7 March 2014

अध्यात्म का मर्म

' जो  समस्त   प्राणियों  में  मैत्री  का  भाव  रखता  है  और  सबका  हित  चिंतन  करता  है  वही  सच्चा  अध्यात्मवेता  है  |
समस्त  मनुष्यों  को  बिना  किसी  भेदभाव  के  ज्ञान  का  प्रकाश  बाँटना, श्रेष्ठ  व  सकारात्मक  विचारों  का  प्रसार  करना, अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा  को  प्रीतिपूर्वक  सहन  करते  हुए  कर्तव्य  कर्म  में   व्यस्त  रहना-- इसी  में  जीवन  का  रहस्य  है  ।  
सच्ची  साधना  अहं  का    उन्मूलन  है    ।  सच्ची  साधना  क्रिया  में  नहीं  विचारों  एवं  भावनाओं  में  निहित  है  ।  विचार  और  भावनाओं  की  दिशा  बदल  जाये, तो  सामान्य  क्रिया  भी  अध्यात्मप्रदायिनी  हो  जाती  है   ।
      हमें  अपनी   समस्त  ऊर्जा  किसी  क्रिया  विशेष  को  करने  में  नहीं  बल्कि  विचारों  और  भावनाओं  के  परिष्कार  में  नियोजित  करनी  चाहिये  ।   यह  आत्मपरिष्कार  ही  हमारी  साधना, गुरुभक्ति, ईश्वरभक्ति  है, यही  अध्यात्म तत्व  है  जिसके  फलस्वरूप  ईश्वरकृपा  का  प्रसाद  प्राप्त  होता  है  । 

PEARL

अर्नाल्ड  टायनबी  ब्रिटिश  साहित्यकार  थे, पर  उनकी   आत्मा  में भारत, भारतीय  संस्कृति  का  निवास
था  ।  उनने  एक  शोध  ग्रंथ  लिखा  है,  उसमे  भारतीय  दर्शन  को  सर्वोपरि  ठहराते  हुए  उसकी  समीक्षात्मक  तुलना  की  है  ।   अकेले  टायनबी  ने  जो  कार्य  किया  था, वह  एक  व्यक्ति  का  नहीं  पूरे  मिशन  का  कार्य  था  । आज  जिस  वैज्ञानिक  अध्यात्मवाद  की  चर्चा  होती  है, उस  पर  उनने  आज  से  लगभग  75  वर्ष  पूर्व  लेखनी  चला  दी  थी  ।   वे  लिखते  हैं---" अध्यात्मिक  परिपक्वता  विज्ञान  द्वारा  नहीं, बल्कि  धर्म  द्वारा  ही  प्राप्त  हो  सकती  है  ।  मुझे  आशा  है  कि  21 वीं  सदी  का  मानव  सच्चे  धर्म  की  खोज  कर  लेगा  ।  यह  धर्म  विज्ञान  और  अध्यात्म  के  समन्वय  पर  आधारित  होगा  ।  "