21 December 2018

WISDOM ---- नशा ' नाश ' का कारण होता है '

  नशा   चाहे  धन  का  हो , पद  का  हो  या  शराब  का   हानिकारक  है   l  '  सत्ता  का  नशा  संसार  की  सौ  मदिराओं  से  भी   अधिक  होता  है  l  उसकी  बेहोशी  सँभालने  में  एकमात्र   आध्यात्मिक  द्रष्टिकोण  ही   समर्थ  हो  सकता  है   l  अन्यथा  भौतिक  भोग  का  द्रष्टिकोण  रखने  वाले   असंख्य  सत्ताधारी   संसार  में  पानी  के  बुलबुलों  की  तरह   उठते  और  मिटते  रहे  हैं   और  इसी  प्रकार   बनते  और  मिटते  रहेंगे   l  '
     पुराण  की  यह  कथा   बताती  है  कि  व्यक्ति     चाहे  धरती  पर  हो  अथवा  स्वर्ग  में   ,  यदि  उसमे  अहंकार  पैदा  हो  गया  है   तो  उसकी  बुद्धि ,  दुर्बुद्धि    बदल  जाती  है  l  दुर्बुद्धि ग्रस्त  व्यक्ति    स्वयं  ही  अपने   नाश  का  जिम्मेदार  होता  है  -------
       त्वष्टा     का  वध  करने  के  कारण  इंद्र  को  पाप  लगा   l  तपस्या     करने  का  आदेश  मिला    l  नहुष  को  इंद्र  बनाया  गया  l  इन्द्रासन  पाते  ही  उसमे  अहंकार  आ  गया   l  बोला --- "  अब  मैं  इंद्र  हूँ  ,  इसलिए  शची  को मेरी  सेवा  में  भेजो ,  वह  इन्द्राणी  है  l  " 
  शची  ने    युक्ति  से  काम  लिया  और  कहला  भेजा  कि---' यदि   नहुष   पालकी  में  बैठकर   जिसे  सप्त ऋषि  ढोयें,   उसके  महल  में  आयें   तो  वह   उनका  आदेश  स्वीकार  करेंगी  l  "
  एक  तो  सत्ता  का  नशा    और  कामांध ,  उसने  सप्त ऋषियों  को  पालकी  ढोने  का  आदेश  दिया   और  पालकी  में  बैठकर  शची  से  मिलने  चला   l  व्याकुलता  इतनी  कि  उसने  अगस्त्य  ऋषि  को  एक  लात   मारी  और  कहा  ---- सर्प - सर्प ,  तेज  चलो , तेज  l  "  ऋषियों  को  क्रोध  आ  गया  , उन्होंने  पालकी  पटक  दी   और  कहा --- " मूर्ख  राजा  !  जा  तू  सर्प  बनकर  धरती  पर  जन्म  ले   और  कोटर  में  निवास  कर  l  तेरी  यही  सजा  है  l  " 
  अहंकारी  व्यक्ति  अपना  ही  अहित  कर  लेता  है  l