4 February 2022

WISDOM -----

   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- " धैर्य ,  धर्म  और  साहस   दिव्य   गुण   हैं   जो  मनुष्य  को  ईश्वर  विश्वास  से  ओत -प्रोत   करते  हैं   l   जीवन  के  कठिनतम  समय  में  ,  सारी   विपरीतताओं   में  भी  इन  गुणों  का   अपने  जीवन  में   अवश्य  पालन  करना  चाहिए   l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' धैर्य  का  तात्पर्य  है  --- अनगिनत   कष्टों ,   पीड़ा  व   मान - अपमान  को  शांत  भाव  से  सहना   l   इनसे  विचलित  नहीं  होना   और  इनके  प्रति    प्रतिक्रिया  न  देना    l   धैर्य  से  आत्मबल  बढ़ता  है   l  धैर्य   सहना   कायरता   नहीं है   l   धैर्यवान  वही  हो  सकता  है  ,  जो  साहसी  एवं  वीर   होता है   l    सच्चा साहस  धैर्य  से   ही  जन्म  लेता  है   l   मन  को  किसी  भी  स्थिति  में   हीन   एवं  क्षीण   मत  होने  दो    l   वायु  और  अंतरिक्ष    कभी  किसी  से  नहीं  डरते   l " कष्ट , अपमान , पीड़ा  सहना    सामान्य  बात  नहीं  है   लेकिन  जो  धैर्य  से  सब  सहन   करता है  , प्रतिक्रिया  नहीं  करता  वही  सच्चा  साहसी  है   l   एक  सत्य  घटना  है ------  अमेरिका  का  एक  प्रसिद्द   मुक्केबाज था ,  जो  विश्व  चैंपियन   भी  बना   l   एक  बार  वह  एक  रेस्टोरेंट  में   भोजन   करने   गया  l   वहां  कुछ  युवक  भी  बैठे  थे  ,  जो  शराब  के  नशे  में   उस  मुक्केबाज  को  उलटा - सीधा  बोलने  लगे  ,  परन्तु  वह  मुक्केबाज   उनकी  बातों  को   चुपचाप  सहन  कर   शांत  भाव  से  वहां  से  वापस  लौटने  लगा   l   मुक्केबाज  के  साथ  आये  उसके  मित्र    बोले  --- "  अरे ,  इनसे  डरकर   वापस   लौटने  की क्या   आवश्यकता है   ?  इनमें  से  कोई   ऐसा  नहीं  है  ,  जो  तुम्हारा  एक  घूंसा  भी   ढंग  से  सहन  कर  सके    l  "  मुक्केबाज  शांत  भाव  से  बोला  ---- "   यही  तो  बात  है   l    निर्बल पर  बल  दिखाना    साहसी का कार्य  नहीं  है   ,  सच्चा  साहस   तो   शक्ति  होते  हुए  भी    विपरीतताओं  को  सहन  कर  जाने   में  है   l "