स्वराज्य आंदोलन का जब शंख बजा तब लाल बहादुर शास्त्री जी भी गाँधी जी के संपर्क में आये l गाँधी जी शास्त्री जी की सिद्धांतनिष्ठा , आदर्शवादिता और लोकसेवा की भावना से बहुत प्रभावित हुए l एक दिन उन्होंने शास्त्री जी को बुलाकर कहा ---- " देखो लालबहादुर , तुम में लोकसेवा की उद्दाम भावना है l परन्तु इस मार्ग पर धन सम्पति एक ऐसी बाधा है जिसकी चमक से चौंधिया कर आदमी लोकसेवा की बात भूल जाता है और उसे परिग्रह ही सूझता है l इसलिए लोकसेवकों को अपरिग्रह का व्रत लेना चाहिए l " शास्त्री जी ने तत्काल प्रतिज्ञा की कि ---- " मैं गृह व सम्पति अर्जित नहीं करूँगा तथा ईश्वर पर दृढ़ आस्था रखते हुए जीवन बीमा भी नहीं कराऊंगा l " इस व्रत का शास्त्री जी ने जीवन भर पालन किया l एक बार जब शास्त्री जी इलाहबाद से बाहर न गए थे तब उनके लिए उनके एक मित्र ने कमिश्नर से विशेष छूट मांग ली और दो प्लाट खरीद लिए , एक उनके लिए व एक अपने लिए l शास्त्री जी जब वापस आये और उन्हें इस बात का पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपने प्लाट के साथ उन मित्र का प्लाट भी वापस करा कर ही चैन लिया l इस बात की ट्रस्टियों ने बहुत प्रशंसा की तो उन्होंने कहा ---- " मैंने कोई ऐसा आदर्श का काम नहीं किया l मैंने तो बापू को जो वचन दिया था उसे ही पूरा किया l
2 October 2021
WISDOM------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " विश्व -मानव को समृद्ध और सुखी बनाने के लिए नूतन आदर्श व सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वालों को काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता l भविष्य के ये दृष्टा अपने गहन चिंतन के परिणामस्वरूप ऐसे सिद्धांत प्रतिपादित कर जाते हैं जो उनके समय में सर्वथा काल्पनिक व अव्यवहारिक लगते हैं , किन्तु आगे जाकर वे ही व्यवस्था में आते हैं l " सद विचार ही संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं l सफल व्यक्ति अपने विचार तथा बाह्य कार्य में पर्याप्त समन्वय करने की अपूर्व क्षमता रखते हैं , अपने विचारों को जीवन देते हैं , उन्हें अपने जीवन में उतारते हैं l एक बार काका कालेलकर से किसी विदेशी ने पूछा --- " गांधीजी का देश के हर वर्ग पर इतना प्रभाव किन कारणों से पड़ा ? " काका ने कहा ---- " जो उनके मन में है , वही वाणी से कहते हैं और अपने क्रिया कलापों को सार्वजनिक हित में लगाते हैं l वे वही कहते हैं , जो करते हैं इसलिए वे विश्व भर में अनुकरणीय हैं l " कभी - कभी संसार में ऐसा वक्त आता है , लोगों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब वे अपनी सारी ऊर्जा श्रेष्ठता को मिटाने और सद विचारों को नष्ट करने में लगा देते हैं l स्वामी विवेकानंद ने विचारों की शक्ति का उल्लेख करते हुए लिखा है ---- " विचार जब किसी के व्यक्तित्व और आचरण में ठोस रूप लेते हैं , तब उनसे विराट शक्ति व महत परिणाम उत्पन्न होते हैं l कोई व्यक्ति भले ही किसी गुफा में जाकर विचार करे और विचार करते -करते ही वह मर जाये , तो भी वे विचार कुछ समय उपरांत गुफा की दीवारों का विच्छेद कर बाहर निकल पड़ेंगे और सर्वत्र फैल जायेंगे , तब सबको प्रभावित करेंगे l "