25 October 2023

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " बात  परिवार  की  हो , समाज  की  हो  , देश  या  विश्व  की  हो  सब  तरफ  झगड़े  फैल  रहे  हैं  ,  सारा  विष  घुल  रहा  है   जीवन  में  l  इसके  पीछे  केवल  एक  कारण  है   कि  भीषण  रूप  से  छीना -झपटी  मची  हुई  है  ,  आधिपत्य  करने  की  होड़  है  l  "                                           त्रेतायुग  में  भगवान  श्रीराम  अपना  अधिकार  त्यागने  के  लिए  तत्पर  थे   और  भरत  अपना  सुख  त्यागने  के  लिए  तत्पर  थे   तो  कहीं  कोई  झगड़ा  ही  नहीं  था  l  झगड़ा  तो  तब  खड़ा  होता  है  जब  कोई   दुर्योधन  कहता  है  कि  मैं  पांडवों  को  पांच  गाँव  तो  क्या  सुई  की  नोक  बराबर   भी  भूमि  नहीं  दूंगा  l  कलियुग  में   वर्तमान  में  स्थिति  और  भी  भयावह  है  ,  अब  कुछ  देने  की  तो  बात  ही  नहीं  है  ,  अब  तो  केवल  छीनना  है  l  जिसके  पास  थोड़ी  भी  ताकत  है   वह  दूसरों  का  हक  छीनता  है  l  अब  लोग  किसी  को  सुख -शांति  से  जीवन  जीते  नहीं  देख  सकते   l  यदि  किसी  ने  अपनी  मेहनत  से  अपने  को  स्थापित  किया  है  तो  आसुरी  मानसिकता  के  लोग  उसे  मिटाने  की  जी  तोड़  कोशिश    करते  हैं  l  नकारात्मक  शक्तियां  इतनी  प्रबल  हैं   लेकिन  विधाता  के  लेख  पर  उनका   वश  नहीं  है  l  विज्ञानं  और  नकारात्मक  शक्तियों  का  सहारा  लेकर  अब  तो   आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग    विधाता  से  भी  दो -दो  हाथ  करने  को  तैयार  हैं  l      ये  असुर  ऐसे  क्यों  होते  हैं  ?    ऋषियों  का  कहना  है  --- वे  आत्महीनता  की  ग्रंथि  से  ग्रस्त  रहते  हैं  l  वे  अपने  अन्दर  खालीपन  महसूस  करते  हैं  ,  जिसको  वे  बाहर  पूरा  करना  चाहते  हैं  l  -------- कहते  हैं  एक  बार  तैमूरलंग  ने  एक  राज्य  पर  आक्रमण  किया  l  तैमूरलंग  लंगड़ा  था  इसलिए  उसे  तैमूरलंग  कहा  जाता  था  l  जिस  राज्य  पर  उसने  हमला  किया  वहां  का  सुल्तान  काना  था  l  हमले  के  बाद  सुलह  हुई  , समझौता  हुआ   और  उसके  बाद  दोनों  मिल  बैठकर  बातें  कर  रहे  थे  l  इस  अवसर  अनेक  लोगों  को  बुलाया  गया  था  ,  उनमे  कुछ   फकीर , संत महात्मा  भी  थे   l  उस  समय  तैमूर   परिहास  की  मनोदशा  में  था   ,   हँसता  हुआ  सुल्तान  से  बोला  कि  मैं  लंगड़ा   और  तुम  काने  ,  ये  खुदा  को  भी  क्या  हो  गया  है  ?  लंगड़े -कानों  को  सुल्तान  बनाता   रहता  है  l    इतने  लोगों  का  कत्लेआम  हुआ  , विधवाओं  और  अनाथ  बच्चों  और  घायलों  की  चीखें  अभी  तक  वातावरण  में  थीं   , उस  पर   तैमूर    का  परिहास  !  सभा  में  उपस्थित   एक  फकीर  ने  कहा ---- "हुजूर  ! दरअसल  लंगड़े -कानों  को  ही  सल्तनत  की  जरुरत  होती  है  l  वे  आत्महीनता  की  ग्रंथि  से  ग्रस्त  रहते  हैं  l  वे  अपने  अन्दर  कुछ  कमी  महसूस  करते  हैं  ,  जिसको  वे  बाहर  पूरा  करना  चाहते  हैं  l   जो  अपने  में  जितना  ज्यादा  संतुष्ट -संतृप्त  होता  है   वो  बाहर  की  उपलब्धियों  की   तरफ  आँख  उठाकर  भी  नहीं  देखता  है  l   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- सेवा -परोपकार  के  कार्यों  और  निष्काम  कर्म  से  जीवन  का  खालीपन  दूर  होता  है  , यह  आत्मा  की  खुराक  है  इसी  से  आत्मा  को  तृप्ति  और   मन  को  शांति  मिलती  है  l