जब जलियांवाला बाग मे निरपराध भारतीय जनता की एक सभा पर गोलियों की वर्षा की गई , उस समय पंजाब का गवर्नर जनरल डायर था l कितने ही व्यक्ति मारे गए , कितने ही घायल हुए l उस भीड़ में एक बालक भी था l बारह वर्ष का यह बालक सरदार उधमसिंह गोलियां चलाने वाले पर बहुत कुपित हुआ l उसने कहा --- " मैं भी इसको मारूंगा l "
प्रतिशोध की यह अग्नि उसके ह्रदय - कुंड में लगातार बाईस वर्षों तक जलती रही l डायर यह हत्याकांड कर के इंग्लैंड चला गया l उधमसिंह इंजीनियर बने l दैनिक कृत्य संपन्न करते , पढ़ते - लिखते उन्हें अपना मिशन याद रहता l वह इस अवसर की प्रतीक्षा में थे कि जब भी डायर भारत वापस आएगा , तभी उसको दण्ड देने का अवसर मिलेगा l
इस प्रकार प्रतीक्षा करते - करते उनका धैर्य जवाब दे गया तो उधमसिंह आगे पढने का बहाना बनाकर इंग्लैंड ही पहुँच गए l 13 मार्च 1940 को यह प्रतीक्षा समाप्त हुई l एक सार्वजनिक सभा में डायर का भाषण था l उधमसिंह मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए l डायर जिसके गवर्नर पद पर रहते जालियाँवाला गोली - काण्ड हुआ था , भाषण देने खड़ा हुआ , उधमसिंह ने अपने रिवाल्वर का निशाना बनाकर तीन वार किये l डायर वहीँ धराशायी हो गया l
सरदार उधमसिंह के सिर से बहुत बड़ा बोझ हट गया l
सरदार उधमसिंह को पकड़ लिया गया l अदालत के सामने उन्होंने बयान दिया ----- " मैंने अंग्रेजों के नालदार जूतों के नीचे अपने देशवासियों को रौंदे जाते देखा l मैंने इसका विरोध अपने ढंग से किया l मुझे इसका पश्चाताप नहीं है l मौत का डर तो उसी दिन मेरे मन से हट गया था जब बाईस वर्ष पहले जलियाँवाला बाग में सैकड़ों बेगुनाह भारतवासियों को मैंने शहीद होते देखा l भारतवासी अब गुलाम नहीं रह सकते l मैं अदालत से दया नहीं कठोर दण्ड चाहता हूँ l "
देशभक्त देश जाति के गर्व की रक्षा के लिए मृत्यु को गले लगाते हैं l उन्होंने मृत्यु दण्ड सहर्ष स्वीकार किया l
प्रतिशोध की यह अग्नि उसके ह्रदय - कुंड में लगातार बाईस वर्षों तक जलती रही l डायर यह हत्याकांड कर के इंग्लैंड चला गया l उधमसिंह इंजीनियर बने l दैनिक कृत्य संपन्न करते , पढ़ते - लिखते उन्हें अपना मिशन याद रहता l वह इस अवसर की प्रतीक्षा में थे कि जब भी डायर भारत वापस आएगा , तभी उसको दण्ड देने का अवसर मिलेगा l
इस प्रकार प्रतीक्षा करते - करते उनका धैर्य जवाब दे गया तो उधमसिंह आगे पढने का बहाना बनाकर इंग्लैंड ही पहुँच गए l 13 मार्च 1940 को यह प्रतीक्षा समाप्त हुई l एक सार्वजनिक सभा में डायर का भाषण था l उधमसिंह मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए l डायर जिसके गवर्नर पद पर रहते जालियाँवाला गोली - काण्ड हुआ था , भाषण देने खड़ा हुआ , उधमसिंह ने अपने रिवाल्वर का निशाना बनाकर तीन वार किये l डायर वहीँ धराशायी हो गया l
सरदार उधमसिंह के सिर से बहुत बड़ा बोझ हट गया l
सरदार उधमसिंह को पकड़ लिया गया l अदालत के सामने उन्होंने बयान दिया ----- " मैंने अंग्रेजों के नालदार जूतों के नीचे अपने देशवासियों को रौंदे जाते देखा l मैंने इसका विरोध अपने ढंग से किया l मुझे इसका पश्चाताप नहीं है l मौत का डर तो उसी दिन मेरे मन से हट गया था जब बाईस वर्ष पहले जलियाँवाला बाग में सैकड़ों बेगुनाह भारतवासियों को मैंने शहीद होते देखा l भारतवासी अब गुलाम नहीं रह सकते l मैं अदालत से दया नहीं कठोर दण्ड चाहता हूँ l "
देशभक्त देश जाति के गर्व की रक्षा के लिए मृत्यु को गले लगाते हैं l उन्होंने मृत्यु दण्ड सहर्ष स्वीकार किया l