इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं जो यह बताते हैं कि जाति या धर्म से कोई बुरा नही होता , व्यक्ति के अपने संस्कार व स्वभाव है जिससे विवश होकर वह अच्छे या बुरे कर्म करता है l ----- गुरु गोविन्दसिंह जब आनंदगढ़ के किले में अपने परिवार के साथ थे तब औरंगजेब ने धर्मद्रोही और देशघाती राजाओं के साथ मिलकर उस किले पर आक्रमण किया l इस युद्ध में उनका परिवार बिछुड़ गया l गुरु गोविन्दसिंह अपने दो पुत्रों के साथ एक ओर जा पड़े और उनकी माँ व गुरूजी के दो छोटे पुत्र दूसरी और जा पड़े l गुरु गोविन्दसिंह की माता अपने दो छोटे पोतों के साथ रसोइये गंगू के अनुरोध पर उसके घर चली गईं l किले से निकलते समय माता अपने साथ जेवरात तथा जवाहरात की पिटारी ले आईं थीं l इस पिटारी पर गंगू रसोइये की नियत खराब हो गई और उसने सरहिन्द के नवाब को खबर कर गुरु गोविन्दसिंह के दो पुत्रों और उनकी माता को गिरफ्तार करा दिया l बाद में जब गंगू नवाब से इनाम लेने गया तो नवाब ने उस कौमी गद्दार को जल्लादों को सौंप कर मरवा दिया l
दूसरी ओर जब गुरु गोविन्दसिंह जंगलों , पहाड़ों नदी - नाले पार करते हुए एक गाँव में आ गए तो वहां दो पठानों ने गुरूजी को पहचान लिया और उन्हें प्रणाम कर बोले --- " महाराज , आप आगे न जाएँ , वहां खतरा है l उन्होंने कहा --- ' यद्दपि हम मुसलमान हैं पर आपके शुभ चिन्तक हैं l हम जानते हैं कि आप हिन्दू - मुसलमानों का सवाल लेकर नहीं लड़ रहे l आप अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं l आपने न्याय के लिए अपनी सम्पति और परिवार तक को बलिदान कर दिया l आततायी और अन्यायी चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, असामाजिक ही होता है l ' उन पठानों ने मुसलमान मौलवियों के वेश में गुरूजी को अपने कन्धों पर चढ़ाकर खतरे से बाहर निकाल दिया l
वर्तमान युग में हम देखें तो एक ही परिवार , एक ही जाति - धर्म में पैदा हुए भाई - भाई धन व सम्पति के लिए एक - दूसरे के कट्टर दुश्मन हो जाते हैं l जिन परिवारों में महिलाएं अकेली रह जाती हैं , कमजोर हैं उनकी सम्पति को उसके परिवार के सदस्य ही हड़प लेते हैं l इसी तरह विभिन्न संस्थाओं में , नौकरी में अपनी महत्वाकांक्षा के कारण लोग अपनी ही जाति - धर्म के लोगों की तरक्की में बाधा डालते हैं , उनका हक छीनते हैं , मानसिक रूप से उत्पीड़ित करते हैं l दहेज के लिए अत्याचार कोई गैर नहीं , अपने ही करते हैं l
समाज में सुख - शान्ति रहे इसके लिए जागरूकता जरुरी है , कौन अपना , कौन पराया , कौन अच्छा , कौन बुरा , विवेक द्रष्टि से इसकी पहचान जरुरी है l
दूसरी ओर जब गुरु गोविन्दसिंह जंगलों , पहाड़ों नदी - नाले पार करते हुए एक गाँव में आ गए तो वहां दो पठानों ने गुरूजी को पहचान लिया और उन्हें प्रणाम कर बोले --- " महाराज , आप आगे न जाएँ , वहां खतरा है l उन्होंने कहा --- ' यद्दपि हम मुसलमान हैं पर आपके शुभ चिन्तक हैं l हम जानते हैं कि आप हिन्दू - मुसलमानों का सवाल लेकर नहीं लड़ रहे l आप अन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हैं l आपने न्याय के लिए अपनी सम्पति और परिवार तक को बलिदान कर दिया l आततायी और अन्यायी चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, असामाजिक ही होता है l ' उन पठानों ने मुसलमान मौलवियों के वेश में गुरूजी को अपने कन्धों पर चढ़ाकर खतरे से बाहर निकाल दिया l
वर्तमान युग में हम देखें तो एक ही परिवार , एक ही जाति - धर्म में पैदा हुए भाई - भाई धन व सम्पति के लिए एक - दूसरे के कट्टर दुश्मन हो जाते हैं l जिन परिवारों में महिलाएं अकेली रह जाती हैं , कमजोर हैं उनकी सम्पति को उसके परिवार के सदस्य ही हड़प लेते हैं l इसी तरह विभिन्न संस्थाओं में , नौकरी में अपनी महत्वाकांक्षा के कारण लोग अपनी ही जाति - धर्म के लोगों की तरक्की में बाधा डालते हैं , उनका हक छीनते हैं , मानसिक रूप से उत्पीड़ित करते हैं l दहेज के लिए अत्याचार कोई गैर नहीं , अपने ही करते हैं l
समाज में सुख - शान्ति रहे इसके लिए जागरूकता जरुरी है , कौन अपना , कौन पराया , कौन अच्छा , कौन बुरा , विवेक द्रष्टि से इसकी पहचान जरुरी है l