2 July 2013

SIMPLICITY

'अपना अस्तित्व और भविष्य ईश्वर के हाथों सुरक्षित मानने की भावना ऐसी है ,जिसे अपनाये रहने और बढ़ते चलने में हर कोई निश्चिंतता प्राप्त कर सकता है | '
   
        संत तुकाराम शूद्र जाति में जन्मे थे | उनकी भक्ति भावना से पंडित लोग चिढ़ते थे | उस क्षेत्र के प्रख्यात पंडित रामेश्वर भट्ट ने उन्हें बुलाया और धमकाकर धर्म प्रचार करने और गीत लिखने से मना कर दिया |
       तुकाराम नम्रता की मूर्ति थे | उन्होंने पंडितजी से पूछा -"जो गीत अब तक लिखे जा चुके हैं ,उनका क्या करूँ ?"पंडितजी ने कहा -"नदी में फेंक दो "| उन्होंने वैसा ही किया |
    संत बहुत दुखी थे | किसी वंश में जन्म लेने में मेरा क्या दोष ?भगवान !मुझे भक्ति से क्यों वंचित किया जा रहा है ?आपके गुण -गाथा गाने में मेरे ऊपर प्रतिबंध क्यों लग गया ?"यही बात वे निरंतर सोचते रहे ,खाना -पीना तक छूट गया |
       रात्रि को सपने में भगवान ने दर्शन दिये और कहा -"तेरे भक्ति गीत मैंने डूबने नहीं दिये | निकालकर नदी के किनारे रख दिये हैं | उन्हें वापस लाकर पहले की तरह धर्म प्रचार के पवित्र कार्य में लग जा | "
तुकाराम ने वैसा ही करना आरंभ कर दिया | अब किसी के विरोध का उन्हें कुछ भय न रहा |