7 October 2019

WISDOM ----- स्वयं को सम्मान दो

    जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  घिरा होता   है   वे  लोग  दुनिया  को  स्वयं  से  अधिक  महत्व  देते  हैं  l  दुनिया  के  लोगों  द्वारा  कही   हुई    बातें   इनके  अंतर्मन  में  बस  जाती  हैं  और  इससे  इनके  मन  में  हीनता  की  ग्रंथि  पनपती  है  ,  ऐसे  व्यक्ति   बेचैन ,  अशांत  व  परेशान   रहते  हैं  l
  लेकिन  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है    वे  स्वयं  से   प्यार  करते  हैं   l  अपनी  कमियों  को  स्वीकारते  हैं ,  उन्हें  छिपाते  नहीं   हैं  ,  उन्हें  सुधारने  की  कोशिश  करते  हैं   और  अपना  आत्मविश्वास  बढ़ाने  के  लिए  पूरी  मेहनत  और  लगन  से  काम  करते  हैं  l
  महान  ज्ञानी   अष्टावक्र   जी  का  शरीर   आठ  जगह  से  टेड़ा  था ,  लोग  इन्हें  चिढ़ाते , इनका  मजाक  उड़ाते  ,  लेकिन  वे  उन  पर  कभी  ध्यान  नहीं  देते  थे  l  एक  बार  वे  राजा  जनक  के   दरबार  में  विद्वानों  की  सभा  में  आमंत्रित  किये  गए   ,  गंभीर  विषय  पर  चर्चा  होनी  थी  l  जैसे  ही  अष्टावक्र  ने  प्रवेश  किया  ,  उनके  टेड़े - मेढे शरीर  और  अजब  सी  चाल    देखकर    सभी  उपस्थित  ज्ञानीजन  ठहाके  लगाकर    हंस  पड़े   l  इस  पर भी  अष्टावक्र  न  तो  क्रोधित   हुए और  न  ही  स्वयं  को  अपमानित  महसूस  किया   l  बस  इतना  ही  बोले  ---- " राजन  ! मैंने  तो  सोच था   कि  मैं  विद्वानों  की  सभा  में  आया हूँ    लेकिन   यहाँ   तो  सब  चर्मकार   बैठे  हैं   l "    मनोग्रंथियों  से  रहित  व्यक्ति  ,  कैसी  भी  परिस्थिति  से  घिरे  हों    कभी  भी  अपने  मन  में  हीनता  का  भाव  नहीं  आने  देते  l   स्वयं  से  प्रेम   करते  हैं   l