' सनयात सेन ने अपनी नि: स्वार्थ सेवा भावना से चीन जैसे विशाल देश का उद्धार कर दिया l अंत में जब सफलता मिली तो उन्होंने स्वयं उसका लाभ उठाने के बजाय दूसरे लोगों को ही आगे बढ़ाकर अपना ध्येय केवल राष्ट्र - रक्षा ही रखा l '
सनयात सेन का जन्म चीन के एक छोटे से गाँव में 1866 में हुआ था l उस समय गरीब तो क्या चीन के अमीर लोग भी बहुत कम पढ़ते थे l उनको यह पता न था कि अपने देश के बाहर संसार में कई प्रभावशाली और उन्नत देश हैं l चीन के निरंकुश सम्राट अपनी प्रजा को तरह - तरह से गुलाम बनाये हुए थे वे नहीं चाहते थे कि चीन निवासियों में भूगोल , इतिहास आदि का ज्ञान फैले l चीन में रहने वालों को तो केवल एक ही बात सुनाई और सिखाई जाती थी कि सम्राट भगवान का स्वरुप है , वही समस्त प्रजा का पिता है , उसी कि सेवा करने से हमारा उद्धार हो सकता है l
ऐसे ' दैवी कैदखाने' में रहने पर भी किसी प्रकार सनयात सेन को आजादी की हवा लग गई और 13 वर्ष कि आयु में ही वे अमरीका द्वारा शासित हवाई टापू में मजदूर के रूप में चले गए l वहां जाकर उन्हें अनुभव हुआ कि वे एक नई दुनिया में आ गए l अन्य लोगों से बातचीत व विचार विनिमय के लिए अंग्रेजी जानना जरुरी था , अत: उन्होंने ' चर्च स्कूल ' में नाम लिखा लिया l कुछ ही वर्षों में उन्होंने डाक्टरी की उपाधि प्राप्त कर ली l
सनयात सेन ने बीस वर्षों तक जो देश सेवा की और आधे पेट खाकर भी संसार की खाक छानते हुए विभिन्न देशों में घूमे ताकि वहां के शासकों की सहानुभूति प्राप्त की जाये और उन देशों में रहने वाले चीनियों को संगठित किया जाये l जनता द्वारा सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने पर भी वे इस पद पर अधिक समय तक नहीं रहे l एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने स्वेच्छा से यह पद अन्य नेता को दे दिया और स्वयं चीन की प्रगति के लिए निरंतर श्रम करते रहे l
सनयात सेन का जन्म चीन के एक छोटे से गाँव में 1866 में हुआ था l उस समय गरीब तो क्या चीन के अमीर लोग भी बहुत कम पढ़ते थे l उनको यह पता न था कि अपने देश के बाहर संसार में कई प्रभावशाली और उन्नत देश हैं l चीन के निरंकुश सम्राट अपनी प्रजा को तरह - तरह से गुलाम बनाये हुए थे वे नहीं चाहते थे कि चीन निवासियों में भूगोल , इतिहास आदि का ज्ञान फैले l चीन में रहने वालों को तो केवल एक ही बात सुनाई और सिखाई जाती थी कि सम्राट भगवान का स्वरुप है , वही समस्त प्रजा का पिता है , उसी कि सेवा करने से हमारा उद्धार हो सकता है l
ऐसे ' दैवी कैदखाने' में रहने पर भी किसी प्रकार सनयात सेन को आजादी की हवा लग गई और 13 वर्ष कि आयु में ही वे अमरीका द्वारा शासित हवाई टापू में मजदूर के रूप में चले गए l वहां जाकर उन्हें अनुभव हुआ कि वे एक नई दुनिया में आ गए l अन्य लोगों से बातचीत व विचार विनिमय के लिए अंग्रेजी जानना जरुरी था , अत: उन्होंने ' चर्च स्कूल ' में नाम लिखा लिया l कुछ ही वर्षों में उन्होंने डाक्टरी की उपाधि प्राप्त कर ली l
सनयात सेन ने बीस वर्षों तक जो देश सेवा की और आधे पेट खाकर भी संसार की खाक छानते हुए विभिन्न देशों में घूमे ताकि वहां के शासकों की सहानुभूति प्राप्त की जाये और उन देशों में रहने वाले चीनियों को संगठित किया जाये l जनता द्वारा सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने पर भी वे इस पद पर अधिक समय तक नहीं रहे l एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने स्वेच्छा से यह पद अन्य नेता को दे दिया और स्वयं चीन की प्रगति के लिए निरंतर श्रम करते रहे l