14 April 2018

WISDOM ---- पीड़ित और प्रताड़ित व्यक्ति को उपदेशों का मरहम सुखी नहीं कर सकता

  रुसी  साहित्यकार   एन्टन  चेखव  का  लिखा  नाटक  ' वार्ड  न.  ६ '   में  इस  तथ्य  को  उभारा  गया  है   कि   हिंसा  और  अत्याचार  को   रोकने  के  लिए   निष्क्रिय  विरोध ,  उपेक्षा  और  उदासीनता  से  काम  नहीं  चलता  ,  उसे  रोकने  के  लिए  अदम्य  और  कठोर  संघर्ष  की   आवश्यकता  है   तभी  उसमे  सफल  हुआ  जा  सकता  है   l   बुद्धिजीवी  वर्ग  की  नपुंसक  अकर्मण्यता   पर  तीव्र  प्रहार   करने  वाला  यह  नाटक  जब  लेनिन  ने  देखा    तो  वे  इतने  व्यग्र  हो  गए  कि  अपने  स्थान  पर   बैठ  न  सके   l 
    ' वार्ड न. ६ '  नाटक   पागलखाने  की  पृष्ठभूमि    पर  लिखा  गया  नाटक  है   -----  डा. रैगिन  पागलों  के  अस्पताल  के  सुपरिटेंडेट  हैं  l  उनकी  आकांक्षा  है  अस्पताल  में  सुधार   की   परन्तु  प्रतिकूलताओं   से  लड़ने  का  उनमे  साहस  नहीं  है  l  वह  अस्पताल  की  व्यवस्था  और  सिस्टम  में  कोई  सुधार  नहीं  कर  पाते  इस  कारण  अस्पताल  में  अव्यवस्था  बढती  गई   और   एक    दिन  वहां  का  जमादार  अस्पताल  का  संरक्षक  बन  बैठा  l    वह    रोगियों  और  कर्मचारियों  से  बहुत  दुर्व्यवहार  करता  , उन्हें  मारता - पीटता  l   जब  रोगी  व  कर्मचारी  शिकायत  लेकर  डा. रैगिन   के  पास  जाते   तो  वह  उन्हें   सैद्धांतिक     उपदेश     देने  लगता  कि  अपनी  सहन शक्ति  बढ़ाओ  l   इस   पर  उनमे   घंटों  तक  विवाद  चलता  l   इसमें  बुद्धिजीवी  वर्ग  के     डा.  रैगिन   की   निष्क्रियता  और  उदासीनता    तथा  कर्मचारियों  द्वारा   हिंसा  व  अत्याचार    के   विरुद्ध   कठोर  संघर्ष    और    स्वाभिमान पूर्ण  प्रतिरोध  की  भावना  स्पष्ट  रूप  से  अभिव्यक्त  होती  है   l    यह  विवाद  बढ़ता   ही   चला  गया    और  एक  दिन  ऐसा  आता  है   कि  डा.  रैगिन  को  पागल  और  विक्षिप्त  करार  देकर    उसी  पागलखाने  के  वार्ड  न.  ६  में   भर्ती  करा  दिया  जाता  है   l
  चेखव  की  रचनाओं  में   सत्य  को  जिस  बुलंदगी  से   कहा  गया  है  ,  बहुत  कम  साहित्यकार  ऐसा  करने  का  साहस  कर  सके  हैं   l  

WISDOM ----- विवेक और समझदारी जरुरी है , ' अपने ' ज्यादा घातक होते हैं

 पारिवारिक  व्यवस्था  परस्पर  विश्वास  और  त्याग  पर  टिकी  है  ,  लेकिन  लालच , स्वार्थ , ईर्ष्या - द्वेष ,  कामना - वासना  ने  मनुष्य  के  भीतर  छुपे  राक्षस  को  जगा  दिया  है  l  इस  कारण  यह  व्यवस्था  चरमराने  लगी  है  l  भूमि - सम्पति  के  झगड़े,  महिलाओं  के  प्रति  घरेलू  हिंसा,    यह  सब  परिवार  में  ही  होता  है ,  इसमें  विजातीय  या  विधर्मी  नहीं  आते  l  कोई  महिला  अकेली  है ,  कमजोर  है  तो  उसकी  सम्पति  उसके  परिवार , रिश्तेदार  ही  हड़प  लेते  हैं  l
  एक  ही  बिरादरी  के  लोगों  में  ईर्ष्या  और  आपसी  दुश्मनी  इस  कदर  बढ़  जाती  है   कि  वे ' अपनों '  को  ही  परेशान  करने  के  लिए  गैरों  का , विधर्मियों  का  सहारा  लेते  हैं  l  आज  व्यक्ति  में  दोगलापन  है  ,  शराफत  और  सज्जनता  के  मुखौटे  के  पीछे  कितनी कालिक  है  !   इसी  को  समझने  और  सतर्क  रहने  की  जरुरत  है  l