7 April 2022

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  यश - प्रतिष्ठा।,  मान - सम्मान ,  ऐश्वर्य - वैभव  उन्हें  अच्छे  लगते  हैं  , जिनका  अंतर   खोखला  एवं  शून्य  हो  l   समाज  में  इन  सब  के  माध्यम  से   ये  अपने  खोखलेपन  को  भरने  का   व्यर्थ  प्रयास   करने  में  संलग्न  रहते  हैं   l    अध्यात्म  जीवन  को  पवित्रता  से  भर  देता  है   l   यह  पवित्रता  यदि  व्यवहार  में   उतर  आए   तो  उसे  समाज  में  नैतिकता  का  नाम  दिया  जाता  है  ,  परन्तु   जब  यह  पवित्रता   , विचार , भाव  एवं  संस्कार  में  समाहित  हो  जाती  है  ,  तो  उसे  अध्यात्म  कहते   हैं  अर्थात  अध्यात्म   आंतरिक  पवित्रता  का   पर्याय  है  ,  जिसमें  विचारों , भावनाओं   एवं  संस्कारों  को  परिष्कृत  किया  जाता  है   l  "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---- ' वास्तविक  अध्यात्म  जब  आंतरिक  सफलताओं  का  मार्ग  प्रशस्त  करता  है   तो  ऐसे  आध्यात्मिक   व्यक्ति  की  प्रकृति   उदार , उदात्त   एवं  संवेदनशील  हो  जाती  है  l   आध्यात्मिक  व्यक्ति  बाहरी  संपन्नता   को  नहीं   बल्कि  आत्मिक  समृद्धि  को   वरीयता   एवं प्राथमिकता  प्रदान  करता  है  l  "           एक  बार  महात्मा  गांधी   से   उनके  साथ  कार्यरत  एक  स्वयंसेवक  ने  पूछा  ---- " आप  अंग्रेजों  से  इतनी  निर्भीकता  से  लोहा  ले  लेते  हैं  , क्या  आपको  कभी  भय  नहीं  लगता   ?  क्या  कभी  आपको  ऐसा  नहीं  लगता  कि   जिस  मार्ग  पर  आप  चल  रहे  हैं  वह  गलत  भी  हो  सकता  है   ? "  महात्मा  गांधी   बोले ---- " मित्र  !  मुझे  आनंदित  जीवन  का   रास्ता  मालूम  है   l   वह  तंग  जरूर  है  , परन्तु  सीधा  है  l   वह  तलवार  की  धार  के  समान   है  ,  परन्तु  उस  पर  चलने  में   मुझे  आनंद  आता  है   l   यदि  कभी  उस  पर  चलते  हुए   मैं  फिसल  भी  जाता  हूँ   तो  मैं  हृदय  से  भगवान  को  पुकारता  हूँ   l   भगवान  का  वचन  है  कल्याण - पथ  पर  चलने  वाले  की  कभी  दुर्गति  नहीं  होती  l   धर्म  का  पथ  लेने  वाले  की  रक्षा  स्वयं  भगवान  करते  हैं   l   भगवान  के  इस  आश्वासन  पर  मेरी  अटूट  श्रद्धा  है   l  "  स्वयंसेवक  ने  पुन:  पूछा ---- " यदि  इस  पथ  पर  चलते - चलते   आप  अपना  जीवन  गँवा  बैठे  तो  ? "  गाँधी जी  बोले  ---- "  मित्र  !  इस  संसार  में  अमरता  लिखाकर  तो  कोई  आया  नहीं  है  ,  पर  यदि  सन्मार्ग  पर  चलते  हुए    सदुद्देश्य  के  लिए   यह  शरीर  नष्ट  भी  हो  जाए  तो  उसकी  मुझे  परवाह  नहीं  है  l   जीवन  सही  कार्यों  में  गया   तो  मेरी  अंतरात्मा   इसी  से  संतुष्ट  होगी   l  "