ऋषि का वचन है ---- " दुष्ट की विद्या विवाद के लिए , धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिए होते हैं l सज्जन पुरुष के लिए ये तीनों विपरीत होते हैं l विद्या ज्ञान के लिए , धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होते हैं l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- मनुष्य इस सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी माना जाता है l वह अपने भाग्य एवं भविष्य का निर्माता स्वयं है l इतने पर भी देखा यही जाता है कि अक्लमंदी के प्रदर्शन में वह ऐसे प्रकृति विरुद्ध कार्य कर बैठता है , जिसे उसकी परले सिरे की मूर्खता ही कहा जा सकता है l सुविख्यात मनीषी कार्ल मेनिंजर ने अपनी कृति ' मैन अंगेस्ट हिमसेल्फ ' में कहा है ----- " आज सभ्यता उन लोगों द्वारा विकसित हो रही है , जो प्राकृतिक सम्पदाओं को नष्ट करते हैं , प्रकृति का विनाश करते हैं और अपने ही ठौर - ठिकानों को प्रदूषित कर के स्वयं मृत्यु का वरण करने पर उतारू हैं l " उन्होंने आगे लिखा है ---- "अपने अहंकार की पूर्ति के लिए जिस तरह एक देश दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए विनाशक अस्त्र -शस्त्रों , परमाणु हथियारों का उपयोग करता है और देखते ही देखते बड़े - बड़े शहरों को , बड़ी - बड़ी सभ्यताओं को जमींदोज कर देता है l उसके प्रभाव से वह सारा क्षेत्र जीवन विहीन हो जाता है और वातावरण में विकिरण की विषाक्तता और विषाणुओं की फौज ही शेष रह जाती है l यह उन संस्थाओं या सरकारों का कार्य होता है , जिन्हे जनता नियमित रूप से तरह - तरह के उपायों से कर चुकाती है l "