30 September 2017

WISDOM

  आपत्तियों  का  कारन  है  ---- अधर्म  --- जब  मनुष्य  के  मन  में  सद्वृत्तियाँ  रहती  हैं  ,  तो  उनकी  सुगंध  से  दिव्यलोक  भरा - पूरा  रहता  है   और  जैसे  यज्ञ  की  सुगंध  से   अच्छी  वर्षा ,  अच्छा  अन्न  उत्पादन  होता  है  ,  वैसे  ही  जनता  की  सदभावनाओं   के  फलस्वरूप   ईश्वरीय   कृपा   की,  सुख - शांति    की    वर्षा  होती  है     l  यदि  लोगों  के  ह्रदय  छल कपट ,  द्वेष ,  छल  आदि   दुर्भावों  से    भरे   रहें  ,  तो  उनसे  अद्रश्य  लोक   एक  प्रकार  से   आध्यात्मिक    दुर्गन्ध  से    भर  जाते  हैं   l  जैसे   वायु  के  दूषित ,   दुर्गंधित   होने  से  हैजा  आदि  बीमारियाँ   फैलती  हैं   ,  वैसे  ही   पाप वृत्तियों  के  कारण  सूक्ष्म  लोकों  का  वातावरण    गन्दा  हो  जाने  से      युद्ध , महामारी  ,  दरिद्रता ,   अर्थ संकट ,  दैवी  प्रकोप  आदि    उपद्रवों  का   आविर्भाव     होता  है   l  

29 September 2017

शिक्षा - संत --------- स्वामी केशवानंद

   राजस्थान  प्रान्त  के  सीकर  जिले   के  मगलूणा  गाँव  में  एक  साधारण   किसान  परिवार  में  केशवानंद  का  जन्म  हुआ  ,  उनके  बचपन  का  नाम  ' वीरमा '  था  l  अपने  बचपन  और  किशोरावस्था  में  उन्होंने  गाँव  के  जीवन  का  दरद   और  बदहाली  देखी  l  उस  समय  गाँव  के  लोग   जागीरदारों - सामंतों ,  राजाओं - नवाबों  और  विदेशी  शासकों  की  तिहरी  गुलामी  में  जकड़े  थे  l  वीरमा   की    किशोरावस्था  राजस्थान  के  रेतीले  टीलों  के  बीच  लगभग  नंगे बदन  सरदी - गरमी  सब  कुछ  सहते  हुए  बीती  l   ऐसे  में  माता - पिता  भी  चल  बसे   l   तब  उन्हें   आर्य  अनाथालय  में  सहारा  मिला   l   पढने  की  लगन  में  उन्होंने  साधुवेश  धारण  किया  l    पंजाब  के  गुरु  कुशलदास   और  अवधूत  हीरानंद  के  संपर्क  में  आकर  ' केशवानंद '  बन  गए   l     फिर  तो  भारत  भर  के  तीर्थ  स्थानों , मंदिरों , मठों , शहर , गाँव , शिक्षण - संस्थानों ---- में  घूम - घूम  कर  दुनिया  की  पुस्तकें  पढ़  डालीं   l
     गुरु - सेवा ,  शिक्षण   और  भ्रमण  के  इस  अनुभव  में   उन्होंने  जाना  कि ----  व्यक्ति  का  जितना  शिक्षित  होना  जरुरी  है  ,  उससे  कहीं  अधिक  आवश्यक  है   जीवन  जीने  की  कला  का  अभ्यास  l  इसी  प्रयास  में  उन्होंने  राजस्थान , हरियाणा , पंजाब    में  प्राथमिक पाठ शालाएं ,  चल - पुस्तकालय , वाचनालय  आदि  स्थापित  और  संचालित   किये  l  उनके  द्वारा  स्थापित  संस्थाओं  में  सबसे  ज्यादा  नाम  व  चर्चा  ' ग्रामोत्थान  विद्दापीठ  सांगरिया  की  हुई   l   
    अनगिनत  संस्थाओं  के  संस्थापक    स्वामी  केशवानंद  अखण्ड   ज्योति  पत्रिका  एवं  इसके  संचालक  परम  पूज्य   गुरुदेव  पं.  श्रीराम  शर्मा    आचार्य   से   प्रेरणा  ग्रहण  करते  थे  l  वह  कहते  थे   अखण्ड   ज्योति  पत्रिका  में    प्रकाशित  जीवन  जीने  की  कला  आज  के  युग  की  ब्रह्म   विद्दा    है   l   इस  पत्रिका  में   प्रकाशित   अंशों   का  जिक्र    करते  हुए  कहते  थे  ---- "  जिन्दगी  जीना  एक  कला  है  l  यह  कला  तो  वास्तव  में  मानसिक  वृति  है  ,  जिसके  आधार  पर    साधनों  की  कमी  में  भी   जिन्दगी  को  खूबसूरती  के  साथ   जिया  जा  सकता  है   l   जिन्दगी  को  हर  समय  हंसी - खुशी  के  साथ   अग्रसर  करते  रहना  ही  कला  है   l  उसे  रो - पीटकर  काटना  ही     कलाहीनता  है   l   जो  जीवन  की  अनुकूलता  और  प्रतिकूलता   के  परिवर्तनों  का    समभाव  से  उपभोग   कर  लेता  है  , वही  कुशल  कलाकार  कहा  जायेगा   l 

28 September 2017

शहीद भगतसिंह ---- जिन्होंने आत्म बलिदान कर के क्रान्तिकारियों के कार्यों के पीछे जो गम्भीर विचारधारा और उच्च आदर्श था -- उसे संसार के सामने रखा

 ' नित्यप्रति  हजारों  मनुष्य  तरह - तरह  से  अकाल  मृत्यु  के  मुँह  में  चले  जाते  हैं  ,  पर  जो  भगतसिंह  की  तरह   दूसरों  के  लिए  जीवन  अर्पण  कर  देते  हैं   वही  इस  नश्वर  जगत  में  अमर  हो  जाते  हैं   l '  ऐसे  निर्भीक  और  कर्तव्यपरायण  युवकों  पर  भारतमाता  जितना  गर्व  करे  कम  है  l   
  उन्होंने   जीवन  के  अन्तिम  समय  तक  अन्याय  के  विरुद्ध  संघर्ष  किया  l ` 
            असेम्बली  बम  केस  में  अपने  कार्य  का  औचित्य  सिद्ध  करते  हुए   उन्होंने  कहा  था --- ' क्रान्ति  का  वास्तविक  मार्ग  मेहनत  पेशा  लोगों  को  जागृत  तथा   संगठित  करना  है  l  थोड़े  से  युवक  आतंकवादी  कार्य  कर  के   इस  महान  उद्देश्य  को  पूरा  नहीं  कर  सकते  l  यह  मेरा  दृढ़  विश्वास  है  कि  हमको  बमों  और  पिस्तौलों  से  लाभ  नहीं  होगा  l   ' ------
 उन्होंने  कहा ---- " समाज  में  सभी  के  लिए  अनाज  पैदा  करने  वाले   किसानों  के  परिवार  भूखों  मरते  हैं  ,  सारे  संसार  को  सूत  जुटाने  वाला   बुनकर  अपना  और  अपने  बच्चों  का  तन  ढकने  के  लिए  पर्याप्त  कपड़ा  नहीं  पाता  है  ,  शानदार  महल  खड़ा  करने  वाले  लुहार , बढ़ई,  कारीगर   झोंपड़ी  में  ही  बसर  करते   और  मर  जाते  हैं   और  दूसरी  तरफ  पूंजीपति  ,  शोषक  अपनी  सनक  पर  करोड़ों  रुपया  बहा  देते  हैं   l  l  समाज  में  एक  ऐसी  व्यवस्था  की  स्थापना  की  जाये   जिसमे  मजदूर  वर्ग  के  प्रभुत्व  को  मान्यता  दी  जाये   जिसके  फलस्वरूप  पूंजीवाद  के  बन्धनों ,  दुःखों   तथा  युद्धों  से  मानवता  का  उद्धार  हो  सके   l  "
     ' मृत्यु '  मानवमात्र  को  आतंकित  कर  देती  है   लेकिन  भगतसिंह  को  अंतिम  क्षण  तक   मृत्यु   की   भयंकरता    का  तनिक  भी  भय  नहीं  हुआ  l   मृत्यु  के  दिन  उनने  अपने  भाई  को  पत्र में  यह  अमर  वाक्य  लिखे  थे ----- "  एक  दीपक  की  लौ    की    तरह  मैं  सुबह  होने  से   पहले  ही  खत्म  हो  जाऊंगा  l  यह  मुट्ठी  भर  खाक  अगर  नष्ट  हो  जाये   तो  इससे    क्या  हानि   होगी  ? "  
  भगतसिंह  का   आत्मबलिदान   इतना  प्रभावशाली  सिद्ध  हुआ  कि  सर्वत्र  उनका  नाम  गूंजने  लगा  l   महात्मा  गाँधी  ने  कहा ---  "  हमारे  मस्तक  भगतसिंह  की  बहादुरी  और  बलिदान  के  समक्ष  झुक  जाते  हैं  l "   

27 September 2017

WISDOM

जो  लोग  वर्तमान  में  ही  भविष्य  की  तैयारी  नहीं  करते   वे  अदूरदर्शी  होते  हैं   और  एक  तरह  से  जीवन - पथ  पर  असफलता  के  बीज   बोने  जैसी   भूल  करते  हैं  l   समय  रहते  पहले  से  तैयारी  कर  लेने  पर  निर्धारित  योजनाओं  में   सौभाग्य  का  समावेश  होना  स्वाभाविक  ही  होता  है   l  असफलता  तो  उन  अदूरदर्शी  व्यक्तियों  को  मिलती  है   जो  तैयारी  के  समय   आलस्य  और  उपेक्षा  में  पड़े   सपने  देखा  करते  हैं   और  कर्तव्य काल  में   व्यस्तता , व्यग्रता ,  त्वरा  और   अव्यवस्था  के  शिकार  बनकर   शक्ति  तथा  संतुलन  को  जीर्ण - शीर्ण  करते  रहने   विवश  होते  हैं    l 

26 September 2017

धर्मप्राण - महामना पं. मदनमोहन मालवीयजी

  '  मालवीयजी  ने  हिन्दू  विश्वविद्यालय    की    सफलता   और  वहां  के  विद्दार्थियों  तथा  अध्यापकों    को  कर्तव्यपरायण   तथा  उन्नतिशील  बनाने  के  लिए   अपना  जीवन  ही  अर्पण  कर  दिया   l '
     मालवीयजी  केवल  लड़कों  की  शिक्षा    लिए  ही  प्रयत्नशील  नहीं  रहे   वरन  लड़कियों    की    शिक्षा   को  भी    वे  उतना  ही  आवश्यक   और  महत्वपूर्ण  समझते  थे   l  उन्होंने  हिन्दू विश्वविद्यालय  में  लड़कों   की शिक्षा   की   तरह  कन्या -  शिक्षा    की  भी  उचित  व्यवस्था     की  l  उस  समय  में  भी  उन्होंने  लड़कियों  को  वेद  पढ़ने  की  अनुमति  दी  l
  स्त्री - शिक्षा  के  महत्व  पर  उन्होंने  कहा  था ----- " हमारा  सच्चरित्र  होना , ब्रह्मचारी  बनना   अथवा  अन्धविश्वास  का  परित्याग  करना  तभी  हो  सकता  है   जब  हम  अपने  स्त्री - वर्ग   का  सुधार  कर   उसे  अपने  अनुकूल  बना  लें  l  जब  तक  हम  नारी - शक्ति  को  अपने   साथ  लेकर  नहीं  चलते , तब  तक  हम   कभी  जातीय - जीवन  की   लहलहाती  लता  को   देखकर  आनन्दित  नहीं  हो  सकते  l  क्योंकि  मनुष्य  समाज  का  कल्याण   अथवा  अकल्याण ,  उच्च  अथवा  नीच  होना   स्त्रियों  के  ही  हाथ  में  है   l ------ यदि  स्त्रियाँ  पुरुषों  के   साथ  रहकर  उनके  लाभ  अथवा  सुख  की  सहायक  न  हों  ,  तो  पुरुष  कभी  सुखी  अथवा  आनन्दित  नहीं  रह  सकते   l  पुरुषों  की  उन्नति  अथवा  अवनति  वास्तव  में  स्त्रियों  के  हाथ  में  है  l --------- स्त्रियों  को  ईश्वर  की  दी  हुई  विपुल  शक्ति  को   जीवन  के  उच्च  आदर्श  के   सामने  लाकर  सुगठित  करना   और  कर्मशील  बनाना  ही  हमारा  उद्देश्य  है   और  वही  हमारे  जातीय  जीवन  का   मूल  और  कर्तव्य - कर्म  है   l  " 

25 September 2017

पं . दीनदयाल उपाध्याय ----- निरंतर आत्मनिरीक्षण करते थे

 पं. दीनदयाल  उपाध्याय  राष्ट्रीय  स्वयं सेवक  संघ  के  कार्यकर्ताओं  के  साथ   मुंबई  से  नागपुर  तीसरे  दरजे  में  रेल  द्वारा   जा   रहे  थे  l  उन  दिनों  वे  भारतीय  जनसंघ  के  अध्यक्ष  थे   l  उसी  ट्रेन   की  प्रथम  श्रेणी  में   गुरु  गोलवरकर  जी   भी   जा  रहे  थे  l  उन्होंने  किसी  महत्वपूर्ण  विषय  पर   विचार - विमर्श    के  लिए  उपाध्याय  जी  को  अपने  पास  बुलाया  l  दो  स्टेशन  तक  उनका  प्रथम  श्रेणी  के  डिब्बे  में  ही  वार्तालाप  होता  रहा   l   अपने  डिब्बे  में  आने  के  बाद   वह  टी. टी.  को  खोजने  का  प्रयास   करने  लगे  और  हर  स्टेशन  पर  नीचे  उतर  कर  उसे  खोजते   l
  श्री  उपाध्याय जी  को  टी. टी.  की  खोज  करते  देख  उनके  साथी  यह  जानने  के  उत्सुक  थे  कि  आखिर  उन्हें  टी. टी.  से  क्या  काम  है  l  पंडितजी    की   दौड़ - धूप  का  प्रयास  सफल  हुआ   l  उन्हें  शीघ्र  ही  टी. टी.  सामने  आता  दिखाई  दिया  l
  दो स्टेशन  वे  वार्तालाप  हेतु  प्रथम  श्रेणी  में  बैठे  थे  , अत:  उन्होंने  उससे  अपना  अधिक  किराया  जमा  करने  को  कहा  l   उसे  बहुत  आश्चर्य  हुआ  किन्तु  उसने  चुपचाप  हिसाब  से  पैसे  ले  लिए  और  पूछा  --- "  क्या  आप  रसीद  भी  चाहते  हैं  ? "  पंडितजी  ने  कहा --- ' अवश्य  l '    बिना  रसीद  दिए  वह  राशि टी. टी.  स्वयं  ही  रखना  चाहता  था   किन्तु  उपध्याय जी  ने  कहा ----  "  मेरे  टिकट  के  पैसे  न  देने   और  टी. टी.  के  जेब  में  रख  लेने   के     दोनों  अपराध  समान  हैं  l  दोनों  से  ही  देश  खोखला  होता  है  l  "

24 September 2017

WISDOM ----- आप दूसरों से स्नेह , सम्मान और सहानुभूति चाहते हैं तो उनकी आलोचना , बुराई न करें

  यदि  किसी  के  मन  में  स्वयं  के  प्रति  विद्वेष  पैदा  करना  है  , जो  दशकों  तक  पलता  रहे  और  मौत  के  बाद  भी  बना  रहे  ,  तो  इसके  लिए   उसकी   कुछ  चुने  हुए  शब्दों  में   चुभती  हुई   आलोचना  करनी  होती  है  l  जाने - अनजाने  में  ज्यादातर  लोग  ऐसा  ही  करते  हैं   और  दूसरों  के  मन  में  खुद  के  लिए  विषबीज  बो  देते  हैं  l
              बॉब हूवर  एक  प्रसिद्ध  टेस्ट  पाइलट  थे  जो  एयर  शो  में  अक्सर  प्रदर्शन  किया  करते  थे  l  एक  बार  वे  सैनडीएगो   से  एयर  शो  में  हिस्सा  लेने  के  बाद  लास एंजिल्स  में  अपने  घर  को  लौट  रहे  थे  कि  अचानक  हवा  में  तीन  सौ  फीट  की  ऊंचाई  पर  उनके  हवाई  जहाज  के  दोनों  इंजन  बंद  हो  गए   l  कुशल  तकनीक  से  उन्होंने  जहाज  को   उतारा  l  हवाई  जहाज  का  तो  बहुत  नुकसान  हुआ  परन्तु  किसी  को  चोट  नहीं  आई   l  उन्होंने  हवाई  जहाज  के  ईंधन  कि  जाँच  की  तो  पाया  कि   द्वितीय  विश्व युद्ध  के  प्रसिद्ध  हवाई  जहाज  में  किसी  ने  गैसोलीन  कि  जगह  जेट  का  ईंधन  डाल  दिया   l
  उन्होंने  उस  मैकेनिक  को  बुलाया  जिसने  हवाई  जहाज   की    सर्विसिंग  की  थी    l  युवा  मैकेनिक   अपनी  गलती  पर  बहुत  शर्मिंदा  था   किन्तु   बॉब     हूवर   ने  उसे  कोई फटकार  नहीं  लगाई,  इसके   बजाय अपने   हाथ  उसके  कंधे  पर  रखकर  कहा ----- "  मुझे  पूरा  भरोसा  है  अब   तुम  दोबारा  ऐसा  नहीं  करोगे  l  मैं  चाहता  हूँ  कि  कल  तुम  मेरे   एफ--51  हवाई  जहाज  की  सर्विसिंग  करो   l  "
  उनके  इस  व्यवहार   से  उस  मैकेनिक   के  अन्दर  हूवर  के  प्रति   श्रद्धा - विश्वास  का  भाव  पनपा   और  फिर  कभी  भी   उसने  अपनी  पुरानी  गलती  नहीं  दोहराई  l
 लोगों   की   आलोचना  करने  के  बजाय  उन्हें  समझने    की    कोशिश  करनी  चाहिए   l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

23 September 2017

शब्दों की शक्ति बड़ी ताकतवर है -------- स्वामी दयानंद

  ' वार्तालाप  में  सत्यता , नम्रता   और  शिष्टता    का  अपना प्रभाव  है  और  कटुता   या  स्वार्थपूर्ण   वार्ता   का  अपना  l   परिशोधित - परिष्कृत  होने  पर   शब्द  अमृत  बन  सकते  हैं    और  विकृत  होने  पर   विष  का  भी  काम  कर  डालते  हैं   l '
                                                                                                                                                                                             घटना  उन  दिनों  कि  है    एक     नवयुवक  स्वामी  दयानंद  के  पास  पहुंचा  ,  उस  समय   स्वामीजी  नाम स्मरण  के  सन्दर्भ  में   उपस्थित  जन  समुदाय  के  समक्ष  भक्तियोग   का  उपदेश   दे   रहे  थे   l   वह  युवक  तार्किक  था      प्रवचन  के  बीच  में  ही  बोला ---" स्वामीजी  ! नाम स्मरण  से  क्या  फायदा ?  यह  शब्दों  का  जंजाल  है  ,  इससे  किसी  को  कोई फायदा नहो    l "
  स्वामी  दयानंद  ने  अपना    उपदेश  बीच  में  ही  रोका      और  उसे  समझाने के  लिए  जोर  से  बोले ---- " पागल  कहीं  का , जाने  क्या  बक  रहा  है  ?  जानता  भी  नहीं  है ,  अहंकार  इतना  बढ़ा - चढ़ा  है ,  जैसे  कोई  प्रकांड  पंडित  हो  l "
    स्वामीजी  के  इन   अपशब्दों  को  सुनकर  वह  युवक  तिलमिला  गया   और  कहने  लगा --- "  आप  एक  संन्यासी  हैं  पर  आपको  बोलने  का  ढंग  नहीं  आया  l "
  स्वामीजी  अब  बड़े  सहज  और  शांत  स्वर  में  बोले  ---- " अरे  भाई  ! मैंने  दो - चार  शब्द  ही  तो  बोले  हैं  , इससे  आपको  विशेष  चोट  पहुंची  क्या   ?  ये   कोरे  शब्द  हैं  , पत्थर  तो  नहीं  जिनसे  चोट  लगती   l  आप  स्वयं  कह  रहे  थे  नाम स्मरण    केवल  शब्द  आडम्बर  है  ,  इससे  कुछ  नहीं  होता  l " स्वामीजी  ने  कहा ---- आप  तनिक  गहराई  से  विचार  करें   जिस  प्रकार  बुरे  शब्दों    की   चोट  ने  आपको   घायल  किया  ,  उसी  प्रकार   भागवान  के  पवित्र नाम स्मरण से  सद्गुण  विकसित  होते  हैं  ,  दुःख -- दरद  के घाव  शीघ्र   भर  जाते  हैं  ---- संतप्त  मन  शांत  होता  है  l  '   स्वामी  दयानंद  का  उपदेश  सुनकर म वह  युवक  उनके  पैरों  पर  गिर  पड़ा    और  बोला  ---- गुरुदेव  l  आपके  कथन  से  मेरी  शंका  दूर  हुई  ,  मैं  समझ  गया  कि मन्त्र जप ,  नाम स्मरण , स्रोत पाठ  आदि  भाषा  का  विषय  नहीं  है  ,  वरन  व्यक्ति  के  अन्तराल  की   भाव - संवेदनाओं  को  जगाने  वाली   ऐसी  अलौकिक  शक्ति - सामर्थ्य  है  ,  जिसके  फलस्वरूप   अहंकार  एवं  अन्य  विकारों  को  विसर्जित  होने  में  जरा  भी  देर  नहीं  लगती   l  "                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  

22 September 2017

स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी ----- भगिनी निवेदिता

  निवेदिता  का  उदय  धार्मिक  पृष्ठभूमि  में  हुआ  था   l   उस  समय  आवश्यकता  इस  बात  कि  थी  कि   पहले  भारतीय  अपने  स्वाभिमान  को  समझें  ,  उनमे  शिक्षा  और  संस्कृति  का  विस्तार  हो  l  इसके  लिए  आवश्यक  था  कि भारत  स्वतंत्र  हो  l  अत:  भारतवर्ष  को   स्वतंत्र  कराना  ही  उस  समय  उनका  प्रमुख  उद्देश्य  बन  गया   l  उन्होंने  राजनीतिक  क्षेत्र  में  प्रवेश  किया  ,  स्वतंत्रता - आन्दोलन  में  भाग  लिया   l  अब  वह  पूरी   तौर  से   क्रांतिकारी  थीं  l    महर्षि  अरविन्द  ने  कहा  था -- वे  अग्निस्वरुपा  थीं   l  स्वामी  विवेकानन्द  ने  उन्हें  सिंहनी  बना  दिया  था   l   राष्ट्र निर्माण  हेतु   भारत    की    आजादी  के  समर्थन  में  वे  सतत  लिखती  रहती  थीं   l
  लार्ड  कर्जन  जो  बंग भंग  के  लिए  जिम्मेदार  थे  ,  उन  तक  शिकायत  पहुंची  कि  बेलूर  मठ  के  रामकृष्ण  मिशन  का  क्रांतिकारियों  से  सम्बन्ध  है   l  तत्कालीन  संचालक  मंडल  ने   निवेदिता  से  कहा  कि  लाट साहब  का  सन्देश  आ  रहा  है  कि  इस  मठ  को  समाप्त  कर  देना  है  ताकि  क्रांतिकारियों  का  गढ़  ही  समाप्त  हो  जाये   l  तब  निवेदिता  ने  लाटसाहब    की   पत्नी  को  समझाया  कि  यह  हमारे  गुरु  व  उनके  गुरु  का  मंदिर  है   l  यहाँ  क्रान्तिकारी  नहीं  हैं ,  यह  तो  मनुष्य  बनाने  का  तंत्र  है  l
  बंगभंग  आन्दोलन  में  उनने  खुलकर  भाग  लिया  , निवेदिता  का  निवास स्थान  क्रांतिकारियों  का  आश्रय  स्थान  बन  रहा  था  ,  क्रांतिकारियों  के   कारण  मठ   की    बदनामी  न  हो  ,  इस  कारण    अनेक  लोग  उनसे  रुष्ट  हो  गए  थे   l  पर  भगिनी  निवेदिता   की    यह  गुरु निष्ठा  थी  कि    उन्ही  ने  रामकृष्ण  मिशन   की ,  अपने  गुरु  के  मंदिर  की  रक्षा   की   l   वे  आंतरिक  रूप  से  योगिनी ,  साधिका  और  कल प्रेमी  थीं  ,  पर  प्रत्यक्ष  रूप  से  एक  योद्धा , भारत  प्रेमी  और  भारत    की    स्वतंत्रता  के  लिए  सतत  संघर्ष  करने  वाली  महिला  थीं   l   44 वर्ष  की  आयु  में  शरीर  छोड़  दिया  ,  पर  वे  इतिहास  में  गुरु - शिष्य  परम्परा  में  अमर  हो  गईं  l 

21 September 2017

महापुरुष लेनिन

 प्रसिद्ध  मानवतावादी  विचारक  रोमारोलां  ने  लिखा  है ---- " लेनिन  वर्तमान  शताब्दी  का   सबसे  बड़ा  कर्मठ   और  स्वार्थत्यागी  व्यक्ति  था  l  उसने  आजीवन  घोर  परिश्रम  किया  पर  अपने  लिए  कभी   किसी  प्रकार  के  लाभ   की   इच्छा  नहीं  की  l "
उस  समय  रूस  पर  जार  का  निरंकुश  शासन  था  l  लेनिन  के  प्रचार  कार्य  से    शोषण  और  अन्याय  के  प्रति   मजदूरों   में   असंतोष  भड़क  उठा   हड़ताल , प्रदर्शन  आदि  होने  लगे   और    सरकार    इनको  सीधी  तरह  नहीं  रोक  सकी  ,  तब  जार  के  सलाहकारों  ने  उसे  सलाह  दी  कि  श्रमजीवियों और  गरीबों  को  धर्म  के  नाम  पर  भड़का  कर   यहूदियों  से  लड़वा  देना  चाहिए  l    इससे  उनका  ध्यान  शासन  और  सरकारी  नियमों   की    बुराइयों   की    तरफ  से  हट  जायेगा  और  उधर  यहूदियों  का  भी  सफाया  हो  जायेगा  l  जार   के  ये  सलाहकार  कितने  निरंकुश  और  अत्याचारी  थे  इसका  नमूना  जार  के  प्रधान  मित्र  जनरल ट्रयोन  के  भाषण  के  एक  अंश  से  जाना  जा    सकता  है ------ "  वे  आन्दोलन  कि  बात  करते  हैं  ,  उनको  गोली  से उड़ा  दो  l  उनमे  थोड़े  से  पुलिस  के   भेड़ियों  को   नकली  क्रन्तिकारी  बनाकर  शामिल  कर  दो   और  वे  तुरंत  ही  -- तुम्हारे  जाल  में  फंस  जायेंगे   l  "    इस  योजना  के  अनुसार  निरंकुश  शासक  के  कार्यकर्ता  ईसाइयों  के  धर्म चिन्ह   उठाकर  ,  घंटा  बजाते  हुए  जुलूस  बनाकर  निकलते    और  गरीब  यहूदियों  के   घरों  में  घुसकर   उनके  तमाम  कुटुम्ब    की    हत्या  कर  डालते  ,  जो  कुछ  मिलता  उसे  लूट  लेते  l   दूध  पीते  बच्चे  और  स्त्रियाँ  भी  उनके  हाथों  से  नहीं  बच  सकती  थीं   l यद्दपि     ये  सरकारी  नौकर  नहीं  थे   तो  भी  जार  उनकी  प्रशंसा  करता  था   और  उन्हें     राजभक्त      बतलाता  था   l
          रुसी   क्रांति  को  लेनिन  ने  किस  प्रकार   अपना  सर्वस्व  होम  कर  खड़ा  किया  और  कार्यरूप  में  परिणित  हो  जाने  पर   किस  प्रकार  प्राणों   की    बाजी  लगाकर   उसकी  रक्षा   की ----- यह  रुसी  इतिहास   की    अमर  गाथा  है  l  शासन  सत्ता  ग्रहण  करने  के  कुछ  ही  दिन  बाद  जब  जर्मन  सेना  के  आक्रमण  से  रूस  की    रक्षा   की    समस्या  उपस्थित  हुई  ,  उस  समय   अन्य   नेता   तो  जर्मनी  से  सन्धि  कर  के  अपनी  पराजय  स्वीकार  करने  को   बहुत  बुरा बतलाते  थे  ,  पर  लेनिन  ने  कहा --- हमारी  क्रान्ति  जीवित  रहेगी   तो  हम  इस  वर्तमान  हानि  का  बदला  आगे  चलकर  चुका  लेंगे  l  पर  यदि   इस  समय  हम  बिना  तैयारी  के  शत्रु  से  भिड़  गए   तो  फिर  रक्षा  का  कोई उपाय  नहीं  है  l  इसके  लिए  लेनिन  ने  अपने  सिर  पर  जिम्मेदारी  ली  ,  रुसी  साम्राज्य  का  कुछ  हिस्सा  जो  जर्मनी  कि  सीमा  से  लगा  था   उसको  दे  दिया  और  जर्मनी  के खतरे  से  बचने  के  लिए   अपनी  राजधानी       पैट्रगार्ड  से  मास्को  ले  गए  l   इस   कारण  बहुत  से  साथी  उनके  विरोधी  बन  गए  ,  पर  अंत  में  लेनिन   की    सच्चाई  और  उचित  निर्णय  के  लिए  सबको  उसके  सामने  नतमस्तक  होना  पड़ा   l
     कई  पूंजीवादी   नेताओं  ने  भी   लेनिन  के  असाधारण  गुणों   की  चर्चा   करते  हुए  कहा  है ----- "  यद्दपि  लेनिन  का  मार्ग  हमसे  भिन्न  था   तो  भी  इसमें  संदेह  नहीं  कि   उसकी  राजनीतिज्ञता ,  दृढ़  निश्चय ,  और  अगाध  ज्ञान  की   तुलना  मिल  सकना  कठिन  है   l  "

19 September 2017

बंग्ला भाषा की प्राण - प्रतिष्ठा की ----- श्री बंकिमचन्द्र

  जिस  समय  बंकिम बाबू  ( जन्म  1838 )   सरकारी  नौकरी  में  प्रविष्ट  हुए  , उन  दिनों   बंग्ला  भाषा   की   दशा  बहुत  दयनीय  थी   l  उस  समय  उन्होंने  महसूस  किया  कि   अपनी  शक्ति  का  उपयोग   मातृभाषा   को  उन्नत  बनाने के  लिए  कर  के   उसे   सभ्य   भाषाओं   कि  पंक्ति  में  खड़े  होने  योग्य  बनाया  जाये  l
  वे  अपना  समस्त  निजी  कार्य  बंग्ला  में  ही  करने  लगे   l  बंगाल  के  विद्वान  और  देशभक्त  श्री  रमेश चन्द्र  दत्त  को  वे  ही   बंग - साहित्य    की  सेवा  में  लाये   l
  साहित्य  प्रचार  और  नए  लेखकों  को  प्रोत्साहन  देने  के  लिए  उन्होंने  ' बंग दर्शन  मासिक  पत्रिका  प्रकाशित  करना  शुरू  किया    l  उनका  पहला     उपन्यास  था  ' दुर्गेशनंदिनी '  और  दूसरा था  ' कपाल कुण्डला '  l  जिस  उपन्यास  के  कारण  उनका  नाम   देशभक्तों  में  अमर  हो  गया ,  वह  है ---- 'आनंदमठ  '  इसी  में  सबसे  पहले  ' वंदेमातरम् '  शब्द  और  उसका  गीत  लिखा  गया    l 

18 September 2017

WISDOM ------- अहंकार एक भ्रम है

  अहंकार  व्यक्ति  के  अन्दर  तब  उत्पन्न  होता  है  , जब  वह  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझने  लगता  है   और  यह  मानने  लगता  है  कि  दुनिया  उसके  इशारों  पर  चल  रही  है  l अहंकारी  व्यक्ति  को  स्वयं  पर  इतना  घमंड  हो  जाता  है  कि   वह  स्वयं  को  दुनिया  से  अलग  ,  सबसे  विशिष्ट  व्यक्ति  समझने  लगता  है   l  अपने  इस  अहंकार  के  कारण  वह  दूसरों  से  अच्छा  व्यवहार  नहीं  करता ,  उन  पर  अधिकार  जमाना  चाहता  है      अहंकार  व्यक्ति  को  किस  दिशा  में  ले  जाता  है ,  इस  सम्बन्ध  में  एक  सच्ची  घटना  है -------
       दक्षिण  में  मोरोजी  पन्त  नामक  एक  बहुत  बड़े  विद्वान  थे  l  उनको  अपनी  विद्दा  का  बहुत  अभिमान  था   और  सबको  नीचा  दिखाते  रहते  थे  l  एक  दिन  कि  बात  है  वे  दोपहर  के  समय  अपने  घर  से  स्नान  करने  के  लिए  नदी  पर  जा  रहे  थे  l  मार्ग  में  एक  पेड़  पर  दो  ब्रह्म राक्षस  बैठे  थे   वे  आपस में  बात  कर  रहे  थे  l  एक  ब्रह्म राक्षस  बोला --- " हम  दोनों  तो  इस  पेड़   की  दो  डालियों  पर  बैठे  हैं  ,  पर  यह  तीसरी  डाली  खाली  है  , इस  पर  बैठने  के  लिए  कौन  आएगा  ? "  तो  दूसरा  ब्रह्म राक्षस  बोला ---- " यह  जो  नीचे  से  जा  रहा  है  न , वह  यहाँ  आकर  बैठेगा  , क्योंकि  इसको  अपनी  विद्वता  का  बहुत  अभिमान   है  l "   उन  दोनों  के  संवाद  को  मोरोजी  पन्त  ने  सुना  तो  वे  वहीँ  रुक  गए  और  सोचने  लगे  कि  विद्दा  के  अभिमान  के  कारण  मुझे  प्रेतयोनि  में  जाना  पड़ेगा  ,  अपनी  होने  वाली  इस  दुर्गति  से  वे  घबरा  गए   और  मन  ही  मन  संत  ज्ञानेश्वर  के  प्रति  शरणागत  होकर  बोले   -- "  मैं  आपकी  शरण  में  हूँ ,  आपके  सिवाय  मुझे  बचाने  वाला   कोई  नहीं  है   l  "  ऐसा  सोचते  हुए  वह  आलंदी   की    तरफ  चल  पड़े   l  आलंदी  में  संत  ज्ञानेश्वर  ने  समाधि  ली  थी  l  संत   की    शरण  में   जाने  से   उनका  अभिमान  नष्ट  हो  गया  और  संत  कृपा  से  वे  भी एक  संत  बन  गए  l 

17 September 2017

सेवा - परायण , आदर्शों के धनी ------ दीनबन्धु एंड्रयूज

   श्री  एंड्रयूज  कहा  करते  थे  ---- " बुराइयाँ  हैं ,  आदमी  और  समाज  बुरा  है  ,  इसका  रोना - रोने  कि  जगह  यदि  उनको  परिवर्तित  करने  , नए  ढंग  से  गढ़ने ,  नया  रूप  देने   के  प्रयत्न  में  जुट  पड़ा  जाये   तो  एक  बस्ती  हो  क्यों    पूरे  समाज  का  कायाकल्प  संभव  है   l '
  सी.  एफ.  एंड्र्यज   ने  केम्ब्रिज  विश्वविद्यालय  से  अपनी  शिक्षा  समाप्त  करने  के  बाद  समाज - सेवा  को  अपना  कार्य  क्षेत्र  चुना   और  लन्दन  के  ' वालवर्थ ' नामक  कसबे  में  रहने   गए  l  इस  कस्बे  के  निवासियों  का  जीवन  पतित  था   l  चोरी , जेबकटी  से  अपनी  रोटी -रोजी  चलाते  थे  l  शराब , जुआघर  आदि  के  कारण   बस्ती  बदनाम  थी    l   इस  शिक्षित  युवक  एंड्र्यज   को  वे  आश्चर्य  से  देख  रहे  थे  ,  बस्ती  के  लोग  उन  पर  हँसते , मजाक  उड़ाते   l  श्री  एंड्र्यज  ने   उनके  बच्चों  को  शिक्षा  व   सुसंस्कार  देना  और  माताओं  को  स्वास्थ्य  सम्बन्धी  जानकारी  देने  का  क्रम  शुरू  किया   l   धीरे - धीरे    बस्ती  के  निवासियों   का  उन  पर  विश्वास  बढ़ता  गया   कि  कोई  है  जो  उनके  बच्चों  के  कल्याण  का  ध्यान  रखता  है  l     श्री  एंड्रयूज  लोगों  को  चरित्र - निष्ठा   की    गरिमा  समझाते  और  कहते   कि  रविवासरीय  कक्षा  में  अवश्य  आयें , सप्ताह  में   कम  से  कम  रविवार  को  गलत  काम  न  करें  l
    एक  दिन   बस्ती  के  युवकों  ने  श्री  एंड्रयूज  के  साथ  तीन -चार  दिन  का  पिकनिक  का  कार्यक्रम  बनाया   यह  तय   किया   गया  कि  इन  तीन - चार  दिनों  में  कोई  चोरी , बदमाशी  नहीं  करेगा  l   उन  लोगों   की    जिन्दगी  में  यह  पहला  अवसर  था  जब  चार  दिन  बिना  अपराध  के  कटे  l
  इसके  बाद   परिवर्तन  शुरू  हो  गया  l  अपराध  कि  जगह  लोगों  ने  श्रम  को  अपनाया  l  कुछ  सेना में  भरती  हुए  कुछ  मिलों  में  l  धीरे - धीरे  पूरी  बस्ती  का  कायाकल्प  हो  गया    l
  ' एक  व्यक्ति  के  प्रभावकारी  व्यक्तित्व  ने  यह   प्रमाणित  कर   दिया  कि ---- ' प्रभावकारी  व्यक्तित्व   से  एक    बस्ती  तो  क्या  पुरे  समाज    का  कायाकल्प  संभव  है   l '

16 September 2017

न्याय - व्यवस्था

' दुनिया  वालों  के  न्याय  में   भले  ही  चूक  हो  जाये   पर  ऊपर वाले  का  न्याय  कभी  नहीं  चूकता  l  भरोसा  रखना  चाहिए --- देर  भले  ही  हो ,  पर  जीतती  सच्चाई  ही  है  l  '

  यूनान  का  राजा  फिलिप   अपनी  न्यायप्रियता  के  लिए  प्रसिद्ध  था  l  वह  अपने  दरबार  में  स्वयं  ही  सारे  मुकदमे  सुनकर  उनका  न्याय  किया  करता  था  l  एक  बार  राज्य  के  दो  नागरिक  उनके  सम्मुख  अपना  मुकदमा  लेकर  पहुंचे  l  राजा  फिलिप  उस  दिन  बेहद  थके  हुए  थे  l  जब  पहला  व्यक्ति  अपना  पक्ष  सुना  रहा  था   तो  उन्हें  हलकी  सी  झपकी  आ  गई  l  जब  उन्हें  चैतन्यता  आई ,  तब  तक  दूसरे  पक्ष   की   बारी  आ  गई   l  उन्होंने  दूसरे  पक्ष  के  बयान  को  ही  सम्पूर्ण  सच  मानकर  उसी  के  पक्ष  में  निर्णय  सुना  दिया   निर्णय  सुनने  पर  पहले  पक्ष  का  व्यक्ति  बोला  --- " महाराज  ! आपका  निर्णय  न्यायपूर्ण  नहीं  है  l  मैं  चाहता  हूँ  कि  आप  मेरा  बयान  दुबारा  सुने  ,  क्योंकि  मेरा  बयान  सुनते  समय  आपको  नींद  आ  गई  थी   मेरा  पक्ष  सुनने  के  बाद  आप  जो  भी  निर्णय  करेंगे  वह  मुझे  स्वीकार  होगा  l "
  उस  व्यक्ति  का  बयान  सुनने  के  बाद   राजा   फिलिप   को  अपनी  गलती  का  एहसास  हुआ  और  उन्होंने  उसे  उस  पर  लगे  आरोपों  से  बरी  कर  दिया  l  इसके  बाद  वे  उससे  बोले  --- " मैं  तुम्हारे साहस  से  अत्यंत  प्रभावित  हूँ  l  तुम्हारे  साहस  ने  ही  तुम्हे  आज  न्याय  दिलाया  है   और  मुझे  एक  गलत  निर्णय  लेने  से  बचाया  है  l  हर  नागरिक  का  कर्तव्य  है  कि  वह  राजा  को  ऐसी  गलती  करने  से  रोके  ,  ताकि  राजपद  कि  गरिमा  अक्षुण्ण  रहे   l  "

15 September 2017

संवेदना का मर्म -------

  स्वामी    रामतीर्थ  उन  दिनों  अमेरिका  में  थे  l  उनके  पास  एक  महिला  आई ,  बड़ी  गुमसुम  सी , इतनी  अवसाद  में  थी   कि  कुछ  बोल  नहीं  पा  रही  थी   l  l   स्वामी  रामतीर्थ  उसे  करुणापूर्ण  नेत्रों  से  निहार  रहे  थे  ,  और  वह  रोती  जा  रही  थी   l  भरे  हुए  गले  से  उसने  अपनी  कथा  सुनाई  l  कथा  का  सार  इतना  ही  था  कि   वह  प्रेम  में  छली  गई   l  तन - मन - धन - जीवन  सब  कुछ   निस्सार  करने  के  बाद  धोखा  मिला  , निराशा  मिली   l  उसकी  सारी   बातें  सुनने  के  बाद   स्वामी  रामतीर्थ  गंभीर  भाव  से  बोले ----- " बहन  ! यहाँ  हर  कोई   अपनी  क्षमता  के  अनुसार  ही  व्यवहार  करता  है  l जिसके  पास  जितनी  शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक  एवं  भावनात्मक  क्षमता  है  ,  वह  उसी  के  अनुसार   व्यवहार  करने  के  लिए  विवश  हैं   l जिनकी   भावनाएं  स्वार्थ  व  कुटिलता  में  सनी  हैं  ,  वे  तो  बस  केवल  क्षमा  के  पात्र  हैं  l  बड़े  ही  विवश  हैं  वे  बेचारे  ! 
 महिला  ने  पूछा--- :  '" तब  क्या  जीवन  में  सच्चा  प्रेम  पाना  असंभव  है  ? " स्वामी  रामतीर्थ  ने  कहा ----- " नहीं  ऐसा  नहीं  है  ,  सच्चा  प्रेम  मिलता  है  पर  उन्हें   जो  सच्चा  प्रेम  करना  जानते  हैं  | "
  उस  महिला  ने  कहा ---- "  मेरा  प्रेम  भी  तो सच्चा  था  l "    स्वामीजी  ने  कहा ----- "  नहीं  बहिन  ! तुम्हारे  प्रेम  में   स्वार्थ  की  मांग  थी  , उसमे  किसी  न  किसी  अंश  में  वासना  की  विषाक्तता   घुली  थी   जबकि  सच्चा  प्रेम  तो  सेवा , करुणा  व  श्रद्धा  के  रूप  में  ही  प्रकट  होता  है  l "
  रामतीर्थ    की  बातों   का  मर्म  उसकी  समझ  में  आ  गया l   वह  समझ  गई  कि  वासना , कामना ,  अहंता  से  मुक्त  भावनाओं  का  नाम   प्रेम  है  l  वह  अस्पताल  में  नर्स  बन  गई ,  निष्काम  सेवा  से  उसके  व्यक्तित्व  में  अनोखी  चमक  व  तृप्ति  थी  l


14 September 2017

हिन्दी के प्रकाण्ड पाश्चात्य पंडित ------ फादर कामिल बुल्के

  फादर  कामिल  बुल्के  बेल्जियम  वासी  थे  और  1935  में  मिशनरी  अध्यापक  बनकर  भारत  आये  क  यहाँ  आकर  1945  में  उन्होंने  कलकत्ता  विश्वविद्यालय  से  संस्कृत  से  बी.ए. किया  l   उन्होंने  वाल्मीकि  रामायण  का  गहन  अध्ययन  किया  फिर  हिन्दी  पढ़ने  के  लिए  उन्होंने  प्रयाग  विश्वविद्यालय  में  प्रवेश  लिया   l  यहाँ  एम. ए.  करते  हुए  वे  तुलसी  साहित्य  के  संपर्क  में  आये  l  उनके  भाषणों  का  विषय  होता  था --'रामचरितमानस  कि  गरिमा  '  l  उनका  शुद्ध  उच्चारण  युक्त  धारा-प्रवाह  भाषण  सुनकर  श्रोता  मन्त्र मुग्ध  हो  जाते  थे   l   भरत  के  चरित्र  से  उन्हें  विशेष  लगाव  था  l  भरत  से  उन्होंने  यही  सीखा  कि ----" साधना  का  अर्थ  पलायन  नहीं  अपितु  सेवा  के  प्रति  समर्पण  है   l "
  उनका  सारा  जीवन  ज्ञान  और  कर्म   की    साधना  में   ही  लगा  रहा  l  उनके  व्यक्तित्व , चरित्र  और  व्यवहार  को  देखकर   यह  सिद्ध  होता  है  कि   यदि  प्रयास  किया  जाये  और  मनुष्य  अपनी  संकीर्णता   छोड़  दे  तो   सभी  धर्म  एक  हो  जाएँ   l 

13 September 2017

युग - द्रष्टा ------ राजर्षि --गोखले

  1885  में  पूना  के  न्यू  इंग्लिश  हाई  स्कूल  में  समारोह  के  प्रमुख  द्वार  पर  एक  स्वयंसेवक  को  इसलिए  नियुक्त  किया  गया  था  कि  वह  आने  वाले  अतिथियों  के  निमंत्रण  पत्र  देखकर  सभा  स्थल  पर   यथा स्थान  बिठा  सके  l  उस  समारोह  के  मुख्य  अतिथि  थे ---- चीफ  जस्टिस  महादेव  गोविन्द  रानाडे  l   वे  जैसे  ही   विद्दालय  के  फाटक  पर  पहुंचे  ,  वैसे   ही  स्वयंसेवक  ने  उन्हें  अन्दर  जाने  से  रोक  दिया   और  निमंत्रण  पत्र  कि  मांग  की  l
 रानाडे  ने  कहा ---- " बेटे ,  मेरे  पास  तो  कोई  निमंत्रण  पत्र  नहीं  है  l "   स्वयंसेवक  ने  नम्रतापूर्ण  उत्तर  दिया ---- " तब  आप  अन्दर  प्रवेश  न  कर  सकेंगे   l '  द्वार  पर  रानाडे  को  रुका  हुआ  देखकर   स्वागत  समिति  के  कई  सदस्य  आ  गए   और  उन्हें  अन्दर  मंच  की  ओर  ले  जाने  का  प्रयास  करने  लगे ,  पर  स्वयंसेवक  ने  आगे  बढ़कर  कहा , ' श्रीमान ,  मेरे  कार्य  में  यदि  स्वागत समिति  के  सदस्य  ही  रोड़ा  अटकाएंगे  तो  फिर  मैं  अपना  कर्तव्य  कैसे  निभा  सकूँगा  ? कोई  भी  अतिथि  हो ,  उसके  पास  निमंत्रण  पत्र  तो  होना  ही  चाहिए  l  भेदभाव   की    नीति  मुझसे  नहीं  बरती  जाएगी  l  "  यही  स्वयंसेवक  आगे  चलकर  गोपालकृष्ण  गोखले  के  नाम  से  प्रसिद्ध  हुआ   l 

12 September 2017

WISDOM ------- बुद्धिजीवी और विचारशील वर्ग के ह्रदय में ईर्ष्या और कलुष होने से ही अशांति और अव्यवस्था उत्पन्न होती है

  भगवान  श्री कृष्ण  ने  गीता  में  कहा  है --- "  जैसा  आचरण  एक  श्रेष्ठ  पुरुष  का  होता  है  , अन्य  लोग  भी  वैसा  ही  आचरण  करते  हैं  ,  उसी  का  अनुसरण  करते  हैं  l  "  विशिष्ट  व्यक्तियों  का  आचरण   सारे  समाज  के  उत्थान  और  पतन  का  कारण  बन  सकता  है  l
  एक  कथा  है ------  एक  समय   की    बात  है    समाज  में   असुरता ,  दुष्प्रवृत्तियां   इतनी  बढ़  गई  थीं   कि  लोगों  का  जीवन ,  उनका  परिवार  सुरक्षित  नहीं  था   l  अत:  प्राणरक्षा  के  लिए   ब्राह्मणों  के  दल  ने  अपने  परिवार  समेत  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  शरण  ली  l  महर्षि  ने  उनका  स्वागत  किया   और  कहा  कि   आप  सब  यहाँ  निवास  करें   l   समय  बीतने  लगा   l  ब्राह्मणों  के  क्षेत्र  से  भी  समाचार  आने  लगे  कि  वहां  दुष्ट  और  अवांछनीय  तत्वों  के  उत्पात   शांत  हुए  हैं  l
   एक  दिन  भ्रमण  करते  हुए  नारद जी  आये    तो  उन्होंने   महर्षि   गौतम   की   बहुत  प्रशंसा  की    और  कहा --- इतने  ब्राह्मणों  को  आश्रय  देने  से  उनकी  कीर्ति  चारों  और  फ़ैल  रही  है  l   यह  सब  सुनकर  ब्राह्मणों   के  मन  में  ईर्ष्या  कि  आग  भड़क  उठी  l   एक  दिन  वे  अपने  क्षेत्र  जाने  कि  तैयारी  करने  लगे            महर्षि   हवन  आदि  कर  के  उठे  और  अपनी  पर्णकुटी  जाने  लगे   तो  उन्होंने  देखा  कि  आश्रम  के  आँगन  में  एक  दुबली - पतली  गाय  पड़ी  है   l  यह  देखने  के  लिए  कि  वह  जीवित  है  या  मृत ,  उन्होंने  उस  पर  हलके  से     दण्ड  का  प्रहार  किया  ,  उसी  समय  चारों  और  से  ब्राह्मण  निकल  आये  और  शोर  मचाने  लगे ---- हाय ! हाय !  इस  पुनीत  ब्रह्मवेला  में  गौहत्या  कर  दी  l  छोडो   इस  ढोंगी  का  आश्रम   l   संसार  के  सामने  उनके  पाप  प्रकट  हो  जाने  दो  l  "
  महर्षि  गौतम  ने  ध्यानस्थ  होकर  देखा  तो  पाया  कि   यह  ब्राह्मणों  द्वारा  बनाया  गया   गाय  का  पुतला  है ,  जो  उन्हें  कलंकित  करने  के  लिए  रचा  गया  षड्यंत्र  है   l  ऋषि  ने  अपनी  गंभीर  वाणी  में  कहा ----- ब्राह्मणों  !  मैं  समझ  गया  कि  आपने  क्षेत्र  में  उत्पात  क्यों  बढ़े  हैं  ?  समाज  के  मूर्धन्य  होकर  भी    आप  लोगों  के  ह्रदय  में  इस  प्रकार   ईर्ष्या   और  कलुष  है    तो  समाज  में  अशांति ,  अव्यवस्था  तो  होगी   ही  l  "                                                                                             

11 September 2017

WISDOM ------- जाति-द्रोही विजातियों से अधिक भयंकर और दंडनीय होता है

 '  स्वार्थी , अनीतिवान  तथा  कायर  व्यक्ति  के  पास   छल - कपट  के  सिवाय  और  कोई  सम्बल  नहीं
 होता,  उन्हें  शत्रुओं   की    चाटुकारी  करने  और   अपनों  को  हानि  पहुँचाने  में
    ही  सुख - संतोष   अनुभव  होता  है   l '
  1857  के    संग्राम  के   स्वाधीनता  संग्राम  के  महासेनापति  बने  तात्या  टोपे  ने  राष्ट्र  को  एक  जुट  करने   की    योजना  बनाई  और  कालपी , ग्वालियर   और  कानपूर  को  अपने  आधिपत्य  में  ले  लिया  l
  तात्या  अत्यंत  थके  हुए  थे  l  अंग्रेजों  को  चकमा  देते  हुए   वे  ग्वालियर  के  पास   पाड़ोंन    अपने  मित्र  मानसिंह  के  पास  पहुंचे    और  कहा  मित्र !  हम  कुछ  समय  आपके  पास  विश्राम  करना  चाहते  हैं  l  तात्या  को  निश्चिंतता  थी  कि  वह  अपने  मित्र  के  पास  सुरक्षित  हैं  l   किन्तु  अंग्रेजों  द्वारा  गिये  गए   लालच  में  आकर   उसने    तात्या  के  बारे  में  बता  दिया  और  अंग्रेजों  ने  उन्हें  बन्दी  बना  लिया  

10 September 2017

WISDOM

  भगवान  कृष्ण  गीता  में  कहते  हैं  कि   दमन  पाशविक  भी  है  और  ईश्वरीय  विभूति  भी  है  l   दमन  यदि  विवेकहीन ,  नीतिहीन  हो  तब  वह  आसुरी  एवं  पाशविकता  का   परिचय  देता  है  l
    लेकिन  यदि  अन्याय , अत्याचार , अनीति ,अनाचार ,  दुराचार , शोषण , भ्रष्टाचार   का  दमन  किया  जाता  है    तो  दमन  ईश्वरीय  विभूति  के  रूप  में  अलंकृत  होता  है  l  जो  इसे  करने  का  साहस  दिखाता  है  ,  दंड  उसके  हाथों  में  ईश्वरीय  शक्ति  के   रूप    में  सुशोभित    होता  है   l
  समर्थ  गुरु  रामदास  ने    अत्याचार  और  अनीति  के  विरुद्ध  संग्राम  में  शिवाजी  को  विजयी  बनाने  के लिए  माँ  भवानी  कि  अजेय  तलवार  प्रदान  की  थी   l  

9 September 2017

महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ---- जिसे सीखने की ललक है , वह प्रत्येक व्यक्ति , प्रत्येक घटना से सीख लेता है l

  महान  वैज्ञानिक  आइन्स्टीन  कहा  करते  थे --- " हर  व्यक्ति  जिससे  मैं  मिलता  हूँ  , किसी  न  किसी  बात  में   मुझसे  श्रेष्ठ  है  l  वही  मैं  उससे  सीखने  की  कोशिश  करता  हूँ  l "
     एक  बार  वे  किसी  दूसरे  देश  में   एक   प्रतिष्ठित   विश्वविद्यालय  में  गए  हुए  थे  l  इस  विश्वविद्यालय  ने  उनके  लिए  एक   व्याख्यानमाला  का  आयोजन  किया  था  l   एक  दिन  सायं  वे  अपने  व्याख्यान   को   समाप्त  कर   घूमने  के  लिए  निकले   l  राह में  उन्होंने  देखा  कि  एक  कुम्हार   मिट्टी    के  बरतन  बना  रहा  है  l  काफी    देर  तक  खड़े   वे   उसका  कौशल  देखते  रहे   l   फिर  उन्होंने  उससे  कहा ---- " ईश्वर   की    खातिर   मुझे  भी  अपना  बनाया  हुआ  बरतन  देंगे  l  "    उनके  मुख  से  ईश्वर  का  नाम  सुनकर   वह  कुम्हार    चौंका ,  फिर  उसने  अपने   बनाये  बरतनों  में  से   एक  सबसे  सुन्दर   बरतन  उठाया  और  उसे  साफ  कर  के  बड़े  ही  सुन्दर   ढंग  से   आइन्स्टीन    हाथों  में  थमाया  l  उस  बरतन  को  हाथ  में  लेने   के  बाद   उन  महान  वैज्ञानिक  ने    उसे  देने  के  लिए  पैसे  निकाले,  परन्तु    उस  कुम्हार    ने  पैसे  लेने  से  इनकार  करते  हुए  कहा  --- " महोदय  ! आपने  तो  ईश्वर   की  खातिर  बरतन  देने  को  कहा  था  ,  पैसों  की  खातिर  नहीं   l  "
  आइन्स्टीन  अपनी  मित्र मंडली   में  इस  घटना  का  जिक्र  करते  हुए  कहते  थे  --- " जो  मैं  कभी  किसी  विश्वविद्यालय  में  नहीं  सीख  सका  ,  वह  मुझे  इस  कुम्हार  ने  सिखा  दिया  l  मैंने  उससे  निष्काम  ईश्वर भक्ति  सीखी  l  "  

7 September 2017

WISDOM -----

  ईमानदारी  और  परिश्रम  से  अर्जित  धन  का  उपयोग  लोगों  को  ईमानदार  , परिश्रमी  और  संस्कारवान  बनाता  है  l  '
  देश   के   स्वतंत्र  होने  के  समय   की   बात  है  ---- जब  सरदार  वल्लभभाई  पटेल  गृहमंत्री  के  पद  पर  थे  ,  उनकी  बेटी  मणिबेन  थीं  जो  पेबंद  लगी  हुई  धोती  पहनती  थीं  l  उनको  इस  तरह   की    धोती   को  पहने  हुए   देखकर   एक  बार  महावीर  त्यागी  ने   उनसे  कहा  ---- " तू  चक्रवर्ती  राजा  की  बेटी   होते  हुए  भी   पैबंद  लगी  हुई  धोती  पहनती  है  l  "  उस  समय  सरदार  वल्लभभाई  पटेल  ने  200  से  अधिक  रियासतों  का  एकीकरण   किया  था  l  उनके  दृढ़  निश्चय  और  सही  निर्णयों  को  देखकर   लोग
 उन्हें  ' लौहपुरुष '  कहते  थे  l  उनके  कार्य  देश  के  प्रति   समर्पित  थे  ,  इतनी  सारी  रियासतों  का   अधिकारी  होने  के  बावजूद   वे  बहुत  ही  सामान्य  जीवन  जीते  थे  l  उनकी  बेटी  अपने  हाथों  से   सूत  कात  कर  धोती  बनातीं  l  घर  के  कार्यों  में  अत्यधिक  व्यस्तता  के  कारण  वे  अधिक  सूत  नहीं  कात  पातीं  थीं  l  इसलिए  जो  भी  धोती  बनातीं  , उसे  अपने  पिता  को  पहनने  को  दे  देतीं   क्योंकि  उन्हें  बड़े - बड़े  कार्यों   व  समारोहों   में  सबके  बीच  जाना  पड़ता  था  l  स्वयं  मणिबेन  उनकी   पुरानी  धोती  साड़ी  के  रूप  में  पहनती  थीं  और  कुरते  का  ब्लाउज  बना  लेती  थीं   l  महावीर  त्यागी  के  इस  व्यंग  को  जब   सरदार  पटेल  ने  सुना  तो  उन्होंने  कहा  ---- " मणिबेन  चक्रवर्ती  सम्राट    की   बेटी  नहीं , गरीब  किसान  कि  बेटी  है   l  "  और  ऐसा  कहने  में  उन्हें   फक्र    महसूस  हुआ   l  उस  समय  राजनेताओं  को  अधिक  धन  नहीं  दिया  जाता  था   और  न  ही  वे  धन  के  लिए   देश   की    अस्मिता  को  दांव  पर  लगाने  के  लिए  तैयार  होते  थे  l   वे  भी  स्वयं  को  देश  का  सामान्य  नागरिक  समझते  थे   l  आजादी   की    कीमत  उन्हें  पता  थी   और  वे  अपने  कर्तव्यों  का  भली  प्रकार  से   पालन  करते  थे   l 

6 September 2017

वैचारिक परिवर्तन अनिवार्य

 '  असाधारण  उपलब्धियां  यदि  कभी  नियंत्रण  से  बाहर  होने  लगें   और  मनुष्य  कि  उद्दंडता  पर  नियंत्रण  न  लगे  तो  परिणति  कितना  भयंकर  होती  है  ,  इसका  परिचय  भूतकाल  में  भी  मनुष्य  जाति  अनेक  बार  प्राप्त  कर  चुकी  है  l  अनियंत्रित  सामर्थ्य  प्रेत - पिशाच  का  रूप   धर  लेती  है  l '
  ब्रिटिश  विज्ञानी  प्रो. जाँन  डब्लू   वाकर  ने  कहा  है ----- ' हमारी  वैज्ञानिक  उपलब्धियां   तो  अभूतपूर्व  व  अत्यंत  विशाल  हैं  ,  किन्तु  इसके  साथ    हमारे  विचार तंत्र   में  घुस  पड़े    संकीर्ण    स्वार्थपरता  के  बिष दंश   ने  हमें  कहीं  का  नहीं  रहने    दिया   है  l  सर्वत्र  लूट-खसोट  मची  है   l  भौतिकवादी  विचारों   की    बहुलता  ने  आणविक  अस्त्रों  को  जन्म  दिया  जिसने  समस्त  जीवों  के  अस्तित्व  को  संकट    में   डाल  दिया  l   जब  तक   विचार  प्रक्रिया  में  कोई  बदलाव  नहीं  आता   तब  तक  मानव  जाति  का  भविष्य  ,  उसका  अस्तित्व  खतरे  में  पड़ा  रहेगा   l  '  

5 September 2017

जीवन शैली में ----- समय प्रबंधन

             जीवन शैली  अर्थात  जीवन  जीने  का  ढंग  l   जीवन शैली   के  प्रबंधन  के  लिए  आवश्यक  है  कि  मनुष्य  अपने   लक्ष्य  का  निर्धारण  कर  ले   और  ऐसा  करते  ही   जीवन  का  शेष  पथ  स्वत:  ही  आसान  हो  जाता  है   l  लक्ष्य  निर्धारण  होने  के  बाद   यदि  उस  पथ  पर   धैर्य , साहस , संकल्प ,  निष्ठा  एवं  समपर्ण  के  साथ  आगे  बढ़ा  जाये   तो  जीवन  लक्ष्य  को  प्राप्त  करते  देर  नहीं  लगती  l
  जीवनशैली  में  समय - प्रबंधन  का  बहुत  महत्व  है   l    समय  के  एक - एक  पल  का  सकारात्मक  उपयोग  कर  के   व्यक्ति  अपने  जीवन  में  बहुत  कुछ  हासिल  कर  सकता  है  -------------
            बिहार  मिथिला  क्षेत्र  के  दरभंगा  रियासत  के  नरेश   महाराज  रमेश्वर  प्रसाद  सिंह   उच्च  शिक्षित  एवं  महान  विद्वान्  थे     उन ;को  अंग्रेजी , फ्रेंच ,  बंग्ला,  हिंदी  व  संस्कृत  पर  पूर्ण  अधिकार  था   l  वे  तंत्र शास्त्र  के  उच्च  कोटि  के  विद्वान  होने  के  साथ - साथ   वेदांत , सांख्य,  योग  एवं  व्याकरण  आदि  का भी  सूक्ष्म  एवं  गहरा  ज्ञान  रखते  थे  l   अपने  सम्पूर्ण  जीवन  को  महा अनुष्ठान  में  परिवर्तित  करने  वाले  महाराज  रमेश्वर  प्रसाद  सिंह  की  जीवनशैली  आध्यात्मिक  थी   l ------- वे  नित्य  प्रति  दो  बजे  उठ  जाया  करते  थे  l  और  शय्या  पर  ही  दुर्गासप्तशती  का  एक  सम्पूर्ण  पाठ  कर  लेते  थे  l  इसके  बाद  साढ़े  तीन  बजे  स्नान  आदि  से  निवृत  होकर   वैदिक  संध्या  व  सहस्त्र  गायत्री  जप  कर  एक  मन  चावल  का  नित्य  पिंडदान  करते  थे  l  इसके  बाद  पार्थिव  शिवलिंग  का  ब्रह्म मुहूर्त  में  ही  पूजन  संपन्न  कर  भगवती  के  मंदिर  में  जाते  थे  l  वहां  पर  वे  तांत्रिक  संध्या  करने  के  बाद  तांत्रिक  विधान  के  अनुसार  पात्र  स्थापन  करते  थे  ,  इसके  बाद  वह  महाकाली  का  पूजन - तर्पण ------ कर के  दस  बजे  तक  तैयार  हो  जाते  थे  l      एक  घंटे  के  विश्राम  के  बाद   ग्यारह  बजे  से  साढ़े  तीन  बजे  तक  राज -कार्य  देखते  थे  l  इसके  पश्चात्  स्नान  आदि  कर  के   वैदिक  संध्या  व  गायत्री  जप  करते  थे  ,  फिर  प्रदोष  काल  में  पार्थिव  शिव  पूजन व  निशाकाल  में  भगवती  पूजन  संपन्न  करते  थे   l    यह  सब  उपलब्धि  उनकी  विशिष्ट  जीवनशैली   के  कारण  थी  ,  जिसने  उनके  लिए  अध्यात्म पथ  के  दिव्य  जीवन  के  द्वार  खोल  दिए  थे   l 

4 September 2017

स्वदेश और समाज के उद्धारकर्ता ------ डा. सनयात सेन

  '  सनयात सेन  ने  अपनी  नि: स्वार्थ  सेवा भावना   से  चीन  जैसे  विशाल  देश  का  उद्धार  कर  दिया  l  अंत  में  जब  सफलता  मिली  तो  उन्होंने  स्वयं  उसका   लाभ  उठाने  के  बजाय  दूसरे  लोगों  को  ही  आगे  बढ़ाकर  अपना  ध्येय   केवल  राष्ट्र - रक्षा  ही  रखा  l '
               सनयात सेन   का  जन्म  चीन  के  एक  छोटे  से  गाँव  में   1866  में  हुआ  था  l   उस  समय  गरीब  तो  क्या   चीन  के     अमीर  लोग  भी  बहुत  कम   पढ़ते  थे   l  उनको  यह  पता  न  था  कि  अपने  देश  के  बाहर   संसार  में    कई  प्रभावशाली  और   उन्नत  देश  हैं  l  चीन  के  निरंकुश  सम्राट   अपनी  प्रजा  को  तरह - तरह  से  गुलाम  बनाये  हुए  थे   वे  नहीं  चाहते  थे   कि  चीन  निवासियों  में   भूगोल , इतिहास  आदि  का  ज्ञान  फैले  l    चीन  में  रहने  वालों  को  तो  केवल  एक  ही  बात   सुनाई  और  सिखाई  जाती  थी   कि  सम्राट  भगवान  का  स्वरुप  है  ,  वही  समस्त  प्रजा  का     पिता  है  ,  उसी  कि  सेवा  करने  से  हमारा  उद्धार  हो  सकता   है  l
   ऐसे  ' दैवी  कैदखाने'    में  रहने  पर  भी    किसी  प्रकार  सनयात सेन  को  आजादी   की    हवा  लग  गई   और  13  वर्ष  कि  आयु  में  ही   वे  अमरीका  द्वारा शासित  हवाई  टापू  में   मजदूर  के  रूप  में  चले  गए   l   वहां  जाकर  उन्हें  अनुभव    हुआ   कि  वे  एक  नई  दुनिया  में  आ  गए  l    अन्य   लोगों    से  बातचीत  व  विचार  विनिमय  के  लिए  अंग्रेजी  जानना  जरुरी  था  , अत:  उन्होंने  ' चर्च  स्कूल '  में  नाम  लिखा  लिया  l    कुछ  ही  वर्षों  में  उन्होंने  डाक्टरी    की    उपाधि  प्राप्त  कर  ली  l
   सनयात सेन  ने  बीस  वर्षों  तक  जो  देश  सेवा   की  और  आधे  पेट  खाकर  भी  संसार   की  खाक  छानते  हुए   विभिन्न  देशों  में   घूमे   ताकि  वहां  के  शासकों    की   सहानुभूति  प्राप्त   की   जाये   और  उन  देशों  में  रहने  वाले  चीनियों  को  संगठित  किया  जाये  l     जनता  द्वारा  सर्वसम्मति  से  राष्ट्रपति    चुने   जाने  पर  भी   वे  इस  पद  पर   अधिक  समय  तक  नहीं  रहे   l  एक  वर्ष    के   भीतर  ही    उन्होंने  स्वेच्छा  से  यह  पद  अन्य  नेता  को  दे  दिया   और  स्वयं  चीन    की    प्रगति  के  लिए  निरंतर  श्रम   करते  रहे   l                                                                                                                                           

3 September 2017

WISDOM

स्वामी  विवेकानंद  अमेरिका  यात्रा  पर  थे  l  उनके  विचारों  से  प्रभावित  होकर  एक  अमेरिकन  ने  उनसे   उन्हें  हिन्दू  धर्म  में  दीक्षित  करने  को  कहा  l  स्वामीजी  ने  उत्तर  दिया ---- " मैं  यहाँ  धर्म  प्रचार  के  लिए  आया  हूँ ,  धर्म  परिवर्तन  के  लिए  नहीं  l   मैं  यहाँ  यह  सन्देश  देने  के  लिए  आया  हूँ   कि   अच्छा  इनसान  बनने  के  लिए  धर्म  परिवर्तन   की    आवश्यकता  नहीं   होती  l  मेरी  हिन्दू  संस्कृति  विश्व - बंधुत्व  का  सन्देश  देती  है   और  मानवता  को  सबसे  बड़ा  धर्म   मानती  है  l  तुम  अपना  धर्म  पालन  करते  हुए    भारतीय    ऋषियों  के  इन   संदेशों   को  अपने    जीवन  में  उतारो   l  वह  व्यक्ति  उनके  कथन  से  अभिभूत  हो  गया   l              

2 September 2017

WISDOM

  बात  1936   की    है  l  महात्मा  गाँधी    छुआछूत  निवारण  हेतु  दौरे  पर  थे  l  उड़ीसा  के  एक  कसबे  में  ठहरे  हुए  थे  l  वहां  पंडितों  का  एक  दल  उनसे  शास्त्रार्थ  करने  आ  गया  l  वे  कह  रहे  थे --- " शास्त्र  में  छुआछूत  का  समर्थन  है  l "  गांधीजी  ने  मंडली  को  सम्मानपूर्वक  बैठाया  और  कहा --- " पंडित जनों  मैंने  शास्त्र  तो  पढ़ा  नहीं  ,  इसलिए  आपसे  हार  मान  लेता  हूँ  , पर  यह  विश्वास  करता  हूँ  कि  संसार  के  सब  शास्त्र  मिलकर  भी   मानवी   एकता  के  सिद्धांत  को  झुठला  नहीं  सकते  l  मानवता  एक  तरफ  और  आपके शास्त्र  एक  तरफ   l  मेरा  धर्म  तो  यही  है   और  मरते  दम  तक  मैं  इस  पर  अडिग  रहूँगा   l "  उनकी  स्पष्ट  अभिव्यक्ति  सुनकर    लज्जित  पंडित  मंडली  भी  निरुत्तर   वापस  लौट  गई  l 

1 September 2017

चैन की नींद का इलाज बताया ----- महात्मा आनंद स्वामी ने

  सुप्रसिद्ध  गायत्री  उपासक ,  आर्य  समाज  के  एक  स्तम्भ  महात्मा  आनंद  स्वामी   के  पास  एक  धनपति  आये  l  इनके  कई  कारखाने  थे  ,  सभी  लड़के  अपने - अपने  काम  में  लगे  थे   l  चारों  ओर  वैभव  का  साम्राज्य  था  ,  पर  VE  अन्दर  से  बड़ा  खालीपन  अनुभव  करते  थे  l  उनकी  भूख  चली  गई  थी  और  रात्रि  कि  नींद  भी   l   अपनी  यह  व्यथा  उन्होंने  स्वामीजी  को  सुनाई    l
  महात्मा  आनंद  स्वामी  ने  कहा  ---- " आपने  जीवन  में  कर्म  और  श्रम  को  तो  महत्व  दिया  ,  पर  भावना  को  नहीं  l   सत्संग , कथा - श्रवण   आदि  से  तो  विचारों  को  पोषण  भर  मिलता  है   l  अन्दर  कि  शुष्कता  कम  करने  के  लिए   अब  प्रेम ,  धन ,  श्रम  लुटाना  आरम्भ  कीजिये  l  अपने  आपे  का  विस्तार  कीजिये  l  सबको  स्नेह  दें ,  अनाथों - निर्धनों  के  बीच  जाएँ   और  उन्हें  स्वावलंबी  बन  सकने  योग्य   सहायता  दें   l  अपना  शरीर - श्रम  जितना  इस  पुण्य  कार्य   में  लग  सके ,  लगाइए  l  दिनचर्या  सुव्यवस्थित  रखें  l  फिर  देखिये  आपकी  भूख  लौट  आएगी   तथा  नित्य  चैन   की   नींद  सोयेंगे  l  आपका  स्वास्थ्य  भी  ठीक  हो  जायेगा   l  "
  सेठजी  ने   ऐसा  ही  किया  l  इस   चमत्कारी   परिवर्तन  ने  उन्हें   जो   सेहत ,  शांति  व  प्रसन्नता  दी  ,  वह  पहले  कभी  नहीं  मिली   l