' नियति व्यक्ति के कर्मों का परिणाम होती है l नियत के अनुसार नियति होती है l व्यक्ति का उद्देश्य क्या है ? वह जैसा सोचता है , करता है , वैसी ही उसकी नियति होती है l
महाभारत के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है ----- धृतराष्ट्र के पुत्र ' कौरव ' सदा ही षड्यंत्रकारी , फरेबी , झूठे एवं अहंकारी थे l उनके जीवन का उद्देश्य अपने को स्थापित करना और दूसरों को परेशान करना था l वे घोर अधर्मी थे l पाप पूर्ण आचरण ही उनकी नीति थी l
इसके विपरीत पांडु पुत्र ' पांच पांडव ' सदाचारी , , सत्य , न्यायप्रिय , त्यागी एवं परोपकारी थे l औरों की रक्षा के लिए वे अपने प्राणों की बाजी लगा देते थे l धर्म पर उनकी अगाध आस्था थी , उनकी नीति धर्म पर आधारित थी l इसी नीति और आचरण के कारण उनकी नियति का निर्माण हुआ l
महाभारत के युद्ध में पांडवों के साथ भगवान कृष्ण स्वयं थे और कौरवों के साथ महा पराक्रमी भीष्म , द्रोंण, कर्ण आदि महारथी थे l परन्तु इतने सारे महारथी भी दुर्योधन को विनाश की नियति से उबार नहीं सके l जबकि पांडवों की नियति धर्म के साथ खड़े होकर विजय प्राप्ति की थी l नियति के अनुसार कौरव मिट गए और पांडवों को विजय पताका फहराने का सुअवसर प्राप्त हुआ l
सतत सत्कर्म , सदाचरण एवं सदभाव के द्वारा हमारी नियति श्रेष्ठता से परिपूर्ण हो जाती है और इसके विपरीत आचरण , व्यवहार से नियति अत्यंत कष्ट साध्य बन जाती है l
महाभारत के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है ----- धृतराष्ट्र के पुत्र ' कौरव ' सदा ही षड्यंत्रकारी , फरेबी , झूठे एवं अहंकारी थे l उनके जीवन का उद्देश्य अपने को स्थापित करना और दूसरों को परेशान करना था l वे घोर अधर्मी थे l पाप पूर्ण आचरण ही उनकी नीति थी l
इसके विपरीत पांडु पुत्र ' पांच पांडव ' सदाचारी , , सत्य , न्यायप्रिय , त्यागी एवं परोपकारी थे l औरों की रक्षा के लिए वे अपने प्राणों की बाजी लगा देते थे l धर्म पर उनकी अगाध आस्था थी , उनकी नीति धर्म पर आधारित थी l इसी नीति और आचरण के कारण उनकी नियति का निर्माण हुआ l
महाभारत के युद्ध में पांडवों के साथ भगवान कृष्ण स्वयं थे और कौरवों के साथ महा पराक्रमी भीष्म , द्रोंण, कर्ण आदि महारथी थे l परन्तु इतने सारे महारथी भी दुर्योधन को विनाश की नियति से उबार नहीं सके l जबकि पांडवों की नियति धर्म के साथ खड़े होकर विजय प्राप्ति की थी l नियति के अनुसार कौरव मिट गए और पांडवों को विजय पताका फहराने का सुअवसर प्राप्त हुआ l
सतत सत्कर्म , सदाचरण एवं सदभाव के द्वारा हमारी नियति श्रेष्ठता से परिपूर्ण हो जाती है और इसके विपरीत आचरण , व्यवहार से नियति अत्यंत कष्ट साध्य बन जाती है l