30 September 2019

WISDOM ------आत्मबल के धनी व्यक्ति सर्वत्र विजयी होते हैं

     आदि  शंकराचार्य  न  केवल  वेद -  वेदांग  में  पारंगत  थे  ,  वरन  आत्मबल  के  भी  धनी  थे  l  वे  शास्त्रार्थ  करने  मंडन  मिश्र  के  यहाँ  पहुंचे   l  निर्णायक  की  भूमिका   मंडन  मिश्र  की  पत्नी   उभय  भारती  को  सौंपी  गई  l  वे  भी  परम  विदुषी  थीं   l  शास्त्रार्थ  में  कौन  विजयी  हुआ  ,  इसकी  कसौटी  यह  बताई  थी  कि  दोनों  के  गले  में  उनके  द्वारा  पहनाई  गई  फूलों  की  माला   जिसके  गले  में  मुरझा  जाएगी  ,  उसी  की  हार  मानी  जाएगा   l      लम्बी  अवधि  तक  चले  शास्त्रार्थ  के  बाद  मंडन  मिश्र  के  गले  की  माला  कुम्हला  गई  और  वे  पराजित  घोषित  हो  गये    l
मंडन  मिश्र  के  गले  में  पड़ी  माला  क्यों कुम्हलाई  ,  इस   बारे  में  विद्वानों  ने  बहुत   तथ्य  खोजे   l   विद्वानों  का  कहना  था  कि  दीर्घकालीन  शास्त्रार्थ  से  मंडन  मिश्र  का  आत्मविश्वास  डिगने  लगा  ,  मनोबल  टूटने  से ,   अंतर में  घबराहट  होने  से  पसीना  आने  लगा  और  माला  कुम्हला  गई  l  जबकि  शंकराचार्य  योग  के  महान  ज्ञाता  थे   l  प्राण  व  मन  पर  उनका  पूर्ण  नियंत्रण  था  ,  उनकी  माला  वैसे  ही  ताजी  रही  l  जिनका  मनोबल  बढ़ा - चढ़ा  हो ,  उद्देश्य  ऊँचे  हों   वे  सर्वत्र विजयी  होते  हैं   l

29 September 2019

WISDOM -----

  एक  राजा  अत्यंत  दयालु  एवं  धर्मात्मा  था  ,  किन्तु  उसका  पुत्र  अत्यंत  दुष्ट  स्वभाव  का  था  l  राजा  ने  उसे  सुधारने  का  बहुत  प्रयत्न  किया  ,  परन्तु  सारे  प्रयत्न  विफल  ही  सिद्ध  हुए   l  सभी  उससे परेशान  रहते  थे  l  कुलगुरु  को  जब  इस  सन्दर्भ  में  ज्ञात  हुआ   तो  वे  राजकुमार  से  मिलने  गए  l  वे  उसे  राजभवन  में  घुमाते  हुए  एक  नीम  के  वृक्ष  के  पास  ले  गए   और  उसका  एक  पत्ता  तोड़कर  राजकुमार  को  चखने  को  दिया   l  पत्ता  चखने  पर  राजकुमार  का  मुंह  कडुआहट   से  भर  गया  l  उसने  कुलगुरु  से  तो  कुछ  नहीं  कहा  ,  परन्तु  उसने  क्रोधित  होते  हुए    सेवकों  को  बुलवाकर   उन्हें  आदेश  दिया  कि  वे  उस  पेड़  को  जड़  से  उखाड़  डालें  l
कुलगुरु  ने  पूछा ---- " उसने  ऐसा क्यों  किया   ? "  राजकुमार ने  उत्तर  दिया  ---- " गुरुवर  !  यह  पेड़  इतना  कडुआ  है  ,  इसका  कडुआपन  अनेकों  तक  पहुँचता  ,  इसलिए  मैंने  इसे  सदा  के  लिए  नष्ट  कर  दिया  l   कुलगुरु  बोले  ---- वत्स  !  जो  प्रजा  तुम्हारे  व्यवहार  के   कड़वे पन  से  दुःखी   है  ,  यदि  वह  भी  प्रत्युत्तर  में  ऐसा  ही  व्यवहार  तुम्हारे   साथ  करे  तो  तुम्हे  कैसा  लगेगा   ? "  राजकुमार  को  अपनी  भूल  का  एहसास  हुआ   और  उसने  अपना  व्यवहार  सदा  के  लिए  बदल  दिया  l

28 September 2019

WISDOM-------

 एक  बार  एक  व्यक्ति  ने  संत  सुकरात  से  पूछा  ---- " मानवी  जीवन  में  सबसे  मूल्यवान   वस्तु   कौन  सी  है  ?  "  सुकरात  का  उत्तर  था ---- ' प्रेम  l '    प्रेम  संसार  में   अकेली  ऐसी  अपार्थिव  चीज  है  , जिसे  हर  कोई  प्राप्त  करना  चाहता  है  , चाहे  वह  अमीर  हो  या  गरीब ,  शिक्षित  हो  या  अशिक्षित -- सब  समान  रूप  से  इसकी  अपेक्षा  दूसरों  से  करते  हैं    l  परम  सत्ता  - ईश्वर  भी  प्रेमरूप  है  l  हमारे भीतर  जितना  प्रेम , जितनी  संवेदना  होगी  हम  उतना  ही  ईश्वर  के  सन्निकट  होंगे  l-----
    बात  उन  दिनों  की  है   जब  अमेरिकी   अफ्रीका  से    लोगों  को  पकड़  लाते  थे   और  उनसे  पशुओं  जैसा  व्यवहार  करते  थे  l  बहुत  से  लोगों  ने  यह  धंधा  ही  अपना  लिया  था  कि  अफ्रीका  निवासियों  को  पकड़  कर  लायें  और  उन्हें  अमेरिका  में  बेचें  l  ऐसा  ही  एक  जहाज  अफ्रीकी  महिलाओं  का  आया  l  उसकी  भी  बोली  लगी   l  फिलिप  हिट्ले   नामक  एक  गोरी  महिला  ने   अपनी  सारी  सम्पति  बेचकर  बदले  में  वह  जहाज  खरीद  लिया   l  फिलिप  ने  उन  सभी महिलाओं  को  पढ़ाया  l  सभ्यता  सिखाई ,  स्वावलंबी  बनाया  और  इस  काम  के  लिए  तैयार  किया  कि  वे  दासों  की  दशा  सुधारने  और  उस  प्रथा  का  अंत  कराने  के  लिए  आन्दोलन  में  जुट  पड़ें  l  यह  आन्दोलन  तेजी  से  चला  और  कालान्तर  में  सफल  भी  हुआ   l

27 September 2019

WISDOM ----- प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता l

  प्रकृति  अनुशासन  से  आबद्ध  है   l  जो  भी  अनुशासन  को  तोड़ेगा  उसे   क्षमा  नहीं  मिल  सकती  l  भगवान  राम  करुणाकर  थे ,  लेकिन  असुरों  को  क्षमा  नहीं  किया   l  दुर्योधन , दु:शासन  को  उनकी  उद्दंडता  के  लिए  क्षमा  नहीं  किया  गया  और  उनकी  अनीति ,  अत्याचारों  को  चुपचाप  देखने  वाले ,  उनके  पक्ष  में  खड़े  होने  वाले  भीष्म  पितामह , द्रोणाचार्य, कृपाचार्य ,  कर्ण  और  सभी कौरव  मारे  गए  l पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य   ने  लिखा  है ---- '' अनीति , अत्याचार का  विरोध  होना  चाहिए  l अनीति  का  साथ  देना  अनीति  करने  जैसा  है  l  परन्तु  दंड  देने  का  अधिकार  सभी  को  नहीं  होता   l  इसकी  व्यवस्था  होती  है   और  व्यवस्था  पर  दंड  का  निर्णय  छोड़कर   हमें  उसका  प्रबल  विरोध  करना  चाहिए  l  अत:  हमें  स्वयं  अनुशासन  में  रहते  हुए   प्रकृति  एवं  ईश्वर  के  विधि - विधान  के  अनुरूप  श्रेष्ठ  कर्म  करना  चाहिए   l

26 September 2019

WISDOM -----

  वन्य  पशु  एक  दूसरे  का  अनुकरण  करते  हुए  जीवन  भर  भटकते  और  विचरते  रहते  हैं  l  उनका  कोई  निश्चित  लक्ष्य  नहीं  होता   l  भेड़ें  इस  आदत के  लिए  बुरी  तरह  बदनाम  हैं  l  आगे  चलने  वाली  भेड़  का  मुंह जिस  ओर  भी  उठ  जाता  है    उसी  दिशा  में  उनका  पूरा  समूह  चल  पड़ता  है  l  किसी   गड्ढे  में  अगली  भेड़  के  गिरते  ही   पीछे  वाली  भी  सब  उसी  में  गिरती  चली  जाती  हैं   l  किसी  को  यह  नहीं  सूझता  कि  यह  अनुकरण  उचित  है  या  नहीं   l
  इसी  तरह    मनुष्यों  में  भी   विरले  ही  होते  हैं   जो   स्वतंत्र  चिन्तन    और  विवेक  बुद्धि  से  काम  लेते  हैं  l  अपने   से  भारी - भरकम   लगने  वाले  लोगों   का  अन्धानुकरण  करने  लगते  हैं  l  जल्दी  धनवान  बनना ,  सुविधा - संपन्नता  का  प्रलोभन  ,   लालच ,  लाभ  की  लालसा   आदि   विभिन्न  सुख - वैभव , विलासिता  को  समय  से  पहले  पा  लेने  की  लालसा  में  व्यक्ति  उन  लोगों  का  अंधानुकरण  करने  लगते  हैं  जिन्होंने  गलत  तरीके  से  यह  सब  हासिल  किया  है  l  कुछ  समय  बाद  जब  आँख  खुलती  है  तब  प्रतीत  होता  है  कि  भटकाव  के  कुचक्र  में  फंसकर  कितना  अनर्थ  कर  लिया  l
मनुष्य  की  अदूरदर्शिता  उसकी  विपत्ति  का  सबसे बड़ा  कारण  है   l

24 September 2019

WISDOM---- वैचारिक प्रदूषण एक बड़ी समस्या है !

    यदि  विचार  परिष्कृत  होंगे  ,  दुष्प्रवृतियों  के  स्थान  पर  सद्प्रवृतियों  की  स्थापना  होगी  तो  संसार  की  जटिल  से  जटिल  समस्याएं  स्वत:  ही  हल  हो  जाएँगी   l
  आज  के  वातावरण  में  आसुरी  तत्व  बड़ी  मात्रा   में  उत्पन्न  हो  रहे  हैं  l  अनीति , अन्याय , अधर्म  और  अकर्म  का  चारों  ओर  बोलबाला  है  ल  स्वार्थ , पाप , वासना ,  तृष्णा  और  अहंकार  की   तूती  बोल  रही  है  l  एक  दूसरे  का  शोषण  कर  के  ,  सताकर  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  को  लोग  कटिबद्ध  हैं  l  प्रेम , उदारता ,  सह्रदयता ,  संवेदना  ,  सेवा  और  सज्जनता  की  मात्रा  दिन - दिन  घटती  जा  रही  है  l  फलस्वरूप  ऐसी  घटनाओं  की  बाढ़  आ  रही  है     जिनमे  चीत्कार  और  हाहाकार  की  भरमार  रहती  है  l  इस  से  पूरा  वातावरण  प्रदूषित  हो  गया  है  l  ये  दुष्प्रवृत्तियां   इसी  प्रकार  बढ़ती  रहीं  तो  प्रकृति के  सामूहिक  दंड  से   बचना  मुश्किल  है  ,  मानव  सभ्यता  खतरे  में  पड़  जाएगी   l
  विज्ञान  ने  भी   मनुष्य  के  हाथ  में  विनाश  की  बड़ी  शक्ति  ' एटमी  शक्ति '  दे  दी  है   l  किसी  सिरफिरे  का  छोटा  सा  पागलपन   कुछ  ही  क्षणों  में  संसार  के  लिए  तबाही  उत्पन्न  कर  सकता  है  l
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  कहा  है  --- लोक  मानस  में  से  दुष्प्रवृत्तियों  को  हटाकर  उनके  स्थान  पर  सत्प्रवृत्तियों  की  स्थापना  अनिवार्य  है   l  यह  कार्य  आत्मशक्ति  से  संपन्न  लोकनायक  और  मार्गदर्शक  ही  कर  सकते  हैं  l  मस्तिष्क  की  वाणी  मस्तिष्क  तक  पहुँचती  है  और  आत्मा  की  आत्मा  तक  l
 अंत:करण  में  जमी  हुई  आस्था  में  हेरफेर  करने  का कार्य  ज्ञान  से  नहीं    आत्म  शक्ति  से  ही  संपन्न  होना  संभव  हो  सकता  है  l  आचार्य  श्री  ने  कहा  है --- लोकमानस  की  शुद्धि का  महान  भार   वाचालों  के  नहीं ,  तपस्वियों  के  कन्धों  पर  रहेगा  l  युग  की  आवश्यकता  ऐसे  तपस्वियों  की  प्रतीक्षा  कर  रही  है  l

23 September 2019

WISDOM ---- जीवन अनमोल है

    हुसैन  नामक  एक  बड़ा  जौहरी   था  l  एक  समय   वह    व्यापार   हेतु  रामनगर  गया  l  वहां  उसकी  मित्रता  देश  के मंत्री  से  हो   गई  l  एक  दिन  वह  मंत्री  के  साथ  भ्रमण  पर  निकला    तो  रास्ते  में  उसे  एक  विशाल  तम्बू  नजर  आया    और  एक  सुसज्जित  सेना  उस  तम्बू  की  परिक्रमा  कर  रही  थी   l  फिर  क्रमशः  विद्वान्  पुरुष ,    दो - तीन   सौ  सेवक  जवाहरात  भरे  थाल  के  साथ    और  फिर  अंत  में  राजा  आये  और  ये  सब  भी  परिक्रमा  कर  के  चले  गए   l
जौहरी   ने  मंत्री  से    इस  अद्भुत  लगने  वाली   घटना  के  बारे  में  जिज्ञासा  की  तो  मंत्री  ने  बताया   कि  राजा  का  एक   अत्यंत  गुणवान  पुत्र  था  l  राजा  उस  से  अत्याधिक  स्नेह  करता  था  l   एक  दिन  अकस्मात  उसका  निधन  हो  गया   l  इस  तम्बू  में  उसकी  कब्र  बनी  है    प्रतिवर्ष  राजकुमार  की  मृत्यु - तिथि  के  दिन   राजा  सेना  व  परिवार  सहित  यहाँ  आता  है   और  प्रदक्षिणा  कर  के  लौट  जाता  है   l  हुसैन  ने  मंत्री  से  पूछा  --- "  तो  क्या  राजा  अपने  पुत्र  की  कब्र  पर  कुछ  चढ़ाता  नहीं  l "    मंत्री  ने  उत्तर  दिया --- "  नहीं  !   इस  पूरे  प्रयोजन  का  उद्देश्य  मात्र  इतना  है  कि --  सेना  की  वीरता ,  विद्वानों  का  ज्ञान    और  पूरे  राज्य  की  धन - सम्पति   सब  व्यर्थ  है  l  यह  सब  देकर  भी   मनुष्य  आयु  नहीं  प्राप्त  कर  सकता   l  "   यह  सुनकर  हुसैन  के  मन  में  भी  तीव्र  वैराग्य  उत्पन्न  हुआ  और  अत्यधिक  सम्पति  संग्रह  करने  का  लालच  छोड़  कर  वह  भगवद  भजन  और  लोक कल्याण  के  कार्यों    में    स्वयं  को  व्यस्त  रखने  लगा   l

22 September 2019

WISDOM ---- श्रम के साथ भावना और मनोयोग तथा बुद्धि और विवेक जुड़ जाये --

 
पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  अपने  जीवन  के  अंतिम  दिनों  में  सभी  लोगों  की  गोष्ठी  बुलाई  और  कहा   कि  आज  हम  तुम  लोगों  को  अपने  जीवन  का  सार  बताएँगे  ,  उन्होंने  कहा --- "  मैं  जीवन  भर  तुम  लोगों  से  गायत्री  की  बातें  करता  रहा  ,  अब  मैं  तुम  लोगों  से  गायत्री  माता  की माता  के  बारे  में  कहता  हूँ  l  गायत्री  माता  की माता  का  नाम  है ----' श्रम  '  l  जो  श्रम  करता  है  ,  उसे  गायत्री  माता वरदान  देती  है  ,  जो  श्रम  नहीं  करता ,  उस  निठल्ले  को  कोई  वरदान  नहीं  देता  l  "
उन्होंने  आगे  कहा ---- "  यह  श्रम  तब  और  भी  व्यापक  एवं  आध्यात्मिक  बन  जाता  है  और  व्यक्तित्व  की  प्रगति  के  द्वार  खोलता  है   ,  जब  श्रम  सेवा  में  तब्दील  हो  जाता  है   l  जब हम   सेवा  के  माध्यम  से  श्रम  करते  हैं   तो  हम  निजी  जीवन  को  समृद्ध  बनाते  हैं    और  अपने  व्यक्तित्व  को  व्यापक  बनाते  हैं   l  "



21 September 2019

WISDOM ------

    नोबेल  पुरस्कार  विजेता  श्री  बर्नार्ड  शा   ने  स्कूल में  बहुत  कम  शिक्षा  पाई  थी   और  16  वर्ष  की  आयु में ही  दफ्तर में  क्लर्की  करने  लगे  थे  l  वे  सच्ची  और  खरी  बात  कहने  ,  तीखे  व्यंग्य  द्वारा   लोगों  को  उनकी  कमजोरियों  का  ज्ञान  कराने  वाले  थे   l  इसलिए  वे  धीरे - धीरे  एक  प्रसिद्ध  आलोचक  और  नाटककार  बन  गए   l
बर्नार्ड  शा  के  एक  नाटक  '  मिसेज  वारेन्स  प्रोफेशन '   में  समाज  में  फैली   वेश्यावृति  पर  आक्रमण  किया  गया  है  l  उसमे  दिखाया  गया  है  कि  जो  लोग  समाज  में  ऊपर  से ' सज्जन '  और  ' सभ्य '  बने  रहते  हैं  ,  उनमे  से  कितनों  का  ही   भीतरी  जीवन    कैसा  पतित  होता  है  l  इस  नाटक  की  प्रमुख  शिक्षा  यही  है  कि  --- दुरंगा  व्यक्तित्व रखना  नीचता  का  लक्षण  है  l  जो  जैसा  है   उसे  वैसा  ही  जीवन  व्यतीत  करना  चाहिए   l

WISDOM ------ सर्वधर्म समभाव के प्रतीक --- दाराशिकोह ( अखंड ज्योति जुलाई 2017 से )

  भारत  में  कुछ  ऐसे  व्यक्तित्व  हुए  हैं   जिनके  योगदान  को  भुलाया  नहीं  जा  सकता  l  ऐसा  व्यक्तित्व  है  -- दाराशिकोह  का   l   दाराशिकोह   शाहजहाँ  के  बड़े  पुत्र  व  औरंगजेब  के  बड़े  भाई  थे  l
  औरंगजेब  को  सत्ता  का  लोभ  था   l  उसने  अपने  पिता  शाहजहाँ  को  जेल  में  डाल  दिया  और  दाराशिकोह  को  धोखा  देकर  छल  से  मार  दिया  l
  दाराशिकोह    द्वारा   किये  गए  प्रयासों  से  ही  प्राचीन  भारतीय  दर्शन  का  का  प्रवाह  अंतर्राष्ट्रीय  फलक  पर  चर्चित  हुआ   l   दाराशिकोह  ने  50  भारतीय  उपनिषदों  का  संस्कृत  से  फारसी  में  अनुवाद  किया  l  19 वीं  सदी  की  शुरुआत  में  फ्रांसीसी  विद्वान्    आकतील  दुपेरो  ने  इसका  अनुवाद  फारसी  से  लैटिन   भाषा  में  कर  के  इसे  प्रकाशित  किया   l   इसे  जब  प्रसिद्ध  दार्शनिक    शोपेनहावर  ने  पढ़ा  तो   इसकी  बहुत  प्रशंसा  की   और  अपने  स्वयं  के  जीवन  के  लिए   प्रेरणादायी  बताया   l
  दाराशिकोह  को  सदैव  मुस्लिम  रहस्यवाद  और  हिन्दू  रहस्यवाद  की  साझी शिक्षाएं  आकर्षित  करती  थीं  l  इन  दोनों  धर्मों  के  बीच  आपसी  समझ  बढ़ाने  के  लिए  ही  वे   भारतीय  धर्म ग्रंथों  का  फारसी  में  अनुवाद करने  लगे  l   1656  में  दाराशिकोह  ने  ' मजमा - अल - बहरीन  ( दो  समंदर  का  मिलन )  नामक  पुस्तक  लिखी  l  इसके  बारे  में  उनका  मानना  था  की  ये  किताब  दोनों  धर्मों  के  सर्वश्रेष्ठ  ज्ञान  का  निचोड़  है  l  दाराशिकोह  के  चिंतन  में  भारतीयता  का  वास  है   l  वे   महान  लेखक  थे  l
 '  सूफीनात  अल  औलिया '  और  ' सकीनात  अल औलिया '   उनकी   सूफी  संतों  के  जीवन  चरित्र   पर  लिखी  हुई  पुस्तकें  हैं  l  उनके  द्वारा  लिखी  गई  पुस्तक  ' रिसाला  ए  हकनुमा '   और  ' तारीकात  ए  हकीकत '   में  सूफीवाद  का  दार्शनिक  चिंतन  है  l  ' अक्सीर  ए  आजम '  नामक  उनके  कविता  संग्रह  में  उनकी  सर्वेश्वरवादी  प्रवृति  का  बोध  होता  है  l  इसके  अतिरिक्त  उनकी  पुस्तक  ' हसनात  अल   आरिफीन '   और   ' मुकालम  ए  बाबालाल  ओ  दाराशिकोह '  में  धर्म  और  वैराग्य  का  विवेचन  हुआ  है  l 
 दाराशिकोह  का  जीवन  अल्प  किन्तु  भव्य  था  l  यदि  उन्होंने  उस  समय  उपनिषदों  का  फारसी  अनुवाद  न  किया  होता  ,  तो  उनका  लैटिन  अनुवाद  भी  न  होता  l फिर  उनका  अन्य  भाषाओँ  में  भी  अनुवाद  नहीं  हो  सकता  था  l   ऋग्वेद  ,  हमारी  पूरी  दुनिया  का  सबसे  प्राचीनतम  ज्ञानकोष  है    ल मैक्समूलर  के  अनुवाद  के  बाद   इसकी  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर  पर  धाक  जमी  और  बाद  में   यूनेस्को  ने  भी  इसे  अपनी  विश्व  धरोहर  की  सूची  में  जगह  दी  l
दाराशिकोह  का  व्यक्तित्व  अनूठा  था   l  इस महान  राजकुमार  को  असमय  ही  धरती  से  जाना  पड़ा  l

18 September 2019

WISDOM ------

  ' मनुष्य  पाप  कर  के  यह  सोचता  है  कि  मेरा  पाप  कोई  नहीं   जानता  ,  पर उसके  पाप  को  न  केवल  देवता  जानते  हैं  ,  बल्कि  सब  के ह्रदय  में  स्थित  परम  पिता  परमेश्वर  भी  जानते  हैं  l  '
    अनाचारी   और  अधर्मी   अपनी  सामर्थ्य    शक्ति   का   घोर  दुरूपयोग  करते  हैं  l  ऐसे  लोग  इस  कदर  ह्रदयहीन  होते  हैं   कि  ये  अशक्त , निरीह ,  दुर्बल  , बच्चे    बूढ़ों    पर  भी  निर्ममता  से  वार  करते  हैं  l  अत्याचारी  और  अनाचारी   के  लिए  कोई  नीति,  धर्म व   मर्यादा  नहीं    होती  l  अपने  तुच्छ   स्वार्थ   व  अहंकार  की  पूर्ति    लिए   वे  कुछ  भी  करने  के  लिए ,  किसी  भी  स्तर  तक  गिरने  के  लिए  तैयार  रहते  हैं   l                            जहाँ    बल  से  काम  न  बने  ,  वहां    छल  से  काम  लेते  हैं   l  जहाँ   शक्ति    से  काम  न  निकले  ,  वहां   वे    छद्म    से  काम  लेते  हैं  l  जहाँ   सामर्थ्य    से  हल  न  निकले  ,  वहां   ये  विश्वासघात  का  हथियार  उपयोग  करते  हैं  l
  अनाचारी  और  अधर्मी  को  स्वयं  पर  विश्वास  नहीं  होता  l  ये  डरते  रहते  हैं  कि  कहीं  कोई   अधिक  बलशाली  इनके  वर्चस्व  को  समाप्त  न  कर  दे  l  अधर्मी  मामा  कंस  के  आतंक  का  इतिहास  गवाह  है  l  शक्तिशाली  होने  के  बावजूद  भयभीत  था  ,  उसने  अपनी  ही  बहन  की  सात  नवजात  संतानों  को   मृत्यु   के   घाट   उतार  दिया  l
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है ---- ' अनीति  और  अधर्म  से   किसी  को  सफलता  मिलते  भले  ही  दिखाई  पड़े  ,  परन्तु  उनका  अंत  बड़ा  ही   वीभत्स    एवं  भयानक  होता  है   l  कर्म  किसी  को  नहीं  छोड़ता   l  दुष्कर्मों  का  परिणाम  आने  में  भले  ही  देरी  हो ,  किन्तु  कर्म फल  से  कोई  नहीं  बचा  है  l  अत:  काल  और  कर्म  से  डरते  हुए  सदा  सत्कर्म  करते  रहना  चाहिए  l  

17 September 2019

WISDOM

      प्रसिद्ध  कवि  अब्दुर्रहीम  खानखाना  के  पास  एक  व्यक्ति  आया   और  उनसे  पूछने  लगा  कि  जीवन  में  सबसे  महत्वपूर्ण   कौन  सा   संयम    है  ?  उन्होंने  कविता    के  माध्यम  से  उत्तर  दिया  -----
  ' रहिमन  जिह्वा  बावरी  ,  कर  गई  सरग  पताल  l  खुद  कह  भीतर  घुस  गई ,  जूती  पड़े  कपाल  l l
  अर्थात  सारे  संयमों  में  वाणी  का  संयम  अत्यंत  महत्वपूर्ण  है   l  जीभ  खुद  तो  बात  कहकर  मुंह  के  अन्दर  चली  जाती  है  ,  परन्तु  उसका  परिणाम  कहने  वाले  को  भुगतना  पड़ता  है   l
  मौन  हमें  कई  बार    व्यर्थ  के  विवादों  और  इससे  उत्पन्न  होने  वाली  परेशानियों  से  बचा  लेता  है  l  लेकिन  केवल  न  बोलना  ही  मौन  नहीं  है  l  यदि  किसी  के  मन  में  विचारों  की  उथल - पुथल  हो  रही  है   या  उसके  मन  में  किसी    अन्य   व्यक्ति  राग - द्वेष  या  क्रोध   का  ज्वार  उठ  रहा  हो  तो  इसे मौन  नहीं    कह   सकते   l  वास्तविक  व  पूर्ण  मौन    वह है  ,  जिसमे  मन  और  वाणी  दोनों  ही  पूरी  शांत   हों  l
  मौन  साधने  से  व्यक्ति  के  अन्दर  स्थिरता  व  शांति  बढ़ती  है  और  उसे  अपने   कार्यों  में  सफलता  मिलती  है   l

WISDOM -----

  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है  ---- ' जिस  तरह   इस स्रष्टि  में   दिन  के  बाद  रात  आती है  और  रात  के  बाद  पुन:  सवेरा  ,  वैसे  ही  यह  चक्र  लगातार  चलता  रहता  है  l  इसी  तरह  जीवन  में   यदि  सुख  है  ,  तो  दुःख  भी   आता  है  l  यदि  सफलता  है ,  तो  असफलता  का  भी  स्वाद  मिलता  है  l  यदि  प्रसन्नता  है ,  तो  विषाद  भी  जीवन  में  कभी  न  कभी  आता  है  l  यदि  सम्मान  है  ,  तो  अपमान  का  दंश  भी  सहना  होता  है  l  '   आचार्य  श्री  ने  आगे  लिखा  है ---- "  जिस  तरह    रात्रि  को  हम  दिन  में  नहीं  बदल  सकते  ,  लेकिन  विद्युत  के माध्यम  से  बल्ब  जलाकर  अंधकार  को  दूर  कर  सकते  हैं  ,  उसी  तरह  हम  दुःख ,  कष्ट ,  पीड़ा ,  अपयश   आदि  के  आने  पर  इन्हें  तुरंत  दूर  नहीं  कर  सकते  ,  लेकिन  इन  परिस्थितियों  में    भगवदस्मरण   करते  हुए  शुभ  कर्म  कर  के    इनसे  लाभान्वित    भी  हो  सकते  हैं  l 
  जीवन  को  यदि  सही  मायने  में  समझना  है   तो  इस  संसार  के  नकारात्मक  व  कष्टदायी   दीखने  वाले  तत्वों  को  सकारात्मक  द्रष्टि  से  देखना  चाहिए   और  इनसे  भी  लाभान्वित  होना  चाहिए  ,  क्योंकि  ये  सभी  तत्व  जीवन  को  निखारते  व  सँवारते  हैं   l

16 September 2019

WISDOM ------

  चिंता  एक  ऐसा  रोग  है  जो  हमें  अंदर  ही  अंदर  खोखला  करता  रहता  है  l  एक  विचारक  का  कहना  है ---- " यदि  चलने को  तैयार खड़े    जलयान  में  सोचने - विचारने  की  शक्ति  होती  ,  तो  वह  सागर  की  उत्ताल  तरंगों  को  देखकर  डर  जाता  कि  ये  तरंगे  उसे  निगल  लेंगी   और  वह  कभी  भी  बंदरगाह  से  बाहर  नहीं  निकलता  l  लेकिन  जलयान  सोच  नहीं  सकता   इसलिए  उसे  चिंता  नहीं  होती  कि  जल  में  उतरने  के  बाद  उसका  क्या  होगा  ,  वह  तो  केवल  चलता  है  l "
  इसलिए  कहा  जाता  है  कि  यदि  मन  बहुत  सी  आशंकाओं  व  चिंता   से  भर  रहा  हो   तो  कभी  भी  बैठकर  उस  के  बारे  में  सोचना  नहीं  चाहिए  l  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  का  कहना  है  कि  ' व्यस्त  रहो ,  मस्त  रहो   l  चिंता  करने  के   बजाये    उसे   सकरात्मक    कार्यों  में   व्यस्त  रखें   l

15 September 2019

WISDOM ----- वृहत भारत के विश्वकर्मा ---- श्री विश्वेश्वरैया

  श्री  विश्वेश्वरैया  कर्मयोग  की  महत्ता  के    अनुपम  उदाहरण  थे  l  वे  एक  कुशल  इंजीनियर  थे  लेकिन   हार्दिक  लोक  सेवा  की  भावना  एवं  कार्यों  के  कारण   , देश  पूज्य  जनसेवक  और  महामानव  बन  गए  l
  उनका  कहना  था  कि   ----- "  हमारी  आर्थिक  हीनता  का  सबसे  बड़ा  कारण  शिक्षा  की  उपेक्षा  है   l  यदि  आप  एक  अच्छे  राष्ट्र  की  नींव  रखना  चाहते  हैं  तो   उसके  नागरिकों  को  उत्तम  बनाइये  l  सफल  राष्ट्र  वही   होता  है  जिसके  बहुसंख्यक  नागरिक   कुशल , चरित्रवान  और  कर्तव्य परायण  हों  l  अमेरिका  जैसे  देशों  के  लोग  अधिक  समृद्धिशाली , प्रगतिशील  और  दीर्घायु  हैं  ,  इसका  कारण  यही  है  कि  उन्हें  सर्वोत्तम  प्रकार  की  शिक्षा  सुविधाएँ  उपलब्ध  हैं   l  वे  संसार  की  सभी  समस्याओं  के  प्रति  जागरूक  हैं  , उनका  जीवन  योजनाबद्ध व  अनुशासित  है  l  इसके  विपरीत  अधिकांश  भारतीय  इन्ही  कमियों  के  कारणपरम्पराओं  पर  आधारित  जीवन  बिताते  हैं  lप्रगतिशील  जीवन  के  लिए  उन्हें  किसी  प्रकार  का  मार्गदर्शन  नहीं   मिलता  l  "    उनका  कहना  था  कि  --- " कार्यकुशल बनने  के  लिए  औसत  भारतवासी   के  लिए  यह  जरुरी  है  कि  वह  अधिक  परिश्रम  करे  और  अपनी  आदतों  को  अनुशासन  के  ढांचे  में   ढाले   l  संसार  में  जितने  भी  महान  व्यक्ति  हुए  हैं  ,  वे  सब  निरंतर  परिश्रम  के  कारण  ही  महान  बन  सके  हैं   l  "  

14 September 2019

WISDOM---

  '  हिन्दी  - दिवस '  की  शुभ कामनाएं   l   14  सितम्बर  को  ' हिन्दी - दिवस '  के  रूप  में  मनाने  की  प्रथा  का  प्रचलन   दक्षिण  भारत  के  हिन्दी  भक्त  श्री रंगम रामस्वामी  श्रीनिवास राघवन  ने  किया  l  हिन्दी  - प्रचार  का  कार्य  उन्होंने  अपने  घर  से  अपनी  पत्नी  को  हिन्दी  सिखाकर  आरम्भ  किया  l  दक्षिण  भारत  में  पैदा  होकर  भी   हिन्दी - प्रचार  के  काम  को  उन्होंने  अपनी  इकलौती  पुत्री  के  ब्याह  की  तरह  पूरे  रस  व  दायित्व  से  सम्पादित  किया  l  उनका  पूरा  परिवार  इस  पवित्र  कार्य  में  समर्पित  रहा  l  वे  बाद  में  राघवन जी  के  नाम  से  विख्यात  हुए  l

WISDOM -----

   काव्य  प्रतिभा  मनुष्य   को  मिली  हुई  एक  दैवी  विभूति  है     उसे  पाकर   अहंकार  में  भर  उठना  या  उसके  महत्व  को  नकारते  हुए   दुरूपयोग  करने  लगना  बहुत  बड़ी  भूल  है   क्योंकि  यह  उसकी  प्रतिभा  नहीं  होती   वरन  ईश्वर  से   किसी  विशेष  प्रयोजन   के  लिए  उसे  मिली  होती  है  l
  जन मानस   के  उत्थान , परिष्कार  ,  निर्माण  व  पतन  में   साहित्य  का  महत्वपूर्ण  योगदान  रहा  है  l  यह  मनुष्य  को  देवत्व  की  ओर  अग्रसर  भी  कर  सकता  है   तथा  पशुत्व  की  ओर  भी  ढकेल  सकता  है  l
                     हिन्दी  के  शीर्षस्थ  कवियों  में  से  तुलसीदास  जी  भी  एक  हैं   l  मनुष्य  देवता  बने  --- इसी  द्रष्टिकोण  को  ध्यान  में  रखकर  उन्होंने  साहित्य  सृजन  किया   l  रामचरितमानस  के  जरिये  उन्होंने  विश्व  को  जो  देन  दी  ,  वह  अमर  है  l  रामचरितमानस  एक  भक्ति  काव्य ,  आदर्शवादी  काव्य  ही  नहीं  , सांसारिक  अनुभवों  का  एक  विश्व कोष  भी  है   l

13 September 2019

WISDOM ------

 एक  राजा  को  असाध्य  रोग  हो  गया  l  वैद्यों  ने  उपचार  बताया  कि  राजहंसों  का मांस  खाना  चाहिए  l  हंस  मानसरोवर  पर  रहते  थे  l  साधु - संत  ही  वहां  जाते  थे  ,  लेकिन  कोई  संत  इस  पाप  कर्म  के  लिए  तैयार  नहीं  हुआ  l  एक  बहेलिया  पैसे  के  लालच  में   संत  का  बाना  पहनकर   वहां  जाकर  हंसों  को  पकड़  कर  लाने  के  लिए  तैयार  हो  गया  l  मानसरोवर  के  राजहंस  साधु - संतों  से  हिले - मिले  थे  l  उन्हें  देखकर  उड़ते  नहीं  थे   l  संत  वेशधारी  बहेलिये  ने  उन्हें  पकड़  लिया   और  राजा  के  सामने  प्रस्तुत  किया   l                      राजा  ग्लानि  में   पड़    गया   l  संत - श्रद्धा  से  पकड़े  गए  और  छल  वश  लाए  गए    इन  हंसों  का  स्वार्थवश  वध  अनुचित  है   l  यह  सोचकर  उसने  सभी  हंसों  को  मुक्त  कर  दिया  l  सोचा , भगवान  को  ठीक  करना  होगा   तो  करेंगे   l
  बहेलिये  पर  इस  घटना  का  सर्वाधिक  प्रभाव  पड़ा  l  उसने  सोचा  जिस  संत  वेश  के  लिए  हंसों  तक में  श्रद्धा  है  ,  उसे  कलंकित  नहीं  करना  चाहिए  l  उसने  संन्यास  ले  लिया  और  संत  बन  गया  l  उधर  राजा  भी  चमत्कारी  ढंग  से  ठीक  हो  गया  l
  वेश  की  जब  इतनी  महत्ता  है  ,  तो  उस  चोले  को  धारण  करने  वाले  लोग    कर्म  भी  श्रेष्ठ करें  ,  तो  ही  सार्थकता  है   l  आज  तो  ऐसे  वेशधारी  बहेलिये  बने   बैठे  हैं    l

12 September 2019

WISDOM ----- प्रजा को कष्टों से मुक्त कराना शासक का कर्तव्य है

    सम्राट  अशोक  ने  बौद्ध  धर्म  अपनाने  के  बाद   प्रजा  के  कल्याण  के  लिए  अनेकों  कार्य  किये  l  एक  बार उसने  अपने  अधीन  सभी  राजाओं  को  बुलाकर  कहा --- " आगामी  वर्ष  में  जिस  राजा  का  कार्य  सर्वश्रेष्ठ  होगा  ,  उसे  हम  व्यक्तिगत  रूप  से  पुरस्कृत  करेंगे  l "  यह  घोषणा  सुनकर  सभी  राजा  उत्साहपूर्वक  अपने - अपने  राज्यों  में   कार्य  करने  में  जुट  गए  l
 एक  वर्ष बाद  सभी  राजा  अपनी  उपलब्धियों  का  विवरण  देने  सम्राट  अशोक  के  दरबार  में  उपस्थित  हुए  l  सभी  ने  यही  बताया  कि  उन्होंने  प्रजा  पर  अधिक  कर  लगाकर  राजकोष  में  वृद्धि  कर  ली  ,  परन्तु  एक  राजा  बोला  ---- "  महाराज  !  मैं राजकोष  तो  न  बढ़ा  सका  ,  परन्तु  मैंने  अपने  राज्य में   विद्दालयों , चिकित्सालय,  धर्मशालाओं  की  स्थापना  जरुर  कराई  है  l  जनहित  में  उसके  किये  गए  कार्यों  को  सुनकर   सम्राट  अशोक  गदगद  हो  गए   और  बोले ---- " प्रजा  का  शोषण  कर  राज्य  की  आमदनी बढ़ाना  शासक  का  कर्तव्य  नहीं  ,  बल्कि  शासक  का  कार्य    प्रजा  को  कष्टों  से  मुक्त  कराना  है  l  यही  शासक  सर्वश्रेष्ठ  शासक  के  पुरस्कार  का  अधिकारी  है   l  "

11 September 2019

WISDOM ------ अनैतिकता समाज से मिटे तो बहुत से असाध्य रोग सहज ही नष्ट हो जायेंगे l

  एक  बार  अग्निवेश  ने  आचार्य  चरक  से  पूछा ---- " संसार  में  जो  अगणित  रोग  पाए  जाते  हैं  ,  उनका  कारण  क्या  है  ? " 
आचार्य  ने  उत्तर  दिया ---- " व्यक्ति  के  पास  जिस  स्तर  के  पाप  ( दुष्कर्म )  जमा  हो  जाते  हैं  ,  उसी  के  अनुरूप  शारीरिक  एवं  मानसिक  व्याधियां  उत्पन्न  होती  हैं  l  जिस  तरह  आहार - विहार   के  असंयम  से  शारीरिक  रोग  पनपता  है  ,   उसी  तरह   विचारणा,  चिंतन - मनन   एवं  कर्म  के  लिए  निर्धारित  नीति  मर्यादा  का   उल्लंघन  करने  के  कारण  मानसिक  रोग  उत्पन्न  होते  हैं  l   शरीर  और  मन  परस्पर  गुंथे  हुए  हैं   l  शारीरिक  रोग  कालांतर  में  मानसिक    और  मानसिक  रोग    शारीरिक  रोग  बन  जाते  हैं   l  "
                             समर्थ   वैद्य    जीवक  एक  बार    एक  रोगी  को  लेकर   चिंतित  थे  l  वह  पूर्ण रूप   से  स्वस्थ  था  किन्तु  उसकी  दाई  आँख  खुलती  नहीं  थी  l  उसके  शरीर  के  सभी  अंग  और  आँख  के   सभी  अवयव  सामान्य  थे  l  उन्होंने  तथागत  के  शिष्य   महास्थविर  रैवत  को  यह  सारी  समस्या  कथा  सुनाई  l  रैवत  मानवीय  चेतना  के  मर्मज्ञ  थे  l  सब  जानने  के   बाद  वे  बोले ---- "  जीवक !  तुम्हारे  रोगी  की  समस्या  शारीरिक  नहीं ,  मानसिक   है  l  उसने  अपने  जीवन  में नैतिकता  की  अवहेलना  की   है  l  इसी  वजह  से  यह  ग्रंथि  बनी  है   l  इसे  भगवान  बुद्ध  के  पास  ले जाओ  l " 
  उस  रोगी  ने  अपने  सभी  गलत  कार्य  ,  मन  की  सारी  व्यथा   भगवान  बुद्ध  को  सुना  दी  l  भगवान  ने  उसके  मस्तक  पर  हाथ  फेरा  l  उसकी  आँख  खुल  गई  ,  रोग  से  मुक्ति  मिली  l  किन्तु  जो  गलतियाँ  की  थी   उनकी  क्षतिपूर्ति  के  लिए  प्रायश्चित अनिवार्य  था  -- अत:  उसे  जनसेवा   का  व्रत  दिलाया  गया  l

10 September 2019

WISDOM ----- अहंकार व्यक्ति को पतन के मार्ग पर ले जाता है

   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है ---- ' जब  स्रष्टि  का  सृजेता  ईश्वर  स्वयं  को  श्रेष्ठ  सिद्ध  करने  का  कभी  कोई  प्रयास  नहीं  करता  ,  तब  हम  मरणधर्मा   होते  हुए  भी  स्वयं  को  श्रेष्ठ  मानने  व  सिद्ध  करने  का  उपाय  किस  आधार  पर  कर  सकते  हैं   ?    इसलिए  मनुष्य  को  जो  कुछ  भी  विशेषता  प्राप्त  हो  उसका  सदुपयोग  स्वयं  के  विकास  में  और  दूसरों  के  कल्याण  के  लिए  करना  चाहिए   l  जिन  उपलब्धियों  के  कारण  वह  आज  गर्वोन्मत   हो रहा  है  ,  उन्हें  नष्ट  होने  में  क्षण भर  भी  नहीं  लगेगा  l   इसलिए  अपनी  उपलब्धियों   व  सफलताओं  को  ईश्वर  की  कृपा  मानते  हुए  उनके  प्रति  कृतज्ञ  होना  चाहिए   l  "
 अहंकारी  व्यक्ति  का  पतन  निश्चित  है  l   हिरण्यकशिपु ,  रावण ,  कंस , दुर्योधन  के  उदाहरण  सर्वविदित  हैं  ,  कोई  भी  अमर  नहीं  हुआ   l  जब  इनका  अहंकार  पराकाष्ठा  पर  पहुँच  गया  तो  काल  ने  उनको  समाप्त  कर  दिया  l

9 September 2019

WISDOM -------- प्रगति / विकृति

   अनंत  ब्रह्मांड  पर  आधिपत्य  जमाने  की  मनुष्य  की  व्यर्थ  चेष्टा  पर  उसे  चेताते  हुए   प्रसिद्ध  साहित्यकार  बंट्रेंड  रसेल  ने  लिखा  है ----- " अच्छा  होता  हम  अपनी  धरती  ही  सुधारते  और  बेचारे  चंद्रमा  को  उसके  भाग्य  पर  छोड़  देते  l  अभी  तक  हमारी  मूर्खताएं  धरती  तक  ही    सीमित   रही  हैं  l  उन्हें   ब्रह्मांडव्यापी बनाने  में  मुझे   कोई  ऐसी  बात  प्रतीत  नहीं  होती ,  जिस  पर  विजयोत्सव  मनाया  जाये   l   चंद्रमा  पर मनुष्य  पहुँच  गया  तो  क्या  ?  यदि  हम  धरती  को  ही   सुखी  नहीं  बना  पाए   तो यह  प्रगति  बेमानी  है   l   "
 प्रगति    के  नाम  पर  आज  विकृति  को  अपने  जीवन  का  लक्ष्य  बनाये  चल  रहे  इनसान  के  लिए  बंट्रेंड  रसेल  की  ये  पंक्तियाँ  आज  भी  बहुत  सार्थक  प्रतीत  होती  हैं  l
वर्तमान  की  दुर्भाग्यपूर्ण  स्थिति  को   पं.  श्रीराम    शर्मा  आचार्य  ने  इन  शब्दों  में  लिखा  है ----- "  भावनाओं   को  दिशा  देने  वाली  कुंजी  उन  हाथों  में  चली  गई  जिनमे  नहीं  जानी  चाहिए  थी  l  बारूद की  पेटी बालकों  को  थमा  दी  जाये ,  तलवार  बन्दर  को  मिल  जाये  ,  सशक्त  औषधियों  का   उपयोग  कोई  अनाड़ी  करने  लगे ,  खजाने  की  व्यवस्था  कोई   पागल  संभाले  तो  उसका  परिणाम  अहितकर  ही  होगा  l  भावनाओं  को  प्रभावित  करना  एक  ऐसा  महत्वपूर्ण  कार्य  है   जिस  पर  संसार  का  भाग्य  और  भविष्य  जुड़ा  हुआ  है    इसलिए  इसको  प्रयुक्त  करने  का  अधिकार  सत्पात्रता  की  आग  में  तपे  हुए  अधिकारियों  और मनीषियों  को  मिलना  चाहिए   जो  कला  को  सद्विचारों  - सद्भावों  का  माध्यम  बना  सके   l  "
विचारों  और  भावनाओं  का  परिष्कार  अनिवार्य  है  l

8 September 2019

WISDOM ----- शत्रु से सतर्कता शूरवीरों को संसार में बड़े -बड़े काम करने के लिए सुरक्षित रखा करती है l

    राजा  कौणिक  अपने  पड़ोसी  राज्य  वज्जीगण  पर  विजय  प्राप्त  करना  चाहता  था , परन्तु  वह  राज्य  अत्यंत  शक्तिशाली  था  l  कौणिक  ने  अपने  महामंत्री  से  परामर्श  लिया  कि  पड़ोसी  राज्य  पर  युद्ध  द्वारा  विजय  पाना  संभव  नहीं  है  l  क्या  किया  जाये  ?    महामंत्री  ने  राजा  को  एक  योजना  बताई  ,  जिसे  राजा  ने  स्वीकार  कर  लिया  l
योजनानुसार  घोषणा  कर  दी  गई  कि  कौणिक  ने  नाराज  होकर  महामंत्री  को  देश  निकाला  दे  दिया  है  l  घोषणा  के  बाद  महामंत्री  शरणागत  होकर  पड़ोसी  राजा  के  यहाँ  पहुंचा  l  राजा  ने  उसे  शरण  दे  दी  l
   वहां  रहकर  महामंत्री  ने  प्रशासन  के  सभी  अधिकारियों  के  मध्य  मनमुटाव  पैदा  करना  शुरू  कर  दिया  l  जब  उसका  मनोरथ  सिद्ध  हो  गया  तो  उसने  राजा  कौणिक  को  सूचना  भिजवा  दी   l  राजा  कौणिक  सेना  लेकर  आक्रमण  के  लिए  पहुंचा   l  आक्रमण  की  सूचना  की  रणभेरी  बजने  पर  भी   इस  राज्य  से  कोई  लड़ने  नहीं  पहुंचा  l  अपनी  हार  सामने  देखकर   राजा  ने  अपने  योद्धाओं  को  बुलाकर  इसका  कारण  पूछा   तो  वे  सब  बोले --- " राजन  ! अमुक  सेनापति  मुझे  शक्तिहीन  बता  रहा  है ,  वह  अधिकारी  मेरी  प्रगति  से  जलता  है  l "  राजा  को  अब  समझ  में  आया  कि  उसकी  सेना  में  एक  दूसरे  के  प्रति  जो  संदेह  और  अविश्वास  उभरा  है  उसके  पीछे  राजा  कौणिक  के  मंत्री  की  कूटनीति  जिम्मेदार  है  l  जो  कार्य  सेना  न  कर  सकी  उसे  आपस  के  मनमुटाव  ने  कर  दिया  l  

7 September 2019

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  अखण्ड  ज्योति  में  एक  लेख  लिखा  था  , उसका  अंश  है ------ '  संपन्नता  से  सुविधा  तो  बढ़  सकती  है  ,  पर  उससे  व्यक्ति  के  अंतरंग  को ऊँचा  उठाने  में  जरा  भी  सहायता  नहीं  मिलती   l  चेतना  का  स्तर  ऊँचा  रहने   की  स्थिति  में  ही  शक्ति  और  सम्पदा  का  सदुपयोग  बन  पड़ेगा  l  इसके  बिना  बंदर  के  हाथ  तलवार  पड़ने  की  संभावना  ही  अधिक  रहेगी  l
आदर्शवादिता  बढ़े  बिना   बढ़ा  हुआ  वैभव  विपत्तियाँ  ही  बढ़ाता  है  l  बुद्धि - कौशल  छल - छद्म  करने  के  काम  आता  है  l  वैभव  से  दुर्व्यसन  बढ़ते  चले  जाते  हैं   और  अधिकारों  का  उपयोग  स्वार्थपूर्ति  तथा  दुर्बलों  को  दबाने  ,  उनका  शोषण  करने  के  काम  आता  है   l  कला  की  शक्ति  पशु - प्रवृतियों  को  भड़काने  में  लग  जाती  है  l
  आचार्य श्री  ने  आगे   लिखा  है  ---- '  व्यक्ति  के  अंतरंग  में  रहने  वाली   निकृष्टता   अभावग्रस्त  स्थिति  में   तो  फिर  भी  दबी  रहती  है  ,  लेकिन  शक्ति  और  साधन  मिलने  पर  वह  और  अधिक  खुला  खेल  खेलने  लगती  है   l  तब  कुकर्मी  का  वैभव   उसके  स्वयं  के  लिए ,  संबंधित  व्यक्तियों  और  समाज  के  लिए  अभिशाप  ही  सिद्ध  होता  है   l
जीवन  के   दोनों  पक्षों  ---- भौतिकता   के  साथ  आदर्शवादिता व  जीवन  मूल्यों  का  समन्वय  जरुरी  है  l

6 September 2019

WISDOM ------ दुरात्मा मनुष्य राजदंड से बच सकता है , पर आत्मदंड से नहीं बच सकता l

  एक  घटना  है ---- ' पिता  की  हत्या  कर  के  खुद  राज्य सिंहासन  पर  बैठा  हुआ  टर्की  का  खलीफा  मौतासर   उन  दिनों  बड़ा  प्रसन्न  था  l  राजसिंहासन  मिलने  के  उपरांत  प्राप्त  होने  वाले  सभी  सुख  उसे  उपलब्ध  होने  लगे  थे  l  एक  दिन  खलीफा  मौतासर  घोड़े  पर  सवार  अपने  साथियों  सहित  कहीं  जा  रहा  था  l  जन शून्य  स्थान  में  उसे  बहुत  बड़ी  कब्र  दिखाई  दी  l  खलीफा  की  इच्छा  उसे  देखने  की  हुई   और  घोड़ा  बढ़ाता  हुआ  वह  उसके  निकट  पहुंचा  l  कब्र  पर  एक  पत्थर  लगा  हुआ  था  l  खलीफा  ने  उसे  ध्यानपूर्वक पढ़ा   तो  उस  पर  लिखा  हुआ  था  ----- ' मैं  सरीज   खुशरो  का  पुत्र  गढ़ा  हुआ  हूँ इस  कब्र  के  नीचे  l  लोभ  के  वश  मैंने  राज्य सिंहासन  पाया   और  इसके  लिए  मरवाया  अपने  बेगुनाह  पिता  को  l  मेरी   मौत  बनकर  आया  मेरा  कुकर्म  और  मैं  ताज  सिर  पर  न  रख  सका  छह  महीने  भी  l  अपने  पिता  की  तरह  मैं  भी  बैठ  रहा  हूँ   इस  पत्थर  के  नीचे  l
मौतासर   को  स्मरण  आया  कि  पाप  का  क्या  परिणाम  होता  है  l  और  उसी  के  जैसा  कुकृत्य  करने  वाला   एक   दूसरा   व्यक्ति    किस  प्रकार  अकाल  मृत्यु  का  शिकार  हो  चुका  है   l  खलीफा  के  ह्रदय  में  हजार  बिच्छुओं   के  काटने  जैसी  पीड़ा  होने  लगी  ,   वह  अपने  पाप  का     स्मरण  कर  के  सिर  धुनने  लगा   l   कहते  हैं  इस  कब्र  को  देखने  के  बाद   खलीफा  सिर्फ  तीन  दिन  ही  जिन्दा  रहा  और  रोते - रोते  मर  गया   l
  पाप  करने  वाले  को  उसकी  आत्मा  ही  दंड  देने  की  पर्याप्त  क्षमता  रखती  है   l  विपुल  साधन - संपन्न  होते  हुए  भी  व्यक्ति  इसी  कारण  सुख - शांतिपूर्वक  नहीं  रह  पाते   कि  उन  उपलब्धियों  के  मूल  में  छुपी  अनैतिकता    व्यक्ति  की  चेतना  को  विक्षुब्ध    किये   रहती  है   l

5 September 2019

WISDOM------ पद की गरिमा

  वाल्मीकि  रामायण  में  एक  कथा  आती  है  कि  एक  बार  एक  कुत्ता  भगवान   राम  के  दरबार  में  अपनी  समस्या  लेकर  पहुंचा  l  उसने  भगवान  राम  से  कहा --- " प्रभु  ! मुझे  नगर  के  एक  ब्राह्मण  ने  अकारण  ही  डंडे  से  मारा   और  प्रताड़ित  किया  l  मैं  आपसे  प्रार्थना  करता  हूँ  कि  उसे  कलिंजर  पीठ  का  महंत बना  दीजिये  l "  भगवान  राम  बोले ---- " पर  उसने  तुम्हारे  साथ  दुर्व्यवहार  किया  है  तो  सजा  के  बदले  उसके  लिए  पुरस्कार  की   चाह   क्यों  ? "
  कुत्ता  बोला ---- " भगवन  ! मैं  पूर्व जन्म  में  कलिंजर  का  महंत  ही  था   l  मैंने  जीवन  भर  सदाचरण  ही  किया  ,  दान  की  सम्पति  का  निजी  कार्यों  में   उपभोग  नहीं  किया  l  पर  एक  बार  मुझसे  भूलवश   मंदिर  में  चढ़ाये  घी का  उपयोग  अपने  भोजन  में  डालने  हेतु  हो  गया  l  आज  उसी  के  प्रायश्चित स्वरुप  इस  श्वान  योनि  में  मेरा जन्म  हुआ  है  l  फिर  ये  व्यक्ति  तो  स्वभाव  से  ही  दुराचारी   और  लालची    है  l   इसका  क्या   परिणाम  होगा ,  ये  आपसे  अच्छा  कौन  जान  सकता  है   l "
  दायित्वपूर्ण    स्थानों  पर  आसीन  व्यक्तियों  को  सदा  पद  की  गरिमा  और  मर्यादा  का  ध्यान  रखना  चाहिए  ,  अन्यथा   पतन  होते  देर  नहीं  लगती   l