर  वे    घड़े  खोलकर  देखने  लगे  l   छह   घड़े  सोने  की  अशर्फियों  से   भरे  थे   लेकिन  सातवां  घड़ा  आधा  खाली   था  l   अब  उन  दोनों  पति- पत्नी  को  सातवें  घड़े  को  भरने  की  चिंता  हो  गई   l   अपनी  जरूरतों  को  कम     कर  के  उन्होंने  घड़े  को  भरना   शुरू किया   लेकिन  घड़ा  भरने  का  नाम  ही  नहीं  लेता  l   इस  वजह  से  दोनों  बहुत  दुःखी   थे  l  एक  दिन  एक  साधु  उनके  घर  आया  , उन्हें  चिंतित  देखकर  साधु  ने  पूछा  --- " सांतवा  घड़ा  भरा  या  नहीं  ? '  यह  सुनकर  दोनों  पति - पत्नी  आश्चर्यचकित  रह  गए  कि   यह  बात  साधु  को  कैसे  मालूम  हुई  l   तब  साधु   बोला ----- " बेटा  !   यह  सांतवा  घड़ा  तृष्णा  का  है  ,  जो   कभी  पूरी  नहीं  होती  l   मनुष्य  इस  तृष्णा  को  साथ  लिए   दुनिया  से  विदा  हो  जाता   है  l   तुम  इस  घड़े  में  कितना  ही  सोना  डालो  यह  भरने  वाला  नहीं  है  l  यह  कहकर  साधु  चला  गया  l    और  साधु  के  जाते  ही  वे  सातों  घड़े  भी  गायब  हो  गए  l   अब  वे  दोनों  बहुत  पछताने  लगे   और   सोचने लगे  कि   सातवें  घड़े  को  भरने  के  बजाय   वे  इस  धन  को  लोक - कल्याण  में   और  दूसरों   की  पीड़ा  के  निवारण  में  लगाते  तो   यह जीवन  सार्थक  हो  जाता  l 

WISDOM ---

   स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस   कहते  हैं ----- ' ईश्वर  दो  बार  हँसते  हैं   l   एक  बार  उस  समय  हँसते  हैं  ,  जब  दो  भाई  जमीन   बांटते  हैं   और  रस्सी  से  नापकर  कहते  हैं  --- ' इस  ओर   की  जमीन   मेरी  और  उस  ओर   की  तुम्हारी  l '  ईश्वर  यह   सोचकर हँसते  हैं   कि   संसार  है  तो  मेरा   और  ये  लोग   थोड़ी  सी  मिटटी  लेकर   इस  ओर   की  मेरी     और    उस     ओर   की  तुम्हारी  कर  रहे  हैं   l      फिर   ईश्वर   एक  बार  और  हँसते  हैं   , बच्चे  की  बीमारी  बड़ी  हुई  है   l     माँ  रो  रही  है  l   वैद्य  आकर   कह   रहा    है  ---- ' डरने     की  क्या   बात   है   माँ  !   मैं  अच्छा  कर  दूँगा   l  "  वैद्य  नहीं  जानता   कि   ईश्वर  यदि  मारना   चाहे   तो  किसकी  शक्ति    है ,  जो  अच्छा  कर    सके   ? "

12 December 2020

WISDOM ------

    मनुष्य  अपनी  प्रवृतियों  के  अनुसार  देवता   या असुर  कहलाता   है   l   देवताओं  की  यह  विशेषता  होती  है  कि  वे  सन्मार्ग  पर  चलते  हैं ,  कभी  किसी  का  अहित  नहीं  करते ,  किसी  का  दिल  नहीं  दुखाते  , नेक  कर्म  करते  हैं  l   वे  अमर  होने  का  कोई  प्रयास  नहीं  करते  ,  उनके  कर्म  उनका  नाम  युगों - युगों  तक  अमर  कर  देते  हैं  l   असुर   देखने  में   तो  मनुष्य  शरीर  में   होते  हैं   लेकिन  इन्हे  दूसरों  को  कष्ट  देने  में  बहुत  आनंद  आता  है  l   असुरों  की  एक  विशेषता  होती  है  कि   ये   कठिन  तपस्या  कर  लेते  हैं   जिससे  इन्हे  ईश्वर  से  वरदान  मिल  जाता  है  और  ये  अपार  धन - सम्पदा    के  स्वामी  होते  है   l   इस  कारण  ये  बहुत  शक्तिशाली  होते  हैं   और  अपनी  धन - सम्पदा  के  बल  पर  संसार  पर  अपनी  हुकूमत  चलाना   चाहते  हैं  l  आसुरी  प्रवृति  के  कारण  ये  संवेदनहीन  होते  हैं   और  अत्याचार  व  अन्याय  कर  के  लोगों   को  अपने  नियंत्रण  में  रखते  हैं  l  आसुरी  प्रवृति  के   लोगों  में  अमरता  की  बड़ी  गहरी  चाह   होती  है   जैसे  रावण , हिरण्यकशिपु , भस्मासुर   आदि  अनेक   असुरों  ने   भगवान   की कठोर  तपस्या  कर   अमरता  का  वरदान  माँगा  l  अमर  होना  तो  प्रकृति  के  नियमों  के  विरुद्ध  है  ,  इसलिए  जब  भगवान  ने  उन्हें  अमर  होने  का  वरदान   नहीं दिया   तो  उन्होंने  वे  सारे  विकल्प  मांग  लिए  जिससे  मृत्यु  को  उनके  पास  आने  का  अवसर  न  मिले  l   वरदान  की  शक्ति  से  स्वयं  को  अमर  समझकर   उन्होंने  लोगों   पर  अत्याचार  करना , अपने  आतंक  से  उन्हें  भयभीत  करना  शुरू  कर  दिया  l   भस्मासुर   तो      जिसके      सिर   पर      हाथ     रख      देता   था   , वही     भस्म       हो  जाता   था  l  यही  असुरता  है   l   असुरता   यही  चाहती  है  कि   उसका  अस्तित्व  बना  रहे  ,  लोग  चाहे  मरें   या  त्राहि - त्राहि  करें   l   इस    संसार  में  शुरू  से  ही  देवत्व  और  असुरता  में  संघर्ष  रहा  है   l  जब  युद्ध  में  देवता  हारने  लगते  हैं   तो  असुरों  से  अपने  प्राण  बचाने  के  लिए  भगवान   की शरण  में  जाते  हैं   तब  भगवान  उन्हें  यही  कहते  हैं   तुम  लोग  जागरूक  हो ,  संगठित   हो  l   जब  देवत्व  प्रबल  होगा  तो  असुरता  अपने  आप  पराजित  होगी   l 

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  - " मनुष्य  की  सबसे  बड़ी  भूल  है   स्वयं  को  बंदर   की   औलाद   समझना   l   इस  कारण  हम  अपने  स्वरुप , कर्तव्य  और  उद्देश्य  को  भूल  गए  l जब   हम  स्वयं  को  ईश्वर  की  श्रेष्ठ   संतान   मानेंगे   तभी  हमारे  कर्म  , हमारा  आचरण  श्रेष्ठ  होगा  और  उसके  परिणाम   भी सुखदायी  होंगे '           विकास  की  प्रक्रिया  में  हमने  यह  माना  कि  हम  अपनी  प्रारम्भिक  अवस्था  में  बंदर   थे  ,  विकसित  होकर  इस  रूप  में  आ  गए  l   ऐसा  मानकर  हमने  भौतिक  प्रगति   तो  बहुत  की  l   विज्ञान   ने  हमें  इतनी  सुख - सुविधाएँ  दीं   जिसकी  किसी  ने  कल्पना  भी  नहीं  की  होगी  l   लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर   हम  कहाँ  पहुंचे  हैं   ?  संसार  में   बढ़ते  अपराध , आतंक ,  युद्ध ,  छीना  - झपटी -------   -------------------------------------    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' जब  अपने  से  बड़ी  शक्ति  के  साथ   संबंध   जोड़ने  की  महत्ता  को   छोटे  बच्चे  तक  समझते  हैं  ,  फिर  मनुष्य  भगवान  को  घनिष्ठ  बनाने  में   इतनी  उपेक्षा  क्यों  बरतता  है    l '  केवल   कर्मकांड    कर  के  ही    मनुष्य   अपने  आस्तिक  होने   का  दिखावा  करता  है  ,  आंतरिक  परिष्कार  नहीं  करता  l 

11 December 2020

WISDOM -----

   जब  भी  धरती  पर   अत्याचार और  अन्याय  बढ़ा  है  ,  दूसरों  का  हक  छीनना ,  अपने  वर्चस्व  के  लिए   दूसरों  को  कमजोर   बने  रहने  को  विवश  करना  ,  उन्हें  आगे  न  बढ़ने  देना  , उत्पीड़ित  करना  आदि  दुष्प्रवृत्तियाँ  जब  भी   बढ़ी  हैं  , उनकी  प्रतिक्रिया स्वरुप  विभिन्न  देशों  में  क्रांतियां  हुई  हैं   l   भगवान  कृष्ण  के  समझाने   पर  भी  जब  दुर्योधन  अपनी  जिद  पर  अड़ा   रहा  और  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  पांडवों  को    देने  से  भी  मना    कर  दिया    तो  महाभारत  का  होना  निश्चित  हो  गया  l   भगवान  ने  गीता  में  कहा  है  -- यह  संसार   मनुष्य   के लिए  कर्मभूमि  ,  कर्तव्य  ही  धर्म  है  l   यदि  प्रत्येक  व्यक्ति  अपना  कर्तव्यपालन  ईमानदारी  से  करे    तो यह   कर्मक्षेत्र  ,  धर्मक्षेत्र   रहे  ,  कुरुक्षेत्र  न  बने   l   आज  के  समय  में   बुद्धिमान  लोगों  ने  कर्म  को  धर्म  से  अलग  कर  दिया   l   इससे  धर्म  के  नाम  पर  दंगे - फसाद  होने  लगे   और   धर्म  से  अलग  होने  पर    कर्म   में   ईमानदारी  और  सच्चाई   का स्थान   लूट  और  शोषण  ने  ले  लिया  l   ईश्वर  का  भय  न  होने  के  कारण   अहंकार   सिर   चढ़  जाता  है   और  लोग   दूसरों  को  चैन  से  जीने  भी  नहीं  देते   l  इसका  परिणाम  विनाशकारी  होता  है  l 

10 December 2020

WISDOM ----- अध्यात्म मानवीय जीवन की सर्वोच्च संपदा है

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते   हैं ---- ' आध्यात्मिक  चिंतन  के  स्वामी   समस्त  संपदाओं   के  अधिकारी  बनते  हैं   l  '  स्वामी  विवेकानंद  के  आध्यात्मिक  दृष्टिकोण  ने  संसार  में  तहलका  मचा  दिया  ,  हिन्दू  संस्कृति  के  बारे   में  सारी   दुनिया  को  पुनर्विचार  करना  पड़ा   l   यह  स्वामी  विवेकानंद  की  महानता  थी  कि   जब  कलकत्ता  की  सड़कों  पर  उनका  जुलूस   निकल  रहा  था  ,  तो   हाई कोर्ट  के  जज   और  दूसरे  वकीलों  ने  कहा   कि   घोड़ों  को  रथ  से  खोल  दीजिए , बग्घी  को  हम  खींचकर  ले  चलेंगे    l   स्वामी  विवेकानंद  के   पास  आध्यात्मिक  शक्ति  थी  उसी  का  एक  उदाहरण  है --------  जमशेद जी  टाटा  लोहे  की   फैक्टरी   लगाने  की  इजाजत  मांगने  के   लिए इंग्लैंड   गए  हुए  थे  l  उनको  इजाजत  नहीं  मिल  रही  थी  l   क्वीन  एलिजाबेथ  से  अनुमति  मिल  गई  कि   आप  चाहे  तो  लोहे  की  फैक्टरी   लगा  सकते  हैं  l   अब  वे  इस   तलाश  में  थे  कि   ऐसा  स्थान  मिले  जहाँ  लोहा , कोयला  और  पानी  तीनो  एक  स्थान  पर  मिले   तभी  बड़ी    फैक्टरी   लग   सकती है   l   इस  चिंता  में  जमशेद जी  एक  दिन  स्वामी  विवेकानंद  के  पास  पहुंचे   और  उनसे  अपने  मन  की  बात  कही  l   उन्होंने  कहा  --- लोहे  पर  विदेशी  आधिपत्य  है   l   हमारा  देश  आगे  बढे ,  खुशहाल  हो   इसके  लिए  हमें  देश  में  ही  फैक्ट्री  लगानी   चाहिए  l   उन्होंने  कहा ---- ' हमने   सुना है  योगी  सब  कुछ  जानते  हैं  l   जरुरत  होने  पर  ज्ञान  की  बात  बता  सकते  हैं  ,  तो  आप  कृपा  कर  के  हम  को  यह  बता  दीजिए   कि   हिंदुस्तान  में  ऐसी  जगह  कहाँ  है   ? '     स्वामी  विवेकानंद  ध्यान सिद्ध  योगी   थे  ,  फिर  यदि    मन  में  देश  की  खुशहाली  की  , लोक कल्याण  की  भावना  हो  तो  दैवी  कृपा  मिलती  है   l   उन्होंने  बताया  कि   वह  जगह  है  ---  बिहार  के  सिंहभूमि   जिले  का   छोटा  सा  गाँव  l   उन  दिनों  वह  वीरान  जंगल  था   और  पचासों  मील   की  पथरीली  और  झाड़ियों  वाली  जगह  में  फैला   हुआ था  l   वहां  कोई  आदमी   नहीं रहता  था  l  विवेकानंद जी  ने  कहा  कि   आप  उस  इलाके  को  ले  लें   l  वहां  पर  तीनो  चीजें  मिल  जाएँगी  l  "  जमशेद जी  वहां  पर  गए  ,  जमीन   को  ढूंढा   फिर   उसे   खरीद  लिया    और वहां  पर  फैक्ट्री   लगाईं  l   अभी  भी  वहां  वे  तीनों  चीजें  उपलब्ध  हैं   l   जमशेद जी  ने  स्वामी  विवेकानंद  से  यह  कह   दिया  था    कि   आप  जो  भी  काम  करना  चाहते  हो  उसे  खुले  हाथ  से  करें  l  उन्होंने  अपने  गुरु  के  नाम  पर  बेलूर  मठ   संगमरमर  का  बनवाया  l   इसके  अतिरिक्त  भारत  ही  नहीं  विदेशों  में  भी  अनेक   रामकृष्ण  संस्थान   बनवाये  l   यह  सब  उनके  अध्यात्म   की शक्ति  से  संभव  हुआ   l 

WISDOM----

    एक  बार  सम्राट  विक्रमादित्य   अपने  सेनापति  और  मंत्री  के  साथ  रथ  पर  सवार  होकर  कहीं  जा  रहे  थे  l   मार्ग  में  उन्होंने  देखा   कि   सड़क  पर  धान  के  दाने   बिखरे  पड़े  हैं  l   उन्होंने  अपने  सारथी   से  कहा  --- " सारथी  !  रथ  रोको  l   यहाँ  भूमि  हीरों  से  पटी   पड़ी  है  l   जरा  मुझे  हीरे   उठाने  दो  l  "  उनके  मंत्री  ने  भूमि  की  ओर   देखा   और  बोले  ---- " महाराज  !  संभवतया  आपको   भ्रम  हुआ  है   l   भूमि  पर  हीरे   नहीं ,  धान   के  दाने  पड़े  हुए  हैं  l  "   सम्राट  विक्रमादित्य  तुरंत  रथ  से  उतरे   और  धान  के  दानों  को  बटोरकर  अपने  माथे   से  लगाने  लगे  l   ऐसा  कर  के  उन्होंने  अपने  मंत्री    की  ओर    देखा   और  बोले  --- "मंत्री जी  !  आपने  पहचानने  में  भूल  की  l   असली  हीरा   तो  अन्न  ही  होता  है  l   अन्न   से   ही  सबका  पेट  भरता  है  l   इसलिए  अन्न  को  हमारे  ऋषि - मुनियों  ने   श्रद्धापूर्वक  अन्नदेव  कहकर   सदैव  उसका  सम्मान  करने  की  प्रेरणा  दी   l   अत:  अन्न  के  प्रत्येक  दाने  का  आदर  करना  चाहिए   l   अन्न  का  यह  दाना  किसी  हीरे  से  कम  कैसे   हो  सकता  है  ? "    सम्राट  विक्रमादित्य  के  ऐसा  कहने  पर   अचानक  उनके  मंत्री  को  अनुभूति  हुई   कि   जैसे  साक्षात्  अन्नपूर्णा  वहां  खड़ी  होकर    सम्राट विक्रमादित्य  को  आशीर्वाद   दे  रही  हों   l 

9 December 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' समाज  में  छाए   हुए  अनाचार  , असंतोष   और  दुष्प्रवृतियों  का  एकमात्र  कारण  है  कि   जनसाधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित  हो  गई  है   l   चिंतन   और  चरित्र  यदि  निम्न  स्तर  का  है    तो  उसका  प्रतिफल  भी   दुःखद , संकटग्रस्त     एवं    विनाशकारी  होगा  l    आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' संसार  में  बुराई  और  भलाई   सभी  कुछ  है   , पर  हम  उन्ही  तत्वों  को  आकर्षित  और  एकत्रित  करते  हैं   जिस  प्रकार  की  हमारी  मनोदशा  होती  है  l  यदि  हम  विवेकशील  हैं  ,  हमारी  रूचि  परिमार्जित  है   तो  संसार  में  जो  कुछ   श्रेष्ठ है   ,  हम  उसे  ही   पकड़ने  का   प्रयत्न करेंगे   l   किन्तु  श्रेष्ठता  का  अनुकरण  कठिन  होता  है   l   सुगंध  की  अपेक्षा  दुर्गन्ध  का  विस्तार  अधिक  होता  है   l    एक   नशेड़ी ,  जुआरी  ,  दुर्व्यसनी ,  कुकर्मी    अनेकों  संगी - साथी  बना  सकने  में  सहज  सफल  हो  जाता  है   l   '  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- गीता  पढ़कर  उतने  आत्मज्ञानी  नहीं   बने   जितने  कि   दूषित  साहित्य ,  अश्लील  दृश्य ,  अभिनय  से  प्रभावित  होकर    कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत  हुए   l   कुकुरमुत्तों  की  फसल    और  मक्खी - मच्छरों  का  परिवार  भी  बड़ी  तेजी  से  बढ़ता  है     पर  हाथी  की  वंश  वृद्धि  अत्यंत  धीमी  गति  से  होती  है   l        भौतिक  प्रगति  के  साथ    चेतना  का  स्तर  ऊँचा  हो  ,  यही  सच्ची  प्रगतिशीलता  है   l                                 

WISDOM -----

 ' दुःख  में  सुमिरन  सब  करें , सुख  में  करे  न  कोय   l   जो  सुख  में  सुमिरन  करे  ,  दुःख  काहे   को  होय  l    श्रीमद् भगवद्गीता   की  शिक्षाएं  हमें  जीवन  जीना  सिखाती  हैं  l   गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---- 'शुभ  और  अशुभ  दोनों  ही  फल   मनुष्य  के  लिए  बाधक  हैं  l  शुभ  कर्मों  का  फल  भोगते - भोगते  मनुष्य  को  कर्तापन  का  अभिमान  हो  जाता  है  l   जब  मनुष्य  का  समय  अच्छा  होता  है  तब  हर  तरफ  उसकी  जय - जयकार  होती  है   इस  कारण  उसका  अहंकार  और  ऐश्वर्य  सिर   चढ़कर  बोलने  लगता  है  l   लेकिन  जब  अशुभ  फल  पैदा  होता  है , बुरा  वक्त  आता  है    तब  हर  जगह  विपदा  ही  विपदा  नजर  आती  है  , अपमान  और  षड्यंत्रों  की  श्रंखला  शुरू  हो  जाती  है  l   इसलिए  गीता  में  भगवान    हमें  समझाते   हैं  और  कहते  हैं  --- शुभ  के  क्षणों  में  अशुभ   के  लिए  तैयार  रहना  चाहिए   l   सुख  के  क्षणों  को  योगमय  बना  लो   l   सबको  साझीदार  बना  कर  पुण्य  बांटो   l  शुभ  कर्म  करो  l   शुभ  कर्म  का  मतलब  केवल  कर्मकांड  करना  नहीं  है  l   शुभ  कर्म  अर्थात  परमार्थ  करना  l   दूसरों  को  ऊँचा  उठाने  के  लिए ,  उनकी  पीड़ा  दूर  करने  के  लिए   कार्य  करना  l   सुख  में  कभी  अहंकार  न  करे  l    जब   जीवन  में  दुःख  आये   तो  विचलित  न  हो   क्योंकि   परमात्मा  सबकी  परीक्षा  दुःखों   के  माध्यम  से  लेता  है   l   दुःख  को  तप  बना  ले  l