प्रिंस क्रोपाटकिन जीवन भर अन्याय से लड़ते रहे l क्रांति उनका धर्म था लेकिन उन्होंने सदा ही साधन और साध्य की पवित्रता पर जोर दिया और अपनी कलम और वाणी के माध्यम से उन्होंने ऐसी ही पद्धतियों का प्रचार किया जो मानवता से सीधा सम्बन्ध रखती थीं l
प्रिंस क्रोपाटकिन का जन्म रूस के एक कुलीन राजवंशीय परिवार में हुआ था l उन्होंने सैनिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की l एक बार जब वे गवर्नर जनरल के ए.डी. सी. बन कर साइबेरिया गए वहां उन्होंने जार के कोपभाजन बने लोगों के नारकीय जीवन को देखा तो उनका ह्रदय विद्रोह से भर गया और उन्होंने तुरंत शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया l उन्होंने निरंकुश जारशाही के विरुद्ध आवाज उठाई l अब क्रांति ही उनका धर्म था l उनके जीवन चरित्र लेखक मेरी गोल्ड स्मिथ ने लिखा है ---- " भले ही प्रत्येक ईमानदार और उत्साही व्यक्ति के प्रति उनका व्यवहार उदारता पूर्ण रहा हो लेकिन साधनों का चुनाव करते समय वे बहुत कठोर हो जाया करते थे l प्रचार के कुछ ढंगों को क्रोपाटकिन असह्य मानते थे l चाहे जैसे भले - बुरे साधनों द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के सिद्धांत से उन्हें नफरत थी l चाहे संगठन का काम हो , चंदा इकठ्ठा करने का , विरोधियों से व्यवहार करना हो या दूसरी पार्टियों से सम्बन्ध बनाना , किसी भी काम में अनुचित साधनों का प्रयोग वे किसी भी दशा में सहन नहीं कर सकते थे l "
प्रिंस क्रोपाटकिन का जन्म रूस के एक कुलीन राजवंशीय परिवार में हुआ था l उन्होंने सैनिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की l एक बार जब वे गवर्नर जनरल के ए.डी. सी. बन कर साइबेरिया गए वहां उन्होंने जार के कोपभाजन बने लोगों के नारकीय जीवन को देखा तो उनका ह्रदय विद्रोह से भर गया और उन्होंने तुरंत शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया l उन्होंने निरंकुश जारशाही के विरुद्ध आवाज उठाई l अब क्रांति ही उनका धर्म था l उनके जीवन चरित्र लेखक मेरी गोल्ड स्मिथ ने लिखा है ---- " भले ही प्रत्येक ईमानदार और उत्साही व्यक्ति के प्रति उनका व्यवहार उदारता पूर्ण रहा हो लेकिन साधनों का चुनाव करते समय वे बहुत कठोर हो जाया करते थे l प्रचार के कुछ ढंगों को क्रोपाटकिन असह्य मानते थे l चाहे जैसे भले - बुरे साधनों द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के सिद्धांत से उन्हें नफरत थी l चाहे संगठन का काम हो , चंदा इकठ्ठा करने का , विरोधियों से व्यवहार करना हो या दूसरी पार्टियों से सम्बन्ध बनाना , किसी भी काम में अनुचित साधनों का प्रयोग वे किसी भी दशा में सहन नहीं कर सकते थे l "