7 February 2013

वास्तविकता बहुत देर तक छिपाये नहीं रखी जा सकती ।व्यक्तित्व में इतने अधिक छिद्र हैं कि उनमे से होकर गंध दूसरों तक पहुँच ही जाती है ।एक दिन एक साहूकार को शक हुआ ,उसके खजाने में कहीं खोटे सिक्के तो नहीं आ गये ।यह जांचने के लिए उसने सब सिक्के एक जगह एकत्रित किये और जाँच -पड़ताल शुरू की ।अच्छे सिक्के तिजोरी में और खराब सिक्के एक तरफ पटके जाने लगे ,तो खोटे सिक्के घबराये ।उन्होंने परस्पर विचार किया 'भाई !अब तो अपने बुरे दिन आ गये ,यह साहूकार अवश्य हम लोगों को छांट -बीनकर तुड़वा डालेगा ,कोई युक्ति निकालनी चाहिए ,जिससे इसकी नजर से बचकर तिजोरी में चले जाएँ ।एक खोटा सिक्का बड़ा चालाक था ।उसने कहा -"भाइयों !हम लोग यदि जोर से चमकने लगें ,तो यह साहूकार पहचान नहीं पायेगा और अपना काम बन जायेगा ।"बात सबको पसंद आई ।सब खोटे सिक्के बनावटी चमकने लगे और सेठ की तिजोरी में पहुँचने लगे ।खोटे सिक्के को अपनी चालाकी पर बहुत अभिमान हुआ ।गिनते -गिनते एक सिक्का जमीन पर गिर पड़ा और नीचे पत्थर से टकराया ।साहूकार चौंका -हैं ये क्या ,चमक तो अच्छी है पर आवाज कैसी थोथी है ।उसे शंका हो गई ।दुबारा उसने सब सिक्के निकाले और पटक -पटक कर उनकी जाँच शुरू की ।फिर क्या था असली सिक्के एक तरफ और नकली सिक्के एक तरफ ।खोटों की दुर्दशा देखकर एक नन्हा सा असली सिक्का हँसा और बोला -मेरे प्यारे खोटे सिक्कों !दिखावट और बनावट थोड़े समय चल सकती है ,खोटाई आखिर इसी तरह प्रकट हो जाती है ।इस लिए कमजोरियों पर गन्दगी का आवरण न डालकर उनके निष्कासन के ,स्वच्छता के प्रयासों में निरत रहना चाहिए ।
अवसर का यथोचित उपयोग ही मनुष्य जीवन की सफलता का रहस्य है ।बसंत के अंतिम दिनों में तूफानी ठंड के दिन एक घोंघा चैरी के वृक्ष पर मंथर गति से चढ़ रहा था ।पास के वृक्ष पर बैठी चिड़िया उसकी मूर्खता पर हँस रही थी ।वह उसका मजाक करते हुए बोली कि तू इतना भी नहीं जानता कि वृक्ष में कोई फल नहीं हैं ।तू व्यर्थ में ही श्रम कर रहा है ।घोंघे ने बिना रुके ही उत्तर दिया कि बहिन आप ठीक कहती हैं ,लेकिन जब तक मैं पहुचूँगा तब तक फल लग चुके होंगे ।