आयुर्वेद का मत है कि मन ही शरीर को प्रभावित करता है | सदाचार के पालन से न केवल मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है वरन उसका जैविक प्रभाव शरीर में रसायन के समान देखा जाता है । सदाचार का पालन किये बिना किसी भी औषधि से चाहे वह रसायन ही क्यों न हो, शरीर के स्वस्थ होने की कल्पना नहीं की जा सकती ।
महात्मा बुद्ध के पास राजा प्रसेनजित आये । उनका शरीर असंयम के कारण रोगी हो गया था,
भांति-भांति के सुस्वादु आहार उन्हें भाते थे । जिह्वा पर कोई नियंत्रण नहीं था । राजा को कौन रोक पाता, अत: शरीर रोगों का घर बनता चला गया । वे अपने दुःखों का समाधान पाने आये थे ।
बुद्ध जानते थे कि राजा इस समय उनका उपदेश नहीं सुनेंगे ।
बुद्ध ने अंगरक्षक से कहा--- " तुम्हारा काम क्या है ?
अंगरक्षक---- " अंगरक्षक होने के कारण मैं राजा की रक्षा करता हूँ । "
बुद्ध ने कहा-- " तुम्हे दिखाई नहीं देता, अंग रोगी हुआ जा रहा है । इसकी रक्षा करो । जब भी राजा आवश्यकता से अधिक खाएँ, जबरदस्ती रोक दो । "
अंगरक्षक बोला--- " राजा हमें फाँसी पर चढ़ा देंगे । "
बुद्ध बोले--- " तुम कर्तव्यनिष्ठ बन जाओ । अपने प्राणों की बलि भी देनी पड़े तो पहले कर्तव्य पूरा करो । " अंगरक्षक ने कहा---- " आपका आशीष हम पर है तो हम अपने जीवन की वेदी पर भी इनके जीवन को बचायेंगे । राजा स्वस्थ होंगे तो राज्य की रक्षा होगी । "
अंगरक्षक ने ऐसा ही किया । एक माह बाद राजा आये । अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ थे । यह पहला पाठ था । वृतियों पर संयम रखा तो स्वास्थ्य लौट आया । वृतियाँ भोग के लिये नहीं, अनुभव के लिये होती हैं । संयम होगा तो इंद्रियां स्वस्थ होंगी , धीरे-धीरे राजा पूर्णतया स्वस्थ हो गये ।
महात्मा बुद्ध के पास राजा प्रसेनजित आये । उनका शरीर असंयम के कारण रोगी हो गया था,
भांति-भांति के सुस्वादु आहार उन्हें भाते थे । जिह्वा पर कोई नियंत्रण नहीं था । राजा को कौन रोक पाता, अत: शरीर रोगों का घर बनता चला गया । वे अपने दुःखों का समाधान पाने आये थे ।
बुद्ध जानते थे कि राजा इस समय उनका उपदेश नहीं सुनेंगे ।
बुद्ध ने अंगरक्षक से कहा--- " तुम्हारा काम क्या है ?
अंगरक्षक---- " अंगरक्षक होने के कारण मैं राजा की रक्षा करता हूँ । "
बुद्ध ने कहा-- " तुम्हे दिखाई नहीं देता, अंग रोगी हुआ जा रहा है । इसकी रक्षा करो । जब भी राजा आवश्यकता से अधिक खाएँ, जबरदस्ती रोक दो । "
अंगरक्षक बोला--- " राजा हमें फाँसी पर चढ़ा देंगे । "
बुद्ध बोले--- " तुम कर्तव्यनिष्ठ बन जाओ । अपने प्राणों की बलि भी देनी पड़े तो पहले कर्तव्य पूरा करो । " अंगरक्षक ने कहा---- " आपका आशीष हम पर है तो हम अपने जीवन की वेदी पर भी इनके जीवन को बचायेंगे । राजा स्वस्थ होंगे तो राज्य की रक्षा होगी । "
अंगरक्षक ने ऐसा ही किया । एक माह बाद राजा आये । अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ थे । यह पहला पाठ था । वृतियों पर संयम रखा तो स्वास्थ्य लौट आया । वृतियाँ भोग के लिये नहीं, अनुभव के लिये होती हैं । संयम होगा तो इंद्रियां स्वस्थ होंगी , धीरे-धीरे राजा पूर्णतया स्वस्थ हो गये ।