21 June 2023

WISDOM ------

    ' कर्म  की  गति  बड़ी  गहन  है  l '----- पुराण  की  एक  कथा  है  --- एक  बार  नारद जी  अपने  एक  शिष्य  के  साथ  पृथ्वी  पर  भ्रमण  कर  रहे  थे  l  रास्ते  में  उन्हें  प्यास  लगी  तो  प्याऊ  पर  पानी  पीकर   एक  पेड़  की  छाया  में   सुस्ताने  लगे  l  तभी  उन्होंने  देखा  कि  एक  कसाई 30  बकरों  को  लेकर  जा  रहा  है  l  उनमे  से  एक  बकरा   झुण्ड  में  से  निकलकर      एक  सेठ  की    दुकान   में  रखे  बोरी  में  अनाज   को  खाने  लगा  l  सेठ  को  उस  पर  बहुत  क्रोध  आया  , उसने  छड़ी  से  उसे  खूब  मारा   और  कसाई  के  हवाले  कर  दिया  l  यह  सब  देख  नारद जी  को  हँसी  आ  गई  l   शिष्य  ने  उनसे  हँसने  का  कारण  पूछा   तो  नारद जी  ने  कहा ---- "    यह  बकरा    इसी  दुकान  का  मालिक  सेठ  मूलचंद  है  जो  अपने  कर्मों  के  कारण  बकरा  बना  l  अपने  मोह  और  आसक्ति  के  कारण  ही  यह  उस   दुकान    में  गया  और  अन्न  के   दाने   खाने  लगा  l  इस  दुकान  का  वर्तमान  सेठ  इसी  मूलचंद  का  बेटा  है  l  जिस  बेटे  के  लिए  उसने  इतना  कमाया  , मिलावट  की , बेईमानी  की  , वही  बेटा  आज  इसे  थोड़ा  सा  अन्न  भी  खाने  को  नहीं  दे  रहा l  इस  बकरे  ने  थोड़ा  सा  खा  भी  लिया  तो  इतनी  पिटाई  की  और  कसाई  को  भी  सौंप  दिया  l  कर्म  की  यह  गति  और  मनुष्य  का  मोह  देखकर  मुझे  हँसी  आ  रही  है  l  "    जो  समझदार  हैं  , कर्म  की  गति  को  समझते  हैं    उनकी  चाहे  बड़ी  दुकान  हो  या  ठेला ,   वे  अपने  पास  आने  वाले  किसी  गरीब  को  कभी  निराश  नहीं  करते  , सड़क  पर  घूमने  वाले  जानवरों  को  भी  कुछ  न  कुछ  देकर  पुण्य  संचित  कर  लेते  हैं  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं --" -मृत्यु  के  बाद  हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  नहीं  छोड़ते  l  हम  समस्याओं  से  भागकर  दुनिया  के  किसी  भी  कोने  में  चलें  जाएँ  ,  हमारे  कर्म  हमें  उसी  तरह  ढूंढ  लेते  हैं   जैसे  बछड़ा  हजार  गायों  में  भी  अपनी  माँ  को  ढूंढ  लेता  है  l  कर्मों  का  फल  तो  भुगतना  ही  पड़ता  है  , लेकिन  कब  और  कैसे  यह  भुगतान  करना  होगा  इसे  काल  निश्चित  करता  है  l  l '