चाणक्य ने अपने ग्रन्थों में स्थान - स्थान पर यह विचार व्यक्त किया है कि शासक स्तर के व्यक्ति को बुद्धि और शक्ति दोनों ही विभूतियों से संपन्न होना चाहिए l चाणक्य ने अपने शिष्य को शस्त्र और शास्त्र में पारंगत बनाने के साथ साथ उसके चरित्र गठन की और भी ध्यान दिया l
' चरित्र ही समस्त सफलताओं और सदउद्देश्यों को प्राप्त करने का मुख्य आधार है l इसके अभाव में बड़े - बड़े शक्तिशाली साम्राज्य तथा सम्राटों का नाश और पतन हुआ है l साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए वह उतना ही उपयोगी है जितना कि उच्च प्रतिष्ठित और शासन तथा अधिकारियों के लिए l क्योंकि चिरस्थाई शांति और अपने उत्तरदायित्व को समझने तथा पूरा करने की क्षमता चरित्र साधना से ही उत्पन्न होती है l '
' चरित्र ही समस्त सफलताओं और सदउद्देश्यों को प्राप्त करने का मुख्य आधार है l इसके अभाव में बड़े - बड़े शक्तिशाली साम्राज्य तथा सम्राटों का नाश और पतन हुआ है l साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए वह उतना ही उपयोगी है जितना कि उच्च प्रतिष्ठित और शासन तथा अधिकारियों के लिए l क्योंकि चिरस्थाई शांति और अपने उत्तरदायित्व को समझने तथा पूरा करने की क्षमता चरित्र साधना से ही उत्पन्न होती है l '