24 February 2021

WISDOM -----

   मनुष्य  सत्कर्म  करे  तो  उसे  उसका  पुण्य -फल  अवश्य  मिलता  है  l   यह  जरुरी  नहीं  कि   हमने  जिसके  साथ  अच्छा  किया  , वह  उसका  एहसान  माने,  प्रकृति  में   कहीं  न  कहीं  से  उसका  सुफल  अवश्य  मिलता  है  l  एक  प्रसंग  है   महाभारत  का  ----  जब  पासे   के  खेल   में युधिष्ठिर  ने  द्रोपदी  को  दाँव   पर  लगा  दिया   और  वह  बाजी  हार  गए   तब  दुर्योधन  ने  दु :शासन  को   द्रोपदी  के  चीर  हरण  की  आज्ञा  दी  l  द्रोपदी   अपनी  लाज  बचाने   के  लिए  सबसे  अनुनय - विनय  कर  रही  थी  l  उसने  भगवान  कृष्ण  को  पुकारा  l   कहते  हैं  तब  नारद जी   भगवान  के  पास  गए  और  कहा   कि  द्रोपदी   पर  घोर  संकट  है ,  वह  आपको  पुकार  रही  है  l   तब  भगवान  ने  कहा --- " कर्मों  के  बदले  ही  मेरी  कृपा  बरसती  है   l   क्या  कोई  पुण्य  है  द्रोपदी  के   खाते  में  ?  जाँचा -परखा  गया   कि   कहीं  वस्त्र  दान  है  l   जांच  में  पाया  गया  ऐसे  दो  महत्वपूर्ण  दान  हैं ---- एक  बार  जब  भगवान  कृष्ण  ने   शिशुपाल   द्वारा  दी  गई  सौ   गालियों  के  पूरा  होने  पर   सुदर्शन  चक्र   को   उसका  सिर   काटने  की  आज्ञा  दी  तब  ऊँगली  में  घूमते  हुए  सुदर्शन  चक्र  को  शिशुपाल  की  ओर   प्रहार  करते  समय  उनकी  ऊँगली  में  चोट  लग  गई  , और  बड़ी  तेजी  से  खून  बहने  लगा   l कृष्ण जी  की  महारानी  रुक्मणि , सत्यभामा  आदि  ने  दास  - दासियों   को  आज्ञा  दी  --जल्दी  कपड़ा   लाओ  पट्टी  बांधे  ,  सब अपनी   समझ  से  उनके  इलाज  के  लिए  दौड़े  ,  तब  द्रोपदी  ने   अपनी  कीमती  साड़ी   को  फाड़कर  पट्टी  भगवान  की  ऊँगली  में  बाँध  दी  ,  खून  का  बहना  बंद  हो  गया   तब  भगवान  की  मुस्कराहट  कह  रही  थी   कि   इस  छोटे  से  चीर   के  बदले   तुम्हें   हजारों  गज  चीर ( वस्त्र )  मिलेंगे   l   एक  दूसरा  प्रसंग  है  ---  एक  साधु  यमुना  तट   पर   एक  लँगोटी   पहने   स्नान  कर  रहे  थे  ,  बदलने   के लिए  एक  लँगोटी   किनारे   रखी   थी   l   हवा  के  तेज  झोंके  से  वह  भी  पानी  में  बह    गई  l  इस  कारण  साधु  बहुत  परेशान   था  ,  कैसे  अपनी  झोंपड़ी  तक  जाए  ?  द्रोपदी  प्रात:काल  स्नान  करने  यमुना  तट   पर  आईं  ,  सहज  ही  उनका  ध्यान  साधु   की  ओर   गया  ,  वे  उसकी  समस्या  समझ  गईं  और  अपनी  साड़ी   आधी  फाड़कर  झाड़ी   के  पास  रख दी   और  कहा  --- ' पिताजी  ! आप  इस  वस्त्र  में  अपने  घर  चलें  जाएँ  l            जांच - परख  में   उस  वस्त्र  दान  का  ब्याज  बढ़कर   न  जाने  कितना  गुना  हो  गया  था   कि   भगवान  की  उँगलियों  से  हजारों  गज   साड़ियाँ   निकलती   गईं   l   दस  हजार  हाथियों  के  बल  वाला  दु:शासन   थक  कर  गिर  पड़ा  l   ' द्रोपदी  की  लाज  राखि ,  तुम  बढ़ायो  चीर   l '