कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर भी है l जिनका दृष्टिकोण सकारात्मक है वे इस महाकाव्य से अच्छी बातों को सीखकर अपने जीवन को सार्थक करते हैं लेकिन जो आसुरी प्रकृति के हैं वे षड्यंत्र , फरेब , छल , अनीति , अत्याचार --- महाभारत से ही सीखते हैं l फिर उनका अंत भी वैसा ही होता है जैसा कौरवों का हुआ l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य श्री लिखते हैं ---- " नीति से नियति का निर्माण होता है l नीति का मतलब है व्यक्ति का उद्देश्य क्या है ? वह क्या करता है ? और नियति उसके कर्मों का परिणाम होती है l " दुर्योधन आदि कौरव सदा से ही षड्यंत्रकारी , फरेबी और अहंकारी थे l उनका उद्देश्य छल , कपट से , षड्यंत्र से पांडवों का हक छीनकर स्वयं को स्थापित करना था l अधर्म और पाप का आचरण ही उनकी नीति थी l इस कारण विनाश ही उनकी नियति थी l भीष्म पितामह , गुरु द्रोणाचार्य , कृपाचार्य और कर्ण जैसे महारथी भी दुर्योधन को विनाश की नियति से नहीं बचा पाए और अधर्म का साथ देने के कारण स्वयं भी नष्ट हो गए l इसके ठीक विपरीत पांडव सदाचारी , सत्य , न्यायप्रिय , और परोपकारी थे l उनकी नीति और आचरण धर्म के अनुकूल था इस कारण भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं उनके रथ की बागडोर सम्हाली l इस महासंग्राम में पांडव विजयी हुए l हम भी सतत श्रेष्ठ कर्म और अच्छी नियत द्वारा अपनी नियति को श्रेष्ठ बना सकते हैं l