23 June 2023

WISDOM ---

  शिष्य  ने  गुरु  से  पूछा --- " शास्त्रों  में  वर्णित  योग  प्रणालियों में  कौन  सी  प्रणाली  सर्वश्रेष्ठ  है  ? "   गुरु  बोले ---- "वत्स  ! प्रणालियाँ  श्रेष्ठ  नहीं  होतीं  ,  उनको    करने  के  पीछे  की  भावना   उन्हें  उचित  स्वरुप  प्रदान  करती  है  l  शरीर  को  हिलाने -डुलाने   का  नाम  योग  नहीं  है  ,  वरन  योग  का  सच्चा  अर्थ  मनुष्य  का  भावनात्मक  संतुलन  है  l  यदि  मनुष्य  कर्म  संस्कारों  का  क्षय  करते  हुए   भावनात्मक  रूप  से   संतुलित  हो  जाता  है  , तभी  वह  सच्चा  योगी  कहलाता  है  l  "           आज  संसार  में  कितने  ही  लोग  योग   करते  हैं  , प्राणायाम  करते  हैं , माला  जपते  हैं   लेकिन  फिर  भी  संसार  में  कितनी  ही  घातक  बीमारियाँ  हैं , सभी  सस्ते , महंगे  अस्पताल , दवाखाने  अस्वस्थ  लोगों  से  भरे  हैं  l  इसके  मूल  में  कारण  यही  है  कि   मनुष्य  का  मन  बड़ा  चंचल  है  l योग , प्राणायाम  करते  समय  मन  में  पवित्र  भाव  होने  चाहिए ,  लेकिन  उसी  समय  सारे  ऊट -पटांग  विचार  मन  में  आते  है l  व्यक्ति  चाहे  किसी  भी  धर्म  का  हो , अपने  भगवान  का  ध्यान  करते  समय , माला  जपते  समय , माला  के  मनगे  तो  खिसकते  जाते  हैं  लेकिन  मन  बड़ी  तेजी  से  कहीं  का  कहीं   भागता  है  l  संसार  में  आकर्षण  इतना  है  कि  मन  को  नियंत्रित  करना  बड़ा  कठिन  है  l  श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ---- निष्काम  कर्म  से  मन  निर्मल  होता  है  , जन्म -जन्मान्तर  के  कुसंस्कार  कटते  हैं  l   आचार्य श्री  कहते  हैं --- अपने  विचारों  का  परिष्कार  करो , योग , प्राणायाम  के  साथ  मानसिक  पवित्रता  भी  जरुरी  है  l  जो  ऐसा  कर  पाते  हैं   वे  शारीरिक  और  मानसिक  रूप  से  स्वस्थ  भी   होते  जाते  हैं  l