5 November 2019

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   ने  लिखा  है --- ' गुणवान  होना  बहुत  अच्छी  बात  है  , गुणों  से  ही  संसार  में   यश  फैलता  है  l  गुणों  की  अधिकता  से   कुशलता  और  सफलता  दोनों  ही  खिंची   चली  आती  हैं  l  लेकिन  इन  गुणों  के  साथ  यदि  व्यक्ति  अभिमानी  है , अहंकारी  है    तो  ये  अहंकार  उसके  समस्त  गुणों  और  विशेषताओं  पर  ग्रहण  लगा  देता  है  l   ऐसा  व्यक्ति  दैवी  प्रयोजनों  के  अनुकूल  नहीं  रह  जाता  l '
        रावण  से  युद्ध  के  पूर्व  भगवान   श्रीराम  ने  ब्रह्माजी  द्वारा  सुझाई  गई  विधि  से   चंडी  देवी  का  पूजन  किया   l   देवी  प्रकट  हुईं   और   उन्होंने  श्रीराम  को  विजयश्री  का  आशीर्वाद  दिया   l
                   उधर  रावण  ने  भी  अमरता  के  लोभ  से  और  विजय   के  लिए  चंडी  पाठ  प्रारम्भ  किया  l  रावण  विद्वान् , तपस्वी  होने  के  साथ  अहंकारी  था   l  ' अखण्ड   ज्योति '  में  लेख  है -----  एक  ब्राह्मण  बालक   वहां  पर   पाठ  कर  रहे  ब्राह्मणों  की  सेवा  भक्ति भाव  से  कर  रहा  था  l   चंडी  यज्ञ  की  पवित्र  वेदी  की  स्वच्छता , सफाई , पाठ  में  प्रयुक्त  सामग्री  का  यथास्थान  वितरण , पंडितों  की  भोजन  व्यवस्था  , उनकी  निजी  सेवा   तक   वह  कटिबद्ध  रहता  था  l पता  नहीं  वह  बालक  कब  सोता  और  जागता  था  ,  जब  भी  देखा  वह  सेवा  कार्य  में  निरत  रहता  था  l  ब्राह्मणों  ने  इस  बालक  की  निस्स्वार्थ  सेवा  से  प्रसन्न  होकर  वरदान  मांगने  को  कहा  l   बालक  ने  कहा --  - " हे  ब्राह्मण  देवताओं  !  यदि  आप  प्रसन्न  हैं   तो  मेरा  एक  सुझाव  मानने  की  कृपा  करें  ,  इस  यज्ञ  में  प्रयुक्त  मन्त्र  के  एक  शब्द   मूर्तिहरिणी  के
 ' ह '  अक्षर  के  स्थान  पर  ' क '  उच्चारित  किया  जाये  l "  ब्राह्मण  इस   गूढ़ार्थ  को  समझ  न  सके  और  बालक  के  कहे  अनुसार  ' मूर्तिहरिणी  '   के  स्थान  पर   ' मूर्तिकरिणी '  कह  के  आहुतियाँ   प्रदान  करने  लगे  l  ' मूर्तिहरिणी ' का  तात्पर्य  है  प्राणियों  की  पीड़ा  हरने  वाली  और  ' मूर्तिकरिणी '  का  अर्थ  है    प्राणियों  को  पीड़ित  करने  वाली  l   इस  विकृत  मन्त्र  के  प्रभाव  से  देवी  अत्यंत  क्रोधित  हो  उठीं   और  उन्होंने  रावण  को  ' सर्वनाश '  का  अभिशाप  दिया   l   यह  ब्राह्मण  बालक  कोई  और  नहीं  ,  बल्कि  राम भक्त  हनुमान  थे  ,  जिन्होंने  मन्त्र  के  ' ह '  की  जगह  ' क '  कहलवाकर  यज्ञ  की  दिशा  ही  बदल  दी   l
  रावण  अहंकारी  था ,  उसमे  छल - कपट  था   इस  कारण   दैवी  कृपा  से  वंचित  रह  गया   l