3 May 2020

WISDOM ----- विज्ञान क्या है ?

  कहा  जाता  है  कि   विज्ञान   तथ्यों  पर  आधरित  है   l   विज्ञान   के  निष्कर्षों  को  संसार  के   किसी  भी  कोने  में  परखा  जाये  ,  वे  सत्य  सिद्ध  होते  हैं  l   वे  व्यर्थ  की  कल्पना  पर  या  अदृश्य  चीजों  पर  आधरित  नहीं  होते  l  लेकिन  कभी  ऐसा  वक्त  आ  जाता  है  कि   अदृश्य  की  सत्ता  को  स्वीकार  करना  पड़ता  है  l   संवेदन शून्य  होने  के  कारण    अदृश्य  की  नकारात्मकता  को , असुरता   को   स्वीकार  किया  ,  साक्षात्   महाकाल  की  सत्ता  को  नहीं  l
  विज्ञान   की  सबसे  बड़ी  हार  है  कि   वह   सम्पूर्ण  चिकित्सा , अरबों - खरबों  की  सम्पति  सब  कुछ  लगाकर  भी  मृत्यु  पर  विजय  नहीं   पा   सका   l   इसी  हार  से  बौखलाकर  वैज्ञानिक  समय - समय  पर  विभिन्न  प्रयोग   करते  हैं  कि   कैसे  मृत्यु  को   रोका    जाये   l   इन  प्रयोगों  से  मृत्यु  को  तो  नहीं  रोक  पाते ,  मृत्यु  के  और  नए  कारण  पैदा  हो  जाते  हैं  l     यदि  विज्ञान   ने  अध्यात्म  के  साथ  मेल  रखा  होता  ,   विकास  के  नाम  पर  प्रकृति  का  शोषण  न  किया  होता   तो  प्राकृतिक  आपदाओं   का  खतरा  न  रहता   l  प्रकृति  कब  क्रुद्ध  हो  जाये ,  बाढ़ , भूकंप , सुनामी  , तूफान   आदि  से  कब  ,कितने  काल  के  गाल  में  चले  जाएँ  कोई  नहीं  जानता   l
  आवश्यक  है  कि   हम   उस  अज्ञात  शक्ति   को   ,  महाकाल   की  सत्ता  को   स्वीकार  करें  ,  स्वयं  को  ईश्वर  समझने  की  भूल  न  करें  l 

WISDOM ------ दरिद्र कौन ?

  एक  सूफी   कथा  है ---- एक   फकीर   ने  अपने  शिष्य  को   कुछ  धन  देते  हुए  कहा  --- " इसे  किसी  दरिद्र  व्यक्ति  को  दान  में  दे  देना  l "   गुरु  ने  गरीब  न  कहकर  दरिद्र  कहा  l 
गुरु  के  सत्संग  में  शिष्य  समझ    चुका    था  कि   गरीबी  परिस्थितियों  वश  होती    है   लेकिन   दरिद्रता   मन: स्थिति  है  l  अत:  उसने  किसी  दरिद्र  व्यक्ति  की  तलाश  करनी  शुरू  कर  दी  l
  अपनी  इस  तलाश  में  वह   एक  राजमहल  के  पास  जाकर  रुक  गया  l   वहां  कुछ  लोग  चर्चा  कर  रहे  थे   कि   राजा  ने  अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए    प्रजा  पर   कितने   कर   लगाएं  हैं  ,  कितने  लोगों  को   लूटा   है  l  इन  बातों  को  सुनकर  उसे  लगा  कि   उसकी  तलाश  पूरी  हुई   l   दूसरे  दिन   उसने    राजा  के  दरबार  में  उपस्थित  होकर    राजा  को  अपने  सारे  रूपये  सौंप  दिए   l   एक  फकीर   के  द्वारा  इस  तरह   अचानक  रूपये  दिए  जाने  से   वह  राजा  हैरान  हुआ  l   इस  पर  उस  शिष्य  ने   अपने  गुरु  की  बात  कह  सुनाई   और  कहा ---- "  राजन  !  इच्छाएं  हों  तो   दरिद्रता  व  दुःख  बने  ही  रहेंगे  l   इसलिए  जो  इन   इच्छाओं  के  सच  को  जान  लेता  है  ,  वह  दुःख  से  नहीं  ,  अपनी  चाहतों  से  मुक्ति  खोजता  है  l "
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है -----' जिसकी  इच्छाएं  जितनी  अधिक  हैं  ,  उसे  उतना  ही  दरिद्र   होना  पड़ेगा  ,  उसे  उतना  ही  याचना   और  दासता   के  चक्रव्यूह  में  फँसना   पड़ेगा   l '