अति की महत्वाकांक्षा व्यक्ति को स्वार्थी बना देती है l उन्हें किसी की हानि -लाभ से मतलब नहीं होता l उसकी समूची शक्तियों की खपत इसी में होती है कि महत्त्व को कैसे पाया जाये l महत्वकांक्षी व्यक्ति की रूचि सही रास्ते से सच्चाई के साथ आगे बढ़ने में नहीं होती , वह अपने महत्त्व को जैसे -तैसे पाना चाहता है ताकि समाज में उसका सम्मान हो , सब उसे सलाम करें l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---महत्त्व की पाने की ललक ऐसा विष है जो जिस क्षेत्र में घुलेगा , उसे विषैला बनाएगा l l मनुष्य जब तक अपनी सही , सच्ची स्थिति में बना रहता है , तब तक वह अनेक प्रकार की मुसीबतों से बचा रहता है , किन्तु जैसे ही मिथ्या आडम्बर और स्वयं को बढ़ा -चढ़ाकर प्रदर्शित करने की प्रवृति उसमे विकसित होती है , वह स्वयं उसके लिए भी घातक होती है l
4 February 2023
WISDOM----
हातिम को अपने वैभव और दान का बड़ा अहंकार था l एक दिन उसने किसी तत्वज्ञानी संत को अपने यहाँ बुलाया और उनके मुख से अपनी प्रशंसा सुनने की उम्मीद रखी l संत ने महल पर तो एक बार ही उड़ती नजर डाली . पर आकाश और धरती को कई बार बड़ी बारीकी से देखा l हातिम ने आश्चर्य पूर्वक इसका कारण पूछा l संत ने कहा -- " मैं ऊपर इसलिए देख रहा था कि इस विशाल आकाश के नीचे तेरे जैसे कितने मनुष्य हो सकते हैं l तेरा क्षेत्र तो छोटा सा है l और जमीन को इसलिए देख रहा था कि इसमें तेरे जैसे करोड़ों की कब्र बन चुकी है और आगे भी न जाने कितनों की बनेगी l " संत के वचन सुनकर हातिम का गर्व गल गया , वह समझ गया कि अहंकार किसी का भी नहीं रहा l