3 December 2020

WISDOM ----- अहंकार विवेकरूपी आँखों पर पट्टी बाँध देता है

    पुराणों  में  कथा  है --- भक्त  प्रह्लाद  की  --- प्रह्लाद  पांच  वर्ष  के  थे  ,  हर  पल  नारायण - नारायण  का  जप  करते  थे  l   इससे  उनका  पिता  हिरण्यकशिपु  बहुत  क्रोधित  होता  था   l   वह  चाहता  था  की  प्रह्लाद   भगवान  विष्णु  को  भूल  जाये   और  अपने  पिता  को  ही  परमात्मा  मान  कर  उनकी  पूजा  करे  l   परन्तु  प्रह्लाद  न  मानते  थे  और  न  डरते  थे  l   तब  हिरण्यकशिपु  के  कहने  से  असुरों  के  गुरु  शुक्राचार्य   जो  दैत्य गुरु  होने  के  साथ  महान  तांत्रिक  भी  थे  ,  प्रह्लाद  पर   तांत्रिक  क्रिया  की   l   इसके  पहले  वे  उन  पर  मारण   क्रिया  भी  कर  चुके  थे  ,  इससे  प्रह्लाद  को  तेज  बुखार  व  शरीर  में  पीड़ा  थी  l   तब  उनकी  माता  कयाधू   ने  देवर्षि  नारद  को  बुलाया   और  कहा  कि   इस  अबोध  बालक  पर  इतना  अत्याचार  क्यों  ?   तब  नारद जी  ने  कहा --- शुक्राचार्य  को  अपने  तंत्र  पर  बड़ा  गर्व  है  l   वे  इस  तंत्र  के  माध्यम  से  सब  कुछ  करने  का  दम्भ  भरते  हैं  l   वे  भूल  जाते  हैं  कि   परमात्मा  की  सामर्थ्य  सर्वोपरि  है  l   प्रह्लाद  की  परमात्मा  के  प्रति  अनन्य  निष्ठा   एवं   भक्ति  ही  उनका  सुरक्षा  कवच  है  l   शुक्राचार्य  का  बड़े  से  बड़ा  मारक  तंत्र   भी  उनको   डिगा  नहीं  सकेगा  l   दैत्य  कुल  में  जन्मे  प्रह्लाद  की  भगवान  ने   रक्षा  की    वे  भक्तराज  कहलाए  l 

WISDOM -----

   आतंकवादी  मानसिकता  कैसी  होती  है   इसे  एक  पौराणिक  आख्यान  द्वारा   समझा  जा  सकता  है -----  घटना  महाभारत  युद्ध  के  समय  की  है   l   द्रोणपुत्र  अश्वत्थामा  ने   अपने  ब्रह्मास्त्र  से   उत्तरा  के  गर्भस्थ  पुत्र  को  मार  डाला   l   इस  अमानवीय  कृत्य  से  सभी  चीत्कार   उठे  l   द्रोपदी  ने  इसका  बदला  लेने  के  लिए  अति  बलवान  भीम  से  निवेदन  किया   और  अश्वत्थामा  को  उचित  दंड  देने  को  कहा   ,  परन्तु  परम  नीतिज्ञ  भगवान  कृष्ण   ने   भीम  को  अश्वत्थामा  के  पास  जाने  से  रोका   और  कहा  कि   इस  समय  अश्वत्थामा  राक्षस  बन  गया  है  l   वह  अपनी  सभी  मर्यादाओं  और  नीतियों  को  भूलकर   दानव  की  साक्षात्  मूर्ति  बन  गया  है  l   वह  भीम  को  भी  मार  सकता  है   क्योंकि  इस  मन: स्थिति  में   उससे  दया   और  क्षमा  की  उम्मीद  नहीं  की  जा  सकती  है   l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ठीक  यही  मानसिकता  आतंकवादियों  की  होती  है  l   उनके  सामने  मानवता  की   करुण   चीत्कार  कोई  मायने  नहीं  रखती  l   आतंकवादी  राक्षस  एवं   दैत्य  के  समान   होते  हैं  ,  जिनके  अंदर  का  दिल   पथरा    गया  होता  है  l   इनकी  संवेदना  शुष्क  हो  जाती  है   और  इस  शुष्कता  में  क्रूरता  का  जन्म  होता  है  l  इनसे  किसी  प्रकार  के  रहम  और  दया  की  आशा  नहीं  की  जा   सकती है   l