31 May 2019

WISDOM ----- चरित्र ही समस्त सफलताओं और सदुद्देश्यों को प्राप्त करने का आधार है

 चाणक्य  ने  अपने  ग्रन्थों  में  स्थान - स्थान  पर  यह  विचार  व्यक्त  किया  है  कि  शासक  स्तर के  व्यक्ति  को   बुद्धि  और  शक्ति  दोनों  ही  विभूतियों  से संपन्न  होना  चाहिए ,  और  अपने  उत्तरदायित्व  को  समझने  तथा  उसे  पूरा  करने  की  क्षमता  चरित्र - साधना  से  ही  उत्पन्न  होती   है  ल  इसलिए  चाणक्य  ने  अपने  शिष्य   चन्द्रगुप्त  को  शस्त्र  और  शास्त्र  में  पारंगत   बनाने  के  साथ - साथ   उसके  चरित्र  गठन  की  ओर  भी  ध्यान  दिया   l
 चरित्र  के  अभाव  में  बड़े - बड़े   शक्तिशाली साम्राज्य  और  सम्राटों  का  नाश  और  पतन  हुआ  है   l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' महापुरुषों   के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग  '  में   लिखा  है --- ' सत्ता  का  नशा  संसार  की  सौ   मदिराओं  से  भी  अधिक  होता  है  l  उसकी  बेहोशी  सँभालने  में  एकमात्र  आध्यात्मिक  द्रष्टिकोण  ही  समर्थ  हो  सकता  है   l  अन्यथा  भौतिक  भोग  का  द्रष्टिकोण  रखने  वाले   असंख्यों  सत्ताधारी   संसार  में   पानी  के  बुलबुलों  की  तरह  उठते  और  मिटते  रहे  हैं   और  इसी  प्रकार  बनते  और  मिटते  रहेंगे   l   चरित्र  एवं  आध्यात्मिक  द्रष्टिकोण  के  अभाव  में   ही   कोई  भी  सत्ताधारी   फिर   चाहे   राजनीतिक  क्षेत्र  का  हो   अथवा  धार्मिक  क्षेत्र  का   मदांध  होकर   पशु  की   कोटि  से  भी  उतरकर   पिशाचता  की  कोटि  में  उतर  जाते  हैं  l  '  

30 May 2019

WISDOM ------ बड़े से बड़ा संकट आ जाने और कठिन से कठिन परिस्थिति खड़ी हो जाने पर भी आशा का साथ न छोड़ने वाले अंतत: विजयी होते हैं --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 ' आचार्य श्री  ने  लिखा  है --- ' यह  संसार  जिसमें  हम  रह  रहे  हैं   कष्ट  और  कठिनाइयों  का  घर  कहा  गया  है  l  यहाँ  प्रतिकूलतायें  और  विषमताएं  तो  आती  ही  रहती  हैं  l  केवल  निराश  बनकर  पड़े  रहने  से  आप  प्रगति  तो  नहीं  के  पाएंगे , साथ  ही  जिस   स्थिति   में   पड़े -पड़े  कष्ट  भोग  रहे  हैं  , वह  भी  दूर  न  होगी   l  '
 उन्होंने  लिखा  है --- प्रतिकूलताओं  से  टक्कर  लेते  हुए   आगे  बढ़ना  ही  जीवन  है  l  इसलिए  निराश  कभी  नहीं  होना  चाहिए  l  आशा  और  उत्साह  की   वृत्ति  मानव   शक्तियों  के  लिए  संजीवनी  के  समान  है  l  आशा  की  मशाल  हाथ  में  लेकर  आगे  बढ़िए  l  आप  देखेंगे  कि  आपका  आत्मविश्वास , आपकी  क्षमताएं  जो   निराशा  की  दशा  में  आपसे  दूर  हो   गईं  थीं  ,  दौड़कर  फिर  चली  आएँगी   l  आपके  जीवन  में  वांछित  परिवर्तन  तभी  आ  सकेगा  ,  जब  आप  निराशा  से  पल्लू  छुड़ाकर  आशावादी  बनेंगे   l  '

29 May 2019

WISDOM ------

 कहावत   है ---- इतने  मीठे  मत  बनो  कि  लोग  तुम्हे  चट  कर  जाएँ ,  इतने  कडुवे  भी  मत  बनो  कि  लोग  तुम्हे  थूकते  फिरे  l  "  यही  बात  क्रोध  पर  भी  लागू  होती  है   l  जिस  क्रोध  की  ज्वाला  से  हम   स्वयं  और  दूसरे  लोग   दग्ध  हों  ,   हमारा  व  दूसरों  का  अहित  हो   वह  त्याज्य  है   l
  लेकिन   वह  स्वस्थ  क्रोध  जिसे  ' मन्यु ' कहते  हैं  , वह  दवा  बनकर   हमारी  सामजिक  बुराइयों  की   चिकित्सा  करे  , दूषित  तत्वों  का  निवारण  करे  , बिगड़े  हुओं  को   सुधरने   के  लिए  मजबूर  करे  ,  भूल  के  लिए  दंड  दे  , ऐसा  स्वस्थ  क्रोध   आवश्यक  भी  है  और  अनिवार्य  भी   l    जिस  समाज  में  इसका  अभाव  हो  जाता  है   वह  कायर , नपुंसक  व  दीन - हीन  बन  जाता  है  l  उसकी  नैतिक  क्षमता  और  चरित्र  भी  गिर  जाता  है   l
 ऋषियों  की  हड्डियों  के  ढेर  को  देखकर  राम  का  आक्रोश , समुद्र  के  अहंकार  पर  लक्ष्मण  का  कोप ,  क्षत्रियों  के  अत्याचारों  पर  परशुराम  का  क्रोध ,  आततायी  कंस  और  कौरवों  के  प्रति  श्रीकृष्ण  का  विरोध  ,  इसी  मन्यु  शक्ति  का  परिचायक  है  l   अन्याय  और  अत्याचार  से  निपटने  के  लिए ,  दीन - हीन  गरीब  असहायों  के   अधिकारों  की  रक्षा  के  लिए   इसी  ' मन्यु  शक्ति '  की  आवश्यकता  है   l  

27 May 2019

WISDOM ---- नियति की चुनौती को स्वीकार करना और उससे दो - दो हाथ करना ही मानवी गौरव को स्थिर रख सकने वाला आचरण है ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य  श्री  ने  लिखा  है --- ' न  हमें  टूटना  चाहिए  और  न  हार  माननी  चाहिए   l  नियति  के  क्रम  से  हर   वस्तु  का ,  हर  व्यक्ति  का  अवसान  होता  है  l  '
 मनोरथ    और  प्रयास  भी  सर्वदा  सफल  कहाँ  होते  हैं   l  यह  सब  अपने  ढंग  से  चलता  रहे  ,
 पर  मनुष्य  भीतर  से  टूटने  न  पाए ,  इसी  में  उसका  गौरव  है   l   समुद्र  तट  पर  जमी  हुई  चट्टानें   चिर - अतीत  से  अपने  स्थान  पर   जमी  अड़ी  बैठी  हैं   l  हिलोरों  ने  अपना  टकराना  बंद  नहीं  किया    सो  ठीक  है  ,    पर  यह  भी  कहाँ  गलत  है  कि  चट्टानों   ने  हार नहीं  मानी   l   

25 May 2019

WISDOM ---- विश्वास एक आध्यात्मिक शक्ति है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य जी  ने  लिखा  है --- ' विश्वास  से  विश्वास  पैदा  होता  है , किन्तु  अविश्वास  से   अविश्वास  का  ही  वातावरण  फैलता  है  l '
 औरंगजेब  मुग़ल वंश    का  अंतिम  प्रभावशाली  सम्राट  हुआ  l वह  अपने  भाइयों  में  सबसे  छोटा   था , जो  कभी  शहंशाह  न  बनता  , किन्तु  बुद्धि  में  वह  सबसे  चतुर  था  l उसने  अपने  पिता  को  छल - बल  से  जेलखाने  में  डाला  और  एक - एक  कर  के  सब  भाइयों  की  हत्या  कर  दी   l  धोखा , झूठ , कपट , फरेब , हत्या  -- जो  कुछ  भी  संभव  था  , वह  उसने  काम  में  लिया  और  भारत  का  सम्राट  हुआ  और  दीर्घकाल  तक  राज्य  किया  l  वह  हिन्दू , मुसलमान  किसी  का  प्यारा  न  बन  सका  l  वह   भारत  का  सम्राट  था , संसार  के  समस्त  वैभव , सुख - सुविधाएँ  उसे  प्राप्त  थीं   लेकिन  वह  मानसिक  रूप  से  बेहद  अशान्त  था                             उसके  मन  में  सबके  प्रति  घोर  अविश्वास  था   l  वह  अनेकों  को  मारकर  या  सताकर  शहंशाह  बना  था   l  इसलिए  सभी  को  अपने  शत्रु  रूप  में  देखता  था  l  खाने - पीने  में  उसे  अपने  रसोइये  पे  विश्वास  न  था  l  उसे  सदा  डर  था  कि  कोई  उसे  जहर  न  दे  दे   l  उसे  अपने  सैनिकों , फौज  के  अफसर , कार्यकर्ताओं , पुत्र - पुत्रियों  किसी  पर  विश्वास  न  था   l  वह  सभी  को  धोखेबाज , मक्कार , बेईमान , झूठे , फरेबी   समझता  था   l  उसके  शासनकाल  में  अविश्वास   का  यह  विषैला  जहर  पुरे  भारत  में  विस्तृत  होकर  फैल  गया  l   वह  दमन  से  काम  लेता  था  , इसलिए   लोग  उससे  घ्रणा  करते    थे  l  उसे  यही  डर  रहता  था  कि   न  जाने  किस  ओर  से   उसके  प्रति  विद्वेष  और  कटुता  का  ज्वालामुखी  फूट  पड़े   l  यह  अविश्वास  ही  अंततः  विशाल  मुगल  साम्राज्य  के  पतन  का  कारण  बना  l
 अविश्वास  के  कारण    घर , परिवार , समाज , राष्ट्र  --- सम्पूर्ण  वातावरण  अस्वस्थ  विचारों  से  बोझिल  हो  जाता  है   और  हर  व्यक्ति  दूसरे  से  डरता  है   l  

24 May 2019

WISDOM ------

संसार  में  एक  भी  उदाहरण   ऐसा न मिलेगा  , जिसमे  परिश्रम  के  बिना  बड़ी  सफलताएँ  प्राप्त  की  गई  हों  l  जिन्हें  अपना  भविष्य  उज्ज्वल  बनाने  में  दिलचस्पी  हो , उन्हें  कठोर  परिश्रम  करने  की  आदत  डालनी  चाहिए   और  समय  के  एक - एक  क्षण  को  व्यस्त  रखने  के  लिए  तत्पर  रहना  चाहिए  l  यह  अभ्यास   क्रमशः  प्रगति  पथ  पर  अग्रसर  करता  चला  जायेगा   और  एक  दिन  उन्नति  के  चरम  शिखर   तक  जा  पहुँचने  की   संभावनाएं  मूर्तिमान  होकर   सामने  आ  उपस्थित  होंगी  l  आचार्यजी  का  मत  है  कि  सद्गुणों  की  पंक्ति  में  पहला  नंबर   श्रमशीलता  का  आता  है  l   

23 May 2019

WISDOM ------ प्रगति और उत्कर्ष की दिशा में किए गए कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाते ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य जी  ने  अखण्ड  ज्योति -- फरवरी  1980  में  लिखा  है ---- ' यदि  संसार  के  सफलतम  और  प्रतिभा संपन्न   व्यक्तियों  पर  प्रयोग  किया  जाये  तो  यह  दावे  के  साथ  कहा  जा  सकता  है  कि  उनकी  उपलब्धि   एक  जीवन  की  देन  नहीं  है  ,  वरन  उसके  पीछे   पिछले  कई  जन्मों  की  साधना - शक्ति  पूंजी  के  रूप  में  जुड़ी  हुई  है  l  उसी  पूंजी  से  सफलता  के  वर्तमान  शिखर  छुए  जा  सके  हैं  l   इसलिए  वर्तमान  जीवन  में  किए  गए  प्रयासों  की   असफलता  के  बारे  में   सोच - सोचकर   निराश  होने  का  कोई  कारण  नहीं  है  l  किसान  बीज  बोता   है   तो  बोते  समय  तो  यही  लगता  है  कि   बीज  व्यर्थ  मिटटी  में  जा  रहे  हैं  , पर  जब  वे  फसल  के  रूप  में  उग  आते  हैं  तो  प्रतीत  होगा  कि  बोये  गए  बीज  व्यर्थ  नहीं  गए  वरन  उनका  निश्चित  परिणाम  प्राप्त  हुआ  l  इसी  प्रकार   प्रगति  और  उत्कर्ष  की  दिशा  में   किये  गए   कोई  भी  प्रयास  व्यर्थ  नहीं  जाते  ,  उनका  परिणाम  आज  नहीं ,  तो  कभी  न  कभी  मिलता  अवश्य  है  l  इसलिए  गीताकार  ने  स्पष्ट  किया  है    जिसका  प्रारंभ  कर  दिया   जाता  है  , उसका  कभी  नाश  नहीं  होता   और  न  ही  परिणाम  में  कोई   उलट - फेर  होता  है  l  इसलिए  परिणम  न  होता  दिखाई  देने  पर  भी  प्रयत्नों  को  शिथिल   नहीं  करना  चाहिए  l  अनवरत  यत्नशील  रहना  चाहिए  कि  साधना  का  फल  निश्चित  रूप  से  मिलेगा   l  '  

21 May 2019

स्वदेश और समाज के उद्धारकर्ता ---- डॉ . सनयातसेन

 चीन  के  प्रसिद्ध  क्रांतिकारी  डॉ. सनयातसेन   में  नि:स्वार्थता  और  देशभक्ति  का  गुण  चरम  सीमा  पर  था  , इस  द्रष्टि  से  उनकी  तुलना  गांधीजी  से  की  जा  सकती  है  l    उन्हें  आरम्भ  से  एक  ही  धुन  थी  कि  किस  प्रकार  चीन  को  जागृत  और  स्वावलंबी  बनाकर  संसार  के   अन्य   प्रगतिशील  देशों  के  समकक्ष  खड़ा  किया  जाये  l  इसके  लिए  उन्होंने  अपनी  समस्त  सुख - सुविधाओं  का  ख्याल  छोड़  दिया  और  वर्षों  तक  एक  देश  से  दूसरे  देश  मारे - मारे  फिरते  रहे   नहीं  रखा   l  उन्होंने  तीस  वर्ष  तक देशोद्धार    के  लिए  घोर  परिश्र्ण   और  आत्मत्याग   किया  और  इस  कार्य   उन्होंने  कभी  कोई   स्वार्थभाव   नहीं  रखा  l  उन्होंने  अनेक  आंदोलनों  को  सफल  बनाया  , पर  स्वयं  पद  लेने   की  इच्छा  कभी  नहीं  की  l  जब  लोगों  ने  ही  कोई  दूसरा  सुयोग्य  व्यक्ति  न  देखकर   कार्यभार  उनके  कन्धों  पर  डाल  दिया  तभी उन्होंने  कोई  पद  स्वीकार  किया  l    अब  राजनीति  पदलोलुपता  और  धन  कमाने  का  जरिया  बन  गई  है  , ऐसे  में  डॉ. सनयातसेन     का    जीवन   प्रेरणादायक  है   l   

18 May 2019

WISDOM----- कर्म ही ईश्वर - उपासना है --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

अखण्ड  ज्योति - जुलाई  1969  में  आचार्य जी  ने  लिखा  है -- शुद्ध  ह्रदय  से   कीर्तन - भजन , प्रवचन  में  भाग  लेना  प्रभु  की  स्तुति  है , उससे  अपने  देह , मन  और  बुद्धि  के  वह  सूक्ष्म  संस्थान  जागृत  होते  हैं  , जो  मनुष्य  को  सफल , सद्गुणी  और  दूरदर्शी  बनाते  हैं  l
 लेकिन  केवल  प्रार्थना  ही  ईश्वर  का  स्तवन  नहीं  है  l  हम  कर्म  से भी  भगवान  की  उपासना  करते  हैं  l  कर्तव्य  भावना  से  किए  गए  कर्म  से   तथा  परोपकार  से  भगवान  उतना  ही प्रसन्न  होता  है  , जितना  कीर्तन  और  भजन  से  l  
 आचार्य  जी  ने  आगे  लिखा  है   कि  उपासना  का  अभाव  रहने  पर  भी   ईश्वर  के  अनुशासन  में  कर्म  करने  वाला   मनुष्य  उसे  बहुत  शीघ्र  आत्मसात  कर  लेता  है  l  लकड़ी  काटना , सड़क  के  पत्थर  तोड़ना,  मकान  की  सफाई , सजावट  और खलिहान  में  अन्न  निकालना, बर्तन  धोना , भोजन  पकाना   यह  भी  भगवान  की  ही  स्तुति  है  , यदि  हम  यह  सारे  कर्म   इस  आशय  से  करें  कि  उससे   विश्वात्मा  का  कल्याण  हो  l  नि:स्वार्थ  भाव  से  किए  गए  कर्म  से  बढ़कर  फलदायक  ईश्वर  की  भक्ति  और  उपासना  पद्धति  और  कोई  दूसरी  नहीं  हो  सकती  l  

17 May 2019

WISDOM ------ अनियंत्रित और अनुपयुक्त कामनाएं मानव -जीवन की सुख - शान्ति की सबसे बड़ी शत्रु हैं ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

आचार्य जी ने  लिखा   है  कि  कामनाएं  मनुष्य  का   स्वभाव  ही  नहीं  आवश्यकता  भी  है  किन्तु  प्रयत्नपूर्वक  इन्हें  नियंत्रित  और  मर्यादित   करना  भी  जरुरी  है  ,  तभी  यह  जीवन  में  अपनी  पूर्ति  के  साथ  सुख - शांति  का  अनुभव  दे  सकती  हैं   l   आचार्यश्री  का  मत  है  कि   अपनी  स्थिति  से  परे  की  कामनाएं  करना  ,  अपने  को  एक  बड़ा  दंड  देने  के  बराबर  है   क्योंकि  अपनी  शक्ति  से  बाहर  की   गई  कामनाएं  कभी  पूर्ण  नहीं  होती  है   और  अपूर्ण  कामनाएं  ह्रदय  में  कांटे  की  तरह   चुभा  करती   हैं   l 
  मनुष्य को  अपने  अनुरूप ., अपने  साधनों  और  शक्तियों   के  अनुसार  कामनाएं  करते  हुए     पूरा  पुरुषार्थ  उस  पर  लगा  देना   चाहिए   l  

16 May 2019

WISDOM ---- मन में आशा का अंकुर जमा लिया जाये तो असफलता भी पराजित नहीं कर पाती---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य  जी  का  मत  है  कि -- बहुधा  नए  कामों  का  आरम्भ  करते  समय   अशुभ  की  आशंका  से  मन  भयभीत  होने  लगता  है  ,  ऐसी  स्थिति  में  अशुभ  आशंका  को   अपने  मन  से  झटककर  विचार  करना  चाहिए  l   सफलता  और  असफलता  दोनों  ही  संभावनाएं  खुली  हुई  हैं   l  यदि  मन  में  आशा  का  अंकुर  जमा  लिया  जाये  तो  असफलता  हमें  पराजित  नहीं  करती  , उस  स्थिति  में  व्यक्ति  को  यह  संतोष  रहता  है  कि  असफलता  कोई  नया   अनुभव  दे  गई  l  
प्रत्येक  व्यक्ति  के  जीवन  में  अच्छी  और  बुरी  दोनों  तरह  की  परिस्थिति  आती  हैं , सुख -दुःख  के  क्षण  सभी  के  जीवन  में  आते  हैं   l  असफलता , कठिनाइयों  और  कष्टों  को  याद  रखने  की  अपेक्षा   सफलताओं  और  सुखद  क्षणों  को  याद  करना  आशा  और  उत्साहजनक  होता  है  l  ये  स्मृतियां  व्यक्ति  में  आत्मविश्वास   उत्पन्न करती  हैं   और  जो  व्यक्ति   अपने  आप  में  विश्वास  रखता  है   वह  बिना  किसी  भय  के  हर  कठिनाई  का  सामना  करने  के  लिए  प्रस्तुत  रहता  है  l  आत्मविश्वास  ही  ईश्वर  विश्वास  है  l  

15 May 2019

WISDOM ----- अनीति द्वारा पाई हुई सफलता कभी भी संतोषदायक नहीं होती ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य जी  का मत है  कि   अनीति  का  धन - धान्य   मनुष्य  के  मन , बुद्धि  तथा  आत्मा  का  पतन  कर  देता  है   जिससे  वह  इतना  निर्बल  और  कायर  हो  जाता  है   कि  जरा  सी  प्रतिकूलता   आने  पर  घबरा  उठता  है   और  शीघ्र  ही  जीवन  से  भागने  की  कोशिश  करता  है   l  सफलता  बहुत  बड़े  मूल्य  पर  मिलती  है   l  जो  व्यक्ति  थोड़े  प्रयत्न  से  ही  मनोवांछित  सफलता  पाना  चाहते  हैं   वे  संकीर्ण  विचार  वाले  होते  हैं   जो  किसी  चीज  का  पूरा  मूल्य  दिए  बिना  ही  उसे  हस्तगत  करना  चाहते  हैं   l   ऐसे  लोभी - लालची  व्यक्ति  का  चरित्र   किसी  समय  भी  गिर  सकता  है  l 
 यथार्थ  उन्नति  के  लिए  उचित  आदर्शों  के  साथ  अपना  कर्तव्य करते  रहना  चाहिए  ,  समय  आने  पर  सफलता  अपने  आप   उपलब्ध  हो  जाएगी  l  

WISDOM -----

आलसी और अकर्मण्य के लिए संकटों और अभावों से छुटकारे का कोई उपाय नहीं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- जो अपनी उपेक्षा करता है , उसे हर दिशा से उपेक्षा और तिरस्कार ही हाथ लगता है l दुर्बल शरीर को नई - नई किस्म की बीमारियाँ दबोचती हैं डरपोक को डराने के लिए जीवित ही नहीं मृतक भी भूत -प्रेत बनकर ढूंढते - खोजते आ पहुँचते हैं l आततायिओं को अपना शिकार पकड़ने के लिए कायरों की तलाश करनी पड़ती है l शंकाशील लोगों को बिल्ली भी रास्ता काटकर डरा देती है l अरबों - खरबों मील दूर रहने वाले ग्रह - नक्षत्र भी अपनी प्रकोप मुद्रा उन्ही को दिखाते हैं जिन्हें अकारण भयभीत होने में मजा आता है l आचार्यजी का मत है कि अपनी दुर्बलताओं को खोजें , उनसे घ्रणा करें और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए जुट जाएँ l

WISDOM-----

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अखंड ज्योति में लिखा है कि --- आलस्य और प्रमाद में पड़ा हुआ व्यक्ति यह देख ही नहीं पाता कि उसके सौभाग्य का सूर्य दरवाजे पर हर दिन आता है और कपाट बंद देखकर निराश वापिस लौट जाता है l आचार्य जी ने आगे लिखा है --- ईश्वर ने मनुष्य को एक साथ इकट्ठा जीवन न देकर उसे अलग - अलग क्षणों में टुकड़े -टुकड़े कर के दिया है l नया क्षण देने से पूर्व वह पुराना वापिस ले लेता है और देखता है कि उसका किस प्रकार उपयोग किया गया l इस कसौटी पर हमारी पात्रता को परखा जाता है l यदि उन क्षणों की उपेक्षा की , तिरस्कार किया तो वे दुखी और निराश होकर वापिस लौट जाते हैं किन्तु यदि उनका स्वागत किया जाये , सदुपयोग करें तो वे बहुमूल्य क्षण मूल्यवान संपदाओं का उपहार देकर ही जाते हैं l