पुराणों की कथाएं प्राचीन हैं , लेकिन वे हर युग में प्रासंगिक हैं l एक कथा है ----- राजा परीक्षित की एक बड़ी गलती की वजह से ऋषि ने उन्हें शाप दिया था कि उस दिन से ठीक सांतवे दिन उन्हें तक्षक नाग डस लेगा l मृत्यु को समीप जानकर उन्होंने भागवद पुराण सुना और शाप के अनुसार तक्षक नाग द्वारा डस जाने से उनकी मृत्यु हो गई l
परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को जब यह पता चला तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उनके ह्रदय में बदले की आग पैदा हो गई l उन्होंने निश्चय किया कि ' सर्प यज्ञ ' करेंगे जिससे संसार में सर्प की प्रजाति ही समाप्त हो जाएगी l संकल्प के अनुरूप यज्ञ की व्यवस्था हुई , सर्प यज्ञ आरम्भ हुआ , आहुतियों के साथ ही दूर - दूर से सर्प आकर उस यज्ञ की प्रज्ज्वलित अग्नि में गिरकर समाप्त होने लगे l तक्षक नाग को जब इसकी खबर मिली तो वह भाग कर अपने मित्र देवराज इंद्र के पास गया --' त्राहिमाम ' --- रक्षा करो ' l इंद्र ने उसकी बात सुनी और उसे शरण दी l वह इंद्र के सिंहासन से लिपट कर बैठ गया l
जन्मेजय के यज्ञ में तीव्र अग्नि प्रज्ज्वलित थी , तक्षक नाग के नाम से आहुति डालते ही तक्षक सहित देवराज इंद्र का सिंहासन आकाश में मंडराने लगा क्योंकि इंद्र सिंहासन पर बैठे थे और उन्होंने उसे शरण दी थी l यह देख सब देवता आ गए , उन्होंने जनमेजय को समझाया , उसका क्रोध शांत हुआ , सर्प यज्ञ को बंद कराया l तक्षक और इंद्र वापस लौटे , शेष सर्पों की रक्षा हुई l
ऋषियों ने समझाया -- इस तरह परस्पर बदले की भावना का कोई अंत नहीं है l बदला लेने में अपनी शक्ति को गंवाने से अच्छा है उसे लोक कल्याण में लगाकर अपना जीवन सार्थक करो l
परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को जब यह पता चला तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उनके ह्रदय में बदले की आग पैदा हो गई l उन्होंने निश्चय किया कि ' सर्प यज्ञ ' करेंगे जिससे संसार में सर्प की प्रजाति ही समाप्त हो जाएगी l संकल्प के अनुरूप यज्ञ की व्यवस्था हुई , सर्प यज्ञ आरम्भ हुआ , आहुतियों के साथ ही दूर - दूर से सर्प आकर उस यज्ञ की प्रज्ज्वलित अग्नि में गिरकर समाप्त होने लगे l तक्षक नाग को जब इसकी खबर मिली तो वह भाग कर अपने मित्र देवराज इंद्र के पास गया --' त्राहिमाम ' --- रक्षा करो ' l इंद्र ने उसकी बात सुनी और उसे शरण दी l वह इंद्र के सिंहासन से लिपट कर बैठ गया l
जन्मेजय के यज्ञ में तीव्र अग्नि प्रज्ज्वलित थी , तक्षक नाग के नाम से आहुति डालते ही तक्षक सहित देवराज इंद्र का सिंहासन आकाश में मंडराने लगा क्योंकि इंद्र सिंहासन पर बैठे थे और उन्होंने उसे शरण दी थी l यह देख सब देवता आ गए , उन्होंने जनमेजय को समझाया , उसका क्रोध शांत हुआ , सर्प यज्ञ को बंद कराया l तक्षक और इंद्र वापस लौटे , शेष सर्पों की रक्षा हुई l
ऋषियों ने समझाया -- इस तरह परस्पर बदले की भावना का कोई अंत नहीं है l बदला लेने में अपनी शक्ति को गंवाने से अच्छा है उसे लोक कल्याण में लगाकर अपना जीवन सार्थक करो l