मनुष्य सारा जीवन क्षण भंगुर लालसाओं की तृप्ति के लिए भागता रहता है , इसके लिए कितने दांव -पेंच भी लगाता है , अंत में समझ आता है सब कुछ खाली है , रिक्त है , पूरा जीवन व्यर्थ हो गया l इसलिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " क्षण भंगुर लालसाओं और उनकी तृप्ति को लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता l लक्ष्य को तो सदा शाश्वत और शांतिदायक होना चाहिए l " महान संत गुरजिएफ अपने शिष्यों से कथा कहते थे ------- " आकाश में उड़ने वाली चिड़िया को अपने से थोड़ी दूर पर एक चमकता हुआ श्वेत बादल दिखा l उसने सोचा --- चलो मैं उड़कर उस बादल को छू लूँ l ऐसा सोचते हुए वह चिड़िया उस बादल को अपना लक्ष्य बनाकर अपनी पूरी क्षमता से उड़ चली , लेकिन हवाओं के साथ अठखेलियाँ करता हुआ वह बादल कभी पूर्व में जाता तो कभी पश्चिम में और कभी तो वहीँ रूककर चक्कर खाते हुए चक्रव्यूह रचने लगता , कभी छिपता , कभी प्रकट हो जाता l अपनी बहुत कोशिशों के बाद भी चिड़िया उस तक नहीं पहुँच सकी l प्रयासों के इस दौर में उसने पाया कि जिस बादल के पीछे वह अपने जीवन को दांव पर लगाकर भाग रही थी , वह अचानक हवा के तेज झोंकों से छँट गया l अपने अथक प्रयत्न के परिणाम में उस चिड़िया ने देखा कि अरे ! यहाँ तो कुछ भी नहीं है l इस सच को देखकर उसका विवेक जाग्रत हो गया , चिड़िया को अपनी भूल का एहसास हुआ उसके अंतर्विवेक ने कहा -- यह तो बड़ी भूल हो गई l यदि लक्ष्य बनाना हो तो क्षण भंगुर बादलों को नहीं , बल्कि पर्वत की चोटियों को बनाना चाहिए जो शाश्वत और अनंत हैं l " आचार्य श्री लिखते हैं --- गुरजिएफ की यह बोध कथा हम सभी के जीवन में घटित होती है l हम अपने विवेक को जाग्रत करें l "