31 January 2023

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " अहंकार  विवेक  का  हरण  कर  लेता  है  l  इसके  चलते  सही  सोच -समझ  विकसित  नहीं  हो  पाती  l  अहंकार  के  रोग  की  ख़ास  बात  यह  है  कि  यदि  व्यक्ति  सफल  होता  है   तो  उसका  अहंकार  भी  उसी  अनुपात  में  बढ़ता  जाता  है   और  वह  एक  विशाल  चट्टान  की  भांति   जीवन  के   सत्पथ  या  आध्यात्मिक  पथ  को  रोक  लेता  है  l  इसके  विपरीत  यदि  व्यक्ति  असफल  हुआ  तो  उसका  अहंकार   एक  घाव  की  भांति  रिसने  व  दुःखने  लगता  है   और  धीरे -धीरे  मन  में  हीनता  की   ग्रंथि  बन  जाती  है   l  सदविवेक - सद्ज्ञान  ही   इस  अहंकार  के  रोग  की   औषधि  व  उपचार  है  l    एक  कथा  है ------ नदी  तट  पर  खड़े  हुए  शमी  के  वृक्ष  ने     बड़े  जोर  से   अट्टाहास  किया   और  पास  ही  पानी  में खड़े   बेंत  से  कहा  --- " क्या  छोटी -छोटी  लहरों  के  थपेड़े  लगते  ही  झुक  जाता  है  l मुझे  देख  किस  शान  से  सिर  ऊँचा  किए  खड़ा  हूँ l "  इस  प्रकार  वह  वृक्ष  जब -तब  बेंत  का  उपहास  उड़ाया  करता  था   l  बेंत  बेचारा  इतना  ही  कह  देता  था  --- " वृक्ष राज  मैं  तो  विनम्रता  में  विश्वास  करता  हूँ  , अभिमान  में  नहीं  l  "  शमी  वृक्ष  उसकी  बात  सुनकर  बड़ी  देर  तक  हँसता  रहा  l    एक  दिन  नदी  में  भीषण  बाढ़  आई  l  लोगों  ने  देखा  कि   शमी  का  अभिमानी  वृक्ष  जड़  से  उखड़  कर   तूफान  में  बह  गया  ,  किन्तु  जो  बेंत  प्रवाह  से  लचक कर  जमीन  में  झुक  गया  था  ,  वह  बाढ़  उतर  जाने  पर   फिर  सीधा  खड़ा  हो  गया  l  बेंत  में  अहंकार  नहीं  था , वह  शमी  वृक्ष  का  अंत  देखकर  हँसा  नहीं  ,  बल्कि  ईश्वर  को  धन्यवाद  दिया    कि  उसने  उसे   ऐंठ  से  अकड़ा  हुआ   अभिमानी  न  बनाकर  नतमस्तक  विनम्र  बनाया  l   

30 January 2023

WISDOM

   लघु -कथा ----  1.  एक  संत  छोटे  से  गुरुकुल  का  सञ्चालन  करते  थे  l  एक   दिन  वे  पास  के  रास्ते  से  एक  राहगीर  को  पकड़  लाये   और  शिष्यों  के  सामने  उससे  प्रश्न  किया  कि  यदि  तुम्हे  सोने  की  अशर्फी  से  भरी  थैली  मिल  जाये  तो  तुम  क्या  करोगे  ?   वह   आदमी  बोला --- " तत्क्षण  उसके  मालिक  का  पता  लगाकर  उसको  वापस  कर  दूंगा  , अन्यथा  राजकोष  में  जमा  करा  दूंगा  l  "  संत  ने  राहगीर  को  विदा  किया  और  शिष्यों  से  कहा --- " ये  आदमी  मूर्ख  है  l "  शिष्य  बड़े  हैरान  हुए   कि  संत  ये  क्या  कह  रहे  हैं      l  संत  ने  फिर  दूसरे  राहगीर  को  बुलाकर  वही  प्रश्न  दोहराया  l  दूसरे  राहगीर  ने  उत्तर  दिया  -- " मेरे  पास  इतना  समय  नहीं  है  कि  मैं   मुद्रा  लौटाने  के  लिए  मालिक  को  खोजता   फिरूं  , मूर्ख  नहीं  हूँ  l  "  जब  वह  चला  गया  तो  संत  ने  कहा  --- यह  व्यक्ति  शैतान  है  l  शिष्य  बड़े  हैरान  हुए  कि  आखिर  संत  क्या  चाहते  हैं  l  अबकी  बार  संत  तीसरे  राहगीर  को  लाए   और  उससे  वही प्रश्न   पूछा  l  उस  राहगीर  ने  बड़ी  सज्जनता  से  उत्तर  दिया  --- " महाराज  ! अभी  तो  कुछ  कहना  मुश्किल   है  l  इस  मन  का  क्या  भरोसा ,  कब  धोखा  दे  जाए  l  यदि  परमात्मा  की  कृपा  रही   और  सद्बुद्धि  बनी  रही   तो  लौटा  दूंगा  l "  संत  ने  कहा  --ये  आदमी   सच्चा  है  l  इसने  अपनी  डोर  परमात्मा  को  सौंप  दी  ,  ऐसे  व्यक्ति  अपने  जीवन  में  कभी   असफल  नहीं  होते  l  "