18 October 2019

WISDOM -----

 अन्याय  चाहे  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  ,  उसका  प्रतिकार  करने  का  साहस  न  करना   अपने  मानवीय  कर्तव्यों  की  उपेक्षा  करना  है   l '   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय - २८  में  लिखा  है ---- " हम  निश्चित  रूप  से  इन  दिनों विषम  परिस्थितियों  के  बीच  रह  रहे  हैं  l  पौराणिक  विवेचन  के  अनुसार  इसे   असुरता  के  हाथों   देवत्व  का  पराभव   होना  कहा  जा  सकता  है   l  कभी  हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु,  वृत्तासुर ,  भस्मासुर ,  रावण  और  कंस  आदि  ने   जो  आतंक  उत्पन्न  किए  थे   वह  आज  की  परिस्थितियों  के  साथ  पूरी  तरह  मेल  खाता  है   l   पुनरावृति  स्पष्ट  परिलक्षित  होती     है  l  उन  दिनों  शासक  वर्ग  का   ही  आतंक  था  ,  पर  आज  तो   राजा - रंक,  धनी -  निर्धन ,  शिक्षित - अशिक्षित ,  वक्ता - श्रोता  सभी  एक  राह  पर  चल  रहे  हैं  l  छद्म  और  अनाचार  ही  सबका  इष्टदेव  बन  चला  है  l  नीति  और मर्यादा  का  पक्ष  दिनोंदिन  दुर्बल  होता  जा  रहा  है   l  उपाय  दो  ही  हैं  -- एक  यह  कि  शुतुरमुर्ग  की  तरह   आँखें  बंद  कर  के   भवितव्यता  के  सामने  सिर  झुका  दिया  जाये  l  जो  होना  है  उसे  होने  दिया  जाये  l  दूसरा  यह  कि  जो   सामर्थ्य  के  अंतर्गत  है   उसे  करने  में   कोई  कसर   न  उठा  रखी  जाये  l