28 June 2023

WISDOM -----

   लघु कथा ----  एक  गृहस्थ  को  सर्वोत्तम  सौन्दर्य  की  खोज  थी  l  सो  वो  एक  तपस्वी  के  पास  पहुंचे   और  अपनी  जिज्ञासा  प्रकट  की  l  तपस्वी  ने  कहा --- श्रद्धा  है  तो  पत्थर  में  भी  भगवान  हैं , मिटटी  के  ढेले  से  गणेश जी  बन  जाते  हैं  l   एक  भक्त  से  पूछा  , तो  उसने  कहा  --- प्रेम  ही  सुन्दर  है  साँवले  कृष्ण  गोपियों  के  प्राणप्रिय  थे  l  उसका  समाधान  नहीं  हुआ  l  वह  आगे  बढ़ा  तो  उसे  एक  सैनिक  मिला  , जो  युद्ध  भूमि  से  लौट  रहा  था  l  गृहस्थ  ने  उससे  पूछा  ---सच्चा  सौन्दर्य  कहाँ  है   ? "  सैनिक  का  उत्तर  था ----- ' शांति  में  l '  जितने  मुँह  उतनी  बातें  l  निराश  वह  अपने  घर  लौटा  l  दो  दिन  से  उसकी  प्रतीक्षा  में  सभी  व्याकुल  थे  l  उसे  देखकर  दोनों  छोटे  बच्चे  उछल -उछलकर  अपनी  ख़ुशी  प्रकट  कर  उससे  लिपट  गए  l  माँ  की  आँखें  इंतजार  में  रो  -रोकर  सूज  गईं  थीं  , उन्होंने  उसे  ह्रदय  से  लगा  लिया l  पत्नी  के  मुरझाये  चेहरे  पर  ख़ुशी  लौट  आई  l   गृहस्थ  की  सर्वोत्तम  सौन्दर्य  की  खोज  पूरी  हुई  l  वह  कहने  लगा --- मैं  कहाँ  भटक  रहा  था  l  श्रद्धा , प्रेम  और  शांति  --इन  तीनों  के  दर्शन  तो  घर  में  ही  हो  रहे  हैं  l  यही  सबसे  श्रेष्ठ  और   सर्वोत्तम  सौन्दर्य  है  l   

2 . लघु कथा ---  एक  देव मंदिर  का  पुजारी  भगवान  की  पूजा  तो  पूरे  विधि -विधान  से  करता  था  , किन्तु  सुबह -शाम  पूजा  करने  के  बाद   बचे  हुए  समय  में   वह  स्वार्थ  के  वशीभूत  होकर  ऐसे  कर्म  करता   जिससे  अन्य  प्राणी  कष्ट  पाते  l   और  इतना  कर्मकांड  करने  के  बाद  भी  उसके  जीवन  में  सुख -शांति  नहीं  थी  l  बहुत  दुःखी  होकर  एक  दिन  उसने  भगवान  की  प्रार्थना   की --- 'हे  प्रभु  !  बताइए , इतनी  पूजा -पाठ  करने  के  बाद  भी   क्यों  जीवन  में  दुःख  है , अशांति  है  ? ' उसके  ह्रदय  में  बैठे  भगवान  बोले , अंत:करण  से  आवाज  आई  ---' मूर्ख  !मेरी  पूजा  करने  के  बाद  भी  यदि  सेवा  की  इच्छा  न  हो  तो  ऐसी  पूजा  व्यर्थ  है  l  क्या  मैं  इन  पत्थर  की  मूर्तियों   में  ही  हूँ  ,  इन  जीते -जागते  प्राणियों  में  तुझे  मेरा  रूप  नहीं  दीखता   l  मेरी  पूजा  के  बाद  भी  सत्कर्म  करने  की  ,  सन्मार्ग  पर  चलने  की  और  श्रेष्ठ  विचारों   को  मन  में  रमने  की  प्रवृत्ति  नहीं  जागती   तो  ऐसी  पूजा  व्यर्थ  है  l '  अब  पुजारी  को  पूजा  का  सही  अर्थ  समझ  में  आया   और  उसने  पूजा  के  साथ  लोकसेवा  को  अपने  नित्य  कर्म  में  सम्मिलित  किया   l