प्राचीन काल में विद्वान, वैज्ञानिक , ऋषि - मनीषी आदि अपनी क्षमता एवं प्रतिभा आदि का उपयोग जन समुदाय के कल्याण कार्यों व समाज के उत्थान में करते थे लेकिन आज स्थिति सर्वथा विपरीत हो गई है l आज की वैज्ञानिक एवं राजनीतिक प्रतिभा अपनी क्षमताओं का दुरूपयोग विनाश के साधन जुटाने में करती है l सुविख्यात मनीषी कार्ल मेनीन्जर का कहना है ---- अपने अहंकार की पूर्ति के लिए जिस तरह एक देश दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए परमाणु हथियारों का उपयोग करता है l उसके प्रभाव से वह सारा क्षेत्र जीवन विहीन हो जाता है और वातावरण में विकिरण की विषाक्तता और स्वास्थ्य संहारक विषाणुओं की फौज ही शेष रह जाती है l यह कार्य उन संस्थाओं या सरकारों का होता है जिन्हें जनता नियमित रूप से तरह - तरह के उपायों से कर चुकती है l
प्रकृति मनुष्य के इस अहंकार को बर्दाश्त नहीं करती और मनुष्य के दुष्कृत्यों से विक्षुब्ध होकर
' जैसे को तैसा ' का पाठ पढ़ाने को आतुर दीखती है l बाढ़ , सूखा, चक्रवात , तूफान , भूकंप , ज्वालामुखी विस्फोट , जंगलों में आग , कैंसर , एड्स जैसी घातक बीमारियाँ , हत्या , अपराध , आत्महत्या की बढ़ती प्रवृतियां --- इन सबके पीछे अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति की नाराजगी ही है l श्रेष्ठ विचार , 'जियो और जीने दो ' की भावना से ही समस्याएं हल होंगी l
प्रकृति मनुष्य के इस अहंकार को बर्दाश्त नहीं करती और मनुष्य के दुष्कृत्यों से विक्षुब्ध होकर
' जैसे को तैसा ' का पाठ पढ़ाने को आतुर दीखती है l बाढ़ , सूखा, चक्रवात , तूफान , भूकंप , ज्वालामुखी विस्फोट , जंगलों में आग , कैंसर , एड्स जैसी घातक बीमारियाँ , हत्या , अपराध , आत्महत्या की बढ़ती प्रवृतियां --- इन सबके पीछे अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति की नाराजगी ही है l श्रेष्ठ विचार , 'जियो और जीने दो ' की भावना से ही समस्याएं हल होंगी l