30 June 2019

WISDOM ---

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' हमारी  संस्कृति  --- इतिहास  के  कीर्ति  स्तम्भ ' में  लिखा  है ---- " हिन्दू  धर्म  आत्मज्ञान  का  सबसे  बड़ा  ज्ञाता  और  प्रचारक  माना  गया  है  ,  पर  उसके  अनुयायिओं  में  जितना  पार्थक्य , ऊँच - नीच  का  भाव ,  छुआछूत  और  दूसरों  को  नीच  तथा  घ्रणित  समझने  की  प्रवृति   पाई  जाती  है  ,  वैसी  शायद  संसार  की  किसी  दर्जे  की  अज्ञानी  जाति  में  भी  नहीं  पाई  जा  सकती  l  भारतवर्ष  के  संत पुरुष  जैसे नानक , कबीर , नामदेव , तुकाराम , दादूदयाल , रामकृष्ण परमहंस , स्वामी  दयानन्द, स्वामी  विवेकानन्द  आदि  ने   हिन्दू  समाज  के  इस जाति - पांति  रूपी  घुन  को  दूर करने की  चेष्टा  की  l  (  आधुनिक  वैज्ञानिक  युग  में भी  जाति - पांति  रूपी  घुन   को  समाप्त  करने  का   कोई  इलाज   नहीं  हो  पाया  l )
 आचार्य जी  आगे  लिखते  हैं  --- ' वर्तमान  समय  में   हिन्दू  समाज  की  निर्बलता  के  अनेक  कारणों में  से  एक  मुख्य   कारण  उसकी  रूढ़िग्रस्तता  भी  है  l  यहाँ  का  शूद्र  और  ग्रामीण  वर्ग  ही  नहीं  , नगरों  में  रहने  वाले  अधिकांश  पढ़े - लिखे  हिन्दू  भी  रूढ़ियों  को  धर्म  का  एक  अंग  मानने  लगे  हैं  l  यद्दपि  उनको  यह  बात  समझायी  जाती  है  कि  सभी  रूढ़ियाँ  समय - समय  पर   किसी  सामयिक  आवश्यकता वश  आरम्भ  की  जाती  हैं  ,  उनमे  समयानुसार  परिवर्तन  होते  रहते  हैं  l  किन्तु  यदि  उनसे  किसी  समय  के  प्रतिकूल  रूढ़ि  को  त्यागने  को  कहा  जाये  तो  वे  कभी  उसके  लिए  तैयार  नहीं  होते  और  तुरंत  प्रथा  व  परंपरा  की दुहाई  देने  लगते  हैं   l  उनकी  समझ  में  यह  बात  आती  ही  नहीं  कि  प्रथाएं  और  परम्पराएँ   व्यक्तियों  और  समाज  की  सुविधा  के  लिए  हैं  न  कि  उनको  बन्धनों  में  डालने  के  लिए  l  जब  परिस्थितियों  के  बदल  जाने  से  कोई  प्रथा  हानिकारक  सिद्ध  होने  लगती  है  तो  उसको  त्यागना  या  बदल  देना  ही समझदारों  का  कर्तव्य  है  l    यद्दपि  रूढ़ियाँ   न्यूनाधिक  मात्रा    सर्वत्र  हैं  किन्तु  भारत  में  विशेषत:  हिन्दू  समाज  में   उनका   जैसा  कुप्रभाव   देखने  में  आता  है  वैसा  अन्यत्र  नहीं  है  l  इन  लोगों  ने  सती-प्रथा    जैसी  क्रूरता  और  निर्दयतापूर्ण  रूढ़ि  को  भी  राजी - खुशी  से  नहीं  छोड़ा  l  उनके  ऊपर  जब  राज्य  का    अत्याधिक  दबाव  पड़ा   और  उसके  लिए  दंड  दिए  जाने  का  कानून  बना  दिया  गया  तब  कहीं  जाकर  उस   कुप्रथा    छोड़  सके  l   आज ऐसे  विद्वान्  और  कर्मवीर  व्यक्तियों  की  आवश्यकता   है   जो  जनता  को  समझा  सकने  के  साथ  स्वयं  उन   सुधारों  पर  अमल  करे  l  

29 June 2019

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा आचार्य  का  कहना  है  ---- धर्म  का  वास्तविक  प्रयोजन   है ---- जनसाधारण   को  कर्तव्य    और  विवेक  का अवलम्बन  लेकर  परिष्कृत  जीवन   जीने  के  लिए  तत्पर  करना   l  लोग  कर्मकांडों  को  ही  लक्ष्य पूर्ति  का  आधार मान  लेते  हैं  , इस  कारण    क्रिया  मुख्य  हो  जाती  है  और  भावना  गौण  l 
 कर्तव्यहीन  व्यक्ति  तथाकथित  धर्म - कृत्यों  को  ही  सब  कुछ  मान  लेते  हैं   l  परिणाम  यह  होता  है  कि  लोग  आदर्शवादी   तथ्य  अपनाने  के  कष्ट कारक  कार्य  को   व्यर्थ  कहकर  निरर्थक  समझने  लगते  हैं    l  जब  सस्ते में अभीष्ट  लाभ  होता  हो  तो   कोई  महंगे  रास्ते  पर  क्यों  चले  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           

28 June 2019

WISDOM -----

चिंतन  और  चरित्र  यदि  निम्न  स्तर  का  है  तो  उसका  प्रतिफल  भी  दुःखद,  संकट ग्रस्त  अवं  विनाशकारी  होगा  l   उन  दुष्परिणामों  को   कर्ता  स्वयं तो  भोगता  ही  है  , साथ  ही  अपने  सम्बद्ध  परिकर  को  भी  दलदल में  घसीट  ले  जाता  है  l  नांव  की  तली  में  छेद  हो  जाने  पर   उसमे  बैठे  सभी  यात्री   मंझधार  में  डूबते  हैं  l 
  रावण  बहुत  विद्वान,  वेद  व  शास्त्रों  का  ज्ञाता  था  l  लेकिन  अहंकारी  था  ,  उसने  सीताजी  का अपहरण  किया ,  उसने  स्वयं  तथा  अपने  राक्षसों  को  भेजकर  ऋषियों  पर  बहुत  अत्याचार  किये  l  इन्ही  सब  कुकर्मों  का  परिणाम  था  कि  अपने  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  समेत  नष्ट  हो  गया  l 
       ' रावण  का  मरा  हुआ  शरीर  पड़ा  था  l  उसमे  सौ  स्थानों  पर  छिद्र  थे  l  सभी  से  लहु  बह  रहा  था  l  लक्ष्मणजी  ने  राम  से  पूछा  --- आपने  तो  एक  ही  बाण  मारा  था  l  फिर  इतने  छिद्र  कैसे  हुए  ?  भगवान  ने  कहा --- मेरे  बाण  से  तो  एक  ही  छिद्र   हुआ  l  पर  इसके  अपने  कुकर्म   घाव  बनकर  अपने  आप  फूट  रहे  हैं   और  अपना  रक्त  स्वयं  बहा  रहे  हैं   l  '

27 June 2019

WISDOM ------

 अहंकार  सारी  अच्छाइयों  का  द्वार  बंद  कर  देता  है  l   अहंकारी  की  प्रगति  जितनी  तीव्र  होती  है  ,  उसका  पतन   उससे  भी  अधिक  तेज  होता  है  l 
  आकर्षक  व्यक्तित्व  का  निर्माण  शक्ति  और  संवेदना  के  सम्मिश्रण  से  होता  है  l  संवेदना  विहीन  अकेली  शक्ति  व्यक्ति  को   अहंकारी  और  निष्ठुर  बना  देती  है  l  इसलिए अपने  व्यक्तित्व  को  आकर्षक  बनाने  के  लिए  अपनी  क्षमताओं  को  संवेदनाओं  से   युक्त  करना  अनिवार्य  है  l  

26 June 2019

WISDOM ---- गृहस्थ जीवन का उत्तम उदाहरण

 संत  सुकरात  ने  अपना   गृहस्थ  जीवन  सुख - दुःख  और  असुविधाओं  की   परवाह  न  कर  के  अच्छी  तरह  निबाहा  l  जो  लोग  जरा -जरा  सी  बात  पर    तलाक  की  तैयारी  करने  लगते  हैं ,  अथवा  अपने  जीवन  का  अंत  कर  के   झंझटों  से  छुटकारे  की  कोशिश  करते  हैं  ,  उनके  लिए  एक  उत्तम  उदाहरण  छोड़ा  है  ------ एक  बार  सुकरात  की  पत्नी  जेथिपी  ने  बाजार  में  ही  सुकरात  से  झगड़ा  किया  और  उसका  कोट  फाड़  डाला  l  यह  देखकर  सुकरात  के  मित्र  बड़े  नाराज  हुए  और  उन्होंने  कहा  कि  जेथिप्पी  को  इसका  दंड  अवश्य  दिया  जाना  चाहिए  l  पर  सुकरात  ने  कहा ---- " जिस  प्रकार  सईस  दुष्ट  घोड़े  के  साथ  रहकर   उन्हें  ठीक  करने  का  प्रयत्न  करते  हैं   उसी  प्रकार  मैं  भी  एक  चिड़चिडे  स्वभाव  वाली  स्त्री  के  साथ  रहता  हूँ   l  और  जिस  प्रकार  यदि  वह  सईस  उस  दुष्ट  घोड़े  पर  काबू  पा  लेता  है   तो  अन्य  घोड़ों   को  तो  आसानी  से   वश  में  रख  सकता  है  ,  उसी  प्रकार  जेथिप्पी  के  दुर्व्यवहार   का  मुकाबला  करता  हुआ   मैं  समस्त  संसार   का  सामना  करने  का   अभ्यास  करता  हूँ  l  "  
 एक  बार    सुकरात  के  किसी मित्र  ने  इस  प्रकार   की  घटनाओं  को   देखकर  कहा  कि  --- " जेथिप्पी  का  व्यवहार  असहनीय  है  , आप  उसे कैसे  बर्दाश्त  करते  हैं  ? "  सुकरात  ने  कहा ---- ' जिस  प्रकार  आप  अपनी  पालतू  बतखों   की  घें - घें  को  सुनते  रहते  हैं  उसी  प्रकार  मैं  भी   उसकी  बातों  को  सुनने  का  अभ्यस्त  हो  गया  हूँ  l  '  मित्र  ने  कहा  --- " परन्तु  बतखें  तो  मुझे  अंडे  और  बच्चे  देती  हैं  l " 
सुकरात  ने  कहा  ---- " जेथिप्पी  भी  मेरे  बच्चों  की  माँ  है   l  "  

25 June 2019

WISDOM ----- आस्तिक और नास्तिक

 जब  विनोबा  भावे  ईश्वर  का  नाम  लेकर  गरीबों  की  सहायता  के  लिए  अपील  करते  थे  तो  कुछ  ऐसे  व्यक्ति  भी  निकल  आते  थे   जो  अपने  को  अनीश्वरवादी  कहते  थे  ल  तब  विनोबाजी  कहते  थे  --- " जो  लोग  यह  कहते  हैं  कि हम  भगवान  को नहीं  मानते  ,  वे  यह  तो  कहते  हैं  कि  हम  सज्जनता  को  मानते  हैं  , मानवता  को मानते  हैं  l  हमारे  लिए  इतना  ही  बहुत  है  l  कोई  आदमी  मानवता  को  माने  और  भगवान  को  न माने   तो  हमें  चिंता  नहीं  है  l  क्योंकि  मानवता  को  मानना  और  ईश्वर  को  मानना  हमारी  निगाह  में  एक  ही  बात  है  l 
वे  आस्तिक  व्यक्तियों  की  कमजोरियों  को  खूब  जानते  थे   l  उन्होंने कहा --- "  बहुत  लोग  मानते  हैं  कि  चन्दन  लगाने  से , माला  फेरने  से , राम  का  नाम  लेने  से  , झांझ - मंजीरा  लेकर  कीर्तन  करने  से  भगवान  प्रसन्न  होते  हैं  l  ये  सब  चीजें  अच्छी  हो  सकती  हैं  ,  लेकिन  भगवान  खुश  होते  हैं  --- ईमानदारी  से , सच्चाई  से  , दया  से , सेवा  से , प्रेम  से  l  ये  गुण  हैं  तो  दूसरी  चीजें  भी  अच्छी  हो  सकती  हैं  ,  ये  नहीं  तो  कुछ  नहीं  l  "  आस्तिकता  का  अर्थ  इतना  नहीं  है  कि  प्रातःकाल  उठकर   कुछ  भजन  कर  लिया  जाये   या  मंदिर  जाकर  भगवान  की मूर्ति का  दर्शन  कर  लिया  जाये  l  आवश्यकता  तो  यह  है  कि  दिनभर  अपने  समस्त  कामों  में   भगवान  के    आदेश  का  ध्यान  रखें  ,  उसके  विपरीत  आचरण  न  करें   l 
 स्वामी  विवेकानन्द  ने  भी  कहा  था  --- ' मंदिर  में  जाकर  भगवान  का  दर्शन  कर  लेने  और  नाम - जप  करने  के  साथ   नैतिकता  पर  चलने  और  चरित्र  को  ऊँचा   बनाने  की   अनिवार्य  रूप  से  आवश्यकता  है   l   

22 June 2019

WISDOM ---- धार्मिक सहिष्णुता में जिनकी निष्ठा अपूर्व थी ---- उस्ताद अलाउद्दीन

 आज  से लगभग  सौ  वर्ष  पूर्व  की  घटना  है -- एक  युवक  अपनी  नव वधू  और  माता - पिता  को  छोड़कर  कलकत्ता  की  सड़कों  पर  चार  दिन  से  भूखा  भटक  रहा  था  l  चक्कर  आने  लगे  और  कुछ  दूर  चलकर  एक  मंदिर  की  सीढ़ियों  पर  निढाल  हो  गया  l  पुजारिन  ने  उसे  थोड़ा  पानी  पिलाया  और  सहारा  देकर  अन्दर  ले  गईं l  वह  समझ  गईं  कि  भूख  के  कारण  युवक  की  ये  हालत  है  l  उन्होंने  उसे  पूरी  व  हलवा  दिया  ,  खाकर  युवक  तृप्त  हुआ  l  पुजारी  ने  पूछा --- कहाँ  से  आये  हो   बेटा  l
  उसने  कहा --- 'शिवपुर ' से  l
' घर  छोड़  दिया  क्या  ? "   उत्तर ---- ' हाँ ' 
पुजारी  ने  पूछा --- 'क्यों ? '   युवक  ने  उत्तर  दिया --- ' संगीत  सीखने  के  लिए  ' 
पुजारी  ने  आनंद विभोर  होकर  कहा --- ' नाद  ब्रह्म  की  साधना  करोगे  l '
युवक  ने  उत्तर  दिया --- ' हाँ , महाराज  ! '
वह   मंदिर  था  दक्षिणेश्वर  का  कालिका  मंदिर ,  पुजारी  थे  स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस ,  युवक  को  खाना  देने  वाली  माँ    शारदामणि   और  नाद ब्रह्म  के  जिज्ञासु  साधक  थे --- उस्ताद  अलाउद्दीन  खां  l  
स्वामी  रामकृष्ण परमहंस  ने  वेदान्त  की  शिक्षाओं  के  प्रचार  के  लिए  स्वामी  विवेकानंद  को  चुना    तो  नाद  ब्रह्म  की  उपासना - पद्धति  के  प्रचार  के  लिए  उस्ताद  अलाउद्दीन  खां  को   l  
सत्संस्कार  --- हिन्दू  हो  या  मुसलमान  किसी  भी  जाति  के  व्यक्ति  में   विद्दमान  हों  ,  उन्हें  प्रयोग  और  साधना  के  माध्यम  से  जाग्रत  और  प्रखर  किया  जा  सकता  है  l  
   बात  1914  की  है  l  ' लाल  बुखार  ' की महामारी  से  आसपास  के  इलाके  में  लोग  कीट - पतंगों ' की  तरह  मर  रहे  थे  l  चिकित्सा  आदि  की  व्यवस्था  न  होने  के  कारण   रोग  पीड़ित  व्यक्तियों  को  रोग मुक्त  करने  के  लिए   कुछ  किया  तो  नहीं  जा  सकता  था  l  बाबा  का  ध्यान  महामारी  के  कारण  अनाथ  हुए  बच्चों  की  ओर  गया   l  उन्होंने  सब  बच्चों  को  एकत्रित  किया  और  अपने  एक  शिष्य  राजा  से   कहकर   उनके  रहने  और  भोजन  आदि  की  व्यवस्था  करा  दी  l   उनकी  पत्नी  रुई  की  बत्ती  से  बच्चों   को  बूंद - बूंद  कर  दूध  पिलाती  l  दोनों  ने  मिलकर  सब  बच्चों  को  पाला - पोसा  और  बड़ा  कर  लिया  l   बच्चे  कुछ  और  बड़े  हुए   तो  उत्तरदायी  पिता  की  तरह  उन्हें  आत्मनिर्भर  बनाने  की  योजना  बना  डाली   और  उस  योजना  के  अनुसार  ही  तैयार  हो  गया    युग  प्रसिद्ध  ' मैहर  बैंड '  l  जिसने  देश  के  कोने - कोने  में  ख्याति  प्राप्त  की  l  

21 June 2019

WISDOM ----- सच्चाई की परख तो प्रलोभनों के अवसर पर होती है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' विश्व वसुधा जिनकी सदा  ऋणी  रहेगी ' में  लिखा  है ----" सचमुच  दीन  दुर्बल  वे  नहीं   जो  गरीब  अथवा  कमजोर  हैं   वरन  वे  हैं  जो   कौड़ियों  के  मोल  अपने   ईमान  को  बेचते  हैं  , प्रलोभनों  में  फंसकर  अपने  व्यक्तित्व  का  वजन  गिराते  हैं   l  तात्कालिक  लाभ  देखने  वाले  व्यक्ति  उस  अदूरदर्शी  मक्खी  की  तरह  हैं  ,  जो  चासनी  के  लोभ  को  संवरण   न  कर  पाने  से   उसके  भीतर  जा  गिरती  है  तथा  बेमौत  मरती  है  l  मृत्यु  शरीर  की  ही नहीं  व्यक्तित्व  की  भी  होती  है  l  गिरावट  भी मृत्यु  है  l  "
 क्रान्तिकारी  विचारों  का  जनक  होने  के  कारण   प्रसिद्ध   विचारक  कार्ल मार्क्स  को  फ्रांस  तथा  जर्मनी  दोनों  ही  देशों  से  निकलना  पड़ा  l  वे  परिवार  सहित  लन्दन  में  जा  बसे  , यहीं  उन्होंने  अपने   प्रसिद्ध  ग्रन्थ
 ' दास  कैपिटल ' की  रचना  की  l  लन्दन  प्रवास  के  दौरान  मार्क्स  को  घोर  आर्थिक  कठिनाइयों  का  सामना  करना  पड़ा  l  उनके  दो  बच्चे  गरीबी  व  भूख  के  कारण  मर  गए  , किराया  न  देने  के  कारण  मकान  मालिक  ने  उन्हें  घर  से  निकाल  दिया  l  रोटी  के  लिए  बिस्तर  व  वस्त्र  तक  बेचने  पड़े  l  इन  सब  कठिनाइयों  के  बावजूद  मजदूरों  के  बीच  बोलने ,  उनका  संगठन  खड़ा  करने  और  अपने  विचारों  को  लिपिबद्ध  करने  का  क्रम  चलता  रहा  l  उन  दिनों  जर्मनी  में  बिस्मार्क  का  प्रभुत्व  था , उसे  डर  था  कि यदि  मार्क्स  के  विचार  फैल  गए  तो  जर्मनी  में  पूंजीवाद  की  नींव  सदा  के  लिए  उखड़  जाएगी  l  इसलिए  बिस्मार्क  ने  अप्रत्यक्ष  रूप  से  रिश्वत  देकर  मार्क्स  को  खरीदना  चाहा  l  मार्क्स  के  पुराने  साथी  बूचर  को  पैसों  के  बल  फोड़  लिया  और  उसके  हाथों  5 अक्टूबर 1865  को  एक  गुप्त पत्र   भिजवाया  जिसमे  सरकारी  समाचार  पत्र  के  संपादक  के  रूप  में  मार्क्स  को  आमंत्रित   किया  गया  था  और  एक  मोटी  रकम  देने  का  उल्लेख  था  l  बिस्मार्क  की  यह  कुटिल  चाल  सफल  न  हो  सकी  l मार्क्स  ने  प्रस्ताव  को  स्पष्ट  रूप  से  इन्कार  के  दिया  l  श्रेष्ठ  सिद्धांतों  को  व्यक्तिगत  आवश्यकताओं  से  भी  अधिक  महत्व  देने  वाले  मार्क्स  ने  कठिनाइयों  को  स्वेच्छापूर्वक  वरण  किया  l  यह  प्रलोभनों  पर  आदर्शों  की  एक  ऐसी  महान  विजय  थी  जिसने  कार्ल  मार्क्स  को  महानता  की और  अग्रसर  किया   और  विश्व - विख्यात  बनाया  l  

20 June 2019

WISDOM -----

पं. श्रीराम  शार्मा  आचार्य ने  लिखा  है  --- ' जो  व्यक्ति  यह  सोचते  हैं  कि  मैं  क्या  कर  सकता  हूँ ,  मुझमे  तो  यह  कमी  है , वह  दोष  है  , वे  कुछ  भी  नहीं  कर  पाते  l  किन्तु  जो  अपनी  कमियों  के  साथ  अपनी  खूबियों  को  भी  जानते  हैं   और  अपनी  उन  प्रतिभाओं  का  चरम  विकास  करने  के  लिए  भागीरथ  प्रयत्न  करते  हैं  , वे  सफलता  के  उच्चतम  शिखरों  पर  अपनी  विजय - पताका  फहराते  हैं   l 
  आचार्य श्री  ने  आगे  लिखा  है ---- " कई  व्यक्ति  ऐसे  होते  हैं  जो  अपनी  खूबियों  का  तो  बहुत  ढिंढोरा   पीटते  हैं   लेकिन  अपनी  कमियों  को  सहज  रूप  से  स्वीकार  कर  उन्हें  दूर  करने  का  प्रयास  नहीं  करते  l  ऐसे  दुराग्रही  लोगों   के  व्यक्तित्व  से  वे  कमियां  जोंक  की  तरह  चिपटी  रह  जाती  हैं  और  उनके व्यक्तित्व  को   अप्रभावी  बनाती हैं   l  

19 June 2019

WISDOM ---- वैज्ञानिक प्रगति ने मनुष्य को संवेदनहीन बना दिया

लगभग  प्रथम  विश्व  युद्ध  से  पूर्व  तक   मनुष्य  को  अपने  से  ऊँची  किसी  ऐसी  सत्ता  के  प्रति  आस्था  थी   जो  केवल  उसका  ही  नहीं   वरन  सम्पूर्ण  जड़ - चेतन  का  नियमन  करती  है  l  विश्व  भर  के  प्रबुद्ध  व्यक्ति   मनुष्य  को  नैतिक , अनुशासित  तथा  मर्यादित  रहने  के  लिए  ईश्वर  के  प्रति  आस्था  को  आवश्यक  समझते  थे   और  मानते  थे  कि  ईश्वर  बुरे  कर्मों  का  दंड  देता  है  और  अच्छे  कर्मों  का  पुरस्कार  प्रदान  करता  है  l
परन्तु  वैज्ञानिक  प्रगति , शक्ति  और  साधन  के  अहंकार  ने   उसकी  आस्था  को  चोट  पहुंचाई   और  धर्म , जो   मनुष्य  को  नैतिक  जीवन  जीने  के  लिए  प्रेरित  करता  था  , वही   विद्वेष  और  विध्वंस  का  कारण  बन  गया  l  अब  मनुष्य  को  यह  भ्रम  होने  लगा  है  कि  वह  सर्वशक्तिमान  है  , और  मत्स्य  न्याय  के  अनुसार  उसे  अपने  से  कमजोर  लोगों  को  चट  कर  डालने  का  पूरा - पूरा  अधिकार  है  l 
 विज्ञान  ने  मनुष्य  के  आगे  सुख - सुविधाओं  का  अम्बार  लगा  दिया  लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर  वह  वही  है  , जहाँ  कि  आदिम  युग  में  था  , जब  मनुष्य  रोटी  के  एक  टुकड़े  के  लिए  अपने  भाई  का  क़त्ल  कर  देता  था  और  इंच  भर  जमीन  के  लिए  अपने  से  कमजोर  को  गाजर मूली  की  तरह  काट  देता  था  l प्रथम  व  द्वितीय  विश्व  युद्ध  में  सबने  देखा  कि  शक्ति  जब  उन्मत  हाथों  में  आ  जाती  है  तो  लाखों  निर्दोष  व्यक्ति  कीड़े - मकोड़ों  की  तरह  मसल  दिए  जाते  हैं  l
अब  यह  जागरूकता  जरुरी  है  कि  केवल  कोरे  कर्मकांड और  आडम्बर  को  ही  धर्म  न  समझें ,  सत्कर्म  और  सन्मार्ग  पर  चलना  भी  जरुरी  है   l  सत्साहित्य  के  माध्यम  से  चेतना  का  परिष्कार  अनिवार्य  है  l  संवेदनशील  ह्रदय  से  ही  सुन्दर  समाज  का  निर्माण  संभव  है  l 

16 June 2019

WISDOM ---- असंतोष की परिणति अनीतिपूर्ण अत्याचार है , और अत्याचार का अर्थ है --- विनाश !

  विश्व विजयी  सिकन्दर  इसी  क्रम  में  पड़कर  एक  दिन  नष्ट  हुआ   और  निराश  होकर  इस  संसार  से  विदा  हुआ  l      दोष  सिकन्दर  का  भी  नहीं  , बल्कि  राजमद  का  था  ,  जो  सम्पूर्ण  पृथ्वी  को  अधिकार  में  करने  पर  भी   संतुष्ट  नहीं  होता   l  
  सिकन्दर  ने    भारतीय  राजाओं  की  आपसी  फूट  का  लाभ  उठाया  l  उसने  तक्षशिला  के  राजा  आम्भीक  को  पचास  लाख  रूपये   व  अन्य  सम्मान  का  लालच  देकर  अपनी  और  मिला  लिया  l  मनुष्य  का  लालच , स्वार्थ , अहंकार   सामूहिक  जीवन  के  लिए  घातक  है --  कहते  हैं  जब  उच्च  पद  पर  बैठा  व्यक्ति  कोई  अपराध  करता  है  तो  अन्य  लोगों  को  भी  वैसा  करने  में  कोई  संकोच  नहीं  रहता  l  इसका  परिणाम  सम्पूर्ण  राष्ट्र  के  लिए  दुखदायी  होता  है  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग -- 2  में  पृष्ठ  1.35  पर  लिखा  है --- " जब  कोई  पापी  किसी  मर्यादा  की  रेखा  उल्लंघन  कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में  अधिक  संकोच  नहीं  रहता  l  "  
तक्षशिला  के  राजा  आम्भीक  की  देखादेखी  अन्य  राजा  भी  देशद्रोही  होकर  सिकन्दर  से  जा  मिले  l  एक  ओर  सिकन्दर  और  उसके  साथ  देशद्रोही  राजा  और  दूसरी  और   अकेले  महाराज  पुरु  l  
भारतीय  इतिहास  में   केवल  एक  महाराज  पुरु  ही  ऐसे  वीर  पुरुष हैं  , जिन्होंने  पराजित  होने  पर  भी  विजयी  को  पीछे  हटने  पर  विवश  कर  दिया  l 

15 June 2019

WISDOM ---- अहंकारी एक प्रकार का उन्मादी होता है

 अहंकारी   एक प्रकार  का  उन्मादी  होता  है  l  जो  अपना  नहीं  है ,  उस  पर  भी  दावा  करता  है  l  फलत:  धृष्टता  बढती  है  l  
  अहंकारी    स्वयं  को  सर्वश्रेष्ठ  समझता  है   और  सब  पर  अपनी  हुकूमत  चाहता  है  ,  जो  उसकी  आधीनता  को  न  माने , उसके  आदेशानुसार  न  चले   तो  अहंकारी   व्यक्ति   नैतिकता  और  संवेदना  को  भूलकर  हर  तरीके  से  उसे  झुकाने  का  प्रयत्न  करता  है  इस  कारण  परिवार  हो  या  समाज  या  संस्था  हर  जगह   अशांति  और  अव्यवस्था  फैलती  है  l 
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  का  मत  है ---- ' हिरन , हाथी, पतंगा  , मछली  और  भौंरा  - ये  अपने - अपने  स्वभाव  के  कारण   पांच  विषयों  में  से  केवल  एक  से  आसक्त  होने  के  कारण  मृत्यु  को  प्राप्त  होते  हैं  ,  तो  इन  पांच  विषयों  जकड़ा  हुआ  ,  असंयमी  व्यक्ति  कैसे  बच  सकता  है  l  असंयमी  की  दुर्गति  निश्चित  है  l  "  

14 June 2019

WISDOM ------ चिन्तन को परिष्कृत करने के लिए सत्साहित्य का अध्ययन - मनन अनिवार्य है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है ---- ' चिन्तन  परिक्षेत्र बंजर  हो  जाने  के  कारण   कार्य  भी  नागफनी  और  बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  इससे  मानवता  का  कष्ट पीड़ित  होना  स्वाभाविक  है  l  '
 विषैले    साहित्य  के  कारण  लोगों  का  नैतिक  चरित्र  तेजी  से  गिरता  जा  रहा  है  l   इस  गिरावट  को  तभी   रोका    जा  सकता  है  जब  श्रेष्ठ  और  नैतिक  साहित्य   से  लोग  सद्विचार  ग्रहण  करें  और  सन्मार्ग  पर  चलें  l
 रोम्यां रोलां  ने  एक  बार  अपने  भाषण  में  कहा  था --- " किसी  राष्ट्र  का  लोकतंत्रात्मक   जीवन   विघटित  और  विश्रंखलित  हो  जाता  है , तो  उसे   सभ्य  और  सुसंस्कृत   बनाने  के  लिए   मूक  विचार  क्रांति  की  जरुरत  होती  है   l '  
इस  मूक  विचार  क्रांति  से  क्या  मतलब  ? 
उन्होंने  जवाब  दिया  था --- " पुस्तकालय  l  पुस्तकों  से  भरे  घरेलू  पुस्तकालय . सार्वजनिक  पुस्तकालय  l  ऐसे  पुस्तकालय  जो  सद्ज्ञान  के  माध्यम  से   हमारे  सामाजिक  जीवन  में  व्याप्त  बुराइयों , कमजोरियों और  अंधविश्वासों  को  दूर  करने  में  योगदान  दे  सकते  हैं  l  पुस्तकालय  छोटे - बड़े   के  भेदभाव  से  परे   एक  ऐसी  दिव्य  संस्था  है  , जिसमे  प्रत्येक  व्यक्ति  अपनी  ज्ञान - शक्ति  और  क्षमताओं  का  विकास  कर  सकता  है  l  " 
रूस  की  सामाजिक  चेतना  के  विकास  में  पुस्तकालयों  ने  असाधारण  रूप  से  काम  किया  है  l  किवदंती है  कि  रूस  के  पुस्तकालयों  में   लगी  हुई  अलमारियां  एक  पंक्ति  में  लगाई  जाएँ  ,  तो  मास्को  और  रोम  को  जोड़ा  जा  सकता  है  l 
प्रसिद्ध  विद्वान्  डॉ.  रंगनाथन   ने  एक  बार  जापान  की  यात्रा  की   l  ओसाका  में  उन्होंने  एक  स्थान  पर  कतार  में  खड़े  लोगों  को  पुस्तकें  पढ़ते  देखा  l  उन्हें  आश्चर्य  हुआ  l  वहां  जाकर  पता  लगाया  तो  मालूम  हुआ  कि  यह  एक  पुस्तकालय  है  जहाँ  प्रतिदिन  भारी  संख्या  में  लोग  पुस्तकें  पढ़ने  आते  हैं  l  वहां  के  अध्यक्ष  ने  बताया  कि यह  पुस्तकालय  30  वर्ष  पहले  बना  था , तब  कम  लोगों  के  आने  का  अनुमान  था  लेकिन  अब  बहुत  अधिक  लोग  आते  हैं , इसलिए  सीट  रिजर्व  कर  दी  गई  है  l  जिनका  नंबर  नहीं  आता  , वे  लोग  अपनी  अध्ययन  की  आकांक्षा  को  तृप्त  करने  के  लिए  बाहर  खड़े  होकर  पढ़ते  हैं  l  जापानी  लोगों  की  इस  स्वाध्याय  वृत्ति  के  कारण  ही  जापान  एशिया  के  विकसित  देशों  में  अपना  प्रथम  स्थान  रखता  है  l    

WISDOM ----- धर्म की सार्थकता

 खलील  जिब्रान  का  जन्म  लेबनान  में  अत्यंत  धन - संपन्न  परिवार   में  1883   में  हुआ  था  l  दस  वर्ष  की  अल्पायु  में  ही  उन्होंने  अपने  पिता  के  साथ  विश्व  के  कई  देशों  का भ्रमण  किया  था , इससे  उनका बौद्धिक ज्ञान  अत्यंत  विस्तृत  हो  गया  था  l
  तत्कालीन  समाज  में  फैली  हुई   रूढ़िवादिता ,  धार्मिक  और  सामाजिक  कुरीतियों   को  देखकर   खलील  जिब्रान  ने  विचार  किया  कि  जब  तक  इन्हें  दूर  नहीं  किया  जायेगा  , तब  तक  जीवन  में  विकृतियों  की  भरमार  रहेगी  और  समाज  स्वस्थ  वायु  में  सांस  नहीं  ले  सकेगा   l  वे  कहते  थे  कि  धर्म  की  सार्थकता  इसी  में  है   कि   वह  उन्नत  और  सदाचारी  जीवन  जीने  की  पद्धति  को  दर्शा  सके   l  ऐसा  धर्म  जो  गरीब  और  असहाय  लोगों  का  गला  काटता  है --- धर्म  नहीं  कुधर्म  है , उसका  परित्याग  करना  ही  उचित  है  l  गरीब  तथा  समाज  के  पीड़ित  शोषित  वर्ग  के  पक्ष  में  बोलने  तथा  उनमे  अपने  मानवीय  अधिकारों  की चेतना जाग्रत  करने के  फलस्वरूप   जागीरदारों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  ने  देश  से  निष्कासित  कर  दिया  l  उस  समय  उन्होंने  कहा  था ---- "लोग  मुझे  पागल  समझते  हैं  कि  मैं  अपने  जीवन  को   उनके  सोने - चांदी  के  टुकड़ों  के  बदले  नहीं  बेचता   l  और  मैं  इन्हें  पागल  समझता  हूँ   कि  वे  मेरे  जीवन  को  बिक्री  की  एक  वस्तु  समझते  हैं   l  "
 उनके  भाषणों  और  पुस्तकों  ने  दलित वर्ग  में  ऐसी  चेतना  भरी  कि  वह  अपने  हनन  किये  अधिकारों  को  पुनः  प्राप्त  करने  के  लिए  सक्रिय  हो  उठा  l  खलील  जिब्रान  की  पुस्तकें  आज  भी  समस्त  विश्व  के  लिए  प्रेरणा  दीप  बनी  हुई  हैं   l    

WISDOM


12 June 2019

WISDOM ----- वन्दे मातरम्

 बंकिम  बाबू  साहित्य - संसार  में  विशेष  रूप  से  ' उपन्यासकार '  की  हैसियत  से   प्रसिद्ध   हुए  l  जिस  उपन्यास  के  कारण  उनका  नाम  देशभक्तों  में  अमर हो  गया , वह  है -- ' आनंदमठ ' l  इस  उपन्यास  के  माध्यम  से  उन्होंने  नवयुवकों  के  सामने   विदेशी  राज्य शक्ति  के  विरुद्ध  खड़े  होने  का  एक  आदर्श  प्रस्तुत  किया  l  इस  उपन्यास  में  एक  मठ  के  संन्यासियों  ने  देश  की  रक्षा  के  लिए  शत्रुओं  से  लड़ाई  की   और  इन  साधुओं  का  मन्त्र  था --- ' वंदेमातरम् '  l  
  इसमें  जगह - जगह   वार्तालाप  के  द्वारा  समाज - सेवा  की  प्रेरणा  दी  गई  है  l  मठ  का  एक  संन्यासी -- भवानंद ,   महेंद्रसिंह  नाम  के  बड़े  जमीदार  को  देश  सेवा   के  लिए  प्रेरणा  देते  हुए  कहता  है ---  "  महेंद्रसिंह , मेरी  धारणा  थी  कि  तुम  में  कुछ  वास्तविक  मनुष्यत्व  होगा  , पर  अब  देखता  हूँ   सब  जैसे  हैं  वैसे  ही  तुम  भी  हो   l  देखो ,  सांप  जमीन  पर  छाती  के  बल  रेंगता  है  ,  पर  उस  पर  पैर पड़  जाने  से  वह  भी   फन  उठाकर काटने  को  दौड़ता  है  l  क्या  तुमको  किसी  तरह   धर्म  और  देश  की  दुर्दशा  दिखाई  नहीं  देती  ,  घर  में  लड़की - बहु  की    इज्जत  का  ठिकाना   नहीं  ,  धर्म  गया , जाति  गई ,  मान  गया  ,  अब  तो  प्राण  भी  जा  रहे  हैं  l  " 
  एक  समय  था  जब    अंग्रेज  अधिकारी  इस  पुस्तक  से  ऐसे  डरते  थे   जैसे  बम  के  गोले  से  l  उस  समय  आजादी  के  दीवाने  इस  पुस्तक  को  गुप्त  रूप  से  पढ़ते  थे  l   बंकिम  बाबू  ने  स्वयं  उसी  समय  यह  भविष्यवाणी  कर  दी  थी  कि  "  एक  दिन  ' वन्दे मातरम् '  की  ध्वनि  से  सारा  भारत  गूंज  उठेगा   l  

11 June 2019

WISDOM ---- महात्मा गाँधी के सच्चे भक्त

 डॉ. मार्टिन  लूथर  किंग ( 1929 - 1968) ने   अपने  जीवन  के  आरम्भ  से  ही  देखा  था  कि अमेरिका  में  गोरे  लोग   नीग्रो - जनों  के  साथ   कैसा    अन्यायपूर्ण  और  अपमानजनक  व्यवहार  करते  हैं  l  उनको  यह  विश्वास  हो  गया  था  कि   जातिगत - अन्याय  और  आर्थिक - अन्याय  दोनों  आपस  में  मिले - जुले  चलते  हैं  l   उन्होंने  जब   महात्मा  गाँधी  के  सत्याग्रह  आन्दोलन  के  विषय  में  सुना  और  कितनी  पुस्तकें  पढ़कर  उसका  अच्छी  तरह  अध्ययन  किया  , तब  उन्होंने  समझ  लिया   कि   हम  शांतिपूर्ण  और  द्वेष  रहित  उपायों  से  भी  दुष्ट  प्रकृति  के  लोगों  का  प्रतिकार   कर    सकते   हैं  l    सर्वोदय  आन्दोलन  के  एक  कार्यकर्ता   श्री सतीशकुमार  जब  शान्ति-प्रचार  के  सम्बन्ध  में  अमेरिका  गए  थे  तो  वहां  श्री  किंग  से  भी  मिले  l  उनसे  प्रश्न  किया  गया  कि  ' आपके  अहिंसात्मक  नीग्रो  आन्दोलन  पर  गांधीजी  का  प्रभाव  कहाँ  तक  है   ? '  तो  उन्होंने   कहा ---- " एक  हद  तक  गांधीजी    मेरी  प्रेरणा  हैं  l  उनके  सत्याग्रह    तरीकों  को  जब  मैंने  पढ़ा ,  तब  मुझे  लगा  ,   मानो  मेरे  मन  की  बात  को  किसी  ने  भाषा  दे  दी  हो  l  नीग्रो - स्वातंत्र्य  की  प्राप्ति  के  लिए   गांधीजी  का  तरीका   एक  कारगर  हथियार  के  रूप  में  इस्तेमाल  किया  जा  सकता  है  l  इसका  सक्रिय  अनुभव   मुझे  तब  हुआ    जब   मौंटगुमरी  में  हमने  इस  हथियार  का   द्रढ़ता पूर्वक  प्रयोग  किया  और  सफलता  पाई  l  " 
 श्री  किंग  ने  अपनी 1959  की  भारत  यात्रा  का  जिक्र  करते  हुए  कहा ---- " उस  धरती  पर  जाना  जहाँ  गांधीजी  ने  जीवन  बिताया , एक  तीर्थ यात्रा  के  समान  ही  था l  उन  लोगों  से  मिलना  और  बात  करना  जिन्होंने  गांधीजी  के  साथ  काम  किया , मेरे  लिए  असाधारण  आनंद  की  बात  थी  l   यदि  अहिंसात्मक  सिद्धांतों  के  बल  पर  एक  देश   राजनीतिक  आजादी  प्राप्त  कर  सकता  है   तो  हम  नीग्रो  सामाजिक  आजादी  और  नागरिक  समानता  प्राप्त  करने  के  लिए  उन्ही  सिद्धांतों  पर  क्यों  न  चलें  ?  इस  विचार  ने  मेरे  जीवन  को  ही  बदल  डाला   l  इसलिए  मैं  अपने  ऊपर  भारत  का  महान  उपकार  मानता  हूँ  l "  
श्री  किंग  को   1964  का   ' शान्ति  नोबेल  पुरस्कार  प्राप्त  हुआ   तब  उन्होंने  कहा --- " सभ्यता  और  हिंसा  परस्पर  विरोधी  विचार  हैं  ----  अहिंसा  निष्क्रियता  का  नाम  नहीं  है ,  वरन  वह  एक  ऐसी  प्रबल  नैतिक  शक्ति    , जो  सामाजिक  कायापलट  कर  देती  है   -------- " l 

8 June 2019

WISDOM ----- आध्यात्मिकता का झूठा अहंकार

 वैदिककालीन  सच्चे  अध्यात्म  और  प्राचीन  सभ्यता  का   गलत  अहंकार 
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाड्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '  में  पृष्ठ  2.123  पर  लिखा  है   की  हमारी   प्राचीन  सभ्यता  श्रेष्ठ   थी   लेकिन   मध्य  युग  में  हमारे  यहाँ  जो  विचारधारा  फैली   वह  यही  थी  कि हम  बड़े  धर्मात्मा , ज्ञानी , विद्वान्  और  सभ्य  हैं   तथा   अन्य    देशों  में  प्राय:  मलेच्छ , बर्बर  , दैत्य  आदि  निम्न  कोटि  के  मनुष्य  भरे  पड़े  हैं   l  तभी  से हमारे  ऊपर  विदेशी  आक्रमण  होने  लगे  l यूनानी , शक , हूण, पठान  आदि  जातियों  ने  भारत  को   लूटा  , आधीन  भी  बनाया   किन्तु  हम  सदा  यही  कहते  रहे  कि  -- " वे  सब  असभ्य , राक्षस , तामसी ,  पापी  हैं   और  ज्ञानी , ध्यानी , तपस्वी , त्यागी  , पुण्यात्मा  तो  हम  ही  हैं   l  "  सुप्रसिद्ध  पर्यटक  अलबरूनी  ने     भारतवर्ष   की  तत्कालीन   स्थिति  का  अध्ययन  कर  लिखा  है ----  "  हिन्दू  लोग  समझते  हैं  कि  उनके  जैसा  दूसरा  देश  नहीं ,  उनके  राजाओं  जैसा  दूसरा  राजा  नहीं  ,  उनके   धर्म  जैसा  दूसरा  धर्म  नहीं  ,  उनके  शास्त्रों  जैसा  दूसरा  शास्त्र  नहीं   l  यदि  तुम  खुरासान  और  ईरान  के   शास्त्रों , विद्वानों  के  सम्बन्ध  में  उनसे  बात  करोगे   तो  वे  तुमको   मूर्ख   व  मिथ्यावादी  समझेंगे   l       वे  यदि  दूसरों  से   मिले -  जुलें ,  प्रवास  करें  तो  उनकी  यह  प्रवृति  नहीं  रहेगी  , क्योंकि  उनके  पूर्वज  संकुचित  नहीं  थे   l   "
 आचार्य श्री  ने  आगे  लिखा  है   ----'  इतना   ही  नहीं  जब  मुसलमानों  और  उसके  बाद  अंग्रेजों  ने  इस  देश  पर  अधिकार  जमा  लिया   हमको  अपने  आधीन  बनाकर  हर  तरह  से  प्रताड़ित , अपमानित  और  लांछित  किया  ,  तब  भी  हमारी  मोह  निद्रा  भंग  नहीं  हुई   l  हम  अपने  को  धर्मात्मा  और  उनको  मलेच्छ  कहते  रहे  l   पुराने  युग  की  बात  छोड़  दीजिए  वर्तमान  युग  में  हमने  अपनी  आँखों  से  देखा  है   कि  राजाओं  और  पंडितों  से  लेकर  सामान्य  जन  तक  अंग्रेजों  को  ' हुजुर - हुजूर '  कहते  हुए  अपना  गला  सुखाते  रहते  थे   और  उनकी  थोड़ी  सी  कृपा  पाकर  ही  अपने  को  धन्य  समझते  थे   लेकिन  अपने  सभा - समाजों  में  यही  कहते  थे  कि  हम  ऋषियों  और  चक्रवर्ती  नरेशों  के  वंशज  हैं  ,  वे   म्लेच्छ  हैं   l    लेकिन  अंत  में  उन्ही  के   क़दमों  में  बैठकर  आधुनिक  शिक्षा  प्राप्त  करने  वालों  ने    देश  का  उद्धार  किया    और  वेद  तथा  शास्त्रों  के  अभिमानी   ' पण्डित  '  उस  समय  भी   कापुरुष  की  तरह   दूर  रहकर  व्यर्थ  में  ही  गाल  बजाते  रहे   l   ' 

WISDOM ----- समाज में हो रहे अत्याचार पर द्रष्टिपात न कर केवल अपने स्वार्थ की और ही देखते रहना अमानवीय प्रवृति है

  यह  बात   सही  है  कि  मनुष्य के  जीवन  में  स्वार्थ  का  भी एक  स्थान  है   किन्तु  उस  स्वार्थ  को  निकृष्टता  ही  कहा  जायेगा   जिसका  संपादन  अथवा  जिसकी  पूर्ति   देश  व  समाज  को  क्षति  पहुंचाती  है  l  पं  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए  '  में  लिखा  है ---- ' दुनिया  में  हेय  और  हीन  बनकर  ही  तो  काम  नहीं  चलता  l   यह  तो  मनुष्य  की  अपनी  कमजोरी  और  सोचने  का  ढंग  है   कि   अन्यायियों  के  तलवे  चाटने  से  ही  काम चलता  है  l वैसे  इतिहास   तथा  उदाहरण  साक्षी  है  कि संसार  में  एक  से  एक  बढ़कर  स्वाभिमानी   तथा  सिद्धांत  के  धनी  व्यक्ति  हुए  हैं    जिन्होंने  जीवन  दे  दिया  पर  स्वाभिमान  नहीं  दिया  l  '  उनका  कहना  है  कि  स्वार्थ  और  कायरता  के  कारण लोगों  की  आत्माएं  तेजहीन  हो  गई  हैं   l  
 विवेक  पर  मोह  का  आवरण  आ  गया  है   l  निकृष्टता   का   अनुकरण  करना  श्रेयस्कर  नहीं  होता  l  यदि  अनुकरण  ही  करना  हो  तो  संसार  में  श्रेष्ठताओं   और  श्रेष्ठ  व्यक्तियों  की  कमी  नहीं  है   l  '  

7 June 2019

WISDOM ------ कायरता मनुष्य का बहुत बड़ा कलंक है l इस संसार में समस्त उत्पीड़न का उत्तरदायित्व कायरों पर है --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  एक  बार  फारस  में  गीदड़ों  की  संख्या  बहुत  अधिक  हो  गई  और  उससे  लोगों  को  तकलीफ  होने  लगी  l  बादशाह  नौशेरवां  बहुत  न्यायशील  था  ,  उसने  प्रधान  गुरु  को  बुलाकर  इसका  कारण  पूछा  l  गुरु  ने  कहा ---- " जब   किसी  देश  में  अन्याय  होने  लगता  है   तब  गीदड़  बढ़  जाते  हैं   l  तुम  पता  लगाओ  कि  तुम्हारे  राज्य  में  कहीं   अन्याय  तो  नहीं  हो  रहा   है  l  "  नौशेरवां    ने  उसी  समय   इसकी  जांच  करने  के  लिए   सुयोग्य  न्यायधीशों  की  एक  कमेटी  नियुक्त  की   l  उससे  मालूम  हुआ  कि    प्रांतीय   व  स्थानीय  स्तर  पर   प्रजा  पर  अत्याचार  व  अन्याय  हो  रहा  है   l 
                                                 नौशेरवां  ने  उन  सबको  दंड  देकर   सर्वत्र  न्याय  की                           स्थापना  की  l  पारसियों  के  इतिहास  में  नौशेरवां  एक  बहुत  प्रसिद्ध  और  न्यायशील  बादशाह   था  l  

6 June 2019

WISDOM ----- 'स्त्री अबला नहीं है , यदि वह अपनी शक्ति को पहचाने तो पुरुष से भी अधिक सबला है l जब कोई स्त्री किसी काम में जी - जान से लग जाती है तो वह पहाड़ को भी हिला देती है --- महात्मा गाँधी

  एक  समय  था  जब  सम्राट  अकबर  के  दबदबे  से  बड़े - बड़े  राजा  उसके  आधीन  हो  गए  थे  l  एकमात्र  चित्तौड़  के  महाराणा  प्रताप   को  छोड़कर  किसी  राजा  ने  अकबर  का  सामना  करने  का  साहस  नहीं  किया   l  पर  उस  समय  भी  नारी  होते  हुए  भी   रानी  दुर्गावती  ने  दिल्ली  सम्राट  की  विशाल  सेना   के  सामने  खड़े  होने  का  साहस  किया   और  उसे  दो  बार  पराजित  कर  के  पीछे  खदेड़  दिया  l  
 गौंडवाना  नरेश  दलपति शाह  से   उनका  विवाह  हुआ   था  l  दो  वर्ष  बाद  ही  दलपति शाह  का  देहान्त  हो  जाने  पर  रानी  दुर्गावती  ने   राज्य  का  कार्यभार  संभाला  l   उनके  कुशल  प्रबंध  से    गौंडवाना  का   वैभव  बढ़ता  जा  रहा  था  और  यश  दूर - दूर  तक  फैल  रहा  था   l
  एक  स्त्री  का  इतना  आगे  बढ़ना  और  अधिकांश  पुरुष  शासकों  के  लिए  उदाहरण स्वरुप  बन  जाना   अन्य    शासकों  को  खटकने  लगा ,  अनेक  ईर्ष्या  करने  वाले  हो  गए   l  सम्राट  अकबर  ने  भी  साम्राज्यवाद   की  लालसा  में   गौंडवाना  पर  आक्रमण  करने  का  निश्चय  किया   l  
पं. श्रीराम शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए  ' में  लिखा  है ---- ' रानी  दुर्गावती  पर  चढ़ाई  करने  की  उसकी  कार्यवाही  का  समर्थन  हम  किसी  भी  प्रकार  नहीं  कर  सकते  l   रानी  दुर्गावती  से   कभी  यह  आशंका  नहीं  हो  सकती  थी   कि  वह   अकबर  से  शत्रुता  कर  उसे  किसी  प्रकार  हानि  पहुँचाने का  प्रयत्न  करेगी   l  फिर  स्त्री  पर  आक्रमण  करना  एक  प्रकार  से  कायरता  की  बात  समझी  जाती  है   l  कोई  कारण  न  होते  हुए  भी  केवल  इस  भावना  से  चढ़  दौड़ना  कि  हमारी  शक्ति और  साधनों  का   वह  मुकाबला  कर  ही  न  सकेगी    तो  उसे     लूटा   क्यों  न  जाये  ,  उच्चता  तथा  श्रेष्ठता  का  प्रमाण  नहीं  माना  जा  सकता  l  इस  प्रकार  का  आचरण  मनुष्य  को  कभी  स्थायी  रूप  से   लाभदायक  नही  हो  सकता                                     आचार्यश्री  ने आगे  लिखा  है --- ' यों  तो  डाकू  दल  भी  अपनी  संगठित  शक्ति  और  अस्त्र - शस्त्रों  के  बल  पर   लूटमार  करते  हैं  और  अपने  को  बड़ा  बहादुर  समझते  हैं  l  पर  कभी  किसी  डाकू  का  अंत  अच्छा   हुआ  हो  ,  यह  आज  तक  नहीं  सुना  गया   l  '

5 June 2019

WISDOM ----- धन और राज्य की लालसा मनुष्य को न्याय - अन्याय के प्रति अन्धा बना देती है

 '  साम्राज्यवाद  एक  प्रकार  का  अभिशाप  है  ,  जो  लाखों  निर्दोष  लोगों  का  संहार  कर  डालता  है   और  लाखों  का  ही  घर - बार  नष्ट  कर  के  उन्हें  पथ  का  भिखारी  बना  देता  है   l   साम्राज्यवादियों  के  लिए  अकारण  ही  दूसरे  राजाओं  पर  चढ़ाई  करना  और  उनका  राज्य  छीन  लेना  कोई  नई  बात  नहीं  l  '
                 सिकन्दर  और  चंगेजखान  जैसे  शासकों  ने  ही  दूर - दूर  के  देशों  पर   आक्रमण  नहीं   बल्कि  हमारे   भारतीय  पुराणों  में     भी  सैकड़ों   चक्रवर्ती  नरेशों    उल्लेख  है   जिन्होंने   उस  समय   तक    सभी  देशों   पर  अपनी  प्रभुता  स्थापित   कर   ली  थी  l  वर्तमान  युग  में   भी   हम  देखें  तो    स्वतंत्रता  से  पूर्व    छोटे - छोटे  राजा  सत्ता  और  प्रभुता    लिए  आपस  में  लड़ते  रहे  ,  जो  भी  थोडा  ताकतवर  हुआ  उसने  दूसरे  को  पराधीन  करने  में  देर  नहीं  की  l
  साम्राज्यवाद  का  यह  नशा  अभी  भी  समाप्त  नहीं  हुआ  l   वैज्ञानिक  प्रगति  के  साथ  उसका  रूप  बदल  गया   क्योंकि  लोभ  , लालच   और  दूसरे  को  पराधीन  बनाना  ये  मानसिक  विकार  हैं   जो  मनुष्य  की  आँखों  पर  ऐसी   पट्टी  बाँध  देते  हैं  कि  उसे  सिवाय  अपनी  लालसा पूर्ति  के   और  कोई  बात  दिखाई  ही  नहीं  देती  l 

4 June 2019

WISDOM -------

 स्वामी  विवेकानंद  ने  भगिनी   निवेदिता  को भारत  से   एक  पत्र  में  लिखा  था ---- " यह  निश्चित  है  कि  संसार  को  एक  बार  झकझोर  डालने  की  सामर्थ्य   तुम्हारे  अंदर  सुप्त  रूप  से  विद्दमान  है  l  स्वाध्याय  और  साधना  द्वारा  उसे  जागृत  करने  की   मेरी   हार्दिक  इच्छा   है   ताकि  तुम  भारतीय  नारियों  को   वर्तमान   कुंठाओं   और  रूढ़िवादिता  से  बचाने  में  मेरे  साथ  कन्धे  से  कन्धा  मिलाकर  काम  कर  सको  l  तुम्हे  देखकर  इस  देश  की महिलाएं   अपने  आप  को  भीतर  से  झकझोरेंगी  और  कहेंगी  -- " यदि  कोई विदेशी  नारी   इस  धर्म और  संस्कृति  से   प्रेरित   होकर   सेवा  के  लिए   अपना  सब  कुछ  त्याग  सकती  है   तो  हम  क्यों  पीछे  रहें   ?  भारतीय  संस्कृति  के  अभ्युत्थान   और  भावी  संतति  को   तेजस्वी  बनाने    के  पुण्य  मिशन  में   हम  पीछे  क्यों  रहें  ? "  स्वामीजी  कहते  थे  -- भारत  को  आवश्यकता  है  एक  महिला  की जो  सिंहनी  के  समान  हो   l  '

3 June 2019

WISDOM ----- भौतिक और आध्यात्मिक द्रष्टिकोण

 इन  दोनों  द्रष्टिकोण   की  भिन्नता  ही  व्यक्ति  और  समाज  के  उत्थान  और  पतन  का  कारण  बनती  है  l  ------ मंदिर  में  दो  व्यक्ति  भगवान  का  दर्शन  तन्मयतापूर्वक  कर  रहे  हैं   l  पहला  व्यक्ति  भावना पूर्वक  इस  प्रतिमा  में  घट-घटवासी  सर्वव्यापी  भगवान्  की  झांकी  के  दर्शन  करता  हुआ  गद्गद  होता  है  l   दूसरा  व्यक्ति   मुकुट , श्रंगार का , पत्थर  आदि  का  मूल्य   आंकता  है   और  दूसरी  प्रतिमाओं  के   बाह्य  साधनों  के  साथ  तुलना  करता  है  ,  उसकी  द्रष्टि  विलास  तक   सीमित  है  l  ऐसी  स्थिति  में  दोनों  का  देव दर्शन   भिन्न  परिणाम  ही   उत्पन्न    करेगा   l 
  एक  और  तीसरा   चोर  व्यक्ति  है  ,  जो  मूर्ति  का  कीमती  श्रंगार  चुराने   की  घात  लगाकर  खड़ा  है   और  उसके  लिए  उपयुक्त  अवसर  खोज  रहा  है   l  यह  उपरोक्त  दोनों  व्यक्तियों  से  भिन्न  परिणाम  का  अधिकारी  होगा  l 
   पहले  व्यक्ति  को    भगवान   के  दर्शन  का  लाभ  मिलेगा  ,    दूसरा  व्यक्ति  श्रंगार    एवं   मंदिर  की  शोभा  की  आलोचना  कर के   मनोरंजन  करेगा   l  तीसरा  चोर व्यक्ति  पाप  में  प्रवृत  होकर  दुःख भोगेगा  ,  पकड़ा  गया  तो  जेल  जायेगा  l  इस  प्रकार  एक  ही  प्रकार  से  देव दर्शन  कर  रहे  तीन  व्यक्ति  तीन  तरह  की  गति  को  प्राप्त  होंगे  l 
  कहते  हैं  भगवान  भावना  के  भूखे  हैं  ,  हमारी  भावनाएं  पवित्र  होनी  चाहिए   l  ईश्वर - स्मरण  के  अनेक  तरीके  हैं  l  भगवान  के  नाम  का  उच्चारण  कर  के   अथवा    लिखकर   किसी    भी  तरीके  से  ईश्वर  को  याद  किया  जा  सकता  है   लेकिन   यदि  इसके  पीछे  भावना  किसी  को  उत्पीडित  करना ,   और  अपने  स्वार्थ  की  पूर्ति  करना  है  तो  उसका  परिणाम   व्यक्ति  व  समाज  सभी  के  लिए  दुखदायी  होगा   l  

1 June 2019

WISDOM ---- दूसरों को पराधीन बनाना संसार में सबसे बड़ा अन्याय और दुष्कर्म है ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  ने   वाड्मय  में  लिखा  है ---- ' पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  सबसे  बड़ा  अभिशाप  है ,  वह  चाहे  शारीरिक  हो  या  मानसिक  पराधीनता ,  व्यक्तिगत  हो  अथवा  राष्ट्रीय  ,  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है  , गुणों  का  ह्लास  होने  लगता  है   और  तरह - तरह  के  दोष  उत्पन्न  होने  लगते  हैं  l '    कवियों  ने  पराधीनता  को  ऐसी    ' पिशाचिनी  '  की   उपमा   दी  है   जो  मनुष्य  के  ज्ञान ,  मान  ,  प्राण  सबका  अपहरण  कर  लेती  है   l
                                 भगवान  ने  संसार  में  अनेक  प्रकार  के  छोटे - बड़े , निर्बल - सबल ,  मूर्ख - चतुर  प्राणी  बनाये  हैं  l  ईश्वरीय  नियम  तो  यह  है  कि  जो  अपने  से  छोटा , कमजोर ,  नासमझ  हो  उसको  आगे बढ़ने  में , उन्नति  करने  में  सहायता  दी  जाये  ,  प्रगति  के  क्षेत्र  में  उसका  मार्गदर्शन  किया  जाये   , पर  इसके  विपरीत  जो  कमजोर  को  अपना  भक्ष्य  समझे  हैं  ,  छल - बल  से  उनके  स्वत्व  का  अपहरण  करना ,  उनकी  कमजोरी  का  फायदा  उठाकर   उनसे  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  को  ही   अपनी  विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  कम  से  कम  ' मानव '  पद  का  अधिकारी   तो  नहीं  कह  सकते  l   इनकी  गणना  तो  उन  क्रूर  हिंसक  पशुओं  में  ही  की  जा  सकती  है   जिनका  स्वभाव  ही  खूंखार  बनाया   गया  है   और  जो  सबके  लिए  भय  का  कारण  होते  हैं   l