4 March 2013

'दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करने वाली शक्ति न तो चिरस्थायी होती है न शान्ति देती है | शक्ति वह है जो स्वयं बढ़े और दूसरों को बढ़ाये | "
प्रकृति की मर्यादाओं ,नियमों की अनुकूल दिशा में चलकर ही सुखी ,शान्त और संपन्न रहा जा सकता है | ग्रह -नक्षत्र ,तारे ,उपग्रह एक नियम मर्यादा के अनुसार चलते हैं | प्रकृति ने अपने परिवार के समस्त सदस्यों को इस मर्यादा में बांध रखा है कि वे अपना मार्ग न छोड़ें | इसीलिये सारी व्यवस्था सुचारु रुप से चल रही है | केवल मनुष्य ही ऐसा है जो बार -बार नियति के विरुद्ध जाने की ध्रष्टता करता है ,नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन करता है | धूर्तता के बल पर आज कितने ही अपराधी सामाजिक भर्त्सना से और राजदंड से बच निकलने में सफल हो जाते हैं लेकिन असत्य का आवरण आखिर फटता ही है | जनमानस में व्याप्त नफरत का सूक्ष्म प्रभाव उस मनुष्य पर अद्रश्य रुप से पड़ता है | जो लोग उससे लाभ उठाते हैं समय आने पर वे ही उसके शत्रु बन जाते हैं | जिसकी आत्मा धिक्कारेगी उसके लिये देर -सबेर सभी धिक्कारने वाले बन जायेंगे | ऐसी धिक्कार एकत्रित करके मनुष्य जीवित भी रहा तो उसका जीना व्यर्थ है | विपुल साधन -संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख शान्ति पूर्वक नहीं रह पाते | उनकी उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किये रहती है |