17 April 2013

IDENTITY

एक संत कह रहे थे -"मनुष्यों में कुछ देवता पाये जाते हैं ,शेष तो नर -पिशाच ही होते हैं | "जिज्ञासु ने पूछा -"इन नर पिशाचों ,मनुष्यों तथा देवताओं की पहचान क्या है ?"
संत ने कहा -"देवता वे हैं ,जो दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिये स्वयं हानि उठाने के लिये तैयार रहते हैं |
मनुष्य वे हैं ,जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी |
नर -पिशाच वे हैं ,जो दूसरों की हानि ही सोचते हैं ,भले ही इस प्रयास में उन्हें स्वयं भी हानि उठानी पड़े | "



               एक महात्मा नाव पर जा रहे थे | उसी में कुछ दुष्ट भी बैठे थे | महात्मा का सिर घुटा हुआ देखकर दुष्टों को शरारत सूझी ,वे उनकी खोपड़ी पर चपत लगाने का मजा लूटने लगे | आकाश के देवता यह द्रश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए | उन्होंने महात्मा से पूछा -"कहो तो नाव उलट दें और इन सभी पापियों को नदी में डुबो दें | "महात्मा ने हँसते हुए कहा -"उलटना और डुबोना तो सभी जानते हैं | आप देवता हैं तो इन्हें उलटकर सीधा कीजिये और डुबाने की अपेक्षा इन्हें उबार दीजिये ,सुधार दीजिये | "देवताओं ने वैसा ही किया | 

GENEROUS

'आदमी चाहे तो थोड़े में गुजर कर सकता है | सुखी बन सकता है और महान कार्यों के लिये समय निकाल सकता है | '
                 संत रामदास अपने शिष्यों के साथ धर्म प्रचार के लिये जा रहे थे | रास्ते में निर्जन प्रदेश पड़ा ,दूर तक कोई गांव दिखाई नहीं देता था | भोजन की समस्या उत्पन्न हुई ,तो उन्होंने कहा -जो कुछ तुम्हारे पास है ,उसे इकट्ठा कर लो और मिल बांटकर खाओ | शिष्यों के पास कुल मिलाकर पांच रोटी और दो टुकड़े तरकारी थी | शिष्यों ने उसे भरपेट खाया और जो भूखे भिखारी उधर से निकले ,वे भी उसी से तृप्त हो गये | एक शिष्य ने पूछा ,गुरुवर !इतनी कम सामग्री में इतने लोगों की तृप्ति का रहस्य क्या है ?संत ने कहा -"हे शिष्यों !धर्मात्मा वह है जो स्वयं की नहीं ,सबकी बात सोचता है | अपनी बचत सबके काम आये ,इस विचार से ही तुम्हारी पांच रोटी अक्षय अन्नपूर्णा बन गईं | जो जोड़ते हैं वे ही भूखे रहेंगें ,जिनने देना सीख लिया उनके लिये तृप्ति के साधन आप ही आ जुटते हैं | "