29 June 2021

WISDOM -----

    बात  उन  दिनों  की  है   जब  बड़े - बड़े  नेता   अंग्रेजी  का   तथा  नागरी - लिपि  में   फ़ारसी  और  उर्दू  मिश्रित   हिंदुस्तानी   का  समर्थन  कर  रहे  थे    तब  पत्रकारिता  के  क्षेत्र  में  महान  परम्पराओं  के  जनक    बाबूराव  विष्णु  पराड़कर    हिन्दी   के  प्रचार - प्रसार  के  लिए  अथक  प्रयास  कर  रहे  थे   l   इसी  सन्दर्भ  में   एक  सभा  में   भाषण  देते  हुए  उन्होंने  कहा  ---- " सत्य  के  लिए  वे  बड़े - से - बड़े   व्यक्ति   का  भी  विरोध  अवश्य  करेंगे   l "    तब  सभा  में  से  एक  व्यक्ति  ने  उठकर  पूछा  ---- "  राजनीति   में  आप  जिन  नेताओं  के  अनुयायी  हैं    वे  स्वयं  ही   हिंदुस्तानी  और  अंग्रेजी  की  वकालत  करते  हैं  ,  तो  क्या  आप  उनका  भी  विरोध  करने  को      तैयार  हैं   ?  "      तब  पराड़कर  जी  ने   एक  पौराणिक   दृष्टांत  देते  हुए   उक्त  बात  कही  थी   l   वह  दृष्टांत  था  ---- जब  परीक्षित  के  पुत्र  जन्मेजय  को  यह  ज्ञात  हुआ  कि   उनके  पिता  की  मृत्यु  तक्षक  नाग  के  डसने  से  हुई  है    तो  उन्होंने  सम्पूर्ण  पृथ्वी  को    साँपों  से  रहित  कर  देने  के  लिए   नाग - यज्ञ   करने  का  संकल्प  किया  l   यज्ञ  शुरू  हुआ  l जैसे - जैसे  आहुतियाँ   दी   जातीं  वैसे - वैसे   मन्त्र  की  शक्ति  से  दूर - दूर  से  सांप  खिंचकर   आते  और  यज्ञ  की  अग्नि  में  गिरकर  भस्म  होने  लगे  l   तक्षक  नाग  भागकर   देवराज  इंद्र  की  शरण  में  गया  और  उनके  सिंहासन  के  नीचे     लिपटकर    छिप  गया    l   तक्षक  नाग  की    आहुति  के   लिए  मन्त्र  जपने  से   तक्षक  इंद्र  के  सिंहासन  समेत  खिंचा  चला  आने  लगा  l   तब  जन्मेजय  ने   इंद्र  से    उठने  के  लिए  बार  - बार   कहा   परन्तु  इंद्र  टस   से  मस  नहीं  हुए  ,  शरणागत  का  वचन  दे  चुके  थे  l   तब  जन्मेजय  ने  यह  विचारकर  कि   अनाचारी    को  प्रश्रय   देने  वाले   बड़े  लोग  भी  अक्षम्य  है  ,  उन्होंने   सुरपति  की  परवाह  छोड़ी  और  मन्त्र  पढ़ा  ---- ' स   इन्द्राय  तक्षकाय  स्वाहा  '  पराड़कर जी  ने  कहा  --- इसी  तरह     भले  ही  कोई   कितना  भी  गणमान्य   क्यों  न  हो  ,  हम  हिंदी  विरोधी  का     विरोध  अवश्य  करेंगे                                                              क्रांतिकारियों  ने  जिस  आदर्श  के  लिए   स्वतंत्रता  की  लड़ाई  लड़ी  थी  ,  देश  और  सत्ताधीशों  को    उन  आदर्शों  से  हटते   देख  वे  बड़े  क्षुब्ध  रहने  लगे  थे  l   पत्रकारिता  के  लिए  मार्गदर्शन  हेतु  जब  लोग  उनके  पास   आते  थे   तो  वे  कहते  थे  ----- ' पत्रकार  बनकर  मैंने  कुछ  नहीं  पाया  है  l   मेरी  आत्मा  कराह  उठती  है   l  "                                             

28 June 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' श्रम  एक  बहुत  महत्वपूर्ण  विभूति  है  l   यह  एक  ऐसी  कुदाल  है  ,  जिसके  माध्यम  से  हम   अपने  व्यक्तित्व  की  विभूतियों  को  खोद  सकते  हैं   l   हमारा  जीवन  हमारे  समक्ष  जो  भी  परिस्थितियां  ,  चुनौतियां   प्रस्तुत  करे   ,  उनमे  हमें  घबराकर     श्रम  करने  से    पीछे  नहीं  हटना  चाहिए   l   ऐसा  करने  पर  ही   हमारा  जीवन  ,  हमारी  उन्नति  का  द्वार  बनता  है   l   जहाँ  पर  हम  खड़े  हैं  ,  वही  दरवाजा   हमारे  लिए  प्रगति  का  द्वार  बन  जाता  है   l   "  आचार्य श्री  लिखते  हैं   श्रम  के  साथ  भावना  और  मनोयोग    तथा  बुद्धि  और  विवेक   के  जुड़ने  पर  ही   श्रम   का  महत्वपूर्ण  परिणाम  मिलता  है  l   जब  श्रम  सेवा  में  तब्दील  हो  जाता  है   तब  यह  और  भी  व्यापक   और  आध्यात्मिक  बन  जाता  है   और  व्यक्तित्व  की  प्रगति  के  द्वार  खोलता  है   l   जब  हम  सेवा  के  माध्यम  से  श्रम  करते  हैं    तो  हम  निजी  जीवन  को  समृद्ध  बनाते  हैं  और  अपने  व्यक्तित्व  को  व्यापक  बनाते  हैं   l 

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   स्वर्गीय  राष्ट्रपति   डॉ.  राजेंद्र  प्रसाद   एक  बार  कई  राज्यों  का  दौरा  करने  के  बाद  रांची  पहुंचे   l   वहां  उनके    पैर    में  दर्द  होने  लगा   l   पता  चला  कि   उनके  जूतों  के  तल्ले  घिस  गए  हैं   तथा  कीलें  ऊपर  उभर  आईं  हैं   l   राजेंद्र  बाबू  अहिंसक  जूतों  का  ही  प्रयोग  करते  थे    l   उनके  शिविर  से  दस  मील   दूर  ही   अहिंसक  चर्मालय  का  केंद्र  था  l   वहां  सचिव   को  भेजकर  नया  जोड़ा  मंगवाया  l    जूते    में  पाँव  डालकर  उन्होंने  कीमत  पूछी   तो  उत्तर  मिला  ---- ' उन्नीस  रूपये   l '  डॉ.  राजेंद्र  प्रसाद  ने  पूछा  --- " क्या  इनसे  सस्ते  जूते   नहीं  हैं  ? "  उनके  सचिव  ने  उत्तर  दिया  ---- " ग्यारह  रूपये  वाले   जूते   हैं  ,  पर  इनसे  कमजोर  तथा  कठोर  हैं   l   राजेंद्र  बाबू  को  संतोष  नहीं  हुआ  l   उन्होंने  कहा ----- " जब  ग्यारह  रूपये  के  जूते   से  काम  चल  सकता  है  ,  तब  उन्नीस  रूपये  क्यों  खर्च  किये  जाएँ   ?   इन्हे    लौटाकर     ग्यारह  रूपये  वाला   जोड़ा  मंगवाओ   l  "    राष्ट्रपति जी  वहां  तीन  दिन  ठहरे   l   उन्होंने  किसी  आने - जाने  वाले  से   जूते   बदलवाए  l   सचिव  को  मोटर  द्वारा   जूते   बदलने  नहीं  भेजा   l     उन्होंने   कहा  --- "  जितने  रूपये   जूतों  में  बचाएंगे   ,  उतने  पैट्रोल  में  लग  जायेंगे   l  "   यद्द्पि   बात  छोटी - सी  थी  ,   परन्तु  राष्ट्र  की   संपत्ति   की   एक - एक  पाई   का  ध्यान   रखने  वाले    राजेंद्र  बाबू   के  लिए    ये  बहुत  गंभीर  बात  थी  l   ये  छोटी - छोटी   बातें  ही  व्यक्ति  को  महान  बनाती   हैं    l 

27 June 2021

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   महाभारत  में  एक  प्रसंग  है  ----  अर्जुन  ने  जब  खांडव  वन  को  जलाया  ,  तब  अश्वसेन   नामक  सर्प  की  माता   बेटे  को  निगलकर   आकाश  में  उड़  गई  ,  लेकिन  अर्जुन  ने  उसका  मस्तक   बाणों   से  काट  डाला  l  सर्पिणी  तो  मर  गई   ,  पर  अश्वसेन  बचकर  भाग  गया  l   उसी  वैर  का  बदला  लेने    वह  कुरुक्षेत्र  की  रणभूमि  में  आया    था  l   उसने  कर्ण   से  कहा  ----- " मैं  विश्रुत   भुजंगों  का  स्वामी  हूँ    l   जन्म  से  ही  पार्थ  का  शत्रु  हूँ  l   तेरा  हित    चाहता  हूँ   l   बस  एक  बार   अपने  धनुष  पर   मुझे  चढ़ाकर   मेरे  महाशत्रु  तक  मुझे  पहुंचा  दे   l   तू  मुझे  सहारा  दे  ,  मैं  तेरे  शत्रु  को  मारूंगा   l  "   कर्ण  हँसे   और  बोले  ---- "  जय  का  समस्त  साधन  नर   की  बांहों  में  रहता  है  ,  उस  पर  भी  मैं  तेरे  साथ  मिलकर  --- साँप   के  साथ  मिलकर  मनुज  से  युद्ध  करूँ  ,  निष्ठां  के  विरुद्ध  आचरण  करूँ   !  मैं   मानवता  को  क्या  मुँह   दिखाऊंगा   ?  "    इसी  प्रसंग  पर  रामधारी  सिंह  ' दिनकर '  ने  लिखा  है ----- " रे  अश्वसेन  !  तेरे  अनेक  वंशज  ,  छिपे  नरों   में  भी   ,   सीमित   वन  में  ही  नहीं   ,  बहुत  बसते   पुर  - ग्राम - घरों  में  भी    l  "      आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- सच  ही  है  ,  आज  सर्प  रूप  में   कितने  अश्वसेन    मनुष्यों  के  बीच    बैठे  हैं   ---- राष्ट्र  विरोधी  गतिविधियों   में  लीन   हैं , आतंकवाद  के  समर्थक  l   महाभारत   की  ही  पुनरावृति  है  आज   l 

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   महात्मा  रामानुजाचार्य  अपनी  शारीरिक  दुर्बलता  के  कारण  नदी  में  स्नान  करने  जाते  समय  लोगों  का  सहारा  लेकर  जाया  करते  थे  l   जाते  समय  वे  ब्राह्मण  के  कंधे  का  सहारा  लेते  थे     और  आते  समय  शूद्र  के  कंधे  पर  हाथ  रखकर   आते  थे   l   लोगों  ने  आश्चर्य  पूर्वक  पूछा  --- " भगवन  !  शूद्र  के  स्पर्श  से   तो  आप  अपवित्र  हो  जाते  हैं  ,  फिर  स्नान  का  महत्त्व  क्या  रहा  ? "     आचार्य  जी  ने  कहा  ----- "  स्नान  से    मेरी  देह  मात्र  शुद्ध  होती  है   l   मन  का  मैल   तो  अहंकार  है  l   जब  तक  मनुष्य  में  अहंकार  शेष  है  ,  तब  तक  उसे  मन  का  मलीन   ही   कहा  जाता  है  l   मैं  शूद्र  का  स्पर्श  कर  के  अपने  मन  की  मलीनता   स्वच्छ  करता  हूँ  l  मैं  किसी  से  बढ़ा  नहीं  ,  सब  मुझसे  ही  बड़े  हैं  ,  शूद्र  भी  मुझसे  श्रेष्ठ  हैं  ,  इसी  भावना  को   स्थिर  करने  के  लिए   मैं  शूद्र  का  सहारा   लिया  करता  हूँ   l   शरीर  ही  नहीं ,  मन  को  भी   पवित्र  रखने  की  व्यवस्था  करनी  चाहिए   l 

26 June 2021

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   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ------ ' अहंकार  बातों  से नहीं   क्रियाओं  से  व्यक्त  होता  है   l '    पुराण  में  एक  कथा  है  ---- महाराज  युधिष्ठिर   धर्म  के  मार्ग  पर  चलने  वाले  और  सत्यवादी  थे  l   महाभारत  के  युद्ध  में    युधिष्ठिर  का  रथ   धरती  से  चार  अंगुल  ऊपर  चलता  था    लेकिन  जब   युद्ध  में  उनसे  जबरन  झूठ  बुलवाया  गया ,   आचार्य  द्रोण   के  पूछने  पर  उन्होंने  कहा  --- हाँ , अश्वत्थामा  मारा  गया  , उनके  इतना  बोलते  ही  पांडवों  ने  इतना  जोर  से  शंखनाद  किया   कि   शेष  शब्द  '  मंनुष्य  नहीं  हाथी  '  द्रोणाचार्य  को  सुनाई  नहीं  दिए     और  उन्होंने  अपने  अस्त्र - शस्त्र   जमीन  पर  रख  दिए  ------ इस  एक  झूठ  के  बोलते  ही    युधिष्ठिर   का    रथ  धरती  से  स्पर्श  होकर  चलने  लगा  l   युद्ध  समाप्त  हुआ   l   युधिष्ठिर  का  राज्याभिषेक  हुआ  l   वे  प्रजा  का  सब  तरह  से  ध्यान  रखते  ,  उनके  पास  अक्षय  पात्र  था  ,  समग्र  प्रजा  को  मनपसंद  व्यंजन , पकवान   प्रदान  करते  l   उनके  राज्य  में  सोलह  हजार   प्रबुद्ध  ब्राह्मण  थे ,   दान  - पुण्य , स्वादिष्ट  भोजन  आदि  से  प्रसन्न  होकर   वे  सब  महाराज  का  जयगान - यशोगान   करते   l   इससे  युधिष्ठिर  को  अभिमान  हो  गया  - सात्विक  अभिमान  l    भगवान     कृष्ण  को  अपने  शिष्य  का  यह  अहंकार  सहन  नहीं  हुआ  ,  उनकी  दृष्टि  में    अक्षय  पात्र   और  सोलह  हजार  ब्राह्मणों  को  प्रतिदिन  भोजन  कराना   कोई  बड़ी  बात  नहीं  थी   l   उन्होंने  युधिष्ठिर  को  समझाया  भी  कि   यह  पुण्य  कार्य  है  इसके  लिए  अभिमान  उचित  नहीं  है   l  युधिष्ठिर  कहते  ---- " परन्तु  प्रभु  , मैंने  तो    ऐसी  कोई  बात  नहीं  की   जिससे  अभिमान  टपकता  हो   l  l "  भगवान  कृष्ण  ने  कहा  --- "  अभिमान  बातों  से  नहीं  क्रियाओं  से  टपकता  है  l   फिर  वे   युधिष्ठिर  को  लेकर  महाराज  बलि  के  पास  गए   और  युधिष्ठिर  का  परिचय  देते  हुए  कहा  ---- ' ये  पांडवों  के  अग्रज  महादानी  युधिष्ठिर  हैं   l   इनके  दान  से  मृत्यु लोक  के  प्राणी  उपकृत  हो  रहे  हैं  ,  और  अब  वे  तुम्हारा  स्मरण  भी  नहीं  करते  l   दैत्यराज  बलि  ने  कहा  --- "  मैंने  स्मरण   करने  जैसा  कोई  कार्य  नहीं  किया  ,  केवल  भगवान  वामन  को  तीन  पग  भूमि  दान  की  l  "  भगवान  ने  कहा  --- ' तुमने  सब  कुछ  खोकर  भी  अपना  वचन  पूरा  किया  ,  तुम्हारी  ख्याति  अमर  है   l   अब  मृत्युलोक  में  युधिष्ठिर  का  यशोगान  है  l   बलि  ने  युधिष्ठिर  की  कोई  पुण्य गाथा    सुनाने  के  लिए  भगवान  से  आग्रह  किया   l   तब  भगवान  ने  उनके  पूर्व  जीवन   वंश  का  विवरण  सुनाया  और  अक्षय  पात्र  और  सोलह  हजार  ब्राह्मणों  को   नियमित  भोजन  कराने  की  परंपरा   का  भी  उल्लेख  किया   l   तब  दानवराज  बलि  ने  कहा ---- "  आप   इसे  दान  कहते  हैं  ,  लेकिन  यह  तो  महापाप  है  l   बलि  ने  कहा  ---  धर्मराज   ! केवल  अपने  दान  के   दम्भ  को  पूरा  करने  के  लिए     ब्राह्मणों  को  आलसी  बनाना     पाप  है   l   मेरे  राज्य  में  तो   याचक  को   नित्य  भोजन  की  सुविधा  दी  जाये  तो  वह  स्वीकार  नहीं  करेगा   l  "  यह  सुनकर   युधिष्ठिर  का  अहंकार   चूर  हो   गया  और  वे  विनम्रता पूर्वक  पुण्य  कार्य  में  संलग्न  हो  गए   l 

25 June 2021

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   पोरस  से  युद्ध  जीतकर  भी  सिकंदर  हार  गया  था  ,   थक - हार  कर  जब  वह  वापस  लौटने  लगा   तो  उसने  सोचा  क्यों  न  आसपास  के  छोटे  राज्य  ही  हड़प  लिए  जाएँ   l   उसकी  दृष्टि   अश्वपति  के  राज्य  पर  पड़ी  l   अश्वपति  ने  अपने  राज्य  का  विस्तार  तो  नहीं  किया  था  ,  पर  उसने  समर्थ  नागरिक  तैयार  करने  के  हर  संभव  प्रयास  किये  थे   l  उसके  राज्य  में  सभी  स्वस्थ   और  वीर - बहादुर  थे   l   काना - कुबड़ा ,  दीनहीन ,  आलसी  कोई  न  था   l   अपने  राज्य  के  सब  बच्चों  की  शिक्षा - दीक्षा  का  प्रबंध  अश्वपति  स्वयं  करता  था  l   उसके  राज्य  का  हर  नवयुवक   चरित्रबल ,  शौर्य  और  संयम  की  प्रतिमूर्ति  था   l   ऐसे  राज्य  की  सेना  को  आमने - सामने  के  युद्ध  में  पराजित  करना  असंभव  था   l   अत:  सिकन्दर   ने  छल  का  सहारा  लिया   और  रात्रि  में  छल  से   अश्वपति  पर  आक्रमण  कर  उसे  हरा  कर  बंदी  बना  लिया  l   अश्वपति  के  चार  वफादार  कुत्ते  थे  ,  जो  उनके  साथ  रहते  थे   l   सिकन्दर   ने  कुत्तों  की  लड़ाई  शेर   से  कराने  की  सोची   l   अश्वपति  बोले   ---- "  राजन  !  ये  भारतीय  कुत्ते  हैं  l   शेरों   से  भी  मैदान  में  लड़ते  हैं  l   छिपकर  आक्रमण  नहीं  करते   l  "  कुत्ते  और    शेर   के    मध्य   लड़ाई  प्रारम्भ  हुई   तो  देखते - देखते    कुत्तों  ने  शेर  को  लहूलुहान  कर  दिया   l   शेर  भागने  को   मजबूर   हो  गया  l   यह  देखकर  सिकन्दर   बोला ----- "  जिस  राज्य  के  कुत्ते  भी  इतने  पराक्रमी  हैं  ,  वहां  की  सेना  को  हम  कैसे  हरा  पाए  ? "   अश्वपति   बोले  ----- "  यदि  आपने  छल  न  किया  होता   और  यह  युद्ध  आमने - सामने  का  होता   तो  यथार्थता  का  पता  चल   जाता  l  "  सिकन्दर   के  पास    मुँह   लटकाने   के  अतिरिक्त  और  कोई  चारा  न  था   l 

24 June 2021

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 अपने  युग  के  सर्वश्रेष्ठ  चिकित्सा  विज्ञानी   ' जीवक '  औषधियों  के  साथ   आध्यात्मिक  जीवनशैली   एवं  आध्यात्मिक   साधनाओं  के  प्रबल  पक्षधर  थे   l   उनकी  चिकित्सा  से  स्वस्थ  हुए   सम्राट  आजातशत्रु   ने  उनसे  पूछा   ---- "  क्या  अकेली  औषधियाँ   पर्याप्त  नहीं  हैं   ,  उनके  साथ   आध्यात्मिक  जीवनशैली   एवं   आध्यात्मिक   साधनाएं  जरुरी  हैं   ? "  जीवक  ने  उत्तर  दिया  ---- " यदि  कोई  सम्पूर्ण  स्वस्थ  होना  चाहता  है   तो  उसके  लिए  यह  अति  अनिवार्य  है   l    मनुष्य  का  जीवन  पदार्थ  एवं   चेतना  के  संयोग  के  कारण  है   l   इसलिए  इसकी  सफल  चिकित्सा  के  लिए    विज्ञानं  एवं   अध्यात्म  का   संयोग  चाहिए   l   चिकित्सा  विज्ञानं  एवं  अध्यात्म  ज्ञान  मिलकर  ही   मनुष्य  जीवन  को  सम्पूर्ण  सुखी   व  स्वस्थ  कर  सकते  हैं   l  "

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   एक  पादरी  जहाज  से  यात्रा  कर  रहे  थे   l   जहाज  ने  एक  द्वीप  के  पास  लंगर  डाला  l  पादरी  ने  सोचा  कि   इस  द्वीप  पर  कोई  होगा   तो  उसे  प्रार्थना   सिखा    आएं   l   वहां  उन्हें  केवल  तीन  साधु  मिले  ,  उनसे  पूछा  ---- कुछ  प्रार्थना , उपासना  करते  हो   ?  उन्होंने  बताया  --- हाँ  !   हम  तीनों  ऊपर  हाथ  उठाकर  कहते  हैं  ,  हम  तीन  हैं , तुम  तीन  हो  l   तुम  तीनो  हम  तीनों  की  रक्षा  करो  l   पादरी  हँसे ,  बोले  यह  क्या  पागलपन  करते  हो  ,  तुम्हे  प्रार्थना  करनी  भी  नहीं  आती   l   उन  भोले  साधुओं  के  आग्रह  पर   पादरी  ने  उन्हें   बाइबिल  के  आधार  पर  प्रार्थना  करना  सिखाया   ,  और  अभ्यास   हो  जाने  पर  वैसा  ही  करने  को  कहकर  जहाज  पर  आ  गए   l   दूसरे  दिन  पादरी  जहाज  के  डैक  पर  टहल  रहे  थे  l   पीछे  से  आवाज  सुनाई  दी  ---- ' ओ   पवित्र    आत्मा    रुको   l  "  पादरी  ने  देखा  वे  तीनों  साधु   पानी  पर  बेतहाशा   दौड़ते   पुकारते  चले   आ  रहे  हैं  l   आश्चर्य चकित  पादरी  ने  जहाज  रुकवाया   और  उनसे  इस  प्रकार   आने  का  कारण  पूछा   l   वे  बोले  ----- " आप  हमें  प्रार्थना  सिखा   आये  थे  ,  रात  में  हम  सोये  तो  भूल  गए   l   सोचा    आपसे  ठीक  विधि  पूछ  लें  इसलिए  दौड़े  आए   l  "  पादरी  ने  पूछा  --- पर  आप  पानी  पर   कैसे  दौड़  सके   ?   उन्होंने  कहा  ---- " हमने  भगवान  से  प्रार्थना  की  ,  कहा  -- हम  अनजान  हैं  ,  पवित्र  पादरी  जो  सिखा   गए  थे  ,  हम  भूल  गए  l   अब  दौड़  हम  लेंगे , डूबने  तुम  मत  देना   l   बस ,  इतना  ही  कहा  था   l  "  पादरी  ने   घुटने  तक  कर  उनका  अभिवादन  किया   और  कहा  -- आप  जैसी  प्रार्थना  करते  हैं  वही  सही  है  l  प्रभु  आपसे  प्रसन्न  हैं   l   सर्वव्यापी  ईश्वर  सबके  भाव  समझता  है  ,  उसी  आधार  पर  मान्यता  देता  है   l  

23 June 2021

WISDOM ------

   संसार  के  कल्याण  के  लिए   समय - समय  पर  वैज्ञानिकों  ने   ऋषि - महर्षियों  ने  विभिन्न  अनुसन्धान  एवं  प्रयोग  किये  हैं   l   यह  भी  एक  अनुसन्धान  का  विषय  है  कि     वैज्ञानिक  अनुसन्धान  करने  वाले  चाहे  संवेदनशील  हों   लेकिन  जब   उन    अविष्कारों  का  प्रयोग  किया  जाता  है  तो  सृजन  कम  और  विनाश  अधिक  होता  है  l   जैसे  -- परमाणु  बम  के  निर्माण  के   लिए  उद्देश्य  था  कि   जर्मनी  के  तानाशाह  हिटलर  को  डराया  जा  सकेगा  ,  उसकी  विनाशक -हिंसक  गतिविधि  पर  रोक  लगेगी    लेकिन  इसका  गलत  प्रयोग  हुआ  और  महाविनाश  हुआ  l   इसी  तरह  चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  वैज्ञानिक    मानव  जाति   के  अच्छे  स्वास्थ्य  और  दीर्घायु  के  लिए    नई - नई   दवाइयों  आदि  की  खोज  करते  हैं , बनाते  हैं   लेकिन  इनका  प्रयोग  जब  मनुष्यों  पर  होता  है    तो  एक  ही  दवा  से  कुछ  स्वस्थ  हो  जाते  हैं ,  कुछ  और  बीमार  हो  जाते  हैं  ----- क्योंकि  प्रत्येक  मनुष्य  की  शारीरिक  और  मानसिक  शक्ति  भिन्न - भिन्न  है  l   शारीरिक  क्षमता  का  तो  पता  लगाया  जा  सकता  है  लेकिन  मानसिक  क्षमता  को  समझना  आसान  नहीं  है   क्योंकि   हमारा  मन  वातावरण   आदि  अनेक  बातों  से  प्रभावित  होता  है   l यदि  हमें  विश्वास  है  तो   दवा  के  रूप  में  पानी  भी  दिया  जायेगा  तो  हम  स्वस्थ  हो  जायेंगे  लेकिन   यदि  भ्रष्टाचार  आदि  अनेक  कारणों   से    हम  दवा  आदि  के  प्रति  विश्वस्त  नहीं  हैं   ,    हमारा  मन  उसे  स्वीकार  नहीं  कर  रहा  है  तो  अच्छी  से  अच्छी  दवा  भी  जीवन  के  लिए  खतरा  होगी  l   लेकिन  आध्यात्मिक  प्रयोगों   से  सकारात्मक  ऊर्जा  का  संचार  होता  है   और  वे  मानव  के  लिए   सदैव  कल्याणकारी  होते  हैं  ,  हमारे  आध्यात्मिक  ऋषियों  की  वैज्ञानिक   देन   है  --- योग - विज्ञान।     महर्षि  पतंजलि  व्याकरण  शास्त्र - ध्वनिशास्त्र  में  विशेषज्ञ  होने  के  साथ   शरीर  शास्त्र व  चिकित्सा शास्त्र  में  प्रवीण  थे   इसके  अतिरिक्त  व्यवहार शास्त्र  और   मनुष्य  की  मनोदशाओं  को  सूक्ष्मता  से  समझने  के  विशेषज्ञ  थे  l   उन्होंने  अपने  गुरु  आत्रेय  पुनर्वसु  के  नाम  से  लिखे   शरीर  चिकित्सा  के  ग्रन्थ  का  संशोधन  कर  उसे ' चरक - संहिता '  नाम  दिया     अर्थात ' चरैवेति '   -- जो  गतिशील  रहता  है  , वह  नीरोगी होता  है , समृद्धि  को  प्राप्त  करता  है  l   अपने  जीवन  के  उत्तरकाल  में  उन्होंने   मन ,  वाणी  एवं  काया  के  दोषों  के  निवारण  के  लिए  योग - विज्ञान   की  रचना  की  l   इसके  लिए  उन्होंने  अपने  शिष्यों  के  साथ  अनेक  जटिल  - कठिन  प्रयोग  किए   l  प्रयोगों  ने  जिसे  प्रामाणिक  कहा  ,  वही  उनके  लिए  प्रामाणिक  था  l   उनके  द्वारा  प्रवर्तित  यह  योग  का  वैज्ञानिक  विधान  उनके  लिए  था  जो  आस्तिक  हैं ,  उनके  लिए  भी    था  जो  नास्तिक  हैं  ,  इसके  क्रियान्वयन  में    जाति , वर्ण , क्षेत्र , स्त्री - पुरुष   का  कोई  प्रतिबन्ध  नहीं  था   l   जब  यह  ग्रन्थ  पूर्ण  हो  गया   तो  उनके  शिष्यों  ने  पूछा  --- ' आचार्यवर  !   आपके  द्वारा  रचित  195   सूत्रों  में  प्रमुख  एवं  प्रधान  सूत्र  क्या  है   ? '  महर्षि  ने  कहा ---- ' वह  प्रथम  सूत्र  है  -- ' अथ   योगानुशासनम  ' --- क्योंकि  योग  विज्ञानं  उन्ही  के  लिए  है  ,  जो  योग  विज्ञानं  के   वैज्ञानिक   प्रयोगों  का  अनुशासन  स्वीकारते  हैं   l  '

WISDOM -------

   चीन  में  एक  लड़का   अपनी  दादी  के  साथ  रहता  था  l   दादी  ने  एक  बगीचा  लगा  रखा  था  l   एक  दिन  दादी  बीमार  हो   गईं   तो  उन्होंने  उसे  बगीचे  की  देखभाल  के  लिए  भेजा   l   अगले  दिन  उन्होंने  बगीचे  में  जाकर  देखा   तो  उन्हें  पता  चला  कि   उनके  पोते  ने  किसी  भी  पेड़  की  जड़  में  पानी  नहीं  डाला  l   पौधे  सूखते  हुए  दिखाई   पड़   रहे  हैं  l   उन्होंने  उसे  बुलाकर  इसका  कारण  पूछा    तो  वह  बोला  ----- " दादी  !  मैंने  हर  पौधे  की  पत्तियां  पोंछी थीं   और  उनकी  जड़ों  में  रोटी  के  टुकड़े  भी  डाले   थे   l  "  उसकी  दादी  बोलीं ---- "  बेटा  !  पेड़ों  की  जड़ों  में  रोटी  के  टुकड़े  डालने  से    और  पत्तियां  पोंछने  से    पेड़  नहीं  बढ़ते  l   तुम्हे  पेड़  की  जड़ों  में  पानी  डालना  चाहिए  था   l  "  लड़का  सोच  में  पड़   गया   l   उसने  दादी  से  पूछा  --- " दादी  !  क्या  मनुष्य  की  भी  जड़ें  होती  हैं   ? "  दादी  बोलीं  --- "  हाँ  बेटा  !  हमारे  मन  के  साहस  में  हमारी  जड़ें  होती  हैं   l   जब  इनको  रोज  पोषण  दिया  जाये   तो  हम  ताकतवर  बन  सकते  हैं  l  "  उस  लड़के  ने  फैसला  किया  कि   वह  अपने  मन  को  साहस  से  भरपूर  रखेगा   l   यही  लड़का  आगे  चलकर  चीन  का  राष्ट्राध्यक्ष    ,  माओत्से  तुंग   बना   l 

22 June 2021

WISDOM -----

  आयुर्वेद  में  वर्णन  आता  है  ----- संसार  के  प्राणी  रोगों  से  दुखी  होकर  हिमालय  पहुंचे   ल  सभी  ऋषि  , महर्षि  उनके  साथ  थे   l   देवराज  इंद्र  ने  सभी  का  स्वागत  किया   और  उनकी  चिंता  का  समाधान  करते   हुए  कहा  कि  --- ब्रह्मा  ने  सबसे  पहले  प्रजापति  को  आयुर्वेद  का  ज्ञान  दिया  l   फिर  प्रजापति  ने  अश्विनी  कुमारों  को   और  उन  दोनों  ने  मुझे   जन  कल्याण  हेतु   आयुर्वेद  का  उपदेश  दिया   l   इसके  बाद  इंद्र  ने   असंख्य  दिव्य  औषधियों   की  जानकारी  दी   एवं  स्वयं  चलकर   सभी  को  दिखाया  l   इंद्र  ने  कहा  ---- " इन  औषधियों  से   मनुष्य  तरुण  रहेगा  ,  शरीर  वर्ण   सुंदर   होगा  ,  बल  की  वृद्धि  होकर   सभी  आकांक्षाएं  पूर्ण  होगीं   l   हमारा  आयुर्वेद  रत्नों  की  खान  है   l     इंडोनेशिया  में  एक  मान्यता  है   कि   आयुर्वेद  के  सभी  ग्रंथों  के    रचयिता   श्री  गणेश जी   हैं   l  वहां  प्रचलित  धार्मिक  ग्रंथों  के  अनुसार   एक  बार  भगवान  शिव  बीमार  पड़े    तो  उन्होंने   नवग्रहों   को  बुलाकर   अपनी  चिकित्सा  करने  को  कहा   ,  किन्तु  वे  सभी  असफल  रहे   l   तब  उनने   संसार  की  सभी  जड़ी बूटियों   को  बुलाया   और  कहा  कि   तुम  अपने - अपने  गुणों  का  बखान  करो   l  जब  यह  क्रम  चल  रहा  था    तब  गणेश जी  इसे  लिपिबद्ध  कर  रहे  थे   l   यही  विवरण   ' प्रमानतरु  '   नामक     एक  विशाल  ग्रन्थ  बन  गया   l   इंडोनेशिया  के  सभी  वैद्य   इस  पुस्तक   को    अपने  पास  रखते  हैं   एवं  जड़ी - बूटियों  से  इलाज  करते  हैं    l   आयुर्वेद  इंडोनेशिया  में  सर्वाधिक   प्रचलित  चिकित्सा  पद्धति  है   l 

WISDOM -----

   डॉ.  ए.  पी.  जे.  कलाम   अपनी  रचना   ' अदम्य  साहस  '  में  लिखते  हैं  ----- "  एक  छात्र  के  प्रश्न  का  उत्तर  देते  हुए    मैंने  कहा   कि   विज्ञान   की  कोशिश   है  कि   लोगों  का  भौतिक  जीवन  बेहतर  हो  ,  जबकि   अध्यात्म  का  प्रयास  है   कि   प्रार्थना   आदि  उपायों  से    इनसान   सच्ची  राह  चले   l   विज्ञान   और  अध्यात्म  के  मिलन   से  तेजस्वी  नागरिक  का  निर्माण  होता  है   l   तर्क  और  युक्ति  विज्ञान   और  अध्यात्म  के  मूल  तत्व  हैं   l  धार्मिक  व्यक्ति  का  लक्ष्य   आध्यात्मिक  अनुभूति  प्राप्त  करना  है   ,  जबकि  वैज्ञानिक  का  मकसद   कोई  महान  अविष्कार  करना  होता  है   l   यदि  जीवन  के   ये  दो  पहलू   आपस  में  मिल  जाएँ    तो  हम  चिंतन  के  उस  शिखर   पर  पहुँच  जायेंगे   ,  जहाँ  उद्देश्य  एवं  कर्म    एक  हो  जाते  हैं   l  " -----------  

21 June 2021

WISDOM -----

   जाति   प्रथा  और  छुआछूत  की  भावना  से  हमारे  देश  का  कितना  अहित  हुआ  है  ,  यह  संकीर्णता  राष्ट्र  के  लिए  कितनी  घातक  है  ,  इसकी  कल्पना  नहीं  की  जा  सकती      ---- इसे  स्पष्ट   करता  हुआ  यह  प्रेरणाप्रद  दृष्टांत  है  -----                                         ग्यारहवीं  शताब्दी  का   द्वितीय  शतक   l   सोमनाथ    पट्टन    निवासी    विजय  भट्ट   नामक  विद्वान्  जब  अपने  नित्य  कर्म  से  निपटकर  वेद  पाठ  करने  बैठता  ,  तो  उसकी  शूद्र  सेविका   का  आठ  वर्षीय  पुत्र  देवा    उसे  देखकर  स्वयं  भी  वैसा ही  विद्वान्  बनने  के  सपने  देखने  लगा    l   एक  दिन  उसने  डरते - डरते   विजय  भट्ट  से   उसे  भी  संस्कृत  पढ़ाने  का  निवेदन  किया   l   विजय  भट्ट  ने  उसे   कठोरता   से    उत्तर  दिया  ---- "  तुम  शूद्र  हो   l   शूद्रों  को  देव  भाषा  पढ़ने  और  सुनने  का  अधिकार  नहीं  है   l  "    विजय  भट्ट  की  एक  कन्या  शोभना  देवा  की  समवयस्क  थी  l   देवा  को  पढ़ने  की  ललक  थी   l   जब  विजय  भट्ट   अपनी  कन्या  को  संस्कृत  पढ़ाते   तो    देवा   मकान  के  एक  कोने  में  छिप  जाता  और  बड़े  ध्यान  से  सब   सुनता , समझता   l   जो  कुछ  समझ  में  नहीं  आता   , वह  अवसर  पाकर   शोभना  से  पूछ  लेता  l   बच्चों  का  मन  निर्मल  होता  है   ,  वह  पिता  की  अनुपस्थिति  में  उसे    सब  बता  देती   l   इस  तरह  जिज्ञासु  देवा  एक  दिन   संस्कृत   पढ़  गया ,  धर्मशास्त्रों  को  समझने  लगा   ,  फिर  उसने  अपने  समाज  में  ज्ञान  का  प्रसार  करना  आरम्भ  किया   l एक  शूद्र  द्वारा  वेद  मन्त्रों  का  उच्चारण  करना  , देव भाषा  संस्कृत  का  अध्यापन  करना   रूढ़िवादी  पंडितों  को  सहन  नहीं  हुआ   l   उन्होंने  देवा  को  चेतावनी  दी  कि   वह  धर्म  के  विरुद्ध  कार्य  न  करे   l  देवा  ने  उन्हें  शास्त्रों  का  प्रमाण  देकर   बताया  कि   शूद्र  जन्म  से  नहीं  कर्म  से  होते  हैं   l   लेकिन  रूढ़िवादी  ब्राह्मणों  ने  उसे  बहुत  अपमानित  किया  और  मारापीटा   भी   l   अकारण  ही  इस  अपमान  और  तिरस्कार  की  प्रतिक्रिया  स्वरुप     देवा  के  मन  में  प्रतिशोध  की  भावना  उत्पन्न  हो  गई    और  उसके  हृदय  में  सोमनाथ  पट्टन   के  ब्राह्मणों  से  बदला  लेने  की  आग  धधक  उठी   l   दुर्योग  से    अपमानित  और  तिरस्कृत  देवा  की  भेंट   महमूद  गजनवी  के  एक  गुप्तचर  से  हो  गई  l   महमूद  गजनवी  सोमनाथ  के  मंदिर  पर  आक्रमण  करना  चाहता  था  ,  इसी  उद्देश्य  से  उसने  गुप्तचर  भेजे  थे  l   जब  देवा  ने  अपने  साथ  हुए  हिन्दू  समाज  के  दुर्व्यवहार  की  चर्चा  उसने  की   l   तो  गुप्तचर  ने  उससे  कहा  ---- '  तुम  इतने  विद्वान्  हो  ,  फिर  भी  इन  लोगों  ने  तुम्हारा  इतना  तिरस्कार  किया  ,  तुम  मुसलमान   क्यों  नहीं  बन  जाते   ?  हम  तुम्हारे  अपमान  का  बदला  लेंगे  l '  देवा  के  मन  में  बदले  की  आग  थी  उसने  तुरंत  इस्लाम  धर्म  स्वीकार  कर  लिया  और  देवा  से   फतह  मुहम्मद  हो  गया   l   पाटन   नरेश  भीमदेव  चौलुक्य  ने   महमूद  गजनवी  के  आक्रमण  से    सोमनाथ  मंदिर  की  रक्षार्थ   अपनी  सेना  सजा  रखी   थी  l   सुदृढ़  सुरक्षा  व्यवस्था  के  कारण   महमूद  गजनवी  सोमनाथ  पर  अधिकार  करने  में  सफल  नहीं  हो  पा  रहा  था   l   देवा   जो  अपमान  के  कड़वे  घूंट  पीकर  फतह  मुहम्मद   हो  गया  था    वह  सोमनाथ  पट्टन   के  सब  रहस्य  जानता   था    उसने  वह  सब  जानकारी  और  गुप्त  द्वार  का  रास्ता  महमूद  गजनवी  को  बता  दिया   l   गजनवी  की  पूरी  सेना  बाढ़  की  तरह  अंदर  घुस  गई  ,  राजपूतों  की  हार  हुई  l   सोमनाथ  की  मूर्ति  तोड़  दी  गई  l   असीमित  धन  सम्पदा  ,  हीरे , जवाहरात  सब  लूटकर  महमूद  अपने  साथ  ले  गया  l   यदि  देवा  का  इतना  अपमान  नहीं  किया  होता  तो  वह  क्यों  महमूद  गजनवी  की  सहायता  करता  l   महमूद  गजनवी  की  सफलता  में    यहाँ  के  लोगों  की  रूढ़िवादिता ,    छुआछूत  व  संकीर्ण  मानसिकता     सहायक   हुई  थी   l 

WISDOM -----

   आज  हम  वैज्ञानिक  युग  में  जी  रहे  हैं  ,  जीवन  का  कोई  भी  पक्ष  ऐसा  नहीं  है  जहाँ  विज्ञानं  न  पहुंचा  हो   l   कब  तूफ़ान  आना  है  , कब  चक्रवात   मौसम  आदि  की  भविष्यवाणी  तो  बहुत  पहले  से  हो  रही  हैं  l चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  विज्ञान   के  एक  से  बढ़कर  एक  कीर्तिमान  हैं  l पहले  हैजा ,  चेचक ,  प्लेग ,  पोलियो     आदि  घातक  महामारियों  की  भविष्वाणी  नहीं  होती  थीं  ,  वे  अचानक  आती  थीं  ,  उनके  आने  का  और   विशाल  क्षेत्र  को   अपने  चपेट  में  लेने  का  कारण   भी  स्पष्ट  था   l   इसी  कारण  उनका  प्रामाणिक  इलाज  हुआ  ,  मानव  समाज  को   इन  बीमारियों  से  मुक्ति  का  रास्ता  मिला   l    अब  विज्ञानं  में  भविष्य  को  देखने  की  क्षमता  है  l   अब  भविष्यवाणी  हो  जाती  है  कि   कौनसी  महामारी  कब   आ  रही  है  l   लेकिन  यह  क्यों  आ  रही  है   ?   मानव  समाज   की  किन   भूलों  ने  ,  किन  गलतियों  ने  उसे  आने  का  न्योता  दिया  है   ?   हर  मर्ज  का इलाज  संभव  है  लेकिन  जब  कारण  स्पष्ट  होता  है  तभी  उसका   निवारण  होता  है   l  संसार  में  विद्वानों  की , विषय   विशेषज्ञों   की  कमी  नहीं  है   l    हृदय  में  संवेदना  हो  तो  संसार  की  सभी  समस्याएं  सुलझ  सकती  हैं   l   पुराणों  में  अनेक  उदाहरण  हैं  ---- जब  समुद्र  से   रास्ता   देने  के  लिए  भगवान  राम  ने  तीन  दिन  तक  प्रार्थना  की   और  उसने  नहीं  सुना   तब  भगवान  ने  अग्निबाण  का  संधान  किया  कि   अब  समुद्र  को  सुखाकर   रास्ता  लेंगे   l   इससे  दसों   दिशाओं  में  हाहाकार  मच  गया   तब  सब  देवता , ऋषिगण    उपस्थित  हुए  ,  समुद्र  देवता  ने  उन्हें   पुल   बनाने  का  उपाय  बताया   l   फिर   अग्निबाण    को     भगवान  ने  निर्जन  क्षेत्र  में  छोड़ा  ,  कहते  हैं  वही  क्षेत्र  अब  मरुस्थल  है  l   इसी  तरह   पौराणिक  युद्धों  में  जब  ब्रह्मास्त्र  का  प्रयोग  होता  था  तब  सारे  संसार  में  हाहाकार  मच  जाता  था    जीव जंतु , वनस्पति   सब  कुछ  नष्ट  होने  लगता  था   तब  देवतागण  आकर  दोनों  पक्षों  को  समझाते  ,  प्राणी मात्र  की  रक्षा  का  उपदेश  देते  तब  वे  अपने -अपने  बाण  वापस  बुला  लेते  थे   l   आज  भी  संसार  के  किसी  न  किसी  कोने  में  बड़े - बड़े  प्रयोग  होते  है    जिनकी  प्रतिक्रिया  स्वरुप  वातावरण  दूषित  होता  है   लेकिन  अब  संवेदना ,  करुणा  का  महत्त्व    समझाने    भगवान  नहीं  आते  ,  अब  मनुष्यों  को  स्वयं  जागरूक  होना  पड़ेगा    l 

20 June 2021

WISDOM------ समर्पण सक्रियता का नाम है

   गोस्वामी  तुलसीदास जी  के  जीवन  का  प्रसंग  है  ---- बात  उस  समय  की  है  जब  रामचरितमानस  की  रचना  नहीं  हुई  थी   l   नवरात्री  के  दिनों  में  वे  स्वयं  वाल्मीकि  रामायण  का  नौ  दिन  का  पाठ  कर  रहे  थे  l   उन   दिनों   के  लिए  उन्होंने  यह  निश्चय  किया  था  कि     भिक्षाटन  नहीं  करेंगे ,  अपनी  कुटीर  से  सरयू  नदी  के  तट   तक  आने  जाने  में  कुछ  मिल  गया  तो  खा  लेंगे  अन्यथा  मागेंगे  नहीं   l    परायण  का  पांचवां  दिन  था  ,  श्री   नरहर्यानन्द   जी  वहां  पधारे  ,  उन्होंने  तुलसीदास जी  से  सब  हाल  पूछा  फिर  कहा  --- ' जब  आप  कहीं  मांगने  नहीं  जायेंगे  तो  भोजन  कहाँ  से  आएगा   ? ' तुलसीदास जी  बोले  --- ' आएगा  महाराज  l   यदि  राम  की  अनुकम्पा  हुई  तो  वे  स्वयं  लेकर  आएंगे   l   इसी  समर्पण  योग  का  अभ्यास  इन  दिनों  चल  रहा  है  l  '    श्री  नरहर्यानन्द  जी  ने  कहा  ----   ' समर्पण  की  तुम्हारी  परिभाषा  अत्यंत  संकीर्ण  है  ,  इससे  तो  संसार  में  निष्क्रियता  पनपेगी  ,  यह  समर्पण  योग  नहीं  है   l  जो   समर्पण  योग   की  दुहाई  देकर     निकम्मेपन   का  प्रपंच  रचते  हैं    उनका  इस  लोक  और  परलोक  कहीं  भी  कल्याण  नहीं  होता    l    समर्पण  स्वार्थों  का ,  इच्छाओं  का ,   वासनाओं , तृष्णाओं  और  अहंताओं  का  होता  है   l   समर्पण  किसी  को  निष्क्रिय  व  निष्चेश्ट   नहीं  बनाता  और  न  ही  इसकी  शिक्षा  देता  है   l   फिर  भी  जहाँ  ऐसी  निष्क्रियता  दिखाई  पड़े  तो  उसे  ढकोसला  ही  समझना  चाहिए   l   इसलिए  तुम  समर्पण  के  उच्च  आदर्श  को  अपनाओं   इसी  में  तुम्हारा  और  विश्व  का  कल्याण  है   l  "    तुलसीदास जी  के  आग्रह  पर  श्री  नरहर्यानन्द  जी  ने  उन्हें  दीक्षा  दी   l   उसी  दिन    तुलसीदास जी  ने  वाल्मीकि  रामायण  के  परायण  को  अधूरा  छोड़ा  और  समाज  के  लिए  कुछ  करने  और  देने  की  ललक  से  काशी   चले  गए   l   उनके  मन  में  बड़ी  उहापोह  थी  कि   समाज  को  क्या  दें   ?  एक  दिन  श्री  हनुमान जी  उनके  सम्मुख  प्रकट   हुए    और   कहा  ---- "  आप  अच्छे  कवि   हैं  ,  फिर  किस  उधेड़बुन  में  पड़े   हैं  ?  क्यों  नहीं   लोकभाषा  में  वाल्मीकि  रामायण  का  प्रणयन  कर  डालते  हैं   l   यह  अद्भुत  ग्रन्थ  है  ,  इससे  समाज  को  प्रकाश  मोलेगा  और  तुम्हारा  यश  दसों   दिशाओं  में  फैलेगा   -----------   -            

19 June 2021

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  ---- "  व्यक्तित्व  को  प्रखर , प्रामाणिक   और  पवित्र  बनाने  की  प्रक्रिया   जीवन  साधना  है   l   धन  संबंधी   ईमानदारी   और  कर्तव्य  संबंधी   जिम्मेदारी   का  समन्वय  किसी  व्यक्ति  को   प्रामाणिक  और  प्रतिष्ठित  बनाता   है   l  "                                                                                                                   जिसका  व्यक्तित्व  प्रामाणिक  होता  है   उसके  द्वारा  किया  जाने  वाला   छोटे - से  छोटा   कार्य  भी  संसार  को  प्रभावित  करता  है    l   कोई  व्यक्ति  हो  या  वस्तु   ,  उसके  प्रामाणिक  होने  पर  ही   लोग  उसका  विश्वास  करते  हैं  ,  यदि  वस्तु  है   तो   प्रमाणिकता  की  कसौटी  पर  खरा  उतरने  पर  ही   लोग  उसको  उपयोग  में   लाते      हैं  l   उसके  लिए  किसी  को  बाध्य  नहीं  करना  पड़ता  ,  वह  बिना  संदेह  स्वीकार  की  जाती  है  l   इसी  तरह  जिनके  व्यक्तित्व  प्रामाणिक  होते  हैं  ,  उनका  आचरण  लोगों  के  जीवन  को  सही  दिशा  देता  है  ,   जिनमें    विवेक  है  वे  उनका    अनुसरण  करते  हैं   और  अपने  जीवन  को  सँवारते   हैं   l 

WISDOM -------

     लोकमान्य  तिलक  से  किसी  ने  आश्चर्य चकित  होते  हुए  पूछा  ---- "कई  बार  आपकी  बहुत  निंदापूर्ण  आलोचनाएं   होती  हैं  ,  लेकिन  आप  तो  कभी  विचलित  नहीं  होते   l "  उत्तर  में  लोकमान्य तिलक  मुस्कराए   और  बोले  ---- "  निंदा  ही  क्यों  कई  बार  लोग  प्रशंसा  भी  करते  हैं   l "  वे   कहने  लगे ---- "  ये  है  तो  मेरी  जिंदगी  का   रहस्य ,  पर  मैं  आपको  बता  देता  हूँ   l   निंदा  करने  वाले मुझे  शैतान  समझते  हैं   और  प्रशंसक  मुझे  भगवान  का  दरजा   देते  हैं  ,  लेकिन  सच  मैं  जानता   हूँ   और  वह  यह  है  कि  मैं  न  तो  शैतान  हूँ   और  न  ही  भगवान  l   मैं  तो  एक  इनसान   हूँ  ,  जिसमें  थोड़ी  कमियां    हैं  और  थोड़ी  अच्छाइयाँ   हैं  l   मैं  अपनी  कमियों  को  दूर  करने  में    और  अच्छाइयों  को   बढ़ाने  में  लगा  रहता  हूँ   l   एक  बात  और  भी  है    जब     अपनी  जिंदगी  को    मैं  ही    ठीक   से  नहीं  समझ   पाया   तो  भला  दूसरे  क्या  समझेंगे  l   इसलिए  जितनी  झूठ  उनकी  निंदा    है ,  उतनी  ही  उनकी  प्रशंसा  है    l   इसलिए  मैं    उन  दोनों  बातों  की   परवाह  न  कर  के    अपने  आपको    और  अधिक  संवारने  - सुधारने   की  कोशिश  करता  रहता  हूँ   l  "   सुनने  वाले  व्यक्ति  को  इन  बातों  को  सुनकर   लोकमान्य  तिलक  के  स्वस्थ  मन   का  रहस्य  समझ  में  आया   l 

18 June 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " जाल  में  फंसने  वाले  पक्षियों  की  ऐसी  दुर्गति  होती  है   कि   देखते  बनती  है   l   दूर  कौन  उड़कर  जाये ,  कौन  परिश्रम पूर्वक  दाना  चुगे   l   वे  तो  दाना   ढूंढ़ने   की  तुलना  में   जाल  पर  बिखरे  दानों  को    एक  सौभाग्य  जैसा  मानते  हैं    और  उससे  लाभ  उठाने  में  चूकने   की  बात  नहीं  सोचते   l   उन्हें  यह  सोचने  की   फुरसत   नहीं  होती   कि   लाभ  उठाते  समय   उसके  पीछे  कोई  दूरगामी  संकट   तो  नहीं  छिपा  है  ,  उसे  भी  देखने  की  आवश्यकता  है   l   हर  लोभी  अधीर - आतुर  होता  है    और  तात्कालिक  लाभ  के   कुछ  एक  दाने  चुग    लेने  के  बाद  ,  उस  पक्षी  की  तरह  बेमौत  मरता  है   ,  जिसे  सामने   बिखरे  आकर्षण   के  अतिरिक्त   अन्य  कोई  बात  सूझती  ही  नहीं   l  "

WISDOM ------

 खलील  जिब्रान   एक  ख्याति  प्राप्त  विद्वान्  थे  , उन्होंने  अपनी  कथाओं  के  माध्यम  से   जीवन  दर्शन  संबंधी   सूत्र  और   नैतिक  सीख  दी   l   उनकी  एक  कथा  है  ------ वे  लिखते  हैं ------ ' मैं  एक  सपना  देख  रहा  था  l   सपने  में  एक  भयानक   भूत    ने  मुझे  पकड़  लिया  और  मेरा  नाम  पूछा  ,  मैंने  बताया  ' अब्दुल्ला  '  l    भूत   बोला  --- इसका  अर्थ  होता  है  --ईश्वर  का  दास  '  लेकिन  तुम  अपने  कार्य  और  चेहरे  से  ऐसे  नहीं  लगते  हो   l   भूत   कहने  लगा  --- तुम्हारी  बिरादरी  के  लोगों  ने  मिलकर  ईश्वर   की  नाक  में  दम   कर  रखी  है  l   तुम्ही  लोगों  की  अक्ल  ठिकाने  लगाने  के  लिए  ईश्वर  ने  मुझे  नियुक्त  किया  है   l   तुम  लोग  धर्म  की  बातें  कर  के  अपनी  चमड़ी  बचाते   हो   और  उन  कामों  को  करने  में  लगे  रहते  हो   जिनकी  खुदा  ने  मनाही  की  है   l   धर्म  प्रवक्ताओं  की  इस  क्रिया   पद्धति   से  खुदा  बहुत  दुखी  व  नाराज  है  l  '     सपने  में  ही    उन्होंने   भूत   से  कहा  ---  मैं  ऐसी  गलती  नहीं  करूँगा  ,  मेरे  लिए  कुछ  सेवा  हो  तो  बताएं    और  मुझे  जाने  दें  l  '  भूत  ने  हँसते  हुए  उन्हें  एक  फावड़ा  थमा  दिया   और  कहा  ---- " फुरसत   के  समय  तुम  कब्रें  खोदते  रहना   l   इस  दुनिया  में  चलते - फिरते  प्रेत  बहुत  हैं   l   तुम  उन्ही  को  दमन  करना   l   खुदा  ने  तुम्हारे  लिए   यही  जिम्मेदारी  सौंपी  है   l  "  'जिन्दा  प्रेत   ? '     भूत    ने  कहा  ----- "  जो  दूसरों  का  दर्द  नहीं  समझ  सकते  ,  जिन्हे  आपाधापी  के   अलावा   और  कुछ  नहीं  सूझता  ,  जिनके  पास   दूसरों  को  धोखा  देकर    अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करना    ही  एकमात्र  धंधा  है  ,  वे  जिन्दा  भूत  नहीं  तो  और  क्या  हैं  ?   ऐसे  व्यक्ति  धरती  पर    बोझ     हैं  ,  समाज  के  लिए  सिरदर्द  हैं  ,  जीवित  रहते  हुए  भी  मृतक  के  समान   हैं   l     उन्हें   दफन    नहीं   करोगे   ,   तो   इस   दुनिया   में    जिन्दों    को  रहने    के    लिए     जगह     ही    कहाँ     बचेगी   ?  "  खलील  जिब्रान    अपने  मित्र    को  सपना  सुनाते    और    कहते  हैं    कि   यह  सपना  मुझे  बार - बार  आता  है   l   मैं  कब्र   खोदता  हूँ  और    अपने संकीर्ण  विचारों  को   उसमे   गहरे  गाड़  देता  हूँ  l   सोचता  हूँ  यह  सपना  औरों  को  भी  समझ  में  आ  जाये    तो  खुदा  को  हैरान  न  होना  पड़े   ,  जिन्दा  प्रेत  कहीं  नजर  न  आएं   ,  सारा  संसार  सही  अर्थों  में    मनुष्यों  से  घिरा   सुख - समुन्नति  की  ओर   बढ़ता  दिखाई  देने  लगे   l 

17 June 2021

WISDOM -------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " वास्तविकता  बहुत  देर  तक  छिपाये  नहीं  रखी   जा  सकती   l   व्यक्तित्व  में  इतने  अधिक  छिद्र  होते  हैं   कि   उनमें  होकर  गंध  दूसरों  तक  पहुँच  ही  जाती  है   l   इसलिए  कमजोरियों  पर  गंदगी  का  आवरण  न  डालकर    उनके  निष्कासन  के  ,  स्वच्छता  के  प्रयासों  में  निरत  रहना  चाहिए   l  "      एक    कहानी  है  ----- एक  दिन  एक  साहूकार  को  शक  हुआ   ,  उसके  खजाने  में  कहीं  खोटे   सिक्के  तो  नहीं  आ  गए   ?  यह  जाँचने   के  लिए  उसने   सब  सिक्के  एक  जगह  इकट्ठे  किए   और  जांच - पड़ताल  शुरू  की  l  अच्छे  सिक्के  तिजोरी  में  और  खराब   सिक्के  एक  तरफ  पटके  जाने  लगे  ,  तो  खोटे   सिक्के  घबराये  l   उन्होंने  परस्पर  विचार  किया  ---- "  भाई  !  अब  तो  अपने  बुरे  दिन  आ  गए  ,  यह  साहूकार  अवश्य  हम  लोगों  को     छाँट - बीनकर   तुड़वा  डालेगा  ,  कोई  युक्ति  निकालनी  चाहिए  ,  जिससे  इसकी  नजर  से  बचकर  तिजोरी  में  चले  जाएँ  l  "    एक  खोटा   सिक्का  बड़ा  चालाक  था   l   उसने  कहा  ---- "  भाइयों  !  हम  लोग  यदि  जोर  से  चमकने  लगे  ,  तो  यह  साहूकार  पहचान  नहीं  पायेगा   और  अपना  काम  बन  जायेगा   l "   बात  सबको  पसंद  आई  l   सब  खोटे   सिक्के   बनावटी  चमकने  लगे  और  सेठ  की  तिजोरी  में  पहुँचने  लगे   l   खोते  सिक्कों  को  अपनी  चालाकी  पर  बड़ा  अभिमान  हुआ   l   गिनते - गिनते  एक  सिक्का  जमीन   पर  गिर  पड़ा  l   नीचे  पत्थर  पड़ा  था   l   सिक्का  उसी  से  टकराया   l    साहूकार  चौंका  -- हैं  ,  ये  क्या  ,  चमक  तो  अच्छी  है   पर  आवाज  कैसी   थोथी  है   l   उसे  शंका  हो  गई   l   दुबारा  उसने  सब  सिक्के  निकाले   और  पटक - पटक  कर  उनकी  जांच  शुरू  की   l   फिर  क्या  था  ,  असली  सिक्के   एक  तरफ    और  नकली  सिक्के  एक  तरफ   l   खोटों   की  दुर्दशा  देखकर    एक  नन्हा  सा  असली  सिक्का  हँसा   और  बोला  ----- " मेरे  प्यारे  खोटे   सिक्कों  !  दिखावट  और  बनावट  थोड़े  समय  चल  सकती  है  ,  खोटाई  अंतत:  इसी  तरह  प्रकट  हो  जाती  है    l   कोई  भी  मनुष्य  अपनी  कमजोरी   नहीं  छिपा  सकता   l  "

16 June 2021

WISDOM ------

   फारस  का  बादशाह  नौशेरवाँ   स्वयं  पारसी  धर्म  को  मानने   वाला  था  किन्तु  उसने  अपने  राज्य  में   ईसाई ,  यहूदी , हिन्दू  सब   मजहब  वालों  को  स्वतंत्रता  दे  रखी   थी   l   नौशेरवाँ   ने  बहुत  सी   संस्कृत  की  पुस्तकों  का  अनुवाद   ईरान  की  भाषा  में  कराया  था   l   एक  बार  फारस  में  गीदड़ों  की  संख्या   अधिक  हो  गई  और  उससे  लोगों  को  तकलीफ  होने  लगी   l   नौशेरवाँ   ने  प्रधान  गुरु  को  बुलाकर   इसका  कारण  पूछा  l   तब  गुरु  ने  कहा  ----- "   जब  किसी  देश  में  अन्याय   होने  लगता  है   तो  गीदड़  बढ़  जाते  हैं  l   तुम  पता  लगाओ  कि   तुम्हारे  राज्य  में  कहीं  अन्याय  तो  नहीं  हो  रहा  है  l  "  नौशेरवाँ   ने  उसी  समय  इसकी   जाँच  करने  के  लिए  सुयोग्य  न्यायधीशों  की   एक  कमेटी   नियुक्त  की  l   उससे  मालूम  हुआ  कि   कितने  ही  प्रांतीय  शासक  प्रजा  पर  अन्याय  करते  हैं  l   नौशेरवाँ   ने  उन  सबको   दंड  देकर   सर्वत्र  न्याय  की  स्थापना  की   l 

WISDOM ----------

  भर्तृहरि   ने  वैराग्य  शतक  में  लिखा  है  ----- तृष्णा  न   जीर्णा   वयमेव   जीर्णा : l  भोगा  न  भुक्ता    वयमेव  भुक्ता:  "  अर्थात    तृष्णा  बूढ़ी   नहीं  होती  ,  हम  ही  बूढ़े  होते  हैं  l   भोग  नहीं   भोगे  जाते   ,  हम  ही  भोग  लिए  जाते  हैं   l  "  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- शरीर  ढलने  के  साथ  इन्द्रियाँ   भी  शिथिल     हो  जाती  हैं    लेकिन कामना  और  वासना  समाप्त  नहीं    होतीं  ,  कल्पनाएं - मनोभाव  उसी  दिशा  में  दौड़  लगाते   हैं   और    मनुष्य   पतन  को  प्राप्त  होता  है   l 

15 June 2021

WISDOM ----

   एंटन   चेखव  का  जन्म  रूस  में  हुआ  था  ,  वे  उन्नीसवीं  शताब्दी  के  उन  महान  साहित्यकारों  में  से  हैं   जिनकी  रचनाएँ  समाज  पर   अपना  प्रभाव  डाल   सकीं   और  अब   वर्तमान   में    भी  वे  उतनी    ही   जीवंत   बनी   हुई  हैं   l   उनका  एक  नाटक  है  --' वार्ड  नं.  छः  '  l   बुद्धिजीवी  वर्ग  की  अकर्मण्यता   पर  तीव्र  प्रहार  करने  वाला   यह  नाटक  जब  लेनिन  ने  देखा  तो    वे  इतने  व्यग्र  हो  उठे  कि   अपने  स्थान  पर  बैठ  न  सके  l                     वार्ड  नं.  छः  '----- एक  पागलखाने  की  पृष्ठभूमि   पर  लिखा  गया  नाटक  है   l   इस  नाटक  का  नायक  डॉ.  रैगिन   पागलों  के  अस्पताल  का   सुपरिंटेंडेंट   होता  है   l   डॉ.  बुद्धिजीवी  वर्ग  का  प्रतिनिधित्व  करता  है   l   उसकी  सबसे  बड़ी  आकांक्षा  है  ---- अस्पताल  में  सुधार  की   l   लेकिन  अनुकूल  वातावरण  के  अभाव  में  वह  कुछ  नहीं  कर  पाता   और  निराश  होकर  बैठ  जाता  है   l   सुधार  की  तीव्र  आकांक्षा  है ---- परन्तु  प्रतिकूलताओं  से  लड़ने  का    जरा  भी    साहस    नहीं  है   l  प्रतिकूलताओं  से  लड़ने  में  अक्षम  होने  के  कारण   वह  यह  सोचकर   मन  को  समझा  लेता  है   कि ----- मैं  तो  अपने  कर्तव्य  का  पालन  ईमानदारी  से    कर  रहा  हूँ  l   जो  कुछ  हो  रहा  है    उसके  लिए  मैं  तनिक  भी  दोषी  नहीं  हूँ  l    अस्पताल    की  व्यवस्था  में  वह  कोई  सुधार  नहीं  कर  पाता ,  इसका  परिणाम  यह  हुआ  कि   पागलखाने  के  रसोइये  तक  उसकी  अवज्ञा  करने  लगे   l   अव्यवस्था  इतनी  बढ़  गई  कि     एक  दिन  वहां  का  जमादार  अस्पताल  का  संरक्षक  बन  बैठा   l   जमादार  रोगियों  और  कर्मचारियों  से  दुर्व्यवहार  करता   और  उन्हें  मारता - पीटता   था   l   जब  रोगी  और  कर्मचारी   शिकायत  लेकर  डॉ.  रैगिन   के  पास  जाते  तो  वह  उन्हें  सैद्धांतिक   उपदेश  देने  लगता   और  कहता  --- ' सहन  शक्ति  बढाकर  सुखी  रहा  जा  सकता  है   l  '  पीड़ित  और  प्रताड़ित  कर्मचारी   व  रोगी  इस  उपदेश  को  मानने  से  इनकार   करते  थे   l   कोरे  उपदेशों  से  कोई  कैसे  सुखी  हो  सकता  है  l   इस  नाटक  में  डॉ.  रैगिन   की  निष्क्रियता   तथा  उदासीनता   और  कर्मचारियों    द्वारा  हिंसा  और  अत्याचार  के  विरुद्ध   कठोर  संघर्ष    तथा  स्वाभिमान पूर्ण   प्रतिरोध    की  भावना  स्पष्ट  रूप  से  अभिव्यक्त   होती  है   l   यह  विवाद   बढ़ता  ही  चला  जाता  है    और  एक  दिन   ऐसा  आता  है    कि   डॉ.  रैगिन   को    पागल  और  विक्षिप्त  करार  देकर    उसी  पागलखाने  के   वार्ड  नं.  छः   में   भर्ती  करा  दिया  जाता  है   

14 June 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' बाहर  की  दुनिया  में  शांति  नहीं  है  ,  वस्तुओं  में  , सुख - सुविधाओं  में  ,  संतान  में  कहीं   भी  व्यक्ति  को  शांति  नहीं  है  l   रावण  के  पास  सोने  की  लंका  थी  , महान  विद्वान्  था  , उसके  एक  लाख  पूत  और  सवा    लाख    नाती  थे    लेकिन  फिर  भी  उसे  सुख - शांति  नहीं  थी  l ------            एक  बहुत  धनवान  व्यक्ति  था  ,  लेकिन  वृद्धावस्था  में  उसे  बीमारियों  ने  घेर  लिया   l   उसने  सुना  था   कि   वीतराग  शुकदेव जी  के  मुंह  से   राजा  परीक्षित  ने   भागवत   पुराण  की  कथा  सुनकर  मुक्ति  प्राप्त  की  थी   l   उसके  मन  में  भी   भागवत   के  प्रति  श्रद्धा  जाग  उठी   और  अपनी  मुक्ति  के  लिए   किसी  ब्राह्मण  से  कथा  सुनने  की    व्यवस्था  करने  की  बात  सोची   l   एक  बड़े  प्रख्यात  पंडित जी  मिले   l   धनवान  यजमान  मिले  तो  पंडित जी  ने  एक  चाल  चली   और  बोले  ----- "  घोर  कलियुग  है   l   पांच  बार  कथा   सुननी     होगी   तभी  कल्याण  होगा   l  "  एडवांस  दान - दक्षिणा  लेकर   पांच  भागवत   सप्ताह  तय  हुए   l  धनी   व्यक्ति  ने  सभी  में  भागीदारी  की   l   पहली    में  मन  लगा   लेकिन  बाकी   किसी  तरह  से  कटीं   l   कुछ  भी  नहीं  हुआ   l   सेठ  का  मन  बहुत  अशांत  था  l   एक  संत  से  मुलाकात  हुई  तो  उसने  अपनी  जिज्ञासा   रखी  कि   पांच  परायण   हुए  फिर  भी  कल्याण  क्यों  नहीं  हुआ   ?  मन  को  शांति  क्यों  नहीं  मिली   ?  '    संत  बोले  ---- परीक्षित   पूर्णत:  विरक्त  भाव  से  , श्रद्धा  से  कथा  सुन  रहे  थे   l   उनके  मन  में  किसी  प्रकार  की  इच्छा  का  भाव  नहीं  था   क  और    निर्लिप्त   भाव  से  शुकदेव  जी   कथा  सुना  रहे  थे   l  तुम्हारी  कथा  में  दोनों  ही  नहीं  थे   l   इसलिए  कथा  का  लाभ  नहीं  मिलता   l   

13 June 2021

WISDOM ----- विपत्तियां भी जिन्हें आदर्शों से डिगा नहीं सकीं

  महाराणा  प्रताप  का  स्वातंत्र्य  प्रेम  का  उच्च  आदर्श   भारतीय  इतिहास  की  अनमोल  थाती  है   l  कवि   बाँकीदास   ने  उनके  लिए  लिखा  है   जिसका  भावार्थ  है  ---- ' अकबर  रूपी  घोर  अंधकार   भरी  रात्रि  में   सब  भारतीय  सो  गए  हैं   किन्तु  इस  संसार    के  रचने  वाले   ईश्वर  के  महानतम  अंश    को   स्वयं  में  जगाये  हुए    राणा  प्रताप   प्रहरी  बने    जागकर   राष्ट्र  और  संस्कृति  की   रक्षा  कर  रहे  हैं   l  '                                                           पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य  जी  लिखते  हैं   ------ 'आज   जब  सारा  संसार  अनैतिकता  के  अंधकार  में  डूबा  हुआ  है   ,  तब  इस  अनैतिकता  को   मिटाने   की   शक्ति  भर  प्रयास  करने  वाले   थोड़े  से  नैतिक  लोगों  के  लिए    उनका  यह  साहस   एक  सम्बल  है   l '  महाराणा  प्रताप  के   एक - एक  कर  के  सभी  किले  मुगलों  के  अधिकार  में  चले  गए   l  उन्हें  वर्षों  तक  बीहड़  वनों  में    अपने  परिवार  और  मुट्ठी  भर   साथियों  के  साथ    घोर  अभाव   और  कष्टों  भरा  जीवन  व्यतीत  करना  पड़ा  l   उनकी  प्रतिज्ञा  थी  कि   उनका  मस्तक  केवल   ईश्वर  के  सामने  झुक  सकता  है  l   इस  प्रतिज्ञा  में  उनका  अहम्  नहीं  था  ,  वरन  उनकी   ईश्वर  निष्ठां ,  संस्कृति  निष्ठा   और  राष्ट्र  निष्ठा    बोल  रही  थी   l  वे  अपने  देश  की  स्वतंत्रता  को  व्यक्तिगत   सुखों  के  लिए  बेचने  को  तैयार   नहीं  हुए   l  महाराणा  प्रताप  की  नैतिक  विजय  का  लोहा  उन   हिन्दू  राजाओं  ने  भी  माना   जिन्होंने  स्वार्थ  और  सुख  के  लिए   अपनी  स्वतंत्रता  व  अपने  राष्ट्रीय   गौरव  को  बेच  दिया  था  l   स्वयं   अकबर  ने  भी  माना   कि   कोई  व्यक्ति  बिना     राज्य   और  बिना  किसी  सम्पदा  के  भी  महान  हो  सकता  है   l 

12 June 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं  ------ कोई  भी  परिवर्तन  चाहे  बड़ा  हो  या  छोटा   विचारों  के  रूप  में  ही  जन्म  लेता  है   l   मनुष्यों  और  समाज  की   विचारणा  तथा  धारणा   में   जब  तक  परिवर्तन  नहीं   आता   तब  तक  सामाजिक  परिवर्तन  भी  असंभव  है   l  और  कहना  यही  होगा   कि   विचारों  के  बीज  साहित्य  के   हल  से  ही  बोये  जा  सकते  हैं   l  '                                चीन  में  लू -शुन    महान  विचारक  और   सांस्कृतिक  क्रांति  के  महान  सेनापति  थे   l   उन  दिनों  यद्द्पि  चीन  में  स्वदेशी  शासन  था    परन्तु  सामंतों  और  जागीरदारों  का   बड़ा  प्रभुत्व  था    और  उनके  विरुद्ध  आवाज  उठाने  का  मतलब  था  घुट - घुट   कर  मर  जाना   l   उन  परिस्थितियों  का  चित्रण  करते  हुए  लू  - शुन  ने  एक  मार्मिक  कहानी  लिखी  ----- ' भूतकाल  का  पश्चाताप  l  '      इस  कहानी  का  नायक   शिक्षित  भी  है   और  लेखक  भी  है   l   बदलती  परिस्थितियों  में  वह  मितव्ययता   से   अपना  गुजरा  चलाने   का  प्रयत्न  करता  है   परन्तु  परिस्थितियों  से  तालमेल  नहीं  बैठता  है   l  इस  कहानी  में   उसे  कोई  काम  नहीं  मिलता  l   वह  सोचता  है  कि   जब  मेरे  पास   आजीविका  का  कोई  साधन  नहीं  है   तो  मैं  अपनी  पत्नी  से  प्रेम  भी  कैसे  कर  सकता  हूँ    और  वह  अपनी  पत्नी  को   कहीं  और  भेज  देता  है  -- जहाँ  वह  मर  जाती  है   l  पत्नी  के  देहांत  का  समाचार  पाकर   नायक  अवाक  रह  जाता  है   l   अब  नायक  के  विचार  बदलते  हैं   और  उसके  साथ  उसकी  जीवन -दशा   भी  बदलती  है   l   इन  निर्णायक  क्षणों  में  वह  कहता  है  --- निस्संदेह    इन  परिस्थितियों  से  समझौता  करने  के  लिए    मुझे  अपने    हृदय  को   घायल  करना  पड़ेगा    और  जीने  के  लिए    घायल  हृदय  में  सत्य  को  छिपाना   ही  पड़ेगा   l   जीने  का  एक  यही  रास्ता  है    कि   अपने  जीवन  दर्शन  को   भुलाकर  असत्य  को  ही  अपना  मार्गदर्शक  बनाना  पड़ेगा   l   इस  कहानी  में  तीव्र  व्यंग्य  किया  गया  था   , इससे  जो  लोग  इसका  निशाना  बने  वे  तिलमिला  गए   l 

WISDOM -----

   पारसियों  के  इतिहास  में  नौशेरवाँ   एक  बहुत  प्रसिद्ध   और  न्यायशील  बादशाह  हुआ  l   एक  बार  रोम  के  बादशाह  का  राजदूत   नौशेरवाँ   की  राजधानी  में  आया  l   वह  महल  की  एक  खिड़की  के  पास खड़ा  होकर   नीचे   सुन्दर  उपवन  को  देख  रहा  था  l  उसकी  दृष्टि  वहां  कोने  में   बनी   हुई  गन्दी  झोंपड़ी  पर  गई  l   उसे  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  l   उसने  पास  खड़े  एक  पारसी  सरदार  से  इसका  कारण  पूछा  l   उस  सरदार  ने  बताया  कि   जिस  समय  नौशेरवाँ   इस  महल  को  बनवाने  लगा   तो  सब  जमीन   तो  ठीक  हो  गई    पर  एक  कोने  में  गरीब  बुढ़िया  की  झोंपड़ी  आ  गई   l   जब  राज्य  कर्मचारियों  के  कहने  से    बुढ़िया  ने  झोंपड़ी  खाली  नहीं  की    तो  स्वयं  नौशेरवाँ   ने  जाकर  उससे  कहा   कि   बगीचे  बनने  के  लिए  इस  स्थान  की  आवश्यकता  है  ,  तू  इसकी  जितनी  कीमत  चाहे    लेकर  इसे  बेच  दे   l   पर  जब  वह  बुढ़िया  राजी  नहीं  हुई   तो  उससे  कहा  गया  कि   इस  झोंपड़ी  के  बजाय   यहाँ  एक  सुन्दर  मकान  बना  दिया  जाये   l   इस  पर  बुढ़िया  ने  कहा    कि   यह  झोंपड़ी   मेरे  परिवार  वालों  के   स्मृति  चिन्ह  की  तरह  है  ,  मैं  किसी  प्रकार  इसका  नष्ट  किया  जाना   सहन  नहीं  कर  सकती    l   तब  नौशेरवाँ   ने  कहा  कि   चाहे  मेरा  महल  अधूरा  रह  जाये  ,  मैं  जबर्दस्ती   किसी  की  चीज  पर  कब्जा   नहीं  करूँगा  l   इसलिए  इस  झोंपड़ी  को  ज्यों  का  त्यों  रहने  दिया  l   रोम  का  राजदूत   यह  सुनकर  बड़ा  प्रभावित  हुआ  और    कहने  लगा    कि तब  तो  इस  झोंपड़ी  के  रहने  से  महल  की  सुंदरता  घटने  के  बजाय  बढ़  गई   l   महल  तो  कुछ  वर्षों  में  पुराना  और  खंडहर  हो  जायेगा  ,  पर  यह  बुढ़िया  की  झोंपड़ी  की  कथा   तो  सदैव  लोगों  को  सत्य  और  न्याय  पर  चलने  की  प्रेरणा  देती  रहेगी   l 

11 June 2021

WISDOM --------

 '  अहंकार  सारी   अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l '  संसार  में  जितने  भी  उत्पात  हुए  , उन  सब  के  मूल  में  'अहंकार '  ही  है  l   इसका  सबसे  बड़ा  दोष  यह  है  कि   अहंकारी  स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ  समझता  है   और  जब  ऐसे  ही  विचार  के , स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ  समझने  वाले  लोगों  का   एक  बड़ा  और  मजबूत  संगठन  तैयार  हो  जाता  है   तो  उस  संगठित  अहंकार    के  पास  अनेक  दोष  स्वयं  खिंचे   चले  आते  हैं  l   संसार  में  जितने  भी  बड़े - बड़े  नरसंहार  हुए ,  युद्ध  हुए  ,  दंगे , उत्पीड़न   इन  सबके  मूल  में  एक  ही  बात   है    कि   एक  पक्ष  ने  स्वयं  को  श्रेष्ठ   और  धरती  का  मूल्यवान   प्राणी  समझा   और  दूसरे  पक्ष  को   हीन   मानकर  धरती  से  मिटा  देना  चाहा  l   युग  के  अनुरूप  साधन  बदलते  गए    लेकिन  मानसिकता  आज  भी  वही  है   l   संसार  में  शांति  तभी  होगी  जब   मनुष्य  इस  सत्य  को  समझेगा  कि   इस  धरती  पर  जीने  का  हक  सबको  है   l    हम  सब  एक  माला   के  मोती  हैं   l ' इस  सत्य  को  भूलकर  जब  मनुष्य  स्वयं  को  ' विधाता ' समझने  लगता  है   तब  हाहाकार  मचना  स्वाभाविक  है  l 

10 June 2021

WISDOM ---------

   आज  संसार  में  सबसे  बड़ी  समस्या  है  ------ ' प्राथमिकता  के  चुनाव   की  l  '   संसार  में  भिन्न - भिन्न  विचारधारा  के , विभिन्न  व्यवसाय  के  --------- प्राणी  हैं  l   प्रत्येक  व्यक्ति  की  प्राथमिकता  उसके   विचार , उसकी  मानसिक  प्रवृत्ति   के  अनुसार  होती  है   l   एक  सामान्य  व्यक्ति  की  प्राथमिकता   क्या  है   उसका  परिणाम  केवल  उस  पर  और  उसके  परिवार  पर  होता  है  जैसे  --यदि  एक  व्यक्ति   अपनी   सीमित   आय   का  अधिकांश  भाग  नशा ,  सिगरेट ,  गुटका   आदि  पर  खर्च  कर  देता  है   तो  उसके  परिवार  की  आर्थिक  स्थिति  बिगड़  जाएगी , कलह  होगी  , बच्चों  का  भविष्य  भी  बिगड़ेगा  l   लेकिन  ऐसे  व्यक्ति   जिनके  कार्य   और  उनकी  प्राथमिकताओं  के  चयन   सम्पूर्ण  समाज ,  राष्ट्र  और  संसार  को  प्रभावित  करते  हैं  ,  उन  पर  यदि  स्वार्थ  और    महत्वाकांक्षा  हावी  है    तो   उसका  नकारात्मक  परिणाम   होगा   l --- महाभारत  में  एक  कथा  है  --- महाराज  ययाति   वृद्ध  हो  गए  लेकिन  उनकी   भोग - विलास  की  इच्छाएं  तृप्त  नहीं  हुईं   ,  यमराज  उन्हें  लेने  आए   तो  वे  बहुत  रोए , गिड़गिड़ाए  l  यमराज  ने  कहा  --- यदि  तुम्हारा  कोई  पुत्र  तुम्हे  अपनी  जवानी  दे  दे  तो  तुम  पुन: सुख - भोग  पा  सकोगे   l   उनके  चार   पुत्रों  ने  मना  कर  दिया  लेकिन  पांचवें  पुत्र  को  दया  आ  गई  उसने  अपनी  जवानी  उन्हें  दे  दी   l  ऐसा  दस  बार  हुआ  और  उन्होंने  हजार  वर्षों  तक  भोग -विलास  का  जीवन  जिया  l   ययाति  की  प्राथमिकता  थी  कि   वे  स्वयं    भोग - विलास  का  जीवन  जिएं  ,  अपने  पुत्रों  के  जीवन  की  कीमत  पर   l      यह  द्वापर  युग  की  बात  थी  लेकिन  जब   संसार  में  कलियुग  में  प्रवेश  किया  तो    राजा  परीक्षित  ने  कलियुग  को  रहने  के  जो  स्थान  बताए   उनमे  एक  स्थान  ' स्वर्ण '  अर्थात  धन- दौलत ,  वैभव  l  यही  कारण  है  कि   जिसके  पास  जितना  अधिक  है  ,  उसे  उतना  ही  अधिक  लालच  है   और  उसके  इस  लोभ - लालच  का   परिणाम   समाज  को  भुगतना  पड़ता  है   l   एक  कथा  है  ---- एक  राजा  था , वह  प्रजा  के  हित   का  बहुत  ध्यान  रखता  था  l   उसने  अपने  विशाल  राज्य  में  अनेक   पाठशाला  , धर्मशाला ,  चिकित्सालय , पशुओं  के  लिए  चरागाह  आदि  व्यवस्थाएं   की  l   इन  सबकी  जानकारी  के  लिए  वह  वेश  बदलकर   भ्रमण  करता  था  l   एक  बार  वह  अपने  कुछ  अधिकारियों   और  राज्य  के  प्रमुख  श्रेष्ठियों  के  साथ  अपने  राज्य  के  दूरस्थ  क्षेत्र  में  गया  l   वहां  देखा  कि   सब  जगह   रौनक  थी   , जहाँ  अस्पताल  था  वहां   हरियाली  थी  , शांति  थी  , पक्षी  चहक  रहे  थे  , पानी  का  सुन्दर  दृश्य  था  l  माली  से  पूछा  -- यहाँ  के  सब  मरीज  कहाँ  गए  l '  माली  ने  कहा  ---   इस  क्षेत्र   में    तो  सब  स्वस्थ  हैं ,  व्यर्थ    में  यहाँ  क्यों  आएंगे  ?   वेश  बदले  हुए  राजा  ने  पूछा  ----  इतने  स्वस्थ  सब  कैसे  हैं   ? '  माली  वृद्ध   था  उसने  समझाया  ----- यहाँ  सब  लोग  प्राकृतिक  जीवन  जीते  हैं ,  नशे  से  दूर   रहकर    नियम , संयम  से  रहते  हैं   और  सबसे  बढ़कर  नैतिकता  के  नियमों  का  पालन  करते  हैं  इस  कारण  हर  तरह  की  तकलीफों  से  मुक्त  रहते  हैं   l   यह  सब  सुन  राजा  को  बड़ी  प्रसन्नता  हुई  कि   उसके  विशाल  राज्य  में  एक  क्षेत्र   इतना  आदर्श  है  l  उसने  अपने  साथ  के  अधिकारियों   व  श्रेष्ठियों  से  कहा  ---इस  गांव  का  उदाहरण   देकर  अन्य  गांवों  को  भी  प्रेरित  करेंगे  l   लेकिन  यह  सुनकर  उन  श्रेष्ठियों  का  माथा  ठनक  गया  कि   जब  कोई  बीमार  नहीं  पड़ेगा  तो  उनका  व्यापार   कैसे  बढ़ेगा  ,  दवाई  कैसे  बिकेगी  ,  धन  के  बल  पर  शासन  पर  और  राज्य  में  दूर -दूर  तक  जो  प्रभुत्व  है  उसका  क्या  होगा   ?  कलियुग  ने  उनकी  बुद्धि  को  दुर्बुद्धि  में  बदल  दिया  ,  अपने  अनेक  अपराधी मनोवृत्ति   के  लोगों  को  भेजकर  वहां  के  लोगों  में  नशे    आदि  की  आदत  डलवा   दी  l   नैतिकता  के  नियम  नहीं  रहे  l   हमारे  आचार्य  और  ऋषियों  ने  लिखा  है  -- मनुष्य  का  पतन  ऐसे  होता  है  जैसे  गेंद  टप्पे  खा ,  खाकर  गिरती  है   l   यही  हाल  उस  क्षेत्र  का  हुआ  ,  बहती  दरिया  में  हर  कोई  हाथ  धोता  है  l   जब  प्राथमिकता  में  लालच  हो , संवेदनहीनता  हो  तो  परिणाम   दुखदायी  होते  हैं   l