31 October 2018

WISDOM ----- भगवान भावनाओं का मोल समझते हैं

  गुजरात  की  राजमाता  मीनल  देवी  ने   भगवान  सोमनाथ  का  विधिवत  अभिषेक  कर  के  उन्हें  स्वर्ण  दान  किया  l  राजमाता  के मन में  अहंकार  आ  गया  कि  ऐसा  दान  अभी  तक  किसी  ने  नहीं किया   l  रात्रि  को  स्वप्न में  भगवन  सोमनाथ  ने  राजमाता  से  कहा  ---- "मेरे मंदिर में  एक  गरीब  महिला  आई   है  l  उसका  आज  का    पुण्य  तुम्हारे  स्वर्ण दान  की  तुलना  में   कई  गुना  ज्यादा  है   l "
  राजमाता  ने  उस  महिला  को  महल  से बुलवा  दिया   और  उससे उसके   पुण्य  के   बारे  में  पूछा  l
  गरीब  महिला  बोली ---- राजमाता !  मैं  जो   अत्यंत  गरीब  हूँ  l  मुझे  तो  कल  किसी  व्यक्ति  ने  दान  में  एक  मुट्ठी  बूंदी  दी  थी   l  उसमे  से  आधी  बूंदी  मैंने  भगवन  सोमनाथ  को  चढ़ा  दी   और  शेष  आधी खाने  चली  थी  कि  एक  भिखारी  ने  मुझसे  मांग  ली   तो  वह  मैंने  उसे  दे  दी  l  राजमाता  समझ  गईं  कि  उस  गरीब  महिला  का   निष्काम  कर्म  उनके  स्वर्ण दान  से  बढ़कर  है  l   भगवान  भावनाओं को  समझते  हैं   l  

30 October 2018

WISDOM ----- सन्मार्ग मिलने पर दुराचारी का भी कल्याण होता है

   एक  डाकू  फकीरों  ,  दरवेशों  के  वेश  में  डाके  डालता  था  l  अपना  हिस्सा  वह  गरीबों  में  बाँट  देता  था  l  हाथ  में  माला  लिए  जपता  रहता  l  एक  बार  उसके  दल  ने  काफिला  लूटा  l  एक  व्यापारी के  हाथ  में  ढेर  सारा  रुपया - पैसा  था  l  लूट  चल  रही  थी  l  उसने  फकीर  को  देखा   तो  उसके  पास सारा  धन  लाकर  रख  दिया   l  काफिला  लुट  जाने  के  बाद  वह  धन  लेने  पहुंचा  तो  देखा  कि  वहां  तो  लूट  का  माल  बांटा  जा  रहा  है  ,  सरदार  वाही  था ,  जो  दरवेश  बना  हुआ  था  l   व्यापारी  बोला ---- " हमने  तो  आपको  दरवेश  समझा  था  l  आप तो  कुछ  और  ही  निकले   l  हमने  डाकुओं  के  सरदार  पर  नहीं  ,  फकीर  पर ,  खुदा के  बन्दे  पर  विश्वास  किया  था  l  आदमी  का  भरोसा  साधु , फकीर  पर  से  उठना    नहीं  चाहिए   l  यह  धन  आप  रखिये  ,  पर  आपसे  एक   विनती  है  कि  आप  दरवेश  के  वेश  में  मत   लूटिये  l  नहीं  तो  लोगों  का  विश्वास  ही   इस  वेश  पर  से  उठ  जायेगा  l   वह  डाकू  तत्काल  ही  वास्तव  में  फ़क़ीर  बन  गया   l  उसके  बाद  उसने  कभी  डाका  नहीं  डाला   l  

29 October 2018

WISDOM ------ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

  मनुष्य  की  स्वतंत्रता  कर्म  करने  में  है  ,  उसके  फल  में  नहीं  l  हम  जो  आज  हैं  वह  हमारे  अतीत  में   किये  गए कर्मों  का  ही  परिणाम  है   और  भविष्य  में  हम  जो  भी  होंगे  ,  जिस  स्थिति   में  होंगे  वह  हमारे   वर्तमान  में  किये  गए  कर्मों  का  ही  परिणाम  होगा  l 
   महाभारत  में  महासमर  से  पहले  भगवान  श्रीकृष्ण  शांतिदूत  बनकर  कौरवों  की  सभा  में  गए  l  वहां  उन्होंने  शांति प्रस्ताव  के  कई  रूप  कौरवों  के  सामने  रखे   किन्तु  दुर्योधन  ने  इन्हें   मानने  से  इनकार  कर  दिया  और  अपने  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  को  बंदी  बनाने  का  प्रयत्न  करने  लगा   l   तब  भगवन  ने  कौरव  सभा  में  अपना  विराट  रूप  दिखाया   l   तब  धृतराष्ट्र   को  मन  में  लगने  लगा  कि  यदि  मेरी  अंधता  न  होती  तो  मैं  भी  भगवान  के   दिव्य  रूप  के  दर्शन  कर  सकता  l 
  उन्होंने  भगवान  श्रीकृष्ण  से  पूछा---- "  मेरे  किस  कर्म  के  अशुभ  प्रभाव  से   मुझे  यह  दंड  मिला  है  ?  क्या  प्रकृति  ने  मेरे  साथ  अन्याय  किया  है   ?  "
इस  पर  श्रीकृष्ण  बोले  ---- " प्रकृति  किसी  के  साथ  कोई  अन्याय  नहीं  करती   l "  उन्होंने  कहा --- " मैं  आपके  वर्तमान  जीवन  से  पहले  का  108 वां  जन्म  देख  रहा  हूँ  --- एक  किशोर  बालक   पेड़  के  घोंसले  से  चिड़िया  के  बच्चों  की  आँख  में  काँटा  चुभोकर   उन्हें  अँधा  कर  रहा  है  l  यह  किशोर  और  कोई  नहीं ,  स्वयं  आप  हैं   l  पिछले  जन्मों  में  शुभ  कर्मों  के  कारण  आपका  यह  संस्कार  उभर  नहीं  सका  ,  लेकिन  उसी  पाप  के  परिणामस्वरूप   इस  जन्म  में  आपको  अंधे  के  रूप में  जन्म  लेना  पड़ा   l  "    

28 October 2018

WISDOM ----- यदि भावनाएं परिष्कृत हों तो सेवा स्वयं साधना बन जाती है l

    पूजा - पाठ ,  कर्मकांड  हों  या  समाज कल्याण  के  कार्य ,  यदि  व्यक्ति  का  उद्देश्य   नाम , यश  और  धन  कमाना  है    तो   उससे   आत्मिक  शान्ति  नहीं  मिलेगी,  जीवन  भर  व्यक्ति  शांति  की  तलाश  में  भटकता  ही  रहेगा  l   जो  लोग वास्तव  में     तनाव रहित  जीवन ,  सुख - शांति से  जीना  चाहते  हैं  उनके  लिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य   द्वारा  लिखित  अखण्ड  ज्योति  का  यह  अंश  महत्वपूर्ण  है ---- " विकारों  को  एक  स्थान  पर  बैठकर  जप - तप,  पूजा - पाठ  आदि  कर  के  दूर  नहीं  किया  जा  सकता  l  एक  स्थान  पर   इन  विकारों  को  जीतने  का  प्रयत्न  करने  से   इनसे  एक  भयानक  मानसिक  द्वन्द  आरम्भ  हो  जाता  है   और  मनुष्य  की  बहुत  सारी  शक्ति  और  समय   इसी  संघर्ष  से  निपटने  में   व्यय  हो  जाता  है   l
  इन  विकारों  को   विजय  करने  का  सबसे  सरल  तथा  सही  उपाय  एक  ही  है  कि  मनुष्य  समाज  में  अपने  को  मिला  दे   l  जनसेवा  का भाव  लेकर  कर्मक्षेत्र में  उतरे  l  जनसेवा  का  भाव  लेकर   कर्मक्षेत्र  में  उतर  पड़े  l  समाज  में  घुसकर  रहने  से ,  उसमे  सेवा  का  सक्रिय  व्यवहार  अपनाने  से  ,  हानि - लाभ , दुःख - सुख ,  हर्ष - शोक , क्रोध   आदि  के  हजारों  कारण    आयेंगे  ,  लाखों  प्रतिकूल  परिस्थितियों  से  होकर  जाना  पड़ेगा  l  ऐसे   अवसर  पर   अपने  विकारों  पर  संयम   करने  का  स्वस्थ  एवं  सफल  अभ्यास  प्राप्त  होगा  l   निष्कामता  को  अपनाकर  अपने  अहं  पर  चोट  सहता  हुआ  मनुष्य  ज्यों - ज्यों  जनसेवा  की   और  बढ़ता  है  त्यों - त्यों  उसका  आत्मिक  विकास    होता  है   l  आत्मिक  विकास  का  विस्तार  होने  से  धीरे - धीरे    उसके  सम्पूर्ण   विकार  तिरोहित   हो  जाते  हैं   और  वह  आध्यात्मिक  हो  जाता  है  l  "
आचार्यजी  का  स्पष्ट  मत  था --- कर्मयोगी  बनो ,  पवित्र  भावना  से  कार्य  करते  हुए   मन  में  गायत्री मन्त्र  का  जप  करो  ,  यही  सच्ची  उपासना  है   l  

27 October 2018

WISDOM ----- उचित दंड न हो तो अनीति एवं अनाचरण अपने चरम पर पहुँच जायेंगे , अत: इनका दमन आवश्यक है l

    दण्डो  दमयतामस्मि  l  ----श्रीमद् भगवद्गीता  
 गीता में  भगवान  श्रीकृष्ण   कहते  हैं  - मैं  दमन  करने  की  शक्ति  हूँ  l   भगवान  कहते  हैं  दमन  पाशविक  भी  है  और   ईश्वरीय  विभूति  भी  है   l 
 भगवान  कृष्ण  आगे  कहते  हैं  कि  दमन  यदि  विवेकहीन ,  औचित्यहीन ,   व  नीतिहीन  हो  तो   आसुरी  एवं  पाशविकता  का  परिचय  प्रदान  करता  है  ,  घोर  संकट  का  कारण  बन  जाता  है   तथा  मनुष्य  , समाज  एवं  स्रष्टि  को  भारी  क्षति  पहुँचाता  है   l 
  परन्तु   यदि    अन्याय,  अनीति , अनाचार , दुराचार , शोषण , भ्रष्टाचार   का  दमन  किया  जाता  है   तो  दमन  ईश्वरीय  विभूति  के  रूप  में  अलंकृत  होता  है   l  जो  इसे  करने  का  साहस  दिखाता  है   ,  दंड  उसके  हाथों  में   ईश्वरीय  शक्ति  के   रूप  में  शोभित  होता  है  l  
  मनुष्य  का    अनियंत्रित  और  असंतुलित  आचरण  व्यापक  विनाश  का  कारण  बनता  है   l  अत:  स्रष्टि   के  संतुलन  को  बनाये  रखने  के  लिए   भगवान  ने  दंड  विधान  की   व्यवस्था  प्रदान  की  है   l 

26 October 2018

WISDOM ------ समझदारी के अभाव में नकारात्मकता बढ़ती है

  एक  बार  अमेरिकी  राष्ट्रपति   अब्राहम  लिंकन  ने  अपने  एक  सैनिक  अफसर  को  किसी  सहयोगी  व्यक्ति  के  साथ   उग्र  विवाद  में  उलझते   देखा ,  तो  उसे  सख्ती  से  डांटा  l  उनका  कहना  था ------------------- "  कोई  भी  व्यक्ति  जो  अपनी  क्षमता  को  पूरा  विस्तार  देने  के  लिए    प्रतिबद्ध  है  ,  उसके  पास व्यक्तिगत  कलह  के  लिए   समय  नहीं  होना  चाहिए  l  चाहे  इसके  लिए   उसे  अपने   सामान्य  या  निजी  अधिकारों  को  त्यागना   ही  क्यों  न  पड़े   l  "
  लेकिन  कोई  भी  अपने   छोटे -से -छोटे  अधिकार  का  भरपूर  उपयोग  करना  चाहता  है  ,  उसे  त्यागना  नहीं  चाहता  ,  इसलिए  विवादों  में  पड़  जाता  है   l 
  हम  जो  भी  निर्णय  लेते  हैं   या  जो  भी  चाहते  हैं  ,  उससे  सभी  सहमत  नहीं   होते  हैं    l   और  यह  सह्मति,   असहमति  कभी - कभी   या  अक्सर    आपस  में कलह  का  कारण  बन  जाती  है   l 
  बात  थोड़ी  सी  होती  है  ,  लेकिन  समझदारी  के    अभाव  में    वह  बहुत  विकृत  रूप  में  उभरकर   सामने  आती  है   l  इससे  न  केवल  समय  की  बरबादी  होती  है  ,  बल्कि  इससे  आस - पास  का   वातावरण  भी  नकारात्मक   तत्वों  से  भर  जाता  है   l 
 असहमति  होते  हुए  भी     सहमति  के   बिन्दुओं  को    खोजना     ,  कलह  को  न  होने  देने  का    सबसे   अच्छा    तरीका  है   l  

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता l नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ll

  ऋषियों  का ,  आचार्य  का  मत है  कि    जो   व्यक्ति  प्रत्येक  रात्रि  को   सोते  समय   गायत्री  मन्त्र  का  जप  करे  ( भगवत्स्मरण )   करे   तो  उसके  जीवन  की  निद्रा   से  सम्बंधित  समस्याएं ,  अनिद्रा  आदि  व्याधियाँ,  बीमारियाँ  समाप्त  हो  जाती  हैं    और  अध्यात्म  के  क्षेत्र  में  भी  आगे  बढ़ते  हैं   l
  इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है -----  एक  व्यापारी  था  ,  वह   व्यापार    के  सिलसिले  में   एक  नगर  से  दूसरे  नगर  जाता  था   l  इस  बार  वह  अमरकंटक  जा  रहा  था ,  रास्ते  में  सोच  रहा  था  -- " मैंने  जीवन पर्यंत  पाप  ही  पाप  किये  हैं  ,  मदिरापान , वेश्यागमन , मिथ्या भाषण  में  मैं  सबसे  आगे  रहा  l "  ऐसा  चिन्तन  करते  हुए  वह  अमरकंटक  पहुँच  गया   l  संयोगवश  उस  दिन शिवरात्रि  थी   l  मंदिरों  में  अभिषेक , पूजन ,  अर्चन   देखकर  उसे  विचित्र  अनुभव  हुए   क्योंकि  उसने  कभी  इस  तरह  के  कार्य  नहीं  किये  थे   l  यह  सब  देखकर  उसे  विलक्षण  शांति  का  अनुभव  हुआ   l  रात्रि  का  समय  था  ,  वह  मंदिर  के  बाहर  ही     जमीन  पर  लेट  गया   l    उसे  अपने  दूषित  कर्मों  पर  दुःख  हो  रहा  था  ,  साथ  ही  मंदिर  में  होने  वाले   अभिषेक , अर्चन  आदि  से  ईश्वर  का  पवित्र  नाम  उसके  कानों  से  ह्रदय  में  जा  रहा  था  l  शीघ्र  ही  उसे  गहरी  नींद  आ  गई  l  वहां  उसे  एक  काले नाग  ने  काट  लिया   l  लोगों  ने  उसकी  चेतना  लौटाने  के  लिए  अभिषेक  का  पवित्र  जल   उसके  मुँह  पर  छींटा, किन्तु  उसके  प्राण  निकल  चुके  थे  l
      चित्रगुप्त  महाराज  ने  उसके  कर्मों  का  लेखा  पढ़ते  हुए  यमराज  से  कहा  ---- "  यह  महान  पापी  है  ,  इसे  घोर  नरक  में  कष्ट  सहने  के  लिए  डाला  जाये  l  "  किन्तु  चित्रगुप्त  , यमराज  व  दूतों  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   कि  नरक  के  कष्टों  से  उसे  कोई कष्ट  ही  नहीं  हुआ  ,  वह  तो  शांत  और  सुरक्षित  है  l
उसी  समय  नारदजी  आ  गए  ,  उन्होंने कहा --- "   इसमें  आश्चर्य  की  कोई  बात  नहीं  है   l  उसने  निद्रा  में  भगवन   शिव  का  चिंतन   करते  हुए  प्राण  त्यागे ,   उसके  मन  में   अभिषेक , पूजन   अर्चन  के  पवित्र  भाव  के  साथ  अपने  दूषित  कर्मों  के  लिए   प्रायश्चित  भाव  होने  के  कारण  उसका  मन  पवित्र  है l  इसलिए  अब  उसे  नरक  का  कोई  कष्ट  नहीं  है   l  "  रात्रि  को  और  अपने  जीवन  की  अंतिम  निद्रा  को  संवार  लेने  के  कारण  उसका  कल्याण  हुआ  l 
  आचार्य  कहते  हैं -- ईश्वर  को    पवित्र  भावना   प्रिय  है ,  लेटे - लेट  भी  मानसिक  जप  किया  जा  सकता  है   l   

25 October 2018

WISDOM ---- नियत से नियति का निर्माण होता है

 ' नियति  व्यक्ति  के  कर्मों  का  परिणाम  होती  है   l  नियत  के  अनुसार  नियति  होती  है   l  व्यक्ति  का  उद्देश्य  क्या  है  ?  वह  जैसा  सोचता  है , करता  है   ,  वैसी  ही  उसकी   नियति  होती  है  l
  महाभारत  के  उदाहरण  से  इसे  समझा  जा  सकता  है  -----  धृतराष्ट्र   के  पुत्र  ' कौरव '   सदा  ही  षड्यंत्रकारी , फरेबी ,  झूठे   एवं  अहंकारी  थे  l  उनके  जीवन  का  उद्देश्य  अपने  को  स्थापित  करना   और  दूसरों  को  परेशान  करना  था   l  वे  घोर  अधर्मी  थे   l  पाप पूर्ण  आचरण  ही  उनकी  नीति  थी  l
     इसके  विपरीत  पांडु पुत्र   ' पांच  पांडव '  सदाचारी , , सत्य , न्यायप्रिय , त्यागी   एवं  परोपकारी  थे  l  औरों  की  रक्षा  के  लिए  वे  अपने  प्राणों  की  बाजी  लगा  देते  थे  l  धर्म  पर  उनकी  अगाध  आस्था  थी , उनकी  नीति  धर्म  पर  आधारित  थी   l  इसी  नीति  और  आचरण  के  कारण  उनकी  नियति  का  निर्माण  हुआ  l 
   महाभारत  के  युद्ध  में  पांडवों  के  साथ  भगवान  कृष्ण  स्वयं  थे   और  कौरवों के  साथ  महा  पराक्रमी  भीष्म ,  द्रोंण, कर्ण   आदि  महारथी  थे  l   परन्तु  इतने  सारे  महारथी  भी  दुर्योधन  को  विनाश  की  नियति  से  उबार  नहीं  सके  l  जबकि  पांडवों  की  नियति  धर्म  के  साथ  खड़े  होकर  विजय  प्राप्ति  की  थी   l   नियति  के  अनुसार  कौरव  मिट  गए  और  पांडवों  को  विजय पताका  फहराने  का  सुअवसर  प्राप्त  हुआ  l
     सतत  सत्कर्म ,   सदाचरण   एवं  सदभाव  के  द्वारा  हमारी  नियति   श्रेष्ठता  से  परिपूर्ण  हो  जाती  है    और  इसके  विपरीत    आचरण ,  व्यवहार  से   नियति   अत्यंत  कष्ट साध्य  बन  जाती  है  l  

24 October 2018

करुणा के महासागर ----- महर्षि वाल्मीकि

 महर्षि  वाल्मीकि  के  सन्दर्भ  में  एक  प्रसिद्ध  घटना  है  ---- एक  बार महर्षि  वाल्मीकि   तमसा  नदी  जिसे  अब  टोंक  नदी  कहते हैं  ,  के  तट  पर  अपने  शिष्य   स्नान के  लिए  गए  l   वहां  नदी  के  किनारे  पेड़  पर  क्रौंच  पक्षी  का  एक  जोड़ा   प्रेममग्न   था  l  तभी  व्याध  ने  इस  जोड़े में  से   नर  क्रौंच  पक्षी  को  अपने  बाणों  से  भेद  दिया  l  रोती  हुई  मादा  क्रौंच  भयानक  विलाप   करने  लगी   तो  करुणा  के  महासागर   महर्षि   वाल्मीकि  का  ह्रदय  इतना  द्रवित हुआ  कि  उनके  मुख  से  अचानक  यह  श्लोक  फूट  पड़ा ----
     मा  निषाद   प्रतिष्ठाम  त्वमगम:  शाश्वतीः  समा:  l
     यत  क्रौंचमिथुनादेकम वधी:  काममोहितं   l l      ( वाल्मीकि  रामायण )
 अर्थात   हे  निषाद  !  तुम  चिरस्थायी  प्रतिष्ठा  को  प्राप्त  नहीं  हो  सकोगे  ,  क्योंकि  तुमने  काममोहित   क्रौंच  का  वध  कर  दिया  l   उनकी  इस  करुणा  से  एक  महाकाव्य  ' रामायण '  का  उदय  हुआ  , जिसके  कारण  महर्षि  वाल्मीकि  विश्व  के  प्रथम  कवि     के  रूप  में  प्रतिष्ठित  हुए    l 
  रामायण  एक  अलौकिक ,  प्रेरणादायी  और  उत्कृष्ट  रचना  है  ,  जिसमें  हमें  मानवता  की  प्रतिष्ठा , दुष्टों  का  दमन , अनीति  का  प्रतिकार , नारी शोषण  का  विरोध ,  प्रकृति  चिंतन , युद्ध  कौशल  की  रणनीति ,  जीवन  प्रबंधन   और  जीवन  जीने  की  कला   व  अध्यात्म  के  गूढ़  रहस्य  आदि  के  दर्शन  होते  हैं  l 
  महर्षि  वाल्मीकि  जी  की  प्रासंगिकता  इसलिए  भी  है  कि  उन्होंने  ही  इस  धरती  से  ' वसुधैव  कुटुम्बकम '  का   उद्घोष  किया  ---
                अयं  निज:  परो  वेति  गणना  लघुचेतसाम
                उदारचरितानाम   तु  वसुधैव  कुटुम्बकम   l
 वाल्मीकि  रामायण  में  केवल  राष्ट्रहित  की  उद्घोषणा  नहीं  है  ,  बल्कि  उसमे  सम्पूर्ण  मानव  समाज   एवं   विश्व शांति  की  परिकल्पना  सन्निहित  है  l  वर्तमान  समय  में  जब  चारों  और   अशांति , असुरक्षा , भ्रष्टाचार ,  अनाचार  व  आतंकवाद  रूपी  रावण  का  आतंक  फैला  हुआ  है  ,  ऐसे  में  वाल्मीकि  रामायण  की  प्रासंगिकता  और  उपादेयता   और  भी  बढ़  जाती  है   l  

23 October 2018

WISDOM ---- जिसके जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में हो , उसको कैसी चिंता !

 महाभारत  के  युद्ध  में  भगवान  श्री कृष्ण  अर्जुन  के  सारथी  बने  l  वे  सर्वप्रथम  अर्जुन  को  सम्मान  के  साथ  रथ  में  चढ़ाने  के  साथ  फिर  वे  रथ  में  आरूढ़  होते  और  अर्जुन  के  आदेश  की  प्रतीक्षा  करते  l   और  संध्या  को  जब  युद्ध  से  वापस  शिविर  में  लौटते  तो  पहले   भगवान श्रीकृष्ण  उतरते  फिर  अर्जुन  को  उतारते  l
 महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हो  गया   l  इस  बार  श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  कहा --- " पार्थ ! आज  तुम  पहले  रथ  से  उतर  जाओ  l  तुम  उतर  जाओगे  तब  मैं  उतरता  हूँ  l  " अर्जुन  के  रथ  से  उतरने  के  बाद   भगवन  कृष्ण  उतरे  और  अर्जुन  के  कंधे  पर  हाथ  रखकर  रथ  से  दूर  ले  गए  और  उसी  पल  भयानक  विस्फोट  के  साथ  रथ  जलकर  खाक  हो  गया  l   अर्जुन  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ  l 
  भगवान  कृष्ण  ने   कहा ---- पार्थ !   पितामह  भीष्म ,  द्रोण और  कर्ण  के  दिव्यास्त्र  के  प्रहारों  से  इस  रथ  की  आयु  तो  बहुत  पहले  ही  समाप्त  हो  चुकी  थी   लेकिन  अधर्म  के  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  में  इसके    महत्वपूर्ण  योगदान  के  कारण  मेरे  संकल्प  बल  से  यह  अभी  तक  चल  रहा  था   l  "
  भगवान  का  यह  सन्देश  आज  भी  उतना  ही   महत्वपूर्ण  है   l  हम  अपने  इस  शरीर  रूपी  रथ  का  उपयोग  संसार  में  सत्प्रवृतियों  के  प्रसार  ,   धर्म  की  स्थापना  और  ईश्वर  की  इस  बगिया  को  सुन्दर  बनाने  में  करे  l   ईश्वर  के  हाथों  का  यंत्र  बनकर  निश्चिन्त  रहें   l  

22 October 2018

WISDOM ---- क्रोध की स्थिति में व्यक्ति स्वयं अपना नुकसान करता है

 क्रोध  हर  व्यक्ति  की  शारीरिक  व  मानसिक  सेहत  के  लिए   बहुत  नुकसानदायक  है  l   जैसे  दूध  उबलने  पर   उसकी मलाई  बर्तन  से  बाहर  गिर  जाती  है  ,  ठीक  इसी  तरह  क्रोध  की  अवस्था  में  हम  अपनी  ऊर्जा  को    अन्य   परिस्थितियों  की  तुलना  में  अधिक  गंवाते  हैं   l 
  भगवान  बुद्ध अपने  शिष्यों  को  क्रोध  न  कर  के  शांत  रहने  का पाठ  पढ़ाते थे   l   एक  बार  गौतम  बुद्ध  अपने  शिष्यों  के  साथ  एकदम  शांत  बैठे  थे  l  शिष्य  चिंतित  थे   कि  इस  तरह  मौन  रहने  की  क्या  वजह  है  ?  थोड़ी  देर बाद  कुछ  दूर  पर  खड़ा  एक  व्यक्ति  जोर  से  चिल्लाया  --- " आज  मुझे  सभा  में  बैठने  की  अनुमति  क्यों  नहीं  दी  गई  ? "    इससे  अप्रभावित  भगवान  बुद्ध  मौन  बैठे रहे  l  वह  व्यक्ति  पुन:  जोर  से  चिल्लाया  l  एक  शिष्य  ने  उसका  पक्ष  लेते  हुए  कहा  कि  उसे  सभा  में  आने  की  अनुमति  प्रदान  की  जाये  l  बुद्ध  ने  आँखें  खोली  और  बोले ---- " नहीं ,  वह  अस्पृश्य  है  ,  उसे  आज्ञा  नहीं  दी  जा  सकती  l  "  शिष्यों  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  ,  वे  बोले --- " पर  हमारे  धर्म  में  जात -पांत  का  कोई  भेद  नहीं  फिर  वह  अस्पृश्य  कैसे  हो  गया  ? "
  बुद्ध  ने  स्पष्ट  किया ---- " आज  वह  क्रोधित  होकर  आया  है  l  क्रोधी  व्यक्ति  मानसिक  हिंसा  करता  है ,  इसलिए  वह  अस्पृश्य  होता  है  l  उसे कुछ  समय  एकांत  में  ही  खड़ा  रहना  चाहिए  l  पश्चाताप  की  अग्नि  में   तपकर  वह  समझ लेगा   कि  अहिंसा  ही  महान  कर्तव्य और  धर्म  है  l "
  शिष्यों  ने  एक  नया  पाठ  सीखा  और  उस  व्यक्ति  ने  क्रोध  न  करने  की  शपथ  ली  l  

21 October 2018

WISDOM ----- ईर्ष्यालु व्यक्ति अपना ही अहित करता है

 ईर्ष्यालु  व्यक्ति  न  खुद  चैन  से  रहता  है  और  न  दूसरों  को  चैन  से  रहने   देता   है  l    वह  व्यक्ति  जिससे   किसी  को  ईर्ष्या  है ,    यदि  आत्मबल  संपन्न  है ,   उसमे  विवेक बुद्धि  है   तो  वह  विभिन्न  षडयंत्रों  का  , आक्रमण  का   साहस  के  साथ  सामना  करता  हुआ  आगे  अपने  लक्ष्य  की  और  बढ़ता  जाता  है  और  सफल  होता  है  l  लेकिन  ईर्ष्यालु  व्यक्ति    अपने  हाथों  अपना  ही  नुकसान  करता  है  l  उसका  सारा  समय  व  उर्जा  व्यर्थ  के  ताना -बाना  बुनने  में  ही  खर्च  हो  जाती  है  l  दूसरों  को  देखकर  चिढ़ना -कुढ़ना  उसका  स्वभाव  बन  जाता  है  ,  ईर्ष्या  की  आग  में  जलकर  वह  स्वयं  अपना  सुख - चैन  समाप्त  कर  लेता  है   l 
 श्रीरामचरितमानस  में  एक  प्रसंग  है  ----- जब  श्री हनुमानजी  सीताजी  का  पता लगाने  के  लिए  आगे   बढ़ते  हैं  तो  उन्हें  सिंहिका  नामक  राक्षसी  मिलती  है  ,  जिसे  उन्होंने  मार  डाला    क्योंकि  वह  ईर्ष्या  का  प्रतीक  थी  l  वह  उड़ते   हुए  लोगों  की  परछाई  पकड़कर   उन्हें  खा जाती  थी   l  ऋषियों  का  मत  है  कि  ईर्ष्या  को  जिन्दा  नहीं  रहने  देना  चाहिए  l  ईर्ष्यालु  लोग  अपनी  पूरी  उर्जा  दूसरों  से  लड़ने  में   लगा  देते  हैं ,   जबकि  यदि  मनुष्य  को  लड़ना  है   तो  उसे  अपनी  किस्मत  से  लड़ना  चाहिए  ,  ताकि  वह  उसे  बेहतर  बना  सके   l    ईर्ष्या  छोड़कर  मन  को  शांत  रखने  से   जीवन  की  अनेक बड़ी - बड़ी  समस्याएं  आसानी  से  हल  हो  जाती  हैं   l 

20 October 2018

WISDOM ------ स्वयं को श्रेष्ठ व बड़ा सिद्ध करने के प्रयास में मनुष्य अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए

 हम  सब  अपनी  जिन्दगी  में   स्वयं  को  श्रेष्ठ  व  बड़ा  सिद्ध  करने  के  लिए    आपस  में  लड़ने - भिड़ने  में  अपनी   ऊर्जा  व  समय   दोनों  को  बरबाद  कर  देते  हैं   और  अपने  लक्ष्य  से  भटक  जाते  हैं  l  रामचरितमानस  का एक  प्रसंग  है   जिससे  हमें  शिक्षा  मिलती  है  कि  हमें  व्यर्थ  के  झगड़ों  में   अपना  समय  व  ऊर्जा  बर्बाद  न  कर  ,  लक्ष्य  पर  ध्यान  केन्द्रित  करना  चाहिए  ----------  जब  श्रीहनुमानजी  सीता माता  की  खोज  के  लिए  जाते  हैं   तो  उनके  सामने  सुरसा  नाम  की  राक्षसी  आती  है  l  इन्हें  खाने  के  लिए  उसने  अपना  मुंह  बड़ा  कर के    खोला   तो  हनुमानजी  ने  भी  अपना  रूप  बड़ा  कर  लिया   और  फिर छोटे बनकर   उसके  मुँह  में  प्रवेश  कर  बाहर  निकल  गए  l  इस  आचरण  से  उन्होंने  यह  बताया  कि  वे  चाहते  तो  सुरसा  से  युद्ध  कर  के  उसे  पराजित  कर  सकते  थे  किन्तु  ऐसा  कर  के  उनका  समय  व  ऊर्जा  बर्बाद  होती  l  उनका  लक्ष्य  सुरसा  को  पराजित  करना  नहीं  था ,  उनका  लक्ष्य  था  सीता माता  की  खोज  करना  l  इसके  साथ  ही  उन्होंने   अपने  आचरण  से  यह  भी  बताया  कि  लघुरूप  अर्थात  नम्रता  ,  सदैव  विजय  दिलाती  है   l  

19 October 2018

WISDOM ----- राम काजु किन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ---- रामचरितमानस

 श्री हनुमानजी  बहुमुखी  व्यक्तित्व  के  स्वामी  हैं  l  श्रीरामचरितमानस  में  वही  एक  ऐसे  पात्र  हैं  जो  हमें      रास्ता  दिखाते  हैं ,  ऐसी  चतुराई  सिखाते  हैं  जो  हमें  श्रीराम  से  मिला  दे  l  उन्होंने  कहा  कि   राम  का  नाम  लेने  के  साथ ' भगवान  राम '  का  काम  भी  करो  l  उन्होंने  जो  कहा  वह  अपने  आचरण  से   कर  के  भी  दिखाया   l   उन्होंने  केवल  राक्षसों  का  ही  अंत  नहीं  किया  अपितु  उन्हें  संरक्षण  देने  वालों  को  भी  मजा  चखाया   l   
 जब  समुद्र  को  पार  कर  के  श्री  हनुमानजी  लंका  पहुंचे  , तो  लंका  द्वार  पर  लंका  की  रक्षा  करने वाली   लंकिनी  नामक  राक्षसी  मिली  l  उस  समय  हनुमानजी  अति लघुरूप  में  थे  , फिर  भी  उसने  हनुमानजी  को  पहचान  लिया   और  बलपूर्वक  उन्हें  रोकने  का  प्रयास  किया  ,  तब  उन्होंने  लंकिनी  को  मुक्का  मारा  और  उसे  घायल  कर  दिया  l
  लंकिनी   लंका  की रक्षक  थी   किन्तु  वह  रावण  जैसे  अत्याचारी ,  जिसने  परस्त्री  पर  कुद्रष्टि  डाली,  उनका  हरण  किया  , वह    उसकी  सेवा  में  थी   l   जो  रक्षक  एक  गलत  व्यवस्था  की   रक्षा  करे  ,  उस  पर  प्रहार  करना  चाहिए   l  शौर्य  का  यह  अनुपम  उदाहरण  श्री हनुमानजी  ने  यहाँ  प्रस्तुत  किया   l  
  उन्होंने  भगवान  राम  का  कार्य  किया  ,  सीताजी  का  पता लगाया  ,  उन्हें  भगवान  का  सन्देश  दिया  l  श्रीराम  का  कार्य  कर के  ही  उन्होंने  भगवान  को  प्रसन्न  किया  l  
   आज  के  समय  में   समूचे  संसार  को  श्री  हनुमानजी  के  व्यक्तित्व  से  शिक्षा  लेने  की  जरुरत  है  l  सभी  धर्मों  के  लोग  अपने - अपने  भगवान  के  लिए  भव्य  भवन  बनाकर ,  कुछ  देर  कर्मकांड  कर   उन्हें  कमरे  में  बंद  कर  देते  हैं   और  फिर  पाप , भ्रष्टाचार , अनाचार , अत्याचार  आदि  अनैतिक   कार्यों  में  संलग्न  हो  जाते  हैं  ,  सोचते  हैं  कि  अब  भगवन  उन्हें  नहीं  देख  रहे  हैं   l  हम  सबके  ह्रदय  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  है  ,  वे  केवल  हमें  नहीं ,  हमारे  मन  में  क्या  चल  रहा  है  उसे  भी  जानते  हैं  l
पाप  , अत्याचार , राक्षसी  प्रवृतियों  के  कारण  ही  प्रकृति  नाराज  हो  गई  हैं   l   हम  सब  अपने  भीतर  श्री  हनुमानजी  का  बल  जगाएं  ,   पापी  का  दंड  तो  ' काल ' निर्धारित  करता  है   l  हम  कम  से  कम  अत्याचारी , अन्यायी  का  और  उन्हें  संरक्षण   देने  वालों  का  बहिष्कार तो  करें  ,   जिससे  समाज  में  यह  सन्देश   जाएगा   कि  ऐसे  लोगों  द्वारा  किये  जाने  वाले  कार्य  अनैतिक  और  अमानवीय  हैं   और
 धीरे - धीरे    लोग  सद्गुणों का   महत्व  समझेंगे   l  

18 October 2018

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

  माँ  आदिशक्ति  की  कठोरता  का  कोई  भी  रूप  क्यों  न  हो ,  श्रद्धाभाव  से   ' माँ '  कहकर  पुकारने  से  उनकी  ममता  छलक  उठती  है   और  उनके  कोप  की  रौद्रता  करुणा  में  परिवर्तित  हो  जाती  है   l  इस  सत्य  को  बताने  वाली   एक  पुराण कथा  है -----  असुरराज  विकटदंत  का   बेटा   सुबल   भगवती  का  अनन्य  भक्त  था ,  उसके  पिता  को  यह  बात  सुहाती  न  थी  l  उसने  अपने  ही  पुत्र  को  मारने  के  कई  षडयंत्र  किये  परन्तु माँ  की  कृपा  से  वे  सब  विफल  हो  गए  l  तब  वह  असुरराज  स्वयं  महाखड्ग  से  सुबल  को  मारने  को  उठ  खड़ा  हुआ  l  अपने  भक्त  पर  ऐसा  अत्याचार  माँ  सहन  न  कर  सकीं  और  और  परम कोपवती  महाकाली  के  रूप  में  वहां  प्रकट  हो  गईं  l  देखते - ही - देखते  उन्होंने  असुरराज  को  समाप्त  कर  दिया  l  किन्तु  उनका  कोप  शान्त  न  हुआ  l  उनके  क्रोध  से  त्रिलोकी  कम्पित  होने  लगी  l
      सब  देवी - देवता  और  महादेव  स्वयं  आ  गए  किन्तु  किसी  विधि  से  उनका  कोप  शांत  न  हुआ  l  तब  महादेव  ने  कहा  कि   सुबल  पर  अत्याचार  के  कारण  वे  कुपित  हुईं  हैं  ,  अत:  सुबल  ही  उन्हें  शांत  कर  सकता  है  l  देवों  की  बात  सुनकर  सुबल  प्रसन्न  भाव  से  महाकाली  की  और  बढ़ा  और   ' माँ ' कहकर  उनके  चरणों  से  लिपट  गया  l  उसे अपने  पास  आया  देख  महाकाली  ने  उसे  गोद  में  उठा  लिया  और  उसे  प्यार  करते  हुए  कहा --- पुत्र  !  मुझे  आने  में  देर  लग  गई  l  ' माता  की  ममता  पाकर  सुबल  निहाल  हो  गया  l  उसने  कहा  --- हे  माँ  !  यदि  आप  मुझ  पर  प्रसन्न  हैं  तो  शान्त  हो  जाएँ  और  सम्पूर्ण  जगत  पर  कृपा  करें  l '    सुबल  के  प्रेमपूर्ण  वचनों  को  सुनकर  महाकाली  का  कोप  शान्त  हुआ  और  वे  वापस  अपने  सौम्य  स्वरुप  में   लौट आईं  l   

17 October 2018

WISDOM ----- खुशहाली के लिए जीवन में संवेदना और सद्गुणों को महत्त्व दिया जाना चाहिए

   परिवार  में , समाज  में  खुशहाली  बढ़ाने  के  लिए  शारीरिक,  मानसिक  और  आध्यात्मिक  तीनो  स्तर  पर  स्वास्थ्य  को   महत्व    दिया  जाना  चाहिए   l 
  जब  कोई  बहुत  ज्यादा  गरीब  होता  है  तब  उसकी  आमदनी  बढ़ने  से  उसकी   खुशहाली  बढ़ने  लगती  है  l  लेकिन   बुनियादी  जरूरतें  पूरी  होने  के  बाद   यह  जरुरी  नहीं  रह  जाता  कि  आमदनी  बढ़ने  के  साथ  खुशहाली  भी  बढ़ती  रहे  ,  तब  आय  के  साथ   अन्य   दूसरे  कारण  भी  ज्यादा  महत्वपूर्ण  हो  जाते  हैं   l 
 हम  सब  एक  माला  के  मोती  है  ---- प्रकृति, पर्यावरण ,   मनुष्य  , पशु - पक्षी  आदि  सबके  प्रति  संवेदनशील  रहकर   ही  जीवन  में  खुशहाली  आ  सकती  है  l  इसके  साथ  यह  भी  जरुरी  है   कि  विषमता ,  ऊँच - नीच ,  नफरत , हिंसा  ,  भेदभाव  आदि  नकारात्मक  भावनाएं  समाज  से  दूर  हों  l  जीवन  में  सद्गुण  जितने  बढ़ेंगे  खुशहाली  उतनी  ही  बढ़ेगी   l  

16 October 2018

WISDOM ----- भक्ति से , ईश्वर की शरण में जाने से जीवन रूपांतरित होता है

 ' दुर्गा सप्तशती '   में  कथानक  के  रूप  में  इस  बात  का  उल्लेख  है   कि   काम वासना  को  नष्ट  नहीं  किया  जा  सकता   परन्तु  इसका  रूपांतरण  संभव  है    और  भक्ति  ही  वासना  का  दिव्य  रूपांतरण  है  l  ----- माँ  दुर्गा  सभी  दैत्यों  को  मार  गिराती  हैं  ,  परन्तु महिषासुर  ही  एक  ऐसा  दैत्य  है  जो  मरता  नहीं  है  ,  माता  के  चरणों  में  शरणागति  को  प्राप्त  करता  है   l         यहाँ  महिषासुर  काम वासना  का  प्रतीक  है  ,  जो   मरा  नहीं   बल्कि   माँ  के  चरणों  में  ,  माँ  की  शरण  में  जाकर  भक्ति   के  रूप  में  रूपांतरित  हो  जाता  है l 

14 October 2018

WISDOM -----------------

  एक  कुष्ठी  भिक्षा  मांग  रहा  था  l  उधर  से  जो  कोई निकलता  ,  कुष्ठी  अपना  हाथ  फैलाकर  कहता  ,  जो  दे  उसका   भी  भला  , और  जो  न  दे  उसका  भी  भला    l   एक  युवक  ने    सिक्का  उसके  हाथ  पर  डालते  हुए  कहा --- " क्यों  भाई  !  तुम्हारा पूरा  शरीर  गला  जा  रहा  है  l  हाथ और  पैर  की  उँगलियाँ  तक  ऐसी  नहीं  रहीं   कि कुछ  कार्य  कर  सको  l  फिर  इस  कष्ट  में   जीवन  जीने  से क्या  लाभ  ?   यह  तो जीवित  अवस्था  में   लाश  ढोने जैसी  स्थिति  है  l
  कुष्ठी  ने  कहा ------ मित्र  !  तुम  बात  तो  ठीक  कहते  हो   l  पर  मुझे  ऐसा  लगता  है  कि  ईश्वर  इसलिए  जीवित  रखे  हुए  है  कि  लोग  कम  से  कम  मुझे  देखकर  समझ   सकें  कि----- इस  संसार में  कभी  भी   तू  मेरे   जैसा   हो  सकता    है   l  अत:  इस  संसार  में   काया  की  सुन्दरता  का  घमंड  करने  से  कोई  लाभ नहीं  है   l 

13 October 2018

WISDOM ---------------------

   प्राचीन  काल   में  जब  राजतन्त्र  था  ,  तब  राजा  वेश  बदलकर   राज्य  में  भ्रमण  करते  और   सही  स्थिति  को समझकर   अपनी  प्रजा  के   कष्टों  को  दूर करने   का  प्रयास  करते  थे  l  ऐसे  में  कभी  राजा  को  सामान्य जनों  से  महत्वपूर्ण  शिक्षा  भी  मिल  जाती  थी   l   इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है -----
    एक  बार  राजा  जनमेजय  वेश  बदलकर  भ्रमण    करते   हुए  एक  गाँव  से  गुजरे  l   वहां  उन्होंने  देखा  कि  कुछ  किशोर  खेल  रहे  हैं  l  उनमे  से  एक  शासक  बना  है  और  अन्य  सभासद  l  शासक  बना  किशोर   जिसका  नाम  है  ' कुलेश '  सभासदों  को  संबोधित  करते  हुए  कह  रहा  है ---- "  सभासदों  !  जिस  राज्य  के कर्मचारीगण    वैभव - विलास  में  डूबे  रहते  हैं  ,  उसका  राजा  कितना  ही  नेक  और  प्रजावत्सल  क्यों  न  हो  ,  उस  राज्य  की  प्रजा   कभी  सुखी  नहीं  रहती  l  मैं  चाहता  हूँ  ,  जो  भूल  जनमेजय  के  राज्याधिकारी  कर  रहे  हैं  ,  वह  आप  लोग  न  करें  ,  ताकि  मेरी  प्रजा  असंतुष्ट  न  हो  l  आप  सबको  वैभव - विलास  का  जीवन  छोड़कर   त्यागपूर्वक  जीवन  जीना  चाहिए   l  जो  ऐसा नहीं  कर  सकता ,  वह  अभी  शासन  सेवा  से  अलग  हो  जाये  l  "  
   राजा  जनमेजय  उस  किशोर  के  गंभीर  चिंतन  से   बहुत  प्रभावित  हुए   और  उसे  महामंत्री  का  पद  प्रदान  किया  l   उसके  महामंत्रित्व   काल  में   अन्य    मंत्रियों ,  सामंतों   एवं  राज्य - कर्मचारियों  के  लिए  आचार - संहिता   बनाई  गई  ,  अतिरिक्त  आय  के  स्रोत  बंद  कर  दिए  गए  ,  इससे  बचा  हुआ  धन  प्रजा  की  भलाई  में  लगने  लगा  ,  कर्मचारी  व जनता  सभी के  लिए  परिश्रम  अनिवार्य  कर  दिया  गया   l  समस्त  प्रजा  में  खुशहाली  छा  गई  l  

12 October 2018

WISDOM ------- आडम्बर नहीं , आचरण है धर्म

 ' धर्म  हमें  त्याग  और  तपस्या  का  पाठ  पढ़ाता  है  l   धर्म  उस  संवेदनशीलता  का  पर्याय   है  ,  जिसमे  हम  दूसरों  के  सुख - दुःख ,  कष्ट - कठिनाइयों  का  अनुभव  करते  हैं   l  '
   एक  व्यक्ति  प्रतिदिन  महात्मा  बुद्ध   के  प्रवचन  सुनने   जाता  था  l  उसका  यह  क्रम  एक  माह  तक  चला  ,  लेकिन  उसके  जीवन  पर  कोई  प्रभाव  न  पड़ा  l  एक  दिन  उसने   परेशान  होकर   भगवन  बुद्ध  से  कहा  ---- " भगवन  !  मैं  एक  माह  से   आपका  प्रवचन  सुन  रहा  हूँ  ,  परन्तु  मुझे  अपने  जीवन  में  कोई  अंतर  दिखाई  नहीं  पड़ा  l  "
  बुद्ध  बोले ----- "  ज्ञान  को  आचरण  में  लाए  बिना   व्यक्तित्व  का  रूपांतरण   असंभव  है  l   जो  सुनते  हो  उसे  अपने  जीवन  में  धारण  करो  ,  तभी  परिवर्तन  दिखाई  पड़ेगा   l  "  

11 October 2018

WISDOM ------ शासक स्तर के व्यक्ति को बुद्धि , शक्ति और चरित्र जैसी विभूतियों से संपन्न होना चाहिए ---- चाणक्य

 चाणक्य  द्वारा  लिखित  ' अर्थशास्त्र '    राज्य  व्यवस्था  का  प्रमुख  मार्गदर्शक  माना  जाता  है  l   चाणक्य  ने  अपने  निष्ठावान  शिष्य  चन्द्रगुप्त  को  शस्त्र  और  शास्त्र  दोनों  की  शिक्षा  दी  l  उसके  साथ  ही   चरित्र  गठन  की  ओर  भी  ध्यान  दिया  l  उनका  मत  था  कि  चरित्र  ही  समस्त  सफलताओं  और  सदुद्देश्यों  को  प्राप्त  करने  का  मुख्य  आधार  है  l  इसके   अभाव  में  बड़े - बड़े   शक्तिशाली  साम्राज्य   और  सम्राटों  का  नाश  और  पतन  हुआ  है  l   साधारण  से  साधारण  व्यक्ति  के  लिए   भी  चरित्र  उतना  ही  उपयोगी  है   जितना  कि  उच्च  प्रतिष्ठित  और  शासन  तथा  अधिकारियों  के  लिए   क्योंकि  चिरस्थायी  शान्ति   और  अपने  उत्तरदायित्व   को  समझने  तथा  उसे  पूरा  करने  की  क्षमता  चरित्र - साधना  से  ही  उत्पन्न  होती  है  l  
  यथा  राजा   तथा  प्रजा   के  अनुसार  चन्द्रगुप्त  के  शासन  काल  में   लोग  भी  उतने  ही  सदाचारी  और  एक  दूसरे  का  ध्यान  रखने  वाले  हो  गए  थे   l   बाहर  का  कोई  भी  शत्रु   राष्ट्र  की  सीमा  को  वेध  नहीं  सकता  था   l   चन्द्रगुप्त  मौर्य  ने  भारतीय  इतिहास  में   एक  स्वर्ण  अध्याय  ---- अपनी  कर्म  लेखनी  से  लिख  डाला  l  

9 October 2018

WISDOM ------ सुख - शांति से जीना है तो जीवन जीने का ढंग रूपांतरित करना होगा

 संसार  में   ऐसे  बहुत  लोग  हैं    जिनके  पास  दूसरों  की   कमियां  निकलना ,  दूसरों  की  निंदा  करना ,  उन्हें   नीचा  दिखाना  ही  सबसे  बड़ा  काम  है  l  ऐसे  लोगों  को  बदला  नहीं  जा  सकता   , लेकिन  यदि  हम  अपने  जीवन  जीने  के  ढंग  को  रूपांतरित  कर  लें ,  अपने  आत्मबल  को  मजबूत  बना  लें  तो  उनके  सारे   प्रयास   विफल  हो  जायेंगे  ,  हमें  प्रभावित न  कर  सकेंगे  और  हम   अपने  आनंद    में  मग्न  रहेंगे  l 
  इसे  समझाने   की  एक    कथा  है ----     पहाड़ियों  के  नीचे  की   घाटियों   में  बसा  एक  गाँव  था  l  उस  गाँव  के  लोग  बड़े  कष्ट  में  थे  l  वर्षा  होती ,  नदियों  में  बाढ़  आती  तो  सब  खेती - बारी  नष्ट  हो  जाती ,  जानवर  बह  जाते , बच्चे  डूब  जाते , आंधी  आती  तो  पहाड़  से  पत्थर  गिरते , लोग  दब  कर  मर  जाते  l  उस  गाँव  के  लोगों  ने  यह  मान  लिया  था  ऐसा  कष्टप्रद  जीवन  उनके  पुरखों  ने  जिया  , अब  वे  जी  रहे  हैं  ,  उनके  बाद  उनके  बच्चे  भी  ऐसी  मुसीबत  की  गाथा  कहकर  जीवन  जीने वाले  हैं  l 
           लेकिन   एक    दिन  एक  यात्री  उस  पहाड़ी  गाँव  में  पहुंचा  l  उसने  उन्हें  समझाया   कि  तुम  सब  नासमझी  का  जीवन  जी  रहे  हो  l  तुम  सब  इस  खाईनुमा  घाटी  को  छोड़ो  और  अपने  मकान  थोड़ी  ऊँचाइयों  पर  बनाओ  l  ये  जो  चारों  और  सुन्दर  पहाड़  हैं  उनके  उतार  पर  अपने  मकान  बनाओ  l 
 पुराने  जीवन  के  ढंग  को  बदलने  के  लिए  बड़ी  हिम्मत  चाहिए  l  गाँव  वालों  ने  अनेक  तर्क  किये  कि  वर्षा ,  आंधी , बाढ़  को  रोका  नहीं  जा  सकता  ,  कैसे  समस्या   हल  होगी  ?  यात्री  ने  कहा ,  ऊंचाई  पर  मकान  बनने  से  नीचे  घाटी  वाली  समस्या  नहीं  रहेंगी ,  समस्याओं  का  स्वरुप  असहनीय  नहीं  रहेगा  l    गाँव  के  लोग  हिम्मती  थे  l  उन्होंने  अपने  जीवन में ,  अपने  मकानों  की  स्थिति  में  परिवर्तन  कर  लिया  इस  बदली  हुई  स्थिति  से  उन्हें  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  ------- वर्षा  खूब  हुई ,    नदियाँ  भी  उफनी ,  आंधियां  भी  उठी ,  पहाड़  से  पत्थर  भी  गिरे    लेकिन  अब  उनके  मकान  न  बहे ,  बच्चे  भी  नहीं  डूबे,   जानवर  भी  सुरक्षित  रहे   और  पत्थरों  से  कोई  दबा  भी  नहीं      क्योंकि  उनके  जीवन  जीने  का  ढंग  रूपांतरित   हो  चुका  था  l  उन्होंने  अपने  इस  जीवन  का  भरपूर  आनंद  मनाया  l     

8 October 2018

WISDOM ---- पृथ्वी पर सद्गुण देह छूटने के बाद भी अमर रहता है l

  एक  बार  मालवा  के  राजा  भोज  अपने  रथ  से  उद्दान  की  और  जा  रहे  थे  ,  रास्ते  में  योगी  एवं  तपस्वी  गोविन्द  को  देखकर  उन्होंने   रथ  को  रोकने  का  आदेश  दिया   और  रथ  से  उतारकर  उनका  अभिवादन  किया  l  गोविन्द  ने  राजा  के  अभिवादन  का  उत्तर  न  देकर   अपनी  दोनों  आँखें  मूंद  लीं   l   गोविन्द  की  प्रतिक्रिया  से   विस्मित  राजा  ने  कहा  --- हे  महा तपस्वी  !  आपने  हमें  आशीर्वाद  देना  तो  दूर  ,  अपनी  आँखें  ही  बंद  कर  लीं   l  ऐसी  क्या भूल  हो  गई  हमसे    ?  कृपा  कर  के  स्पष्ट  करें  l 
  गोविन्द ने कहा --- "  सत्य  को  सह  पाना  बहुत  कठिन  होता  है  l  मैं  सत्य  वचन  कहता   हूँ   l  "
  राजा  भोज  ने  कहा --- "  आप  सत्य  कहें ,  मैं  सुनने  को  उत्सुक  हूँ  l  '
   महा तपस्वी ,  गायत्री  के  सिद्ध  साधक  गोविन्द  ने  कहा  ---- " राजन  ! लोकोक्ति   है  कि  प्रात:  किसी  कृपण  का  मुंह  देखकर  नेत्र  बंद  कर  लेना  चाहिए  ,  इसी  कारण  मैंने  अपनी  आँखें  मूंद  लीं  l  "
  अपनी  गलती  सुनना  भी  अत्यंत  साहस  का  काम  है   l  राजा  के  माथे  पर  पसीना  आ  गया  l  किसी  तरह  अपने    को  संयत  कर  राजा  भोज  ने  कहा --- : " हमने  तो  कईयों  को   दान  किया  , फिर  हम  कृपण  कैसे  हो  गए  l  ? "
  गोविन्द  ने  कहा --- "  आपने  जो  दान  दिया  वह  अपने  अहंकार  की  तुष्टि  के  लिए  दिया    जबकि  दान   किसी  सत्पात्र  को   उदारता  के  साथ  दिया  जाता  है   l  आपके  दिए  दान  में   उदारता  के  स्थान  पर अहंकार  का  पुट  है  l   आपने  दान  उसको  दिया   जिसे  उसकी  आवश्यकता  नहीं  थी ,  केवल  चाटुकारों  को  आपने  दान दिया   l    आप  राजा  हैं ,  राजा  प्रजा  का    भगवान  होता  है  l  जो  राजकोष  का  उपयोग  केवल   अपने   सुख - भोग ,  वासना - तृष्णा  की  पूर्ति  के  लिए  करता  है   , एक  दिन  उसका  पतन  सुनिश्चित  है   फिर  चाहे  वह   कितना  ही  धनबल , जन बल  और  बाहुबल  से  संपन्न  क्यों  न  हो  l  अत:  ऐसे  राजा  का  मुंह  नहीं  देखना  चाहिए  ,  इसीलिए  हमने  अपनी  आँखे  मुंद  लीं   l  "
  गोविन्द   बोल  रहे  थे  और  राजा  का  ह्रदय  सत्य  के  इन  बाणों  से  बिंधता  जा  रहा  था   l  गोविन्द  आगे  बोले ---- "  महाराज  ! प्रगल्भ  की  विद्दा , कृपण  का  धन  और  कायर  का  बहुबल  ---- ये  तीनो   व्यर्थ  हैं  , पर  सदगुण  देह   छूटने  के  बाद  भी   अमर  रहते    हैं   l 
तपस्वी  गोविन्द  के   वचन  सुन  कर  राजन  के  जीवन  को  एक  दिशा  मिली   l   उसने  अपने  धन  का  अधिकतम  उपयोग   प्रजा  के  हित में , जन कल्याण  में  किया  और  इतिहास  में  अमर  हो  गया  l  

6 October 2018

WISDOM ----- असंयम ही हमारे सभी प्रकार के दुःखों का कारण है l

 भगवान  बुद्ध  के  समय  का  एक  प्रसंग  है -----  एक  बार  एक  धनी  व्यक्ति  भगवान  बुद्ध  के  दर्शन  के  लिए  पहुंचा  l  उसका  शरीर  बहुत  भारी - भरकम  और  बेडौल  था  ,  उसे  चलने  व  झुकने  में  भी  बहुत  कठिनाई  थी  l  उसने  खड़े - खड़े  ही  भगवान  का  अभिवादन  किया   और  विनम्रता  से  बोला  ---- भगवन !  मेरा  शरीर  व्याधियों  का  घर   बन  चुका  है   l  रात  को  न  तो  नींद  आ  पाती  है  और  न  दिन  को  चैन  से  बैठ  पाता  हूँ    l  मुझे  रोगमुक्त  होने  का   कोई  उपाय  बताएं  l "
  भगवन  बुद्ध उसकी  और  करुणा भरी  द्रष्टि  से  देखते  रहे    फिर  बोले ---- " भंते  ! प्रचुर  भोजन  करने  से   उत्पन्न  आलस्य  और  निद्रा ,  भोग  व  अनंत  इच्छाओं  की  कामना,  शारीरिक  श्रम  का  अभाव---- ये  सब  रोग  पनपने  के  कारण  हैं  l   जीभ  पर  नियंत्रण  रखने  ,  संयमपूर्वक  सादा  भोजन  करने ,  शारीरिक  श्रम  करने  ,  सत्कर्म  करने  और   अपनी  इच्छाएं  सीमित  करने  से  ये  रोग विदा  हो  जाते  हैं  l   असीमित  इच्छाएं   शरीर    को   घुन  की  तरह  जर्जर  बना  डालती  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  त्यागो   l  '
  सेठ  ने  भगवान  बुद्ध  की  बातों  का  मर्म  समझा   और  उनके  पालन  करने  का  संकल्प  लिया   l   इन  वचनों  को  जीवन  में  धारण   करने  के  साथ    संयमित  जीवन  शैली   को  अपनाकर   वह  सेठ  कुछ  दिनों  में  स्वस्थ  हो  गया  l
  अब  वह  पुन:  भगवान  बुद्ध  से  मिलने  गया ,  उसने  झुककर  प्रणाम  किया   और  कहा --- " शरीर  का  रोग  तो  आपकी  कृपा  से  दूर  हो  गया  ,  अब  चित  कैसे  शांत  हो  ? "
 बुद्ध  ने  कहा ---- "  अच्छा  सोचो , अच्छा  करो   और  अच्छे  लोगों  का  संग  करो   l  विचारों  का  संयम  चित  को  शांति  और  संतोष  देगा   l  "    

WISDOM ----- कोई भी शक्तिमान , सामर्थ्यवान हो सकता है , पर भगवान नहीं

   अति  का  अहंकार  नाश  का  कारण  होता  है  l   दसों  दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  फैला  था  l  कोई  यह  सोच  भी  नहीं  सकता  था   कि  उसका  विरोध - प्रतिरोध  किया  जा  सकता  है   l  अनीति  जब  चरम  सीमा  पर  पहुंची  ,  राम जन्म  की  तैयारी  होने  लगी  l  तब  भगवान  की  सहायतार्थ   देवता --- रीछ , वानर , गिद्ध  आदि    जाग्रत  वरिष्ठ  आत्माओं  के  रूप  में  जन्मे   और  अपने  शौर्य - साहस  का  परिचय   देते  हुए  धर्म  युद्ध  में  सहायक  होकर   अवतार  के  प्रयोजन  की  पूर्ति  की   l  

4 October 2018

WISDOM ---- भगवान भी अपने भक्त से प्रेम करते हैं

 इस  संसार  में  न  तो  सामान्य  प्रेम  स्वीकार  है   और  न  ही   भगवान  का  प्रेम  किसी  को  स्वीकार  हो  पाता  है   l  इस  अहंकारी  संसार  ने   कृष्ण  की  दीवानी  मीरा  को  जहर  दे  दिया ,  ईसा  को  सूली  पर  चढ़ा  दिया   क्योंकि  गणित   से   चलने  वाला  संसार   इस  प्रेम  को  समझ  नहीं  पाता  l  लोग  तो  भगवान  को  दीवारों  के  भीतर  कैद  कर  के  रखना  चाहते  हैं   लेकिन  भगवान  कहते  हैं -- मुझे  छल - कपट  पसंद  नहीं  है  ,  ह्रदय  को  सरल  और  पवित्र  बनाओ ,  ईमानदारी  और  विवेकपूर्ण  ढंग  से  कर्तव्य  पालन  करो  , फिर  मैं  स्वयं  तुम्हारा  ध्यान  करूँगा --- इस  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है --------
   नारदजी  भगवान  के  परम  भक्त  हैं  , उन्होंने  भगवान  को  ध्यानमग्न  देखकर  लक्ष्मीजी  से   इसका  कारण  पूछा  तो  उन्होंने  कहा --- वे   पृथ्वीवासी    अपने  सबसे  बड़े  भक्त   का  ध्यान  कर  रहे  हैं  l  नारदजी  परेशान हुए  कि  उनसे  बड़ा  भक्त  कौन  है  ?  कहते  हैं   कि  नारदजी  श्री हरि  का  मन  हैं  ,  वे  गाँव  के  बाहरी  रास्ते  से  निकल  रहे  थे  कि  चमड़े  की  तीव्र  दुर्गन्ध ,  पशु चर्म  से  घिरा , मैले - कुचैले  वस्त्र में  चमार  दिखाई  दिया  l वह  पसीने  में  लथपथ  चमड़े  की  सफाई  में  व्यस्त  था  l  नारदजी  समझ  गए ,  यही  विष्णु  का  परम  भक्त  है  l  दूर  खड़े  होकर  वे  उसका  कार्य  देखने  लगे , सोच  रहे  थे  अब  ये  मंदिर  में  या  घर  में  भगवान  का  नाम  स्मरण  करेगा  l
चमड़े  का  ढेर  साफ़  करते - करते  शाम  हो  गई  l  नारदजी  को   बहुत   क्रोध  आ  रहा  था  कि  ऐसा  भी  कोई  भक्त  होता  है  l   उनके  अंत:करण  ने  कहा  , थोड़ी  देर  और  रुक  कर  इसकी  गतिविधि  देखो  l
चमार  तो  ध्यानमग्न  होकर  अपना  काम  कर  रहा  था  l  जब  रात  होने  लगी  तो  उसने  जितना  चमड़ा  साफ  किया  था  उसे  एक  गठरी  में  बाँधा  और  जो  साफ  न  हो  पाया  उसे  एक  ओर  समेट  कर  रखा  l  फिर  एक  मैला  कपडा  लेकर  सिर  से  पैर  तक  अपने  पसीने  को  पोंछकर  घुटने  के  बल  बैठ  गया  और  हाथ  जोड़कर  भाव - विभोर  हो  कहने  लगा --- प्रभो  !  मुझे  क्षमा  करना ,  मैं  बिना पढ़ा - लिखा  चमार  आपकी  पूजा  करने  का  ढंग  भी  नहीं  जनता  l  मेरी  आपसे  यही  प्रार्थना  है  कि  मुझे  कल  भी  ऐसी  सुमति  देना   कि  आज  की  तरह  ही   आपके  द्वारा  दी  गई  जानकारी  को  ईमानदारी  के  साथ  पूर्ण  कर  सकूँ  l  "   नारदजी  ने  देखा  भगवान  विष्णु  उसके  समीप  खड़े  मुस्करा  रहे   हैं  ,  वे  बोले --- " मुनिराज  !  समझ  में  आया  इस  भक्त  की  उपासना  की  श्रेष्ठता  का  रहस्य  ? 
मनुष्य  का  जन्म  कहाँ , किस  कुल  में  होता  है ,  इस  पर  उसका  कोई  वश  नहीं  है  लेकिन  वह  जहाँ  ,  जिस  भी  क्षेत्र  में  है   ईमानदारी   से  कर्तव्यपालन  कर  के  ईश्वर  का  प्रेम  पा  सकता  है  l  

3 October 2018

WISDOM ----- सच्ची पूजा - उपासना

  विधाता  ने  एक  बार  जय - विजय  को  धरती  पर  भेजा  और  कहा  कि  पता  लगाकर  आओ  की  इस  समय  धरती  पर  स्वर्ग  का  सच्चा  अधिकारी  कौन  है  l   जय - विजय  ने  सारी  धरती  की  यात्रा  की  और  देखा  कि  सभी  धार्मिक  स्थलों  --- मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , चर्च  , सब  में  भारी  भीड़  है  और  लोग  अपने  अपने  तरीके  से  पूजा - उपासना  कर  रहे  हैं  l   चलते - चलते  रात  हो  गई , वे  एक  गाँव  में  पहुंचे  l  रास्ते  में  काफी  गढ्ढे  हैं ,  कीचड़  भी  है   l  वहां  देखा  कि  एक  वृद्ध  जो  नेत्रहीन  है  दीपक  जलाये  बैठा  है  l
कीचड़  में  सने  लोगों  के  हाथ - पैर  धुलवाता  है ,  उन्हें  कुछ  क्षण  विश्राम  के  लिए  बैठाकर  आगे  का  रास्ता  बताता  है   l  सारी  रात  पथिकों  को  प्रकाश  दिखाया   और  प्रात:काल  होते  ही  अपनी  चारपाई  पर   विश्राम  करने  की   व्यवस्था  करने  लगा  l  जय - विजय  ने  उसके  पास  जाकर  पूछा   कि यह  समय  तो  पूजा - उपासना  का  है  ,  तुम  नहीं  करते  ?  वृद्ध  ने  कहा -- मैं  नहीं   जानता    उपासना  क्या  है  ,  रात  पथिकों  को  रास्ता  दिखाने  में  बीत  जाती  है   और  दिन  में  विश्राम , l इसके  अतिरिक्त  और  कुछ  मुझे  ज्ञान  नहीं   l  वृद्ध  से  ज्यादा  बात  न  कर  जय - विजय  विधाता  के  पास  पहुंचे   और  धरती  से   जो  सब  दस्तावेज  तैयार  कर  के  ले  गए  थे , वे  विधाता  को  दिखाए  l 
 विधाता  सब  देखने  लगे  ,  जिसे  ही  उनकी  द्रष्टि  उस  वृद्ध  के  जीवन  वृत  पर  टिकी ,  जय - विजय  ने  कहा --- इस  बुड्ढे  को  छोड़िये , इसे  तो  यह  भी  नहीं  मालूम  कि  पूजा , जप - तप  क्या  है  ? 
  विधाता  गंभीर  हो  गए  और  बोले --- यह  तुम्हारा  मूल्यांकन  है  , मेरी  द्रष्टि  में   यही  सच्चा  भक्त  है   और  स्वर्ग  का  अधिकारी  है   l  ईश्वर  का  नाम  लेने  की  अपेक्षा  उसकी  व्यवस्था  में  हाथ  बंटाने  का   पुण्य   अधिक  है   l  वृद्ध  के  कर्म  साक्षात्  ईश्वर  की  उपासना  हैं   l 

2 October 2018

किसानों के हित के लिए जब बापू थे ----

  बिहार  के  चम्पारन  जिले  में  महात्मा  गाँधी  का  शिविर  लगा  था  l  किसानों  पर  होने  वाले  सरकारी  अत्याचारों  की  जाँच  चल  रही  थी   l  हजारों  की  तादाद  में  किसान  आ - आकर  बापू  से   अपने  दुःख  का  निवेदन  कर  रहे  थे  l   उस  समय  उस  जाँच  आन्दोलन  में   कृपलानी जी  का  बड़ा  प्रमुख  सहयोग  था  l   वे  गांधीजी  के   कैम्प  सेक्रेटरी    के  रूप में  कार्य   कर  रहे  थे   ,   जिला अधिकारियों  की  आँख  की  किरकिरी   बने  हुए  थे   l इस  जाँच -   पड़ताल  के  दौरान   महात्मा  गाँधी  को  अनेक  चिट्ठियां  दिन  में  बहुत  बार  कलेक्टर  के  पास  भेजनी  पड़ती  थीं  l  यह  सब  डाक  ले  जाने  का   काम  कृपलानी जी  ही  करते  थे  l   कृपलानी जी  को  डाक  लाते - ले जाते   देखकर  एक  बार   कलैक्टर  ने  पूछा --- "  आप  ही   तो  वह   कृपलानी जी   हैं  ,  जो  इस  सब  हलचल  के  मुखिया  हैं  l  फिर  आप  यह  डाक  का  काम  क्यों  करते  हैं  ?"
        कृपलानी जी  ने  उत्तर  दिया ---- " मैं  तो  एक  साधारण  कार्यकर्ता  और  बापू  का  चपरासी  हूँ  l  "
  उनकी  यह  विनम्रता  एवं  गांधीजी  की   हर  बड़े - से - बड़े  व्यक्ति  से   छोटा  कार्य  करा  लेने  की  क्षमता  ने  उन  दिनों  महामानवों  का  एक  विशाल  समुदाय  विनिर्मित  कर  दिया  था   l  

1 October 2018

WISDOM ----- कथनी और करनी एक हो

 काका  कालेलकर  से  किसी  विदेशी   ने  पूछा ---- " गांधीजी  का  देश  के  हर  वर्ग  पर  इतना  प्रभाव  किन  कारणों  से  पड़ा  है  ? "   काका  ने  कहा ---- "  गांधीजी  अपने  साथ   संयम  की   कड़ाई  बरतते  हैं   l  जो  मन  में  है  , वही  वाणी  से  कहते  हैं  और  अपने  क्रिया - कलापों  को  सार्वजनिक  हित  में  लगाये  रहते  हैं  l  वे  वही  कहते  हैं  ,  जो  करते  हैं    इसलिए  वे   विश्व भर  में   असंख्यों   के  लिए  अनुकरणीय   हैं   l  " 
                    गांधीजी  के  आश्रम  में   जब  ' नमक  सत्याग्रह  शुरू  हुआ     तो  लोगों ने   गांधीजी  से   कहा   आप  चुपचाप   शांति   से    बैठे  रहिये   और  लोगों  को  हुक्म  दीजिये  l  सब  लोग  जेल  जा  सकते  हैं , नमक  बना  सकते  हैं   l  गांधीजी  ने  कहा ---  ऐसा  नहीं  हो  सकता   l  जो  लोग  साबरमती  आश्रम  में  रहते  हैं  ,  उन   आश्रम वासियों  का    सबसे  पहले  नम्बर  है   l  उन्होंने  सबसे   पहले     अपना  नाम  लिखाया   l  गाँधी  के  आश्रम  में  जो  उन्नीस  आदमी  थे  ,  उनको  लेकर  और  आश्रम  में  ताला  डालकर   गांधीजी   अपने  साथियों  को  लेकर   नमक   बनाने  के  लिए  रवाना  हो  गए   और  वहां  से  जेल  चले  गए  l  उनके  जेल  जाने  के  बाद  जो   आग  फैली   तो  एक -एक बच्चा , जन सेवक   सभी   जेल  जाने  को  तैयार  हो  गए   l  यह  प्रभाव  उनके  व्याख्यानों  का  नहीं  था  l  त्याग  के  लिए  गांधीजी  का  स्वयं  को   प्रस्तुत  करने  का  था   l  बिना  कोई  व्याख्यान  दिए ,  बिना  कोई  प्रवचन  दिए ,  बिना   किसी  सम्मलेन  को  बुलाये  ,  कितने  सारे  लोग  जेल  चले  गए   l  गांधीजी  के  उस  साहस  को ,  उस  त्याग  को   देखकर  लोग  समझ  गए  कि  गांधीजी  की  कथनी  और  करनी  एक  है   l