2 January 2020

WISDOM ----- भक्ति और शौर्य के अमर साधक ---- गुरु गोविन्द सिंह

  गुरु  गोविन्द सिंह   ने  जन  - शक्ति  को  जाग्रत  कर   एक  विशाल  संगठन  खड़ा  किया , उनका  कहना  था  कि   यदि  अपने  उद्देश्य  के  प्रति   हम  सब  एक  निष्ठावान  रहे  तो  निश्चय  ही   आततायियों  को  परास्त  कर  उन्हें  रास्ते  पर  आने  के  लिए  विवश  कर  सकेंगे  l
        संगठन  का  सूत्रपात  करने  के  बाद  उनका  मानसिक  तथा  बौद्धिक  विकास  करने  के  लिए  प्रचार  कार्य  शुरू  किया  l   उसके  लिए  उन्होंने   सैकड़ों  विद्वानों   तथा  शिक्षकों  को  नियुक्त  किया  l  उन्होंने  स्वयं  हिंदी , संस्कृत , फारसी  आदि  अनेक  भाषाएँ  पढ़ीं  और  जनता  को  भी  पढ़ने  के  लिए  प्रेरित  किया   l  उन्होंने  सैकड़ों  अनुयायियों  को   विद्दा - अध्ययन  के  लिए   काशी    भेजा  l  जो  वहां  से  विद्वान्  बन  कर  आये  , वे  जनता  में  शिक्षण  का  कार्य  करने  लगे  l   इसके  अतिरिक्त  उन्होंने   जगह - जगह  रामायण , महाभारत  तथा  भागवत   की  कथाएं  बिठाईं  और  निरंतर  उनका  वाचन   कराया  l  प्रशिक्षित  पंडित  जनता  को   भगवान   राम ,   कृष्ण  तथा  अन्य  महापुरुषों  की   चरित्र  व्याख्या  करते  हुए  जनता  को  वैसा  बनने  की  प्रेरणा  देते   l
उन्होंने  जनता  में  चन्द्रगुप्त , विक्रमादित्य , स्कंदगुप्त , समुद्रगुप्त  तथा   अशोक  जैसे  राजाओं  के  इतिहास  का  प्रचार  किया   और  हतोत्साह   जनता  को   अपने  अतीत  के  गौरव  का  भान  कराया    जिससे  उनका   हीनता  का  भाव  दूर  होने  लगा  , उनमे   नवीन   जाग्रति  आई  l 

WISDOM ----- विवेक दृष्टि ही वास्तविक दृष्टि है

  ' दूरदृष्टि  के  अभाव   में  व्यक्ति  का  जीवन  व्यर्थ  चला  जाता  है  l '  धृतराष्ट्र  अंधे  थे ,  वे  मोहान्ध  भी  थे   l   आजीवन  विभिन्न  उपायों  द्वारा   अपने  शरीर  तथा  पुत्रों  को  ही  संपन्न  बनाने  का  स्वप्न  संजोते  रहे  l   परिणाम  क्या  हुआ  ?  सर्वनाश  l
 पुराणों  में  भक्त  प्रह्लाद  की  कथा  है  -- प्रह्लाद  के  हृदय  में  विवेक  था , वह  वही  करना  चाहता  था   ' जो  न्याय  एवं   विवेकयुक्त  हो  l '    उसका  पिता  हिरण्यकश्यपु   चाहता  था   कि  उसका  पुत्र  उसी  के  कहने  में  चले  ,  पिता  होने  के  कारण  उसकी   अनुचित  और  अनीतियुक्त  बातों  को  भी  माने   और  जिस  कुमार्ग  पर  वह  चलाना  चाहता  है  , उसी  पर  चले  l
 प्रह्लाद  ने  औचित्य  को  पिता  से  भी  बढ़कर  माना   और  कहा ---- पितृभक्त  के  नाते  आपकी  सेवा  करना  और  सुख  देना  मेरा  कर्तव्य  है  ,  उसे  मैं  निष्ठापूर्वक  पालन  करूँगा  l   पर  अनीति  एवं   अविवेकयुक्त  बात  पिता  की  भी  स्वीकार  नहीं  की  जाएगी  l   पिता  के  कहने  पर  भी  सत्य  या  धर्म  को  नहीं  छोड़ा  जा  सकता  ,  इसलिए  मैं  आपकी  केवल  उचित  आज्ञाएं  ही   मानूंगा  l
  ऋषियों  का  वचन  है --- ' बालक  द्वारा  कही  गई  युक्तिसंगत  बात  को  मान  लेना  चाहिए  l '
किन्तु  हिरण्यकश्यपु  क्रुद्ध  हो  गया l  उसने  प्रह्लाद  को  विवश  करने  के  लिए  अनेक  कष्ट  दिए ,  पहाड़ों  पर  से  गिराया , बहन  होलिका  के  साथ   अग्नि  में   जलाने  की  चेष्टा  की,  पर  ईश्वर  ने  उसकी  रक्षा  की  l  अंत  में  एक  लोहे  के  खम्भे  से  उसे  बाँध  दिया  गया   और  मार  डालने  की   तैयारी    की  जाने  लगी  l   तब  प्रह्लाद  की  रक्षा  के  लिए  उस  खम्भे  से  भगवान    नृसिंह   प्रकट  हो  गए   और  हिरण्यकश्यपु  को  फाड़ - चीड़   के  रख  दिया  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  वाङ्मय  में  लिखते  हैं ---- ' मनुष्यों  में  दो  तरह  के  व्यक्ति  होते  हैं  -- एक  कायर , कृपण , दीन , डरपोक , अकर्मण्य ,   इन्हे श्वान - श्रृगाल   की  श्रेणी  में  गिना  जा  सकता  है  l  दूसरे  होते  हैं  न्याय  की  रक्षा  के  लिए , सत्य  की  रक्षा  के  लिए ,   इन्हे  कहते  हैं ---  नरसिंह  l   ऐसे  नरसिंहों  की  सदा  ही  जयकार  होती  है  l