स्वामी विवेकानंद शिकागो सर्वधर्म सम्मलेन में सम्मिलित होने पहुंचे l उन्हें डॉ बेरोज के घर जाना था , परन्तु जिस कागज पर पता लिखा था ,वह कहीं गुम हो गया l उन्होंने कई लोगों से डॉ बेरोज के घर का पता पूछा , परन्तु किसी ने उनकी सहायता नहीं की , वरन उनका उपहास ही किया l वे भूखे -प्यासे थे और सर्दी से ठिठुर रहे थे l लकड़ी के डिब्बे के भीतर बैठकर उन्होंने किसी तरह रात गुजारी l सुबह होने पर वे सोचने लगे -- परिस्थितियां कैसी भी हों , परमात्मा सदा हमारे साथ होते हैं और जिसे परमात्मा पर विश्वास हो , उसे कैसी चिंता l उन्हें पूर्ण विश्वास था कि जब मनुष्य किसी सत्कार्य के लिए अपने शरीर व मन को नियोजित कर देता है तो दैवीय चेतना उसकी सहायता के लिए तत्पर हो जाती है l हुआ भी वैसा ही l एक महिला उनके पास पहुंची और उनकी हर प्रकार से मदद के लिए आगे आई l स्वामी जी ने सम्मलेन में भाग लिया और उसके बाद जो घटा , उसका इतिहास साक्षी है l