31 January 2013

जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता है ।संकीर्ण स्वार्थ ,वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है ।भय का सबसे घ्रणित पहलू अपने स्वार्थ के लिए ,दूसरों पर छाये रहने की भावना से अधीनस्थ लोगों का शोषण करना है ।वैराग्यशतक में भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है -भोग में रोग का भय ,धन में चोरी होने का भय ,सत्ता में शत्रुओं का भय ,सौंदर्य में बुढ़ापे का भय ,शरीर में मृत्यु का भय ।इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है ।त्याग का मार्ग ही निर्भयता की अवस्था की ओर ले जाता है ।

30 January 2013

SILENCE

जब महाभारत का अन्तिम श्लोक गणेशजी के सुपाठ्य अक्षरों में अंकित हो चुका तब महर्षि वेदव्यास ने गणेशजी से कहा -"आपका मौन विस्मयकारी है ।इस सुदीर्घ काल में मैंने तो पंद्रह बीस लाख शब्द बोल डाले ,परन्तु आपके मुख से मैंने एक भी शब्द नहीं सुना ।इस पर गणेशजी ने मौन की व्याख्या करते हुए कहा -"किसी दीपक में अधिक तेल होता है ,किसी में कम ,परन्तु तेल का अक्षय भंडार किसी किसी दीपक में नहीं होता ।उसी प्रकार सबकी प्राणशक्ति सीमित है ,असीम किसी की नहीं ।इस प्राणशक्ति का पूर्णतम लाभ वही पा सकता है जो संयम से उसका उपयोग करता है ।संयम ही समस्त सिद्धियों का आधार है और संयम का प्रथम सोपान है -वाक्-संयम ।वाणी का संयम न रखने से प्राणशक्ति सूख जाती है इसलिए मैं मौन का उपासक हूँ ।

29 January 2013

मनुष्य का अच्छा स्वभाव ही उसका सौन्दर्य है ।वह कुरूपता की कमी पूरी कर सकता है ,किन्तु बुरे स्वभाव के रहते देवताओं जैसे सौन्दर्य का भी कोई मूल्य नहीं ।लुकमान से किसी ने प्रश्न किया कि आपने इतनी शिष्टता कहाँ से सीखी ?लुकमान ने उत्तर दिया -"भाई ,मैंने शिष्ट व्यवहार अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही सीखा है ।लुकमान का उत्तर सुनकर लोग अचरज में पड़ गये ।लुकमान ने स्पष्ट करते हुए कहा कि अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही मैंने जाना कि अशिष्ट व्यवहार क्या है ।मैंने पहले उनकी बुराइयों को देखा ।फिर देखा कि कहीं वे बुराइयां मुझ में तो नहीं हैं ।इस तरह के आत्म निरीक्षण से मैं बुराइयों से दूर होता गया और आत्म सुधार के फलस्वरूप लोग मुझे लुकमान से हजरत लुकमान कहने लगे ।

28 January 2013

हवा जोर से चलने लगी ।धरती की धूल उड़ -उड़कर आसमान पर छा गई ।धरती से उठकर आकाश पर पहुँच जाने पर धूल को बड़ा गर्व हो गया ।वह सहसा कह उठी -"आज मेरे समान कोई भी ऊँचा नहीं ।जल ,थल ,नभ के साथ दसों दिशाओं में मैं ही व्याप्त हूँ ।बादल ने धूल की बात सुनी ।धूल की भूल पर ,उसके गर्व पर अट्टाहास किया और अपनी जलधाराएँ खोल दीं ।देखते -ही -देखते आसमान से उतरकर धूल धरती पर जल के साथ दिखाई देने लगी ।दिशाएँ साफ हो गईं ,कहीं भी धूल का नामो -निशान तक नहीं रहा ।जल के साथ बहती हुई धूल से धरती ने पूछा -"रेणुके !तुमने अपने उत्थान -पतन से क्या सीखा ?"धूल ने कहा -"माता धरती !मैंने सीखा कि उन्नति पाकर किसी को गर्व नहीं करना चाहिए ।गर्व करने वाले मनुष्य का पतन अवश्य होता है ।

27 January 2013

जिंदगी की सार्थकता को यदि खोजना है तो वह दूसरों की भलाई करने में है ।जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं ,वे निजी जीवन में उदार बन कर जीते हैं ।दूसरों की सहायता करने की प्रेरणा प्रकृति हर पल देती है ।झरना निरंतर दूसरों के लिए बहता है ।बादल बरस कर अपना कोष नहीं चुका देते ।वे बार -बार खाली होते हैं ,फिर भर जाते हैं ।नदियाँ उदारता पूर्वक समुद्र को देती हैं व समुद्र भाप बना कर उन्हें बादलों को लौटा देता है ,इस विश्वास के साथ कि यह प्रवाह चलता रहेगा ।वृक्ष प्रसन्नता पूर्वक देते हैं व सोचते हैं कि वे ठूंठ बन कर नहीं रहेंगे ।नियति का चक्र उन्हें सतत हरा -भरा बनाये रखने की व्यवस्था करता ही रहेगा ।हवा की झोली में सौरभ भरने वाले खिलते पुष्पों तथा दूध के बदले कोई प्रतिदान न मांगने वाली गायों से हम शिक्षण लें एवं उदारता को जीवित रख हँसते -हँसते जीवन जियें ।एक राजा वेश बदल कर नगर में यह जानने के लिए अक्सर निकलता था कि उसकी प्रजा सुखी है या नहीं ।एक दिन उसने देखा कि एक बहुत ही बूढ़ा आदमी एक बाग के किनारे काजू का पेड़ लगा रहा है ।राजा ने उस बूढ़े आदमी से पूछा -"बाबा !यह पेड़ तुम किसके लिए लगा रहे हो ?जब इसमें फल लगेंगे ,तब तुम इसे देखने के लिए नहीं रहोगे ।तुम्हारे जीवन के थोड़े ही दिन शेष रह गए हैं ,फिर इसे लगाने से तुम्हे क्या फायदा ?इस पर वृद्ध हँसा और सहज स्वर में उसने उत्तर दिया -"फलों के पेड़ इसलिए नहीं लगाए जाते कि हम लगाते ही उनके फल खायेंगे ।पेड़ को लगाता कोई और है ,फल कोई और खाता है ।यह दुनिया की बहुत पुरानी रीति है ।

26 January 2013

एक आदमी ऐसे गाँव में पहुँच गया ,जहां सब अंधे रहते थे ।उनका परस्पर व्यवहार कहीं भी आँख वालों से अलग नहीं था ।सुनना ,पदचाप से जान लेना ,सूंघना आदि सभी क्षमताएँ विकसित थीं ।उसे वहां एक लड़की मिली ।बड़ी सुंदर व शिष्ट थी ।उसे उस लड़की से प्रेम हो गया ।वह अंधी थी ।उस लड़की ने बुजुर्गों से उससे शादी की बात की ,पर साथ में यह भी कहा कि उसके साथ एक कमी है कि उसे दिखाई देता है ।हम लोगों की तरह नहीं है ।सभी अंधे बुजुर्ग बोले -"यह बड़ी भयावह बीमारी है ।सारी तकलीफें इसी से पैदा होती हैं ।हम उसका इलाज कर देंगे ,फिर तुम्हारी शादी कर देंगे ।वे उसके पीछे पड़ गए ।वह भागा ।अंधों का चक्रव्यूह इतना प्रबल था कि जाल में फँस गया ।लड़की कहती रही कि हम तुमसे प्रेम करते हैं ,मत भागो ,पर वह किसी तरह बच कर निकल भागा ।अंधों के गाँव में देखना भी बीमारी है ,आज के संसार की स्थिति भी ऐसी ही है ।विवेकवान होना ,किसी का भला करना औरों के लिए एक बीमारी बन गई है ।

25 January 2013

लोकमान्य तिलक से किसी ने पूछा -"कई बार आपकी बहुत निंदापूर्ण आलोचनाएँ होती हैं ,लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते ।"उत्तर में उन्होंने कहा -"निन्दा ही क्यों कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं ।निन्दा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान का दर्जा देते हैं ,लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह यह कि मैं तो एक इनसान हूँ जिसमे थोड़ी कमियां हैं और थोड़ी अच्छाई है और मैं अपनी कमियों को दूर करने में लगा रहता हूँ ।लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा -"जब अपनी जिंदगी को मैं ही अभी ठीक से नहीं समझ पाया तो भला दूसरे क्या समझेंगे ।इसलिए जितनी झूठ उनकी निन्दा है ,उतनी ही उनकी प्रशंसा है ।इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न करके अपने आपको और अधिक सँवारने -सुधारने की कोशिश करता रहता हूँ ।"
निन्दक नियरै राखिए आँगन कुटी छबाय ।बिन पानी साबुन बिना निर्मल करै सुभाय ।मनुष्य अपनी प्रशंसा ही सुनना पसंद करता है निन्दा या आलोचना से बचना चाहता है किन्तु यदि निन्दा आलोचना को सहज और सकारात्मक भाव से स्वीकार किया जाये तो व्यक्ति को अपना स्वयं का सुधार करने के लिए भारी मदद मिलती है ।अपने में कौन सी कमियां हैं ,कमजोरियां हैं ,क्या दोष है ?इनका स्वयं पता नहीं चलता ।अपने व्यवहार की परख दूसरों के द्वारा की गई आलोचना और निन्दा के प्रकाश में भली -भांति की जा सकती है ।निन्दा अपने प्रकट -अप्रकट दोषों की ओर इंगित करती है तथा उन्हें सुधारने की प्रेरणा देती है ।इसके लिए चाहिये वह द्रष्टि जो निन्दा के प्रकाश में अपने दुर्गुणों -दोषों को ढूंढ़ सके और चाहिये वह सहिष्णुता जो निन्दा आलोचना को सह सके ।

24 January 2013

एक गुलाब का फूल कह रहा था कि ईश्वर ने हमारे साथ अन्याय किया कि इतनी पतली और कंटीली बेल पर लगाया ,हमारा स्वरुप किसी चन्दन जैसे बड़े वृक्ष की शोभा बढ़ाने योग्य था ।दुर्भाग्य का रोना रोने वाले इस पुष्प के समीप उगे दूसरे पुष्प ने कहा -मूर्ख ,सोचने का तरीका बदल ।पतली कंटीली बेल पर उगने के कारण तुझे छोटा सा फूल होना चाहिए था ,पर तू कितना सौभाग्यशाली है कि तुच्छ स्थिति में होने पर भी इतना बड़ा सौभाग्य पा सका ।
पुरुषार्थी की कठिनाइयाँ उसके लिए वरदान हैं ।विषमता एवं प्रतिकूलता में जीवन की सारी ऊर्जा एकत्रित होकर उससे निकलने के लिए तत्पर हो उठती है ।मन एवं बुद्धि इससे उबरने के लिए तकनीकें खोजते हैं ।प्रयास की इस प्रक्रिया में विषमता वरदान सिद्ध होती है ।यह अभिशाप उनके लिए है जो दुःख में रोते हैं और दुःख के कारणों को दूसरों पर आरोपित करते हैं ।कठिनाइयाँ एवं चुनौतियां हमें सुद्रढ़ ,मजबूत एवं फौलाद बनाने आती हैं ।यदि हमारा द्रष्टिकोण सकारात्मक {POSITIVE}है तो विपत्ति का प्रत्येक धक्का हमें साहसी ,बुद्धिमान अनुभवी और आत्मविश्वासी बनाता है ।
एक अमीर बीमार पड़ा ।बहुतों का इलाज कराने पर भी अच्छा न हो पाया ।तब उससे किसी ने लुकमान के पास जाने को कहा ।वह वहां पहुंचा ।लुकमान ने नाड़ी परीक्षा की ,लक्षण पूछे और जेब से निकाल कर कुछ गोलियाँ दी और कहा ,"इन्हें अपने माथे के पसीने में गलाकर कुछ दिन खाना ,अच्छे हो जायेंगे ।रोग कुछ ही दिनों में अच्छा हो गया ।बदले में उन्हें बड़ा पुरस्कार और सम्मान मिला ।शिष्यों ने कहा -जो दवा आपने दी थी उसका रहस्य हमें भी बता दें ।लुकमान ने कहा -दवा तो उपलों की राख भर थी ।पर उसे माथे का पसीना निकालने में नित्य जो मेहनत करनी पड़ी चमत्कार उसका था ।परिश्रमी लोग या तो बीमार पड़ते ही नहीं या फिर जल्दी अच्छे हो जाते हैं ।

23 January 2013

एक बार फूलों से लदे गुलाब के पौधे को चिंतामग्न देखकर पास में उगे आम के झुंड ने इसका कारण पूछा ।गुलाब ने कहा ,"आज तो मैं फूलों से लदा हूँ ,पर वह पतझड़ दूर नहीं ,जब मैं पत्तों सहित झड़ जाऊंगा और फिर मेरी कंटीली डालियों को कोई आंख उठाकर भी न देखेगा ।क्या यह कम चिंता की बात है ?आम ने कहा ,"मित्र !इस आज की सुषमा और अगले पतझड़ के बाद फिर आने वाली अपनी सुंदरता का विचार क्यों नहीं करते ?मुझे देखो ,अभी फल -फूलों से लदने में कई वर्ष लगेंगे ,पर उसकी आशा और कल्पना करने में निरंतर प्रसन्न बना रहता हूँ ।"

22 January 2013

एक भविष्यवक्ता थे ।लोगों को उनकी नियति बताते ,साथ ही कर्मों द्वारा उसमें घट -बढ़ होने की संभावना से भी अवगत कराते ।एक दिन दो मित्र उनके पास आये ।भविष्य पूछने लगे ।उन्होंने एक को एक महीने बाद फाँसी होने तथा दूसरे को राजसिंहासन मिलने की भवितव्यता बताई ।जिसे राजसिंहासन मिलना था ,वह अहंकार में डूबा और मनमाने आचरण करने लगा ।इस अवधि में कुकर्मों की अति कर दी ।एक महीना होने को आया ,तो सड़क पर रुपयों की एक थैली पड़ी मिली ।उसे उसी दिन सुरा -सुंदरी पर खर्च कर दिया ।जिसे फाँसी लगनी थी ,उसने शेष थोड़ी सी अवधि को दिन -रात सत्कर्मों में निरत रहने के लिए लगा दिया ।पुण्य -परमार्थ जो संभव थे ,उनमे कमी न रहने दी ।महीना पूरा होने को आया ,तो पैर में एक कांटा चुभा और थोड़े दिन कष्ट देकर अच्छा हो गया ।महीना निकल गया ,पर न एक को फाँसी लगी और न दूसरे को सिंहासन मिला ,तो वे भविष्यवक्ता के पास पहुंचे और कथन मिथ्या हो जाने का कारण पूछा ।उत्तर में उन्होंने कहा ,"भवितव्यता को कर्मों से हल्का -भारी किया जा सकता है ।फाँसी ,कांटा लगने जितनी हल्की हो गई और सिंहासन हल्का होकर रुपयों की थैली जितना छोटा रह गया ।कष्टसाध्य सेवा -भावना ने फाँसी का कष्ट घटा दिया और मनमानी उद्दंडता ने राजसिंहासन में कमी कर दी ।जो शेष रह गया वही मिला ।"
दो पेड़ पास -पास उगे ।एक सूख गया ,तो मालिक ने उस ठूँठ को भी काट डाला ।कटते हुए उसने पड़ोसी पेड़ से शिकायत की ।जिन्हें मैं जीवन भर सुविधा पहुंचाता रहा ,उन्हें मेरा अस्तित्व बना रहना भी सहन न हुआ ।कितने स्वार्थी हैं लोग ।हरे पेड़ ने समझाते हुए कहा ,"दोस्त !चिंतन बदलो और इस तरह सोचो कि अस्तित्व मिटते -मिटते भी मैं लोगों को सूखी लकड़ी दे सकने का सौभाग्य अर्जित कर सका ।

21 January 2013

HUMAN

एक महारानी ने अपनी मौत के बाद अपनी कब्र के पत्थर पर निम्न पंक्तियाँ लिखाने का हुक्म दिया था ,"इस कब्र में अपार धन राशि गड़ी हुई है ।जो व्यक्ति निहायत गरीब एवं एकदम असहाय हो ,वह इसे खोदकर ले सकता है ।"उस कब्र के पास से हजारों दरिद्र एवं भिखमंगे निकले ,लेकिन उनमे से कोई भी इतना दरिद्र एवं असहाय नहीं था ,जो धन के लिए मरे हुए व्यक्ति की कब्र खोदे ।एक अत्यंत बूढ़ा भिखमंगा तो वहां सालों -साल से रह रहा था ।वह हमेशा उधर से गुजरनेवाले प्रत्येक दरिद्र व्यक्ति को कब्र की ओर इशारा कर देता था ।आखिर एक दिन ऐसा व्यक्ति आ ही गया और उसने कब्र की खुदाई शुरु करवा दी ,पर उसे उस कब्र में एक पत्थर के सिवाय और कुछ नहीं मिला ।उस पत्थर पर लिखा हुआ था ,"मित्र ,तू अपने से पूछ ,क्या तू मनुष्य है ?क्योंकि धन के लिए कब्र में सोए हुए मुर्दों को परेशान करने वाला मनुष्य हो ही नहीं सकता ।"वह व्यक्ति एक सम्राट था और उसने उस कब्र वाले देश को अभी -अभी जीता था ।वह सम्राट जब निराश होकर उस कब्र के पास से वापस लौट रहा था तो उस कब्र के पास रहने वाले बूढ़े भिखमंगे को लोगों ने खूब जोर से हँसते हुए देखा ।वह हँसते हुए कह रहा था ,मैं कितने सालों से इंतजार कर रहा था ,आख़िरकार आज धरती के दरिद्रतम और सबसे ज्यादा असहाय व्यक्ति का दर्शन हो ही गया !"सच में ह्रदयहीन व्यक्ति से बड़ा दरिद्र और दीन -दुखी और कोई हो ही नहीं सकता है जो प्रेम के अलावा किसी और संपदा की खोज में लगा रहता है ।एक दिन वही संपदा उससे सवाल करती है -क्या तुम मनुष्य हो ?

20 January 2013

DESIRE

एक राजा ने बकरी पाली और प्रजाजनों की परीक्षा लेने का निर्णय किया कि जो इसे तृप्त कर देगा उसे सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएँ पुरस्कार में मिलेंगी ।परीक्षा की अवधि पंद्रह दिन रखी और बकरी घर ले जाने की छूट दे दी ।जो ले जाता ,उसे भर पेट खिलाता और पंद्रह दिन उसका पेट भली प्रकार भर देता ।इतने पर भी जब वह दरबार में पहुँचती तो अपनी आदत के अनुसार ,रखे हुए हरे चारे में मुँह मारती ।प्रयत्न असफल चला जाता ।इस प्रकार कितनों ने ही प्रयत्न किया ,पर वे सभी निराश होकर लौटे ।एक बुद्धिमान उस बकरी को ले गया ।वह पीछे तो पेट भर देता लेकिन जब सामने आता तो छड़ी से बकरी की खबर लेता ।वह उसे देखते ही खाना भूल जाती और मुँह फेर लेती ।यह नया अभ्यास जब पक्का हो गया ,तो वह बकरी को लेकर दरबार में पहुंचा ।छड़ी हाथ में थी ,उसके सामने हरा चारा रखा गया ,तो छड़ी को ऊँची उठाते ही उसने मुँह फेर लिया ।यह समझा गया कि वह पूर्ण तृप्त हो गई ।इनाम उसे मिल गया ।रहस्य का उद्घाटन करते हुए राजपुरोहित ने बताया कि इच्छाएं बकरी के समान हैं वे कभी तृप्त नहीं होतीं ।उन्हें व्रत ,संकल्प और प्रतिरोध की छड़ी से ही काबू में लाया जा सकता है ।

19 January 2013

एक भैंस थी बड़ी उपद्रवी ।रस्सा तुड़ाकर भाग जाती थी और जिस खेत में घुस जाती थी उसी को कुचल कर रख देती थी ।पकड़ने वालों की भी अच्छी खबर लेती थी ।एक दिन तो वह ऐसी हो गई कि किसी की पकड़ में नहीं आ रही थी ।हैरान लोगों के बीच से एक साहसी लड़का निकला ।सिर पर उसने हरी घास का गट्ठर रख लिया और उपद्रवी भैंस की तरफ सहज स्वभाव से आगे चलता चला गया ।ललचायी भैंस घास खाने के लिए आगे बढ़ी ।लड़के ने उसके आगे गट्ठर डाल दिया और मौका मिलते ही उछलकर उसकी पीठ पर जा बैठा ।डंडे से पीटते हुए वह उसे बाड़े में ले आया ।लोगों ने जाना कि आवेश भरे प्रतिरोध से भी बढ़कर उपद्रवी तत्वों को काबू में लाने के लिए कई बार दूरदर्शी नीति अधिक कार्य करती है ।
पुत्र ने पिता से पूछा -वृक्षों को शंकर भगवान की उपमा क्यों दी जाती है ?पिता ने कहा -"बेटा ,समुद्र मंथन हुआ तो उसमे से विष भी निकला ,जब उसे किसी ने ग्रहण नहीं किया तो शंकरजी ने पीकर मानवता की रक्षा की ।शंकरजी ने तो ऐसा एक ही बार किया ,पर धरती के जितने भी जीवधारी अपनी गंदी साँस का जहर निकालते हैं ,बेचारे वृक्ष उसे पीकर बदले में स्वच्छ ऑक्सिजन देते हैं ,जिससे उनका जीवन सुरक्षित रहता है ।पुत्र बोला -फिर तो वृक्ष महाशंकर हुए ।

ATMOSPHERE

प्रजापति ब्रह्मा ने वृक्ष बनाये ,वनस्पति बनाई ,छोटे -छोटे जीव -जंतु बनाए ,पशु और पक्षी बनाए और जब देखा कि इनमे से एक भी पर्यावरण को व्यवस्थित रख सकने में समर्थ नहीं है ,हर जीव खुदगर्ज साबित हुआ ,तब विधाता ने सम्पूर्ण प्रतिभा और ज्ञान संपन्न मनुष्य का निर्माण किया ।मनुष्य को अपने समान क्षमतावान देखकर विधाता की चिंता दूर हुई ,संसार की व्यवस्था मनुष्य को सौंपकर वे अपनी थकावट मिटाने के लिए शयन करने लगे ।एक हजार वर्ष की नींद टूटी तो विधाता ने देखा कि द्वार पर जीव -जंतुओं की भारी भीड़ जमा है ।विधाता को जगाने और अपनी शिकायत पेश करने के लिए सब दरवाजा खटखटा रहे हैं ,नारे लगा रहे हैं ।चकित विधाता दरवाजा खोलकर बाहर निकले और जीव -जंतुओं से उनके दुःख का कारण पूछा ।जीवों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बताया -भगवन !आपने मनुष्य को बनाया था स्रष्टि की व्यवस्था के लिए ,पर यह हम सबको ही सताए और नष्ट किये डाल रहा है ।स्रष्टि का सौंदर्य नष्ट होता देखकर विधाता बहुत चिंतित हुए और बोले -बच्चे दुःख न करो ,मनुष्य ने अपनी सद्बुद्धि को दुर्बुद्धि में बदलकर आप लोगों का उतना अहित नहीं किया ,जितना अपना पतन किया है ।जाओ कुछ दिन और प्रतीक्षा करो ,एक दिन उसकी यह दुर्बुद्धि ही उसे पशुवत जीवन में ले जाएगी ,तब वह स्वयं अनुभव करेगा कि यदि -हम भी पशुओं की तरह ही जीवन जीते हैं ,तो मनुष्य शरीर पाने का क्या लाभ ?यह ज्ञान ही उसे पश्चाताप और सुधार की प्रेरणा देगा ,तभी सुख -शांति स्थापित होगी ।वह स्वयं ही गिरा है तथा उठेगा भी स्वयं ही ।

17 January 2013

यदि आप अपना उत्थान चाहते हो तो उसका प्रयत्न स्वयं करो ।दूसरा कोई भी आपकी दशा सुधार नहीं सकता ।यह लोक और परलोक किसी दूसरे की कृपा द्रष्टि से सफल नहीं हो सकता ।अपने पेट के पचाये बिना अन्न हजम नहीं हो सकता ,अपनी आँखों की सहायता के बिना दृश्य दिखाई नहीं पड़ सकते ,अपने मरे बिना स्वर्ग को देखा नहीं जा सकता ,इसी प्रकार अपने प्रयत्न बिना उन्नत अवस्था को भी प्राप्त नहीं किया जा सकता ।समर्थता को ओजस ,मनस्विता को तेजस ,और जीवट को वर्चस कहते हैं ।यही वे दिव्य सम्पदाएँ हैं जिनके बदले संसार के हाट -बाज़ार से कुछ भी ख़रीदा जा सकता है ।
अष्ट भुजा दुर्गा की आठ भुजाएं शक्ति के आठ साधन हैं -1.स्वास्थ्य ,2.विद्दा 3.धन 4.व्यवस्था 5.संगठन 6.यश 7.शौर्य 8.सत्य ।इन शक्तियों में से जिसके पास जितना भाग होगा वह उतना ही शक्तिवान समझा जायेगा ।प्रकृति का ,मनुष्यों का ,रोगों का ,शैतान का आक्रमण अपने ऊपर न हो इसको रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि हम अपने शारीरिक ,बौद्धिक ,आत्मिक बल को इतना बढ़ा लें कि उसे देखते ही आक्रमणकारी पश्त हो जाये ।सबलता एक मजबूत किला है जिसे देखकर शत्रुओं के मनसूबे धूल में मिल जाते हैं ।

16 January 2013

JEENO KI PATHSHALA

यूनान का एक वृद्ध दार्शनिक अपने मित्र से बोला -मैंने लोगों को सच्चाई और सदाचार की शिक्षा देने की योजना बनायी है ।विद्दालय के लिये स्थान चुन लिया है ,पर विद्दा -अध्ययन के लिये विद्दार्थी नहीं मिलते ।मित्र हँसते हुए बोले -तो आप कुछ भेड़ें खरीद लीजिये और अपना पाठ उन्हें ही पढ़ाया करें ।तुम्हारी इस योजना के लिये आदमी मिलने मुश्किल हैं ।हुआ भी ऐसा ही ,कुल दो युवक आये ।जिन्हें घर वाले आधा पागल समझते थे और मोहल्ले वाले सिरदर्द ।वृद्ध ने उन्हीं को पढ़ाना शुरु किया ।दूसरे लोग कहा करते -बुड्ढे ने मन बहलाने का अच्छा साधन ढूंढा ।किंतु यही दोनों इस बूढ़े विचारक से शिक्षा प्राप्त कर जब पहली बार घर लौटे तो उनके रहन -सहन ,बोलचाल ,अदब -व्यवहार ने लोगों का ह्रदय मोह लिया ।फिर तो जो विद्दार्थियों की संख्या बढ़नी शुरु हुई कि विद्दालय पूरा विश्व -विद्दालय बन गया ।पहले के दोनों छात्रों में एक यूनान का प्रधान सेनापति और दूसरा मुख्य सचिव नियुक्त हुआ ।यह वृद्ध ही सुविख्यात दार्शनिक जीनों और उसकी पाठशाला ने जीनों की पाठशाला के नाम से विश्व ख्याति अर्जित की ।

FOOLISH MONKEY

एक चालाक भालू था ।उसने एक बन्दर को अपना दोस्त बनाकर मतलब गाँठने का रास्ता निकाला ।भालू पानी में घुसकर मछली पकड़ता था ।इसमें उसे बहुत श्रम करना पड़ता था और थोड़ा लाभ हाथ आता ।नई तरकीब उसने यह निकाली कि बन्दर की पूंछ में आटा लिपटा देता ।गंध पाकर मछलियाँ वहां आतीं ।भालू पानी में ही छिपकर बैठा रहता ।मछली पास आते ही उन्हें पकड़ लेता ।जल्दी पेट भर लेता ।बदले में भालू बन्दर को बेर बीन कर दिया करता ।इस बात का पता एक मगर को लग गया ।वह दूर बैठा यह दृश्य देखा करता ।आटे की गंध उसे भी आकर्षित करती ।एक दिन मगर ने बन्दर को धर दबोचा और उसे हड़प लिया ।बदमाशी में साझीदार बनने का क्या नतीजा होता है यह बन्दर ने तब अनुभव किया जब वह मगर की दाढ़ों में फँस गया ।

15 January 2013

"संयमित जीवन बिताकर भी मैं रोगी हूँ ,महात्मन ,ऐसा क्यों ?"एक व्यक्ति ने कन्फ्यूशियस से प्रश्न किया ।कन्फ्यूशियस ने थोड़ा विचार किया और बोले -"भाई ,तुम शरीर से संयमित हो ,पर मन से नहीं ।अब जाओ ईर्ष्या करना बंद कर दो तो तुम्हें संयम का पूर्ण लाभ मिलेगा ।"

JEALOUS /POISON

समुद्र मंथन हुआ तो उसमे से अनेक रत्नों के साथ विष भी निकला ।उस हलाहल विष की कुछ बूंदे मिट्टी पर गिर पड़ीं ।संयोगवश वह मिट्टी वही थी जिसे लेकर ब्रह्माजी मनुष्यों की देह बनाया करते थे ।उन्होंने उन विष की बूंदों को हटाया नहीं और उस विषैली मिट्टी से ही मनुष्यों की देह बनाते रहे ।विष की बूंदें ईर्ष्या की अग्नि बनकर मनुष्यों को जलाने लगीं और तभी से मनुष्य दूसरों को बढ़ता देखकर प्रसन्न होने के स्थान पर अकारण जलने और अपनी विषपान जैसी हानि करता चला आ रहा है ।

14 January 2013

SUCCESS

नदी में बाढ़ आई ।लहरें तट की मर्यादा को तोड़ती हुईं चारों  ओर फैलने लगीं ।प्रवाह में भारी प्रचंडता थी ।तटवर्ती वृक्ष उसकी लपेट में आकर धराशायी होने लगे ।किनारे पर शमी का एक विशाल वृक्ष मुद्दतों से अकड़ा खड़ा था ।वह सोचता था -"मेरी जड़ें गहरी हैं ,मैं परिपक्व भी हूँ और सुद्रढ़ भी ,इन लहरों की क्यों परवाह करूं ?"उसका सोचना चल ही रहा था कि लहरों ने जड़ के नीचे की मिट्टी काटनी शुरु कर दी ।हर लहर के साथ मिट्टी खिसकने लगी ।मजबूत तने से प्रवाह टकराया ।वृक्ष की निश्चिन्तता काम न आई ।देखते -देखते वह उखड़ गया ।देखने वालों ने आश्चर्य से देखा कि नदी तट का पुरातन शमी वृक्ष लहरों पर उतरता  हुआ ,बहा चला जा रहा है ।पास ही बेंत का एक छोटा सा गुल्म खड़ा था ।उसने सोचा विपत्ति आने से पूर्व सुरक्षा का उपाय कर लेना चाहिये ।वह झुका और मिट्टी की सतह पर लेट गया ।गरजती हुई पानी की लहरें उसके ऊपर होकर गुजरती रहीं ।बाढ़ उतरी तो देखने वालों ने देखा कि बेंत का पौधा सुरक्षित है और खतरा टलते ही अपना मस्तक ऊँचा उठाने की तैयारी कर रहा है ।पूछने वालों ने पूछा -"विशाल शमी वृक्ष क्यों उखड़ गया और बेंत का छोटा पौधा बाढ़ से कैसे बचा रहा ?बताने वालों ने बताया -"अहंकारी ,अक्खड़ और अदूरदर्शी समय की गति को नहीं पहचानते और ढिठाई उन्हें ले बैठती है ।किन्तु जो नम्र हैं ,वे झुकते हैं ,टकराने से बचते हैं और अपनी सज्जनता का सुफल देर तक प्राप्त करते रहते हैं ।-

10 January 2013

मनुष्य के ह्रदय का द्वार खोलने वाली ,निम्नता से उच्चता की ओर ले जाने वाले गुणों का विकास करने वाली यदि कोई वस्तु है तो प्रसन्नता ही है ।प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाले व्यक्तियों का जीवन ज्योति पुंज बनकर दूसरों का मार्गदर्शन करने में सक्षम होता है ।प्रसन्नता ऐसा टॉनिक है जिसका नित्य पान करके व्यक्ति तन्दरुस्त हो जाता है ,मनुष्य के अन्दर के घाव ठीक हो जाते हैं और व्यक्ति के मन पर जमी विषाद की धूल झड़ जाती है ।दिल खोल कर हँसना सीखो ताकि बुढ़ापे की झुर्रियों में भी जवानी की झलक चमकती रहे

9 January 2013

REGULARITY

नियमितता ही जीवन है ।सूर्य एक नियमितता लिये हुए उदय एवम अस्त होता है ।पृथ्वी ,चन्द्रमा ,ग्रह ,तारे सभी निश्चित गति से सुसंचालित हैं ।कीड़े मकोड़े और पक्षियों में यह विशेषता पाई जाती है वे अपने भीतर की किसी अज्ञात घड़ी के मार्गदर्शन से अपनी गतिविधियाँ व्यवस्थित रखते हैं ।मुर्गा समय पर बांग देता है ,चमगादड़ रात को ही उड़ता है ।चींटियों की प्रणय केलि नियत निर्धारित मुहूर्त पर होती है ।वर्ष में एक दिन एक ही समय उनका नियत रहता है ।यदि हम इन छोटे प्राणियों से समय पालन की नियमितता सीख सकें तो जीवन को व्यवस्थित रखकर वांछित दिशा में प्रगति कर सकते हैं ।
तितली और मधुमक्खी दोनों एक फूल पर आकर बैठती ।दोनो झगड़ने लगीं कि फूल पर मेरा अधिकार है ।फैसला फूल ने सुनाया ।उसने मधुमक्खी के पक्ष में निर्णय दिया और कहा ,"यह बैठने का श्रम सार्थक करती है और दूसरों के लिये शहद निकालती है इसलिये इसी का अधिकार है ।

BEAUTY

आत्मा की प्रसन्नता में अक्षय सौन्दर्य निहित है ।भव्य विचारों से सुन्दर बनिये ।हम सबका मुख -मंडल आंतरिक सद्गुणों से आकर्षक बनता है ।यदि हमारे मन में प्रेम ,दया ,सज्जनता ,ईमानदारी आदि सद्गुण हैं तो इन्ही भावों की गुप्त तरंगे हमारे शरीर में सर्वत्र दौड़ जायेंगी ।आत्मा प्रसन्न हो जायेगी और मुख मुद्रा मोहक बन जायेगी ।अच्छे और बुरे विचारों की धारा मानसिक केन्द्र से चारों ओर बिखरकर खून के प्रवाह के साथ चमड़ी की सतह तक एक विद्दुत -धारा के समान आती है और वहां अपना प्रभाव छोड़ जाती है ।यदि कोई व्यक्ति श्रेष्ठ दैवी गुणों का निरंतर मानसिक अभ्यास कर सके ,तो वह कितना ही कुरूप हो ,मोहक -मादक आकर्षण -शक्ति से परिपूर्ण हो सकता है ।

6 January 2013

मनुष्य का मन ऐसा हो जैसा बाग का रखवाला माली होता है ।माली का काम केवल पौधा लगाना नहीं ,वरन`फूलों के पौधों के आस -पास उगने वाली अनावश्यक झाड़ -झंखाड़ को भी उखाड़ फेंकना है ।गुणों की पौध भी तभी अंकुरित एवम पल्लवित हो सकती है ,जब मानसिक विकारों को समय -समय पर मस्तिष्क से निकाला जाता रहे ।मनुष्य जीवन की पवित्रता के लिये शारीरिक स्वच्छता ही काफी नहीं आन्तरिक सफाई भी चाहिये ।

GREED

दर्जी बीमार पड़ा ।मरने की नौबत आ गई ।एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया है और कब्र में दफनाया जा रहा है ।बड़ा हैरान हुआ देखकर कि कब्र के चारों ओर रंग -बिरंगी झंडियाँ लगी हैं ।उसने पास खड़े फरिश्ते से पूछा कि ये झंडियाँ क्यों लगी हैं ?फरिश्ते ने कहा -"जिन जिन के कपड़े तुमने जीवन भर चुराये ,उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियाँ लगी हैं ।परमात्मा इनसे तुम्हारा हिसाब -किताब करेगा ।"झंडियाँ अनगिनत थीं ।घबराहट इतनी बड़ी कि दर्जी की ऑंखें खुल गईं ।कुछ दिन के बाद जब वह ठीक हुआ तो दुकान पर आया ।उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को हिदायत दी ।देखो मुझे अपने पर भरोसा नहीं है ।जब भी कीमती कपड़ा आता है ,मैं ललचा जाता हूँ ।इस पुरानी आदत को बुदापे में बदलना कठिन है ।तुम सब एक ख्याल रखना कि जब भी मुझे कपडा चुराते देखो तो इतना भर कह देना "उस्तादजी ,झण्डी "बस मैं सचेत हो जाऊंगा ।शिष्यों ने पूछा -"इसका मतलब ?उसने कहा -इस सबमें तुम मत उलझो मेरे लिये बस इतना इशारा ही काफी है ।एक सप्ताह तक तो शिष्य उस्ताद को झण्डी की याद दिलाकर रोके रहे ।किन्तु इसके बाद तो बड़ी मुसीबत हो गई ।किसी ग्राहक का विदेशी सूट सिलने आया ।उस्ताद ने पीठ फेरी और लगा चोरी करने ।शिष्यों ने टोका -उस्ताद जी झण्डी ।बार -बार सुनने पर उस्ताद चिल्लाया -बंद करो बकवास ।अपना काम करो ।तुम्हे कुछ पता भी है ,वहां इस रंग की झण्डी थी ही नहीं यदि इतनी झंडियां लगी हैं तो एक झण्डी और लग जायेगी ।_उथले नियम जीवन को दिशा नहीं दे पाते ।सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्य नहीं बन पातीं ।भय के कारण लोभ कितनी देर संभला रहेगा ।लोभ को ,स्वयं पर कड़ा अंकुश लगाकर नियंत्रित करना पड़ता है ।

4 January 2013

धर्म और ईश्वर के प्रति आस्था होने का तात्पर्य है -जीवन की गरिमा और उसकी श्रेष्ठता पर सुद्रढ़ विश्वास ।व्यक्तित्व को प्रखर ,प्रमाणिक और पवित्र बनाने की प्रक्रिया जीवन -साधना है ।

3 January 2013

AHANKAR

बोझ भरी गाड़ी को मजबूत बैल ढो रहे थे ।उसके नीचे एक कुत्ता भी चल रहा था ।उसे भ्रम हुआ कि गाड़ी उसी के बलबूते चल रही है ।अहंकार से वह चला जा रहा था ।गाड़ीवान ने कुत्ते की विचित्र भाव-मुद्रा देखी तो उसके भ्रम को ताड़ लिया ।कुत्ते की पीठ पर गाड़ीवान की एक चाबुक पड़ी ।वह तिलमिलाकर दूर जा खड़ा हुआ ।गाड़ी चलती रही ।भ्रम का नशा उतरा तो कुत्ते ने समझा कि उसका अहंकार अवास्तविक था ।

ILLUSION

मुर्गा बांग देता और सूरज उगता ।एक व्यक्ति को विश्वास हो गया कि सूरज उगता ही उसके मुर्गे की बांग से है ।एक दिन उस आदमी का गाँव वालों से झगड़ा हो गया ।उसने कहा -याद रखना यदि मैं अपने मुर्गे को लेकर गाँव से चला जाऊंगा ,तो सूरज न उगेगा तुम्हारे गाँव में ।बैठे रहना अंधेरे में ।वह मुर्गा लेकर दूसरे गाँव चला गया ।दूसरे दिन तड़के मुर्गे ने बांग दी और सूरज निकला इस गाँव में ।उस आदमी ने कहा -अब पीटते होंगे सिर उस गाँव के लोग ।मुझसे बिगाड़ कर व्यर्थ ही अंधकार की मुसीबत मोल ले ली ।उसे भ्रम था कि जहां उसका मुर्गा बांग देता है सूरज वहीँ निकलता है ।अच्छे -अच्छों को भ्रम हो जाता है कि उनके बिना काम नहीं चल सकता ।

2 January 2013

मंद वायू आंधी से बोली -"दीदी मैं जहाँ जाती हूँ ,लोग स्वागत करते हैं ।आपका आभास पाते ही डरते -छिपते हैं ।हमारा लक्ष्य तो लोकमंगल का है ,फिर क्यों आप इस रूप में सबको परेशान करती हैं ।आँधी बोली -"बहन तेरी उपयोगिता अपनी जगह है मेरी अपनी जगह ।स्थान -स्थान पर सड़न ,जहरीला धुआं ,गुबार आदि एकत्रित हो जाते हैं ।कहीं प्राण वायु की मात्रा कम हो जाती है ।इनका निवारण तुम्हारी गति से संभव नहीं है ,इसलिए कभी -कभी मैं सक्रिय हो जाती हूँ ।तुम लोगों को तसल्ली देती हो ,मैं घुटन पैदा करने वाले विकारों का निराकरण करती हूँ ।लोकमंगल के लिये दोनों आवश्यक हैं ।तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी ।
आइंस्टीन से किसी ने पूछा कि संसार में इतना दुःख और कलह क्यों है ,जबकि विज्ञान ने एक से बढकर एक सुख -साधन उत्पन्न किये हैं ।उत्तर देते हुए उन्होंने कहा -कमी बस एक ही रह गई कि अच्छे मनुष्य बनाने की कोई योजना नहीं बनी ।देश ,संप्रदाय के पक्षधर सभी दीखते हैं ,पर ऐसे लोग नहीं दिखाई पड़ते ,जो अच्छे इन्सान बनाने की योजनाएं बनाये ।

1 January 2013

THOUGHTS

सद्विचार ही संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं ।जीवन रूपी क्षेत्र में विचार एक बीज के समान है ,जैसा विचार होगा ,वैसा ही उसका फल होगा ।सैंकड़ों मार्गों में बहती हुईनदी में क्या जहाज चल सकता है ?इसी प्रकार सैंकड़ो वस्तुओं में बिखरी हुई मनोवृति कुछ करने में समर्थ नहीं हो सकती ।विचार और क्रिया के परस्पर विपरीत दिशा में चलते रहने से किसी कार्य में सिद्धि प्राप्त नहीं होती ।सफल व्यक्ति अपने विचार तथा बाह्य कर्म में पर्याप्त समन्वय करने की अपूर्व क्षमता रखतें हैं ,अपने विचारों को जीवन देते हैं ,उन्हें अपने जीवन में उतारते हैं ।अनुभव कर्म से प्राप्त होता है ।कर्म के साथ ही जीवन में सफलता जुड़ी होती है ।