पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ---- ' आध्यात्मिक चिंतन के स्वामी समस्त संपदाओं के अधिकारी बनते हैं l ' स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने संसार में तहलका मचा दिया , हिन्दू संस्कृति के बारे में सारी दुनिया को पुनर्विचार करना पड़ा l यह स्वामी विवेकानंद की महानता थी कि जब कलकत्ता की सड़कों पर उनका जुलूस निकल रहा था , तो हाई कोर्ट के जज और दूसरे वकीलों ने कहा कि घोड़ों को रथ से खोल दीजिए , बग्घी को हम खींचकर ले चलेंगे l स्वामी विवेकानंद के पास आध्यात्मिक शक्ति थी उसी का एक उदाहरण है -------- जमशेद जी टाटा लोहे की फैक्टरी लगाने की इजाजत मांगने के लिए इंग्लैंड गए हुए थे l उनको इजाजत नहीं मिल रही थी l क्वीन एलिजाबेथ से अनुमति मिल गई कि आप चाहे तो लोहे की फैक्टरी लगा सकते हैं l अब वे इस तलाश में थे कि ऐसा स्थान मिले जहाँ लोहा , कोयला और पानी तीनो एक स्थान पर मिले तभी बड़ी फैक्टरी लग सकती है l इस चिंता में जमशेद जी एक दिन स्वामी विवेकानंद के पास पहुंचे और उनसे अपने मन की बात कही l उन्होंने कहा --- लोहे पर विदेशी आधिपत्य है l हमारा देश आगे बढे , खुशहाल हो इसके लिए हमें देश में ही फैक्ट्री लगानी चाहिए l उन्होंने कहा ---- ' हमने सुना है योगी सब कुछ जानते हैं l जरुरत होने पर ज्ञान की बात बता सकते हैं , तो आप कृपा कर के हम को यह बता दीजिए कि हिंदुस्तान में ऐसी जगह कहाँ है ? ' स्वामी विवेकानंद ध्यान सिद्ध योगी थे , फिर यदि मन में देश की खुशहाली की , लोक कल्याण की भावना हो तो दैवी कृपा मिलती है l उन्होंने बताया कि वह जगह है --- बिहार के सिंहभूमि जिले का छोटा सा गाँव l उन दिनों वह वीरान जंगल था और पचासों मील की पथरीली और झाड़ियों वाली जगह में फैला हुआ था l वहां कोई आदमी नहीं रहता था l विवेकानंद जी ने कहा कि आप उस इलाके को ले लें l वहां पर तीनो चीजें मिल जाएँगी l " जमशेद जी वहां पर गए , जमीन को ढूंढा फिर उसे खरीद लिया और वहां पर फैक्ट्री लगाईं l अभी भी वहां वे तीनों चीजें उपलब्ध हैं l जमशेद जी ने स्वामी विवेकानंद से यह कह दिया था कि आप जो भी काम करना चाहते हो उसे खुले हाथ से करें l उन्होंने अपने गुरु के नाम पर बेलूर मठ संगमरमर का बनवाया l इसके अतिरिक्त भारत ही नहीं विदेशों में भी अनेक रामकृष्ण संस्थान बनवाये l यह सब उनके अध्यात्म की शक्ति से संभव हुआ l
10 December 2020
WISDOM----
एक बार सम्राट विक्रमादित्य अपने सेनापति और मंत्री के साथ रथ पर सवार होकर कहीं जा रहे थे l मार्ग में उन्होंने देखा कि सड़क पर धान के दाने बिखरे पड़े हैं l उन्होंने अपने सारथी से कहा --- " सारथी ! रथ रोको l यहाँ भूमि हीरों से पटी पड़ी है l जरा मुझे हीरे उठाने दो l " उनके मंत्री ने भूमि की ओर देखा और बोले ---- " महाराज ! संभवतया आपको भ्रम हुआ है l भूमि पर हीरे नहीं , धान के दाने पड़े हुए हैं l " सम्राट विक्रमादित्य तुरंत रथ से उतरे और धान के दानों को बटोरकर अपने माथे से लगाने लगे l ऐसा कर के उन्होंने अपने मंत्री की ओर देखा और बोले --- "मंत्री जी ! आपने पहचानने में भूल की l असली हीरा तो अन्न ही होता है l अन्न से ही सबका पेट भरता है l इसलिए अन्न को हमारे ऋषि - मुनियों ने श्रद्धापूर्वक अन्नदेव कहकर सदैव उसका सम्मान करने की प्रेरणा दी l अत: अन्न के प्रत्येक दाने का आदर करना चाहिए l अन्न का यह दाना किसी हीरे से कम कैसे हो सकता है ? " सम्राट विक्रमादित्य के ऐसा कहने पर अचानक उनके मंत्री को अनुभूति हुई कि जैसे साक्षात् अन्नपूर्णा वहां खड़ी होकर सम्राट विक्रमादित्य को आशीर्वाद दे रही हों l