लघु -कथा ---- एक मच्छर शहद की मक्खियों के छत्ते पर पहुंचा और बोला --- " वह बड़ा संगीतज्ञ है l मक्खियों के बच्चों को संगीत सिखाना चाहता है l बदले में थोडा सा शहद लिया करेगा l " रानी मक्खी तक समाचार पहुंचा तो उसने स्पष्ट इनकार कर दिया और कहा ---- " जिस प्रकार संगीत का ज्ञाता बनकर मच्छर हमारे दरवाजे भीख मांगने आया है , उसी प्रकार हमारे बच्चे भी परिश्रम परिश्रम छोड़कर भीख मांगने लगेंगे l मैं नहीं चाहती कि संस्कारों के स्थान पर सस्ते में कुछ पाने का लालच भरा शिक्षण इन्हें मिले l इन्हें अपने आप ही सब कुछ सीखने दो , तभी ये जीवन साधना में खरे उतरेंगे l
30 March 2023
29 March 2023
WISDOM ----
महाभारत का महायुद्ध ईर्ष्या, द्वेष , लालच , अहंकार , छल , कपट और षड्यंत्र का परिणाम था l ये बुराइयाँ उस समय राजपरिवारों तक सीमित थीं लेकिन अब और अधिक विशाल रूप में पूरे संसार में हैं l छोटी -बड़ी कोई संस्था , कोई परिवार , कोई देश इनसे बचा नहीं है ,, कुछ अपवाद हो सकते हैं l द्वापर युग में यह स्पष्ट था कि दुर्योधन अपने पिता के संरक्षण में मामा शकुनि के साथ मिलकर षड्यंत्र रचता था , जिसमे दु: शासन , कर्ण आदि सब साथ देते थे लेकिन इस युग में जब नैतिक और मानवीय मूल्य सब भूल चुके हैं तब षड्यंत्र के पीछे कौन है यह जानना कठिन है लेकिन महाभारत की समस्याएं कलियुग के दिशा -निर्देश हैं l षड्यंत्रकारी एक बार षड्यंत्र कर के चुपचाप नहीं बैठता , वह बार - बार षड्यंत्र रचता है और उसका पैटर्न वही बार -बार दोहराया जाता है जैसे जब कौरव , पांडव बालक थे तभी भीम को जहर दे कर नदी में डुबो दिया था , , फिर वारणावत , जुआ खेलने का आमंत्रण आदि एक के बाद एक षड्यंत्र उन्हें मिटाने और अपमानित कर मनोबल कम करने के लिए थे , और द्रोपदी के पांच पुत्रों के वध के साथ ऐसे षड्यंत्र का अंत हुआ l नकारात्मक और अंधकार की शक्तियां अनेक हैं और उनके अपने भिन्न -भिन्न तरीके हैं , जिन्हें वे बार - बार इस्तेमाल करते हैं , ऐसा कर के उन्हें आनंद मिलता है , इस तरह उनको पहचान कर जागरूक रहा जा सकता है l हम संसार को नहीं सुधार सकते लेकिन स्वयं जागरूक रहकर शांति और सुकून से जीवन जी सकते हैं l
28 March 2023
WISDOM ----
वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया है ---- ' भोग में रोग का भय , सत्ता में गिरने का भय , धन में चोरी का भय , सामाजिक स्थिति में शत्रुओं का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय और शरीर में मृत्यु का भय है l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l ' अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ , वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l पुराण की अनेक कथाएं भी इसी सत्य को प्रकट करती हैं कि सब कुछ अपने पास होने पर भी व्यक्ति भयभीत है क्योंकि 'सब कुछ ' के साथ अहंकार भी है , स्वार्थ भी है l कंस कितना शक्तिशाली था , लेकिन एक आकाशवाणी से डर गया l उसे आवाज सुनाई दी कि उसकी बहन देवकी का आठवें पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी l आठवें का इंतजार उसके लिए कठिन था , भय इतना था कि देवकी और उसके पति को कैद कर दिया और उसके छह पुत्र और एक पुत्री को पैदा होते ही मार दिया l जब उसे पता चला कि आठवां पुत्र गोकुल में है तो गोकुल में उस दिन पैदा हुए सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दे दिया l l इतना शक्तिशाली होते हुए बच्चों से डर गया l अत्याचारी , अन्यायी अपने अंदर से बहुत कमजोर होता है l ऋषियों का वचन है ---- ' जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता l ' ईश्वर से डरने वाला कभी कोई गलत कार्य नहीं करता क्योंकि उसे पता है कि ईश्वर देख रहा है , यह भाव उसे निडर बना देता है l
27 March 2023
WISDOM -----
' जब -जब होता नाश धर्म का और पाप बढ़ जाता है , तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शांति पाता है l ' जब धरती पर आसुरी तत्व प्रबल हो जाते हैं , युद्ध दंगे , धर्म ,के नाम पर झगडे , नारी का अपमान , शोषण , हिंसा , बच्चों के प्रति अपराध बढ़ जाते हैं अर्थात नैतिक और मानवीय मूल्य तेजी से गिरने लगते हैं तब किसी न किसी रूप में ईश्वर इस धरती पर आते हैं , अनीति और अत्याचार का अंत होता है और नए युग की शुरुआत होती है l पुराणों की अनेक कथाएं हैं जिनमे यह बताया गया है कि असुरों में बुराइयाँ तो अनेक होती हैं लेकिन ये बड़े तपस्वी होते हैं और अपनी तपस्या के बल पर भगवान से वरदान पाकर शक्तिशाली हो जाते हैं और फिर अपनी ताकत के बल पर स्वयं को ही भगवान समझने लगते हैं , अत्याचार और अनीति का मार्ग अपनाकर अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हैं l यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि जितने भी असुर हुए जैसे हिरन्यकश्यप , रावण , भस्मासुर आदि सभी असुरों ने शिवजी की तपस्या की और उनसे वरदान पाकर ही शक्तिशाली हुए l भगवान श्रीराम ने कभी किसी असुर को वरदान नहीं दिया , उन्होंने तो असुरता के अंत के लिए ही धरती पर जन्म लिया l पुराने समय में ऐसी कथा भी प्रचलित थी कि यदि हम मनुष्य रूप में ही भगवान श्रीराम के जीवन को देखें तो धरती वासियों ने उन्हें बहुत दुःख दिए , वनवास दिया , रावण से युद्ध में कोई मदद नहीं की , जब राजा बने तो सीताजी को जंगल भिजवा दिया , जब पुत्र मिले तब सीताजी धरती में समा गईं l ऐसे धरती के लोगों को वे क्यों वरदान देंगे ? भगवान राम ने तो स्वयं रावण के अंत के लिए 'शक्ति पूजा ' की थी l भगवान शिव हैं ' भोले बाबा ' वे देवता हों या दैत्य , जो भी उनकी तपस्या करता है उसे वरदान देते हैं , फिर भगवान विष्णु अपने विभिन्न अवतारों में उन्ही वरदान में कहाँ रास्ता है , उसे मालूम कर उस असुर का वध करते हैं l भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं , उनमें जो गुण थे उनमे से एक भी गुण इस धरती में कहीं देखने को नहीं मिलेगा l इसलिए भी वे प्रसन्न नहीं होते l यही कारण है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने सबको ' कर्मयोग ' का उपदेश दिया , स्वयं कर्मयोगी की तरह जीवन जिया और कलियुग के लिए भी ' कर्तव्य पालन ' को सबसे बड़ा तप कहा l ईश्वर का यही सन्देश है कि जो जहाँ है , जिस स्थिति में है अपना कर्तव्यपालन निष्पक्ष होकर पूरी ईमानदारी से करे तो ईश्वर स्वयं उसके ह्रदय में प्रकाशित होंगे l
26 March 2023
WISDOM -----
1. असुरों ने अपने बुद्धि कौशल से इक्कीस बार देवताओं को हराया और हर बार वे इन्द्रासन पर प्रतिष्ठित हुए l इतने पर भी देर तक उस स्थान पर स्थिर न रह सके और हर बार उन्हें स्वर्ग छोड़ने पर विवश होना पड़ा l देवर्षि नारद ने ब्रह्मा जी से पूछा ---- " तात ! विजयी होने पर भी असुर इन्द्रासन पर अपना अधिकार क्यों न रख सके ? " विधाता ने कहा ---- " वत्स ! बल द्वारा ऐश्वर्य को प्राप्त तो किया जा सकता है , पर उसका उपभोग केवल संयमी ही करते हैं l संयम की उपेक्षा करने वाले असुर जीतने पर भी इन्द्रासन का उपभोग कैसे कर सकतें हैं l "
2 . मंगोलिया में चांगशेन नाम का एक न्यायधीश रहता था , कभी किसी से रिश्वत नहीं लेता था l एक दिन उसके एक धनी मित्र ने उससे अपने पक्ष में कुछ काम कराने के लिए उसे अशर्फी की एक थैली भेंट की और कहा --- " हमारे आपके सिवाय इस बात को कोई तीसरा न जान सकेगा l इस थैली को रखिए और मेरा काम कर दीजिए l " चांगशेन ने कहा --- " मित्र , यह मत कहो कि कोई नहीं देखता l धरती देखती है , आकाश देखता है और सबका मालिक परमेश्वर देखता है l "
25 March 2023
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- "वास्तविकता बहुत देर तक छिपाए नहीं रखी जा सकती l व्यक्तित्व में इतने अधिक छिद्र होते हैं कि उनमें से होकर गंध दूसरों तक पहुँच ही जाती है l इसलिए कमजोरियों पर गंदगी का आवरण न डालकर उनके निष्कासन के , स्वच्छता के प्रयासों में निरत रहना चाहिए l ------- महात्मा बुद्ध आस्वान राज्य के किसी नगर से होकर गुजर रहे थे l वह स्थान उनके विरोधियों का गढ़ था l बुद्ध को अपमानित करने के लिए विरोधियों ने एक चाल चली l एक कुलता स्त्री के पेट में बहुत सा कपड़ा बांधकर भगवान बुद्ध के पास भेजा गया l वह वहां पहुंची और जोर -जोर से चिल्लाकर कहने लगी --- ' देखो यह पाप इस महात्मा का है l यहाँ ढोंग रचाए घूमता है और मुझे स्वीकार भी नहीं करता l " सभा में खलबली मच गई l उनके शिष्य आनंद बहुत चिंतित हो गए और बोले --- " भगवान ! अब क्या होगा ? " बुद्ध हँसे और बोले ---- " तुम चिंता मत करो l कपट देर तक नहीं चलता l चिरस्थायी फलने -फूलने की शक्ति केवल सत्य में है l " इस बीच उस स्त्री की करघनी गई और जो कपड़े ऊपर से बाँध रखे थे , वे जमीन पर खिसक पड़े l पोल खुल गई , वह स्त्री अपने कर्म पर बहुत लज्जित हुई l लोग उसे मारने दौड़े , पर भगवान बुद्ध ने यह कहकर उस स्त्री को सुरक्षित लौटा दिया --- " जिसकी आत्मा मर गई हो , वह मरों से भी बढ़कर है , उसे शारीरिक कष्ट देने से क्या लाभ ? "
24 March 2023
WISDOM ------
इस संसार में आदिकाल से ही देवासुर संग्राम रहा है l आकृति से तो सभी मनुष्य हैं लेकिन अपनी दुष्प्रवृतियों के कारण ही कोई असुर कहलाता है जैसे रावण -- इसके दोष , दुर्गुणों ने इसकी विद्वता को धूमिल कर दिया था इसलिए ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी राक्षसराज रावण कहलाया l प्रश्न यह है कि भगवान ने इतने अवतार लिए फिर भी अच्छाई और बुराई के बीच , देवताओं और असुरों के बीच यह संघर्ष समाप्त क्यों नहीं होता इसका कारण यही है कि संघर्ष या युद्ध करने वाला पुरुष समाज है और इसमें वीर , आन -बान और शान वाले बहुत कम हैं , लोग अपने सुख -वैभव के लिए अन्याय और अधर्म से समझौता कर लेंगे , सत्य का साथ नहीं देते हैं l उन पर स्वार्थ और लालच हावी है ल श्रीराम स्वयं भगवान थे , लेकिन धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लिया l जब उन पर संकट आया , रावण से युद्ध हुआ तब किसी भी राजा ने , उनके किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की l रावण जैसे शक्तिशाली से युद्ध उन्होंने रीछ और वानरों की मदद से लड़ा l सेतु बन गया था लेकिन किसी राजा ने उनके लिए सेना तो क्या रथ भी नहीं भिजवाया l जब भगवान के वनवास के बाद सुख के दिन आए तब ईर्ष्यालुओं ने उनका सीता जी से बिछोह करा दिया l चाहे भगवान राम हों या कृष्ण , इस धरती पर उन्हें चैन से जीने नहीं दिया l मनुष्य का अपने प्रति ऐसे व्यवहार पर भगवान को भी क्रोध आता है l इतने युग बीत गए लेकिन मनुष्य ने इतिहास से भी कुछ नहीं सीखा , अपनी चेतना का परिष्कार नहीं किया , अपनी दुष्प्रवृतियों को भी दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया इसलिए संसार में अशांति है , प्राकृतिक प्रकोप हैं l केवल आडम्बर करने , कर्मकांड करने से भगवान प्रसन्न नहीं होते , भगवान की कृपा पाने के लिए सन्मार्ग पर चलना जरुरी है l
WISDOM ---
लघु -कथा ----- बहुत पुरानी बात है l दो मित्र थे l एक का नाम था सत्य और दूसरे का नाम था असत्य l सत्य जहाँ भी जाता वहां उसका सम्मान होता लेकिन असत्य का सब तिरस्कार करते l इस कारण उसे सत्य से बहुत ईर्ष्या होती थी l ईर्ष्या इतनी प्रबल हो गई कि उसने एक चाल चली l उसने सत्य से कहा -- आज बहुत गर्मी है चलो नदी में स्नान कर आएं l सत्य जब स्नान कर रहा था , उस समय असत्य चुपचाप नदी से निकला और सत्य के श्वेत धवल वस्त्र पहनकर भाग गया l बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के वस्त्र पहनने पड़े l उस दिन से अब लोग असत्य को ही सत्य समझने लगे और हर जगह असत्य को पूजा जाने लगा l श्वेत वस्त्र धारण करने से असत्य के मन की मलिनता नहीं गई l अहंकार लोभ , बदले की भावना और प्रबल होती गई l त्रेतायुग , उसके बाद द्वापरयुग फिर कलियुग आ गया l हर युग में अत्याचारी , अन्यायी जो असत्य पर थे , अत्याचारी व अन्यायी थे वे राज करते रहे औए सत्य व न्याय पर चलने वाले वनों में भटके , अत्याचार व अन्याय को सहते रहे l जब अति हो गई तब सत्य और धर्म पर चलने वाले सब एकत्रित होकर विधाता के पास गए और कहा ---- प्रभु ! यह कैसा न्याय है ! हम आपकी शिक्षा के अनुसार सत्य के मार्ग पर हैं लेकिन छल , कपट और षड्यंत्र करने वाले असुर हम पर अत्याचार कर रहे हैं l विधाता ने कहा --- " अत्याचार व अन्याय का अंत करने के लिए ईश्वर ने समय -समय पर अवतार लिया है l कलियुग में असुरता के तार सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैले हुए हैं l चाहे वह परिवार हो , समाज , संस्थाएं , राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार में छल , कपट और षड्यंत्र अपने चरम पर है , मनुष्य का मनुष्य पर से विश्वास उठ गया है , बच्चे जो ईश्वर का रूप हैं वे भी सुरक्षित नहीं हैं l पृथ्वी , जल , वायु सभी कुछ प्रदूषित हो गया है l ' विधाता ने मनुष्यों को आश्वासन दिया कि ----" कलियुग में वह समय अति शीघ्र आने वाला है जब हर छोटे -बड़े षडयंत्रकारी का पर्दाफाश होगा , लोगों का नकाब उतरेगा , उनकी असलियत संसार के सामने आएगी , यह दैवी विधान है , इसे कोई नहीं रोक सकता l
22 March 2023
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " शक्ति और सामर्थ्य का प्रदर्शन , अहंकार और दंभ प्रदर्शन के लिए नहीं होना चाहिए , बल्कि इसका नियोजन मानवता के कल्याण और विकास के लिए करना चाहिए l सामर्थ्य के संग जब अहंकार जुड़ता है , तो विनाश होता है और सामर्थ्य के संग जब संवेदना जुड़ती है , तो विकास होता है l " एक कथा है ------ राजा सुरथ हिमवान नामक राज्य के राजा थे l उनका मन बड़ा कोमल था l एक बार उन्होंने एक अपराधी को किसी कारण दण्डित किया तो उसे दंड पाते देख राजा का मन बहुत व्याकुल हो गया और ये सोचकर कि राजा होने पर दंड तो देना ही पड़ेगा , वे राज्य छोड़कर तपस्या के लिए निकल पड़े l एक दिन वन में तपस्या करते हुए उन्होंने देखा कि एक बाज अपने पंजों में तोते के बच्चे को ले जा रहा है l करूणावश उन्होंने एक पत्थर बाज को मारा , जिससे तोते का बच्चा तो बच गया , परन्तु बाज के प्राण निकल गए l अपने हाथों द्वारा पुन: हुई हिंसा को देखकर उनका मन काँप उठा l उसी समय महामुनि मांडव्य वहां आ निकले l उन्होंने राजा की मनोव्यथा को समझ लिया , वे राजा से बोले --- " राजन ! यदि न्याय न किया जाये , कठोरता न बरती जाये तो दुराचारी लोग सज्जनों पर आतंक स्थापित करेंगे और अधर्म का बोलबाला होगा l इसलिए अपने मन में से ये भाव निकाल कर तुम निष्काम भाव से प्रजा की सेवा करो l " ऋषि ने पुन: कहा --- " यदि किसी के प्रति व्यक्तिगत वैरभाव से तुम उसे दंड दे रहे हो तो ये हिंसा है इसलिए ध्यान रखो कि व्यक्तिगत वैरभाव से किसी को दंड नहीं दो l राजा होने के नाते राज्य में सुशासन स्थापित करना तुम्हारा दायित्व है l " राजा को ऋषि का कथन समझ में आ गया और पुन: राज्य में आकर उसने निष्काम भाव से प्रजा की सेवा की l
20 March 2023
WISDOM ----
लघु -कथा ---- एक गाँव में एक सपेरा रहता था l एक बार उसका इकलौता बेटा बीमार हुआ तो वह डॉक्टर के यहाँ दिखाने ले गया l डॉक्टर साहब उस समय क्लब जा रहे थे l सपेरे के बहुत हाथ -पैर जोड़ने पर भी उन्होंने लड़के को नहीं देखा और वह मर गया l संयोग की बात तीसरे ही दिन डॉक्टर के लड़के को सांप ने काट लिया l सबने कहा --अब तो वह सपेरा ही इसकी जान बचा सकता है l सपेरे को बुलाया , तो उसकी पत्नी ने उसे रोका और कहा की उस डॉक्टर ने उसके पुत्र का इलाज नहीं किया था l सपेरे ने कहा --- " नहीं , हमें जानबूझकर कभी कोई गलत काम नहीं करना चाहिए l ईश्वर ने हमें जो योग्यता दी है उसका सदुपयोग करना , अपना कर्तव्य पालन करना ही हमारा धर्म है l " यह कहकर सपेरा चला गया l उसने लड़के का परिक्षण किया , अभी उसके प्राण बाकी थे l सपेरे ने अपने तरीके से , अपने इलाज से लड़के को स्वस्थ कर दिया l डॉक्टर ने उसे मुंह माँगा इनाम देना चाहा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी l तब उस सपेरे ने कहा --- " मैं धन लेकर क्या करूँगा l मेरा इनाम यही है कि अब आप किसी गरीब की उपेक्षा नहीं करना l " यह सुनकर डॉक्टर का ह्रदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने संकल्प लिया कि वे अब कभी चिकित्सक के धर्म को नहीं भूलेंगे और जो बहुत गरीब हैं उनका निशुल्क इलाज करेंगे l
19 March 2023
WISDOM -----
18 March 2023
WISDOM
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'आज के इस विज्ञान के युग में मनुष्य , ह्रदय की संवेदना एवं भक्तिभाव को भूलकर बुद्धिवादी और तर्कवादी बन गया है , स्वयं को विधाता समझ बैठा है l आज सबसे बड़ी आवश्यकता सद्बुद्धि की है l " दुर्बुद्धि के कारण ही मनुष्य अपने धन और ज्ञान का दुरूपयोग करता है l संसार में जितनी भी उथल -पुथल है , युद्ध , दंगे , हत्या , जाति और धर्म के नाम पर झगड़े l यह सब दुर्बुद्धि के कारण ही है l पुराण की एक कथा है ---- महर्षि व्यास जी एक बार अपने आश्रम में बहुत उदास और चिंतित बैठे थे l तभी नारद ही वहां आए और कहने लगे --- " महर्षि व्यास जी ! आपने अठारह पुराण , महाभारत जैसे ग्रन्थ लिखे , आप वेदज्ञ हैं फिर आपकी चिंता का कारण क्या है ? " यह सुनकर व्यास जी ने कहा ---- "हे देवर्षि ! मेरी चिंता का कारण यही है कि मैंने इतना सब कुछ लिखकर मानव को मानवता का सन्देश दिया , तो भी मनुष्य को ऐसी सद्बुद्धि नहीं मिली कि वह सुखमय जीवन जी सके l वह आज भी उसी तरह भटक रहा है और परोपकार करने के बजाय एक दूसरे को परेशान करने में लगा है l समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ ? " तब नारद जी ने कहा --- " हे ऋषि श्रेष्ठ ! आपने पुराणों में ज्ञान -विज्ञान की बातें तो लिखी हैं , परन्तु भक्तिरस से परिपूर्ण साहित्य नहीं लिखा , अत : भक्तिरस की रचना कीजिए , जिससे जनता का कल्याण होगा और आपको भी शांति मिलेगी l " तब उन्होंने भगवान के समस्त अवतारों की लीला का वर्णन करते हुए ' भागवत पुराण ' की रचना की , जिससे जनता और व्यास जी दोनों को ही आनंद की अनुभूति हुई l
16 March 2023
WISDOM ----
महाभारत में कर्ण का चरित्र हमें यह सिखाता है कि अनीति और अधर्म पर चलने वाले व्यक्ति का कभी कोई एहसान न ले l एहसान को वो एक अच्छा नाम देता है और बदले में पूरी ऊर्जा सोख लेता है l ऐसे एहसान चुकता करने की कोई सीमा भी नहीं है , चाहे प्राण ही क्यों न चले जाएँ l दुर्योधन अति का महत्वकांक्षी था , वह पांडवों को सुई की नोक बराबर भूमि भी नहीं देना चाहता l दुर्योधन को विश्वास था कि वह चार पांडवों को तो पराजित कर सकता है , लेकिन अर्जुन को पराजित करना असंभव है l उसे एक ऐसे वीर की तलाश थी जो अर्जुन को पराजित कर सके l कर्ण में उसे वह संभावना नजर आई इसलिए उसने कर्ण को अंग देश का राजा बनाकर उससे मित्रता की l भीष्म और द्रोणाचार्य से भी ज्यादा वह कर्ण पर विश्वास करता था l कर्ण को भी सूत पुत्र होने के कारण सब तरफ उपेक्षा व अपमान मिला था इसलिए उसने दुर्योधन द्वारा दिए गए सम्मान को तुरंत स्वीकार कर लिया और सारा जीवन दुर्योधन की हाँ में हाँ मिलकर इस एहसान का बदला चुकाता रहा l कर्ण को अपनी आंतरिक शक्ति का ज्ञान ही नहीं था कि वह सूर्य पुत्र है , कुंती का बेटा और पांडवों का बड़ा भाई है l जब युद्ध होना निश्चित हो गया तब महारानी कुंती और भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को यह सत्य बताया कि वह सूर्य पुत्र है , अनीति और अधर्म का साथ न दे l लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी l कर्ण ने मित्र धर्म को निभाने के लिए अपने प्राण दे दिए l महर्षि व्यास दूरद्रष्टा थे , वे जानते थे कि कलियुग में अनीति , अधर्म अपने चरम पर होगा , चारों ओर छल , कपट और षड्यंत्र का बोलबाला होगा इसलिए कर्ण के चरित्र के माध्यम से उन्होंने संसार को शिक्षा दी कि कोई व्यक्ति हो या कोई देश हो उसे बहुत सोच -समझ कर ही किसी से मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिए l यह मित्रता चाहे पद का लालच हो , ऋण के रूप में हो या किसी भी सहायता के रूप में हो , यदि इसे देने वाला अत्याचारी है , षड्यंत्रकारी है तो वह गुलाम बनाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ेगा l कलियुग में नैतिकता की बहुत कमी है , मनुष्य संवेदनहीन है इसलिए ये महाकाव्य हमें जागरूक करते हैं , जीवन जीना सिखाते हैं l
13 March 2023
WISDOM ------
लघु -कथा ---- दो मित्र थे l साथ -साथ व्यापार करते थे l दोनों ने ही बहुत धन कमाया और दोनों में ही समाज सेवा की भावना प्रबल थी लेकिन दोनों का तरीका भिन्न था l पहला मित्र अन्न दान करता था , वस्त्र दान भी करता था और सोचता कि उसने बहुत पुण्य कर लिया लेकिन दूसरा मित्र केवल अपंग , वृद्ध , अपाहिजों और बहुत ही गरीब , असमर्थ लोगों को ही भोजन देता था l जो शरीर से काम करने योग्य उसके पास मदद को आते उन्हें वह अपने खर्च से कोई न कोई हुनर सिखवा देता या कोई भी ऐसी व्यवस्था करा देता जिससे वह धन कमा कर अपने और अपने परिवार की भोजन की व्यवस्था स्वयं कर सकें l अपने जीवन में उसने हजारों लोगों को स्वाभिमान से जीवन जीने का अवसर दिया l वह जिस रास्ते से निकलता लोग उसकी जय जयकार करते l यह देखकर पहले मित्र को बड़ी ईर्ष्या होती थी l एक पहुंचे हुए संत से उसने परामर्श किया तो उन्होंने कहा ----तुम्हारा वह मित्र लोगों का ह्रदय जीतने की कला जानता है , लोगों को जीवन जीना सिखाता है और तुम शरीर से काम करने योग्य लोगों को भी अपने दान से आलसी बना रहे हो l भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया है l आलसी को भगवान भी पसंद नहीं करते , लोगों को कर्मयोगी बनाओ l
WISDOM -----
अहंकार सारी अच्छाइयों के द्वार बंद कर देता है l अहंकार से ही काम , क्रोध , लोभ जैसे विकार उत्पन्न होते हैं l अहंकारी व्यक्ति संवेदनहीन और निष्ठुर होता है l संसार में जितने भी युद्ध हुए , बड़े पैमाने पर हत्याएं , मारकाट हुईं , अत्याचार , अन्याय किसी न किसी के अहंकार का ही परिणाम है l अहंकारी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है , किसी दूसरे की तरक्की उसे बर्दाश्त नहीं होती l ------ एक राजा था l उसे यह अहंकार हो गया कि वह ही जगत का पालक है l शास्त्रकारों ने व्यर्थ ही भगवान विष्णु को जगत का पालन करने वाला कहा है l उस राजा को इस बात का अभिमान था कि वही सब का पेट भर रहा है , यदि वो सब पर कृपा न करे तो लोग भूखे मर जाएँ l l एक संन्यासी को इस बात का पता चला तो वे उस राज्य में गए l राजा उनको भी अपने वैभव के बारे में बताने लगा और बोला --मैं ही सब का पालक हूँ l संत ने पूछा --- तेरे राज्य में कितने कुत्ते , कौए , कीड़े -मकोड़े हैं ? राजा चुप हो गया l संत ने कहा ---- जब तू यह नहीं जानता तो उनको भोजन कैसे भेजता होगा ? राजा ने लज्जित होकर कहा --- तो क्या भगवान कीड़े -मकोड़ों को भी भोजन देते हैं ? यदि ऐसा है तो मैं एक कीड़े को डिबिया में बंद कर के देखता हूँ l कल देखूंगा कि भगवान इसे कैसे भोजन देते हैं l दूसरे दिन राजा ने संत के सामने डिबिया खोली , तो वह कीड़ा चावल का एक दाना बड़े प्रेम से खा रहा था l यह चावल डिबिया बंद करते समय राजा के मस्तक से गिर पड़ा था l अब उस अहंकारी ने माना कि भगवान ही सबका पालक है , हम तो सिर्फ माध्यम हैं l
12 March 2023
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' इस बाहरी संसार में विधाता ने मक्खी , मच्छर , सर्प , बिच्छू , खटमल आदि ऐसे जीवों को बनाया है , जो मनुष्यों को हमेशा हानि पहुंचाते हैं , इसलिए उनसे बचने के लिए प्रबंध करना पड़ता है l सर्प , बिच्छू की तरह डंक मारने वाले प्राणियों की इस संसार में कोई कमी नहीं है , पर उनसे सचेत रहकर जम कर मोर्चा लेना ही उचित है l नहीं तो हानि उठानी पड़ सकती है l" --- एक सेठ जी थे , उनके पास बहुत धन -संपदा थी l उनके कोई संतान नहीं थी l समस्या थी कि धन का क्या करें , और समाज में सम्मान पाने की भी बहुत चाहत थी l कुछ चापलूसों ने उन्हें सलाह दी कि ऐसे तो सम्मान पाना बहुत कठिन है , आप अपने आसपास सर्प , बिच्छू जैसे स्वाभाव के , लोगों को भयभीत करने वाले लोग रख लो , तो उनके भय से लोग आपको झुककर सलाम करेंगे , चरण स्पर्श करेंगे l सेठ ने सलाह मानकर वैसा ही किया , अब लोग उन्हें सलाम करते तो उनके अहं को बड़ी संतुष्टि मिलती l सेठजी तो बहुत प्रसन्न हो गए लेकिन समाज में अपराध बढ़ गए , लोगों का जीवन , सुख -शांति खतरे में पड़ गई l कारण सेठ द्वारा पाले गए गुंडे अपने स्वाभाव के अनुरूप लोगों को सताने लगे l कुछ हितैषियों ने सेठ को सलाह दी कि सेठ जी धन का सदुपयोग करो l बहुत गरीब बच्चे हैं देश में , उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य का अच्छा प्रबंध करो , युवा लोगों को रोजगार दो तब आपका सम्मान बढ़ेगा और आपके जाने के बाद भी कायम रहेगा l अब सेठजी को समझ में आया कि दुष्टों को पालकर सम्मान नहीं मिल सकता l सद्गुणों से और सत्कर्म से ही सच्चा सम्मान मिलता है l
11 March 2023
WISDOM ------
कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर है l महाभारत का कोई भी प्रसंग देख लें , वैसा ही सब कुछ इस धरती पर , इस युग में , और अधिक विस्तृत रूप में देखने को मिल जायेगा l इस महाकाव्य में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि सत्ता का सुख भोगने वालों में अन्याय और दुष्कृत्य के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस नहीं होता l ऐसे लोग न्याय का पक्ष नहीं ले पाते और न ही अपने आचरण से नई पीढ़ी को कोई दिशा दे पाते हैं l ------- द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को धर्नुविद्या , शस्त्र विद्या का ज्ञान कराया l द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में गरीबी के दिन देखे थे , उनका पुत्र अश्वत्थामा जब दूध के लिए रोता था तो उसकी माँ उसे आटा पानी में घोलकर पिलाती थीं l वे उस समय दुर्योधन की कृपा से राजसत्ता का सुख भोग रहे थे , और जानते थे कि दुर्योधन के विरोध से उन्हें महात्मा विदुर की भांति शाक -पात पर आना पड़ेगा l ये सुख उनसे छीन जायेंगे , पांडव बेचारे खुद दर -बदर भटक रहे थे , वे उन्हें क्या देते l दुर्योधन के एहसान तले रहने के कारण ही वे उसके द्वारा पांडवों के विरुद्ध रचे जाने वाले षड्यंत्रों का विरोध नहीं करते थे l यहाँ तक कि द्रोपदी के चीर -हरण के समय भी उनके मुँह पर ताला लगा हुआ था l यही स्थिति कुलगुरु कृपाचार्य की थी l वे भी अपनी स्वार्थ सिद्धि , धन के लोभ और सत्ता सुख भोगने में लगे थे l भीष्म पितामह अपनी प्रतिज्ञा से बंधे थे और दुर्योधन का ही अन्न खाते थे इसलिए दुर्योधन की गलतियों पर मौन रहे l महारथी कर्ण , न्याय -अन्याय को समझता था लेकिन जब सूत -पुत्र होने के कारण संसार ने उसे अपमानित किया तब दुर्योधन ने उसे गले लगाकर , उसका तिलक कर उसे अंग देश का राजा बनाया था , अत: कर्ण मित्र धर्म निभा रहा था l कारण चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन यह सत्य है कि जिसने भी अत्याचारी , अन्यायी का समर्थन किया उन सबका अंत हुआ l दुर्योधन ने जीवन भर षड्यंत्र रचे , वह अधर्म और अन्याय पर था इसलिए पूरे कौरव वंश को ले डूबा l एक से बढ़कर एक वीर राजा महाराजा जो भी दुर्योधन के पक्ष में थे , सभी का युद्ध में अंत हुआ l ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है l स्वार्थ और लोभ से ऊपर उठकर सत्य और न्याय की राह पर चलें l
10 March 2023
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी जो नीच कर्म करते हैं , क्रोधी , ईर्ष्यालु और अहंकारी हैं तो ऐसे व्यक्ति को ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता l ईर्ष्या , अहंकार और क्रोध को छोड़कर कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है , भले ही वह किसी भी वर्ण में जन्म ले l ब्राह्मण को स्वयं अन्शासित रहकर सोच समझकर बोलना चाहिए तथा उसका जीवन अपरिग्रही , सौम्य , सेवा पारायण एवं सदाचारयुक्त होना चाहिए l रावण ब्राह्मण का वंशज था लेकिन अहंकार आदि दुर्गुणों के कारण राक्षस कहलाया l विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे l जब तक उनमे क्रोध रहा , वसिष्ठ ऋषि के प्रति ईर्ष्या तथा अहंकार रहा , उनकी तपस्या पूर्ण नहीं हुई , इन दुर्गुणों को छोड़कर ही वे ब्रह्मर्षि कहलाए l एक बार किसी शिष्य ने आचार्य जी से पूछा --- " गुरूजी , तपस्या बड़ी है या सेवा ? " उन्होंने कहा --- " वत्स ! ऋषि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की थी , किन्तु मेनका के आने पर वे तपस्या भंग कर बैठे और जब एक कन्या को जन्म देकर मेनका स्वर्ग वापस चली गई तो दुःखी और क्रोधित होकर वे कन्या को जंगल में पेड़ के नीचे रोता छोड़कर फिर तप करने चले गए , किन्तु कण्व ऋषि ने उस बालिका को उठाकर पाला , उसे पुत्रीवत स्नेह दिया l तो बताओ दोनों में से कौन श्रेष्ठ है ? शिष्य का समाधान हो गया l
9 March 2023
WISDOM -----
एक कथा है --- एक बार पार्वती जी लक्ष्मी जी के यहाँ गईं l उनके स्वर्ण महल , स्वर्ण सिंहासन तथा वैभव को देखकर शिवजी से कहने लगीं --- " मुझे भी सोने का महल चाहिए l " शिवजी अपरिग्रही हैं , श्मशान में रहकर भस्म लगाते हैं , उन्होंने पार्वती जी को बहुत समझाया लेकिन पार्वती जी नहीं मानीं तो उन्होंने विश्वकर्मा को बुलाकर महल बनाने की आज्ञा दी l महल बनकर तैयार हुआ तो गृह प्रवेश के लिए वेदपाठी ब्राह्मण की आवश्यकता हुई l रावण उनका प्रिय शिष्य था l उससे ही गृह प्रवेश कराया गया l दक्षिणा माँगने को कहा गया तो रावण ने कहा ---- ' मुझे तो आपका स्वर्ण का महल ही दक्षिणा में चाहिए l " औघड़दानी शिवजी ने वह सोने का महल ( लंकापुरी ) उसे दे दिया और स्वयं फिर कैलाश पर्वत पर चले गए l
8 March 2023
WISDOM ------
काल की महिमा ----- विद्वानों ने काल को दुरितक्रम कहा है l बड़े वेग से दौड़ने पर भी कोई काल को लाँघ नहीं सकता l हम सब काल के आधीन हैं ----इस सत्य को समझाने वाली पुराण की एक कथा है ---- भगवान वामन ने तीन पग में राजा बलि से पृथ्वी और स्वर्ग का राज्य छीनकर इंद्र को दे दिया l साम्राज्य पाकर इंद्र को अहंकार हो गया l उनके पास सब कुछ था , लेकिन मन से बलि के प्रति द्वेष न गया l कहीं न कहीं उनके मन में अपने सिंहासन को खोने का भय भी था l वे अपने वज्र के प्रहार से बलि का वध करना चाहते थे l उन्होंने ब्रह्मा जी से उनका ठिकाना जानना चाहा l ब्रह्मा जी ने कहा --- " तुम्हारा उदेश्य ठीक नहीं है l तुम उनका वध करने की कोशिश भी नहीं करना l राजा बलि भगवान नारायण के भक्त हैं और उन्हें उनका संरक्षण प्राप्त है l इस समय वे विभिन्न पशु रूप में वनों में भ्रमण कर रहे हैं l उनका अहित करने की चाह में तुम स्वयं का अहित कर लोगे l " लेकिन अहंकारी को किसी की सलाह समझ में नहीं आती l देवराज इंद्र ने अपने सम्पूर्ण वैभव को प्रदर्शित करने वाला वेश धारण किया और ऐरावत पर चढ़कर बलि की खोज में निकल पड़े l एक वन में एक गधे के लक्षणों को देखकर उन्होंने अनुमान लगा लिया कि यही राजा बलि है l इंद्र ने कहा --- " दानवराज ! आज ना तो तुम्हारे पास राज्य है , न ही ऐश्वर्य l क्या तुम्हे अपनी इस दुर्दशा पर दुःख नहीं होता l " इस पर बलि ने कहा --- " देवेन्द्र ! मुझे ज्ञात है कि तुम यहाँ पर मेरा उपहास करने आए हो क्योंकि तुम जीवन के रहस्य को नहीं जानते l जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं है l तुम जिस ऐश्वर्य , वैभव तथा राजलक्ष्मी का प्रदर्शन करने आए हो , वह अभी कल तक मेरे पास थी l देवता , पितर , गन्धर्व , मनुष्य , नाग , राक्षस सब मेरे आधीन थे l पर काल के प्रभाव से आज न तो मेरे पास कोई प्रभुता है और न कोई प्रभुत्व l संभव है यह ऐश्वर्य , वैभव कल तुम्हे छोड़कर कहीं और चला जाये l काल के इस रहस्य को जानकर , मैं तनिक सा भी दुःखी नहीं होता l " बलि कहते हैं --- " हे इंद्र ! तुम इस सत्य के साक्षी हो कि रणभूमि में मेरे एक ही घूँसे के प्रहार से तुम्हारा यह ऐरावत और स्वयं तुम भाग खड़े हुए थे l लेकिन यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं सहन करने का है l इस अवस्था में भी मैं बहुत निश्चिन्त हूँ और गधे के रूप में भी अध्यात्म में निरत हूँ l " राजा बलि के अपार धैर्य और सहनशीलता को देखकर इंद्र को अपनी कुटिलता पर पछतावा हुआ , वे बोले --- " दानवराज ! तुम्हारे वचनों ने मुझे जीवन का मर्म सिखाया , तुम्हारा जीवन जीवमात्र के लिए सीख है l
7 March 2023
WISDOM -----
प्रार्थना की शक्ति ----- डॉक्टर मार्क कैनन कैंसर विशेषज्ञ थे l एक बार वे किसी स्वास्थ्य सम्मलेन में भाग लेने जा रहे थे , किन्तु उड़ान के कुछ समय पहले ही विमान में तकनीकी खराबी आ गई l दूसरा विमान कई घंटे लेट था l इसलिए उन्होंने एक टैक्सी किराये पर ली l टैक्सी तो मिली , लेकिन बिना ड्राइवर के l अत: उन्होंने स्वयं ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया l यात्रा के दौरान ही तेज आँधी -तूफान शुरू हो गया और भटकते हुए वे एक पुराने से मकान में जा पहुंचे l वहां उपस्थित गृह स्वामिनी को उन्होंने अपनी स्थिति बताई तो वह उन्हें भीतर ले गई और आतिथ्य स्वरुप उसने उन्हें कुछ खाने को भी दिया l उस स्त्री द्वारा भोजन से पूर्व प्रार्थना करने के आग्रह पर वे बोले --- " मैं इस पर विश्वास नहीं करता " उस स्त्री की भाव भरी प्रार्थना को देखकर डॉक्टर ने उससे पूछा --- " क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थना सुनेंगे ? " उस स्त्री ने उदास मुस्कराहट के साथ कहा --- " डॉक्टर साहब , यह मेरा बेटा है l इसे कैंसर है और जिसका इलाज मार्क कैनन नाम के डॉक्टर ही कर सकते हैं , लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं उनके पास जा सकूँ l मात्र विश्वास है कि भगवान कोई रास्ता अवश्य ही निकाल देंगे l " डॉक्टर उस स्त्री द्वारा की गई सच्ची प्रार्थना और घटित हुए उस संयोग को देखकर अवाक् रह गए और उन्होंने उस बच्चे का इलाज मुफ्त में कर दिया l इस घटना ने स्वयं उनके जीवन को भी रूपांतरित कर दिया l
6 March 2023
WISDOM -----
' काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता l निज कृत करम भोग सबु भ्राता l l हम जो आज हैं , वह हमारे अतीत में किए गए कर्मों का ही परिणाम है और भविष्य में हम जो भी होंगे , जिस स्थिति में होंगे , वह हमारे वर्तमान में किए गए , कर्मों का ही परिणाम होगा l महाभारत का प्रसंग है ---- जब भगवान श्री कृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए और वहां दुर्योधन को समझाने लगे l तब दुर्योधन समझने के बजाय उन्हें बंदी बनाने चला , तब भगवान ने उस सभा में अपना विराट स्वरुप दिखाया l उस समय धृतराष्ट्र को अपने अंधेपन का बहुत दुःख हुआ l वे सोचने लगे कि यदि अंधे न होते तो इस विराट स्वरुप के दर्शन कर पाते l उन्होंने अपना यह दुःख भगवान को बताते हुए पूछा --- " हे माधव ! मैं केवल यह जानना चाहता हूँ कि मेरे किस संस्कार व कर्म के अशुभ प्रभाव ने मुझे इस अंधेपन का दंड दिया ? " धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण वहीँ उसी सभा में ध्यानस्थ हो गए l फिर उन्होंने कहा --- " धृतराष्ट्र ! मैं आपके पिछले सात जन्मों को देख रहा हूँ , इनमे से किसी जन्म में ऐसा कोई कर्म नहीं है , जिसके कारण आपको अँधा होना पड़े l " इस पर धृतराष्ट्र ने कहा --- " तब क्या प्रकृति ने मेरे साथ अन्याय किया है ? " इस पर श्रीकृष्ण बोले --- " प्रकृति कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करती है l राजन ! आप थोड़ा ठहरें l " भगवान ने उनके और पूर्व जन्मों को ध्यान में देखा , फिर कहा ---- " हे महाराज ! आपके वर्तमान जीवन से पहले का 108 वां जन्म देख रहा हूँ l इसमें मैं देख रहा हूँ कि एक किशोर बालक एक पेड़ के घोंसलों से चिड़िया के बच्चों की आँखों को कांटे चुभोकर फोड़ रहा है l यह किशोर स्वयं आप हैं l पिछले जन्मों में शुभ कर्मों के कारण आपका यह संस्कार उभर नहीं सका l इस जन्म में आपका यह संस्कार उभरा और उससे जुड़ा कर्मफल भी उभरा , जिसके परिणाम स्वरुप आपको अंधे के रूप में जन्म लेना पड़ा l "