14 January 2019

WISDOM ---- ----- विभूति योग ---- श्रीमद्भगवद्गीता

ईश्वर  ने  मनुष्यों  को   अनेक  विभूति  सौंपी  है ,  आवश्यकता  है  उनको  विकसित  करने  की   l
  स्त्रियों  में  भगवान  की  सर्वाधिक  विभूतियाँ  हैं  ,  इन  विभूतियों  के  विकसित  होने  पर  ही  दुनिया  में  संतुलन  व  सौन्दर्य  प्रकट  होगा  l ----
  भगवान  कहते  हैं ----- स्त्रियों  में  मैं  कीर्ति  हूँ   l  कीर्ति  का  मतलब  ऐसी   नारी ,  जिसके  व्यक्तित्व  से  वासना  की  झंकार  नहीं  निकलती  l  ऐसा  होने  पर  उसे  एक  अनूठा  सौन्दर्य  उपलब्ध  होता  है   और  वही   सौन्दर्य  उसका  यश  है , उसकी    कीर्ति  है   l
  इसके  बाद   भगवान  कहते  हैं ---- स्त्रियों  की  श्री  मैं  ही  हूँ   l   श्री   स्त्री  का  आत्मिक  सौन्दर्य  है  ,  उसकी  दिव्यता  की  अभिव्यक्ति   l    श्री  का  सौन्दर्य  अलौकिक  है ,  अपार्थिव  है   l 
   इसके  बाद  स्त्रियों  के  एक   अन्य   गुण   ' वाक् '  को  भगवन  अपना  स्वरुप  बताते   हैं  l   जब  स्त्री  अपने  अस्तित्व  में परम  मौन  को  उपलब्ध  होती  है  तब  उसकी वाणी  ' वाक् ' बनती  है  , जिससे  मन्त्र  प्रकट  होते  हैं   l  यह  मौन  की   गरिमा  है   l
  वाक्  के  बाद   स्त्री  के  एक  अन्य  गुण  को  भगवन  अपना  स्वरुप  कहते  हैं   ,  वह  गुण  है ---- स्मृति   l
 स्त्री  के  लिए  स्मृति  उसकी  बुद्धि  का  हिस्सा  नहीं  है  ,  बल्कि  अस्तित्व  की सम्पूर्णता  है   l 
  इसके बाद  ' मेधा  '  को  भगवन   अपनी  विभूति  बताते   हैं   l  मेधा  के  बल  पर  ही   संवेदना  और  सृजन  को  स्त्री  धारण  करती  है   l 
  इसके  पश्चात्   धृति  को  भगवन  अपना  स्वरुप  बताते  हैं  l  धृति  का  अर्थ  है --- धीरज , धैर्य , स्थिरता  l  स्त्री  का  धैर्य ,  उसकी  सहने  की  क्षमता  अनंत  है  ,  इसलिए  प्रकृति  ने  उसे  माँ  का  गौरव  दिया  है  l 
  इसके  पश्चात्  स्त्री  का  अगला  गुण  है -- क्षमा ,  जिसे  भगवन  अपनी  विभूति  कहते  हैं   l  स्त्री  में  जितना  प्रेम  है ,  उतनी  ही  क्षमा  है   l 
  ये  सब  विभूतियाँ  जब  तक  विकसित  नहीं  होती  ,  तब  तक  दुनिया  असंतुलित  रहेगी   l