प्रकृति में जहाँ पात्रता के अनुरूप अनुदान - वरदान मिलने , अनायास सहयोग मिलने का विधान है , वहीँ दुष्ट - दुराचारियों , अत्याचारियों को उनके कुकृत्य के लिए भयंकर दंड व्यवस्था भी है l दूसरों के विनाश का तानाबाना बुनने वाले स्वयं भी नहीं बच पाते l स्वामी विवेकानंद ने एक स्थान पर उल्लेख किया है कि स्थूल जगत की तरह एक सूक्ष्म जगत भी है और उससे हम उसी प्रकार घनिष्ठ रूप से संबद्ध हैं , जिस प्रकार भौतिक जगत से l वे कहते हैं कि हमारे इर्द - गिर्द हर वक्त अनेकों सत्ताएं मंडराती रहती हैं , पर हमारा संपर्क सिर्फ उन्ही सत्ताओं से हो पाता है जिनकी आवृति से हमारी चिंतन - चेतना की आवृति मेल खाती है l आज सर्वत्र आपाधापी और विनाशकारी वातावरण दिखाई देता है l अधिसंख्यक लोग अनैतिक कार्यों में रूचि लेते दिखाई पड़ते हैं l इसका प्रमुख कारण यह है कि चिंतन की नकारात्मकता के कारण सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियां उन पर सवार होती हैं और विनाशकारी कुचक्र रचने की प्रेरणा भरती हैं l इतिहास साक्षी है कि जिन व्यक्तियों ने मनुष्य और समाज के लिए क्रूरतम कार्य किये , उन पर सदा असुर सत्ताएं छाई रहीं और अंतत : वही उनके अंत का कारण बनीं l
हिटलर , तैमूर लंग , नादिरशाह , रोम का शासक नीरो आदि अनेक आततायियों का अंत भी दर्दनाक हुआ l
हिटलर , तैमूर लंग , नादिरशाह , रोम का शासक नीरो आदि अनेक आततायियों का अंत भी दर्दनाक हुआ l