9 February 2024

WISDOM -----

  भौतिक  प्रगति  के  साथ   नैतिकता  और  चरित्र  की  श्रेष्ठता  की  ओर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया  गया  ,  इसलिए  यह  विकास    अधूरा  है   l   मनुष्य    अपनी  बुद्धि  का   उपयोग    अपने  स्वार्थ  को  सिद्ध  करने  के  लिए  करने  लगा  है  l  जैसे  पहले  तीर्थ  यात्रा  का  बहुत  महत्त्व  था  ,  लोगों  को  तीर्थ  स्थान  जाकर  असीम  शांति  और  ऊर्जा  मिलती  थी  l   लेकिन  अब  तीर्थ  भी  मनोरंजन   के  स्थान  हो  गए  हैं  l  लोगों  ने  पुरानी    मान्यता  को  दूषित  कर  दिया  l   यह  मान्यता  है  कि  तीर्थ  स्नान  से  सारे  पाप  धुल  जाते  हैं   ,  इसका  अर्थ  यही  था  कि   ऐसे  पवित्र  स्थल  पर  जाने  से  जीवन  में  नई  चेतना  का  संचार  होता  है   और  बुद्धि  सन्मार्ग  की  ओर  प्रेरित  होती  है   l  दुर्बुद्धि  के  कारण  लोग  इस  पवित्र  भाव  को  भूल  गए  , सोच  विकृत  हो  गई  कि ' पाप  कमाओ  और  गंगा  में  स्नान  कर  के  उनसे  छुटकारा  पा  लो , , ऐसी  सोच  ने  अपराध  में  और  वृद्धि  कर  दी  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ----"  यदि  इस  प्रकार  गंगा  स्नान  से  पापों  से  छुटकारा  मिल  जाता  तो   सबसे  पहले  मछलियाँ  और  मगरमच्छ  स्वर्ग  पहुँच  जाते   जो  हर  समय  गंगाजल  में  ही  रहते  हैं  l  "   श्रीमद् भगवद्गीता  में   भगवान  ने  कहा  है  कि  निष्काम  कर्म  से  मनुष्य  की  बुद्धि  निर्मल  होती  है  ,  जाने -अनजाने  जो  पाप  किए  हैं  वे  कटते  हैं  l '   नि 'स्वार्थ  भाव  से  सेवा  के  कार्य  करने  से  घर  बैठे  ही  तीर्थ  का  पुण्य  मिल  जाता  है   l